कास्ट आयरन टर्निंग के लिए ISO इन्सर्ट

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Udyam Prakashan    19-दिसंबर-2019   
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कास्ट आयरन 
 
लोहा लगभग 14000C पर पिघलता है और इसे सांचों में ड़ाला जा सकता है। इस वजह से उसके वांछित आकार बनाना तुलना में आसान होता है। कास्ट आयरन यानि ढ़ले लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1% से 6.7% होती है। कास्ट आयरन के, ग्रे कास्ट आयरन और डक्टाइल कास्ट आयरन इन दोनों प्रकारों का उपयोग विभिन्न पुर्जों के लिए किया जाता है।
 
ग्रे कास्ट आयरन
 
आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले कास्ट आयरन को ग्रे कास्ट आयरन कहते हैं। इसके पृष्ठ का रंग ग्रे होता है और यह घिसाव का अच्छा प्रतिरोध करता है। क्योंकि इसमें होने वाले ग्रेफाइट के कण फ्लेक्स के आकार के होते है और वह किसी भी कार्यवस्तु के पृष्ठ का बड़ा हिस्सा आच्छादित कर के चिकनाई प्रदान करने का कार्य करते है। लेकिन उनके होने से लोहे के कण विभाजित रहते हैं। इस कारण कास्ट आयरन भंगुर हो जाता है और कंपन सहने की उसकी ताकत बढ़ जाती है। इसीलिए, मशीन बेड या इंजन के धक्के खाने वाले भाग इस धातु से बने होते हैं। चूंकि इससे कम मोटाई के भाग बनाए जा सकते है, समान ताकत की लेकिन कम वजन वाली वस्तुएं बन सकती हैं। ग्रे कास्ट आयरन की सूक्ष्म संरचना (माइक्रोस्ट्रक्चर) चित्र क्र. 1 में दिखाई गई है और मुक्त ग्रेफाइट काले रंग में दिखाया गया है।
 

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डक्टाइल कास्ट आयरन
 
इस प्रकार के कास्ट आयरन में उच्च टेन्साइल स्ट्रेंग्थ होने से इसे डक्टाइल कास्ट आयरन कहा जाता है। इसे ‘स्फेरोइडल ग्रेफाइट’ कास्ट आयरन या ‘नोड्युलर’ कास्ट आयरन भी कहते हैं। ग्रे कास्ट आयरन के गठन में ग्रेफाइट लिनीअर फ्लेक्स के रूप में होता है, जबकि डक्टाइल कास्ट आयरन में यह गोलाकार (स्फेरोइडल) होता है। ये गोलाकार कण अधिक निकट और सघन (कॉम्पैक्ट) होते हैं, जिससे मटीरीयल की दृढ़ता (टफनेस) बढ़ जाती है। इस प्रकार, भंगुरता के कारण पैदा होने वाली समस्याओं से बच सकते हैं। उच्च टेन्साइल स्ट्रेंग्थ होने की वजह से, जिन घटकों को अधिक बल का सामना करना पड़ता है उनके निर्माण हेतु इस मटीरीयल का उपयोग किया जाता है जैसे कि हैड्रोलिक सिलिंडर के भाग या प्रेशर मोल्ड। डक्टाइल कास्ट आयरन की सूक्ष्म संरचना चित्र क्र. 2 में दिखाई गई है और स्फेरोइडल ग्रेफाइट काले रंग में दिखाया गया है।
 

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कास्ट आयरन की यंत्रणक्षमता
 
1958 में ISO द्वारा किए गए वर्गीकरण में, समूह K के मटीरीयल को पहचानने का लक्षण यह बताया गया है कि यंत्रण के बाद इसकी चिप अखंड़ नहीं बल्कि छोटे टुकड़ों में आती है। इस K समूह के मटीरीयल में कास्ट आयरन शामिल है। इसके यंत्रण के दौरान चिप बनते वक्त पैदा होने वाले कंपन के कारण, टूल की यंत्रण छोर का टुकड़ा निकलने की संभावना होती है। चिप बनते वक्त कार्यवस्तु का पृष्ठ भी खुरदरा बन जाने की वजह से घर्षण बढ़ कर टूल घिस सकता है। हाल ही में K समूह में उच्च श्रेणी (हाइ ग्रेड) का कास्ट आयरन शामिल किया गया है। वह अधिक सख्त और मजबूत मटीरीयल होने की वजह से, कास्ट आयरन के कुछ प्रकार यंत्रण के लिए मुश्किल माने जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि डक्टाइल एवं मैलिएबल प्रकार के इस उच्च ग्रेड के कास्ट आयरन में हमेशा ही छोटी चिप आती है। इसलिए चिप का नियंत्रण अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
 
उच्च ग्रेड कास्ट आयरन द्वारा यंत्रण का प्रतिरोध किया जाने के कारण टूल के टुकड़े होना, अधिक उष्मा पैदा होना, ‘क्रेटर’ घिसाव ऐसी समस्याएं उभरती हैं। इस धातु की एक और विशेषता है खुरदरा पृष्ठ। इसका कारण है कास्टिंग के दौरान पृष्ठ का सिकुड़ना एवं प्रसरण होना। साथ ही उष्मा के कारण पृष्ठ पर ऑक्सीकरण होने की वजह से वह और कठोर हो जाता है। फलस्वरूप पृष्ठ पर बनने वाली पपड़ियां यंत्रण में रुकावटें पैदा करती हैं।
 
सैंड मोल्ड में कास्ट आयरन बनाते समय पिघला लोहा सैंड मोल्ड में ड़ाला जाता है। तब रेत के कण, लोहे के पृष्ठ में मिल जाने की संभावना होती है। रेत कणों से बाधित ऐसे पृष्ठ की यंत्रण क्षमता कम होने के कारण, टूल की आयु भी घटती है। ऐसे में कठोरता, खुरदरा पृष्ठ, उच्च टेन्साइल स्ट्रेंग्थ और उच्च यंत्रण प्रतिरोध देने वाले कास्ट आयरन का यंत्रण करते वक्त, टूल की ताकत तथा उष्मा का सामना करने की क्षमता उच्च कोटि की होनी चाहिए।
 
मौजूदा टूल के घिसाव का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह घिसाव मुख्य रूप से ‘ऐब्रेजिव’ प्रकार का घिसाव होता है क्योंकि कास्ट आयरन के यंत्रण में टूटी चिप बनती हैं। यंत्रण के समय ये कण टूल की छोर पर लगातार टकराते रहते हैं। इसलिए, भले ही टूल पर लेपन किया गया हो, चिप से पैदा होने वाले घर्षण के कारण उसकी पपड़ियां उड़ कर मूल मटीरीयल (सब्स्ट्रेट) उजागर हो जाता है और इससे उसका घिसाव तेजी से होता है। लेकिन इस नए लेपन तकनीक के प्रयोग से घर्षण कम होता है और इसलिए मटीरीयल के गुणधर्मों के अनुसार जितना सामान्य घिसाव अपेक्षित हो उतना ही होता है।
 
इस समस्या पर संशोधन कर के मित्सुबिशी मटीरीयल कॉर्पोरेशन मेटल वर्किंग सोल्यूशन कंपनी ने टूल के लेपन में आवश्यक बदलाव किए हैं और कास्ट आयरन के टर्निंग हेतु नए ISO इन्सर्ट पेश किए हैं। MC5005 सी.वी.डी. लेपित कार्बाइड टूल (चित्र क्र. 3) विकसित किए गए हैं। इनसे यंत्रण की गति सिरैमिक ग्रेड के बराबर (600 मी./मिनट तक) रखी जा सकती है, जिससे यंत्रण की कार्यक्षमता बढ़ सकती है। लेपित टूल MC5005 और MC5015 की वजह से यंत्रण की लागत में बचत होती है और कास्ट आयरन का यंत्रण आसान बनता है।
 

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MC5005 और MC5015 की विशेषताएं
 
1. अधिक मोटाई की Al2O3 लेपन परत
 
नई लेपन तकनीक के उपयोग से हासिल की गई यह परत पारंपरिक टूल की परत की मोटाई से दोगुनी से अधिक होती है (चित्र क्र. 4)।
 

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2. उपयोग की व्याप्ति (ऐप्लिकेशन रेंज)
 
सिरैमिक टूल के बराबर की यंत्रण गति प्राप्त की जा सकती है क्योंकि Al2O3 यह मटीरीयल सिरैमिक के दर्जे का ही है। इससे कास्ट आयरन के यंत्रण की लागत घटाई जा सकती है। टूल की बढ़ी आयु और यंत्रण छोरों के नए डिजाइन की वजह से (लेपन का सुधारित तरीका) यह संभव हुआ है। MC5005 प्रकार का टूल स्थिर (स्टेबल) एवं सामान्य यंत्रण के लिए उपयोगी है, जब कि MC5015 प्रकार का टूल अस्थिर (अनस्टेबल) यंत्रण हेतु उपयोग किया जाता है, तालिका क्र. 1 और आलेख क्र. 1 देखें। 
 


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ऐसे यंत्रण में झटके, काट की असमान गहराई और टूल की तुलना में कम मजबूत पकड़ जैसी समस्याएं आती हैं। इन्हें दूर करने के लिए टूल पर विशेष तरीके से लेपन (चित्र क्र. 5) किया गया है।
 

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3. टफ ग्रिप
 
पेटंट ली हुई तकनीक से बनी इस परत का ग्रेन स्ट्रक्चर नैनो स्तरीय मापों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसलिए इसके बंधन (बाँडिंग) अधिक मजबूत होते हैं। ये ‘टफ ग्रिप’ बंधन, इस लेपन की घिसाव प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं। लेपन की परतें अधिक ताकतवर बनती हैं। इस हेतु विशेष HRA91.0 का उपयोग मूल मटीरीयल (सब्स्ट्रेट) के रूप में किया गया है।
 
 
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टफ ग्रिप (चित्र क्र. 6) हमारी पेटंटेड तकनीक है। मटीरीयल की निचली परतें निकलना (डीलैमिनेशन) रोकने के लिए टफ ग्रिप तकनीक विकसित की गई है। Al2O3 की घनी परत की पपड़ियां निकलने (पीलिंग ऑफ) की मात्रा इस तकनीक के उपयोग से घटती है। पारंपरिक तकनीक में, यंत्रण के आरंभ में ही पपड़ियां निकलने से टूल का मूलाधारी मटीरीयल जल्द ही उजागर हो जाता है (चित्र क्र. 7)।
 

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कास्ट आयरन के यंत्रण की मिसालें
 
मिसाल 1
 
इस कार्यवस्तु का पृष्ठ असमान होने के कारण टूल की आयु बढ़ाने के साथ ही यंत्रण का समय घटाना चुनौतीपूर्ण था। इसमें हमारे इन्सर्ट के उपयोग से हुए बदलाव और लाभ आगे दिए गए हैं।
 

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मिसाल 2 
 
इस कार्यवस्तु का यंत्रण करते समय, पहले यंत्रण पैरामीटर वैसे ही रखते हुए टूल की आयु बढ़ाई गई है।
 

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नितीन क्षीरसागर
टीम लीडर, (तांत्रिक सहायता विभाग) MMC हार्डमेटल इंडिया प्रा. लि.
9371276736
 
नितीन क्षीरसागर यांत्रिकी अभियंता हैं। आप चचउ हार्डमेटल इंडिया प्रा. लि. कंपनी में तांत्रिक सहायता विभाग में टीम लीडर हैं। आपको कटिंग टूल की बिक्री एवं ऐप्लिकेशन क्षेत्र में 15 वर्षों का तजुर्बा है। 
 
 
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