संपादकीय

@@NEWS_SUBHEADLINE_BLOCK@@

Dhatukarya - Udyam Prakashan    05-नवंबर-2018   
Total Views |

Editorial 
 
साठ साल पहले आशिया के भारत, चीन, तैवान और कोरिया इन चार राष्ट्रों में लगभग एक साथ मशीन टूल उद्योग की शुरुआत हुई थी। आज इनमें से बाकी तीन देश भारत को पीछे छोड़ कर, हमसे कई गुना अधिक तरक्की पाकर दुनिया के अग्रणी देशों की पंक्ति में सुस्थापित हैं। पिछले साल के वैश्विक मशीन टूल उत्पादन के आँकड़े बताते है कि दुनिया के 40 प्रतिशत मशीन टूल इन तीन देशों में बनते हैं (चीन 28, तैवान 5 और कोरिया 6 प्रतिशत)। इनकी तुलना में भारत का हिस्सा सिर्फ 0.9 प्रतिशत है। अन्य कई उत्पादन क्षेत्रों में लगभग यही चित्र है। इसके फलस्वरूप चीन, तैवान और कोरिया में रहनेवाला सामान्य नागरिक चैन की जिंदगी बिताता है और हमारे मजदूरों के कष्ट जैसे थे वैसे ही कायम हैं।
 
पिछले पचास सालों से सी.एन.सी. मशीनों का दौर चल रहा है। मगर पचास सालों के लंबे अंतराल के बाद भी इन मशीनों को बनाने में लगने वाली सामग्री में से कास्ट आयरन और स्टील के सिवा बाकी कुछ भी भारत में नहीं बनाया जाता। सी.एन.सी. सिस्टम, स्पिंडल ड्राइव, सर्वो ड्राइव, बॉल स्क्रू, स्पिंडल बेअरिंग आदि में से कुछ भी हमारे भारत में नहीं बनता। यह सभी सामग्री चीन और तैवान में बरसों से बनती आ रही है। मशीन का ऐसा कोई भी भाग हमारे देश में नहीं बनता, जिसके लिए थोड़े उच्च स्तर की तकनीक जरूरी है। अभी परिस्थितियों में बदलाव आने के संकेत दिख रहें हैं। आशा है कि यह सच साबित हो।
 
मशीन टूल बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल अपने यहाँ सही कीमत पर मिलता है। हमारी श्रम लागत चीन और तैवान से काफी कम है। अभियंताओं की भी कोई कमी नहीं है और मैनेजमेंट गुरू तो हर नुक्कड़ पर मिलते हैं। संक्षेप में, इस क्षेत्र में ऊंचाई पाने के लिए सभी आवश्यक संसाधन हमारे पास मौजूद हैं, मगर वास्तविक प्रदर्शन नहीं के बराबर है। इसके कारण ढूंढ़ने के लिए हमें आत्मनिरीक्षण की गंभीर आवश्यकता है।
 
इस क्षेत्र में छलांग लगाने के लिए आज का माहौल सभी तरफ से अनुकूल है। चीन और कोरिया जैसे देशों में मानव संसाधन दिनबदिन महँगे होते जा रहे हैं। हमारे देश में उत्पादन लागत आज भी दुनिया में सब से कम कही जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के ‘मेक इन इंडिया’ के नारों से वातावरण थोड़ा सकारात्मक हुआ है। तैवान की कंपनीओं में ऐसा सोचा जाता है कि अगले पाँच साल भारत के होंगे। तैवानी सहयोग से कोईम्बतूर और राजकोट में दो नई फैक्टरियाँ शुरू हो गई हैं। अगले कुछ वर्षों में ऐसे और नए कारखाने स्थापित होने के संकेत हैं। तो इस प्रकार विदेशी व्यवस्थापन के अंदर काम करने वाले उद्योगों से टक्कर लेने का हमारे स्थानीय व्यवस्थापन के अंतर्गत चलने वाले उद्योगों के लिए बड़ा
अवसर है।
 
पिछले चार सालों में भारत में मशीन टूल व्यवसाय में कोई वृद्धि नहीं हुई है। इस साल अचानक बहुत ज्यादा मांग आने पर ऐसा कहा जा रहा है कि अगले पाँच साल बाजार तेज चलेगा। इस उल्लास से भरी परिस्थिति का लाभ उठाकर हमें और आगे बढ़ना चाहिए। मेहनत और लगन के साथ अच्छा आयोजन, नई तकनीकों को अपनाना और उत्पादकता बढ़ाने हेतु सकारात्मक मानसिकता विकसित करना यही हमारे भविष्य की नीति होनी चाहिए। इस विषय में पाठकों की प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
 
मशीन टूल उद्योग क्षेत्र में गुणवत्ता का स्तर बढ़ाना हो तो प्रशिक्षित मानव संसाधन अति महत्त्वपूर्ण हैं। इसके लिए हमारी सोच में तकनीकी प्रशिक्षा प्रादेशिक भाषाओं में देना आवश्यक है। इसी विचार तथा उद्देश्य के साथ हमने ‘उद्यम प्रकाशन’ का कार्य आरंभ किया है।
 
 
अशोक साठे
मुख्य संपादक
 
@@AUTHORINFO_V1@@