कई सालों से हम सी.एन.सी. मशीनों का उपयोग कर रहे हैं। हम इन पर इतने निर्भर हो गए हैं कि हमें लगता है इन के बगैर हमारा काम ही नहीं होगा। उसी समय कुछ लोगों ने, जो पारंपरिक मशीन का उपयोग कर रहे थे, उन्होंने सी.एन.सी. मशीन का इस्तेमाल शुरु किया है। शुरु में उन्हें इस बात पर संदेह होता था कि यह मशीन किफायती है या नहीं, और जब तक वे इसे जान पाते थे तब तक बहुत देर हो जाती थी। इसलिए, हम एक मिसाल देखेंगे जिससे यह जाना जाएगा कि यह समस्या कैसी हल की जाए।
किसी छोटे कारखाने में, चित्र क्र. 1 में दिखाई गई, कार्यवस्तु तैयार की जा रही थी। पहले इस हेतु, जिग के उपयोग से, रेडियल ड्रिलिंग मशीन पर यंत्रण किया जा रहा था। जिग की निरंतरता न रख पाना, स्पिंडल रनआउट के कारण होनेवाली ड्रिल/रीमर की क्षति और छेद में सटीकता न मिलना आदि समस्याएँ आ रही थी। इस यंत्रण के दौरान और भी दिक्कतें थी। साथ में उत्पादन की अपेक्षित मात्रा समय पर हासिल नहीं हो रही थी। इसलिए वी.एम.सी. के उपयोग से ही कार्यवस्तु बनाई जाने की मांग ग्राहक ने की। तब उत्पादक ने नया वी.एम.सी. खरीद लिया और अब वी.एम.सी. के उपयोग से ही कार्यवस्तु बनाई जाने लगी।
रेडियल ड्रिलिंग मशीन की तुलना में, वी.एम.सी. लगभग चार गुना अधिक महंगा था। वी.एम.सी. के उपयोग के बाद काम की गुणवत्ता में सुधार हुआ, लेकिन कार्यवस्तुओं की संख्या अपेक्षित हिसाब से मेल नहीं खा रही थी। पहले की तुलना में गुणवत्ता में निःसंदेह सुधार था लेकिन एक महीने में, दो शिफ्ट में, केवल 1500 कार्यवस्तुओं का उत्पादन हो रहा था। इसलिए मशीन का खरीद ऋण चुकाना मुश्किल हो गया था। श्रमिकों की मजदूरी और अन्य लागत मुश्किल से जुटा पाते थे। कारखाने के मालिक के सामने सवाल खड़ा हुआ कि कहीं उसने यह मशीन खरीद कर गलती तो नहीं कर दी। इस कारखाने के कुछ लोगों ने इस समस्या को ले कर हमसे मुलाकात की। हमने इस का संपूर्ण अध्ययन करने का निर्णय लिया। तब हमने ये जाना की यह मशीन खरीदते समय केवल उसकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया हुआ है। एक समय सिर्फ एक कार्यवस्तु बनाने के लिए इस मशीन का उपयोग किया जा रहा था और दो सेटिंग में कार्यवस्तु के दो पृष्ठ का यंत्रण किया जा रहा था। चित्र क्र. 2 दिखाता है कि, 110 मिमी. पी.सी.डी. पर ø12 मिमी. का एक छिद्र ऊपरी कालर में फूट रहा था। इसलिए मशीन सप्लायर ने दो सेटअप का इस्तेमाल किया था।
सबसे पहले, हमने एक छोटी प्लेट पर दो कार्यवस्तुएँ उल्टी-सीधी स्थापित कर दी और कार्यवस्तु की दोनों छोरों पर एक ही सेटिंग में ड्रिलिंग शुरू कर दी। ड्रिल करते समय कार्यवस्तु के बेहद नजदीक से शुरुआत कर के, काट का समयावधि घटा दिया। माइक्रोफाइंड ग्रेड की कार्बाइड ड्रिल को आलेपित कर के इस्तेमाल किया गया। इससे उत्पाद में भारी सुधार हुआ और एक महीने में 5000 कार्यवस्तुएँ बनने लगी (तालिका क्र 1)।
इसके बाद हमने एक ऐसा फिक्श्चर तैयार किया जिससे 6 कार्यवस्तु एक ही सेटिंग (चित्र क्र. 3) में बनाना संभव हुआ। इन 6 कार्यवस्तुओं को एक प्लेट में बिठाया गया और इस असेंब्ली का बोझ इस तरह सीमित रखा कि उसे उठा कर टेबल पर रखा जा सके। यह प्लेट मशीन टेबल पर एक फिक्श्चर प्लेट में लोकेट (चित्र क्र. 4) की गयी। इस प्रकार, एक कार्यवस्तु उठाने के समय में ही 6 कार्यवस्तुओं का लोडिंग तथा अनलोडिंग मुमकिन हो गया। 3 कार्यवस्तुओं की ऊपरी परत के छिद्र तथा 3 कार्यवस्तुओं की निचली परत के छिद्र ऐसा सेटअप बनाते समय कार्यवस्तु को बाजु में हिला कर लगाने से, मशीन की ट्रैवल में सारे छिद्र सम्मिलित हो गए। एक सेटअप से, 9.6 मिनट में, तीन पूर्ण कार्यवस्तुएँ (ऊपरी/निचले सारे छिद्रों सहित) तैयार होने लगी। इसका मतलब, प्रति कार्यवस्तु के लिए केवल 3.2 मिनट का समय लगा। फलस्वरूप एक महीने में 7000 कार्यवस्तुओं का उत्पादन हुआ।
कुछ लोग, जो पारंपरिक मशीन का उपयोग कर रहे थे, उन्होंने जब सी.एन.सी. मशीन का इस्तेमाल शुरू किया तब शुरु में उन्हें इस बात पर संदेह होता था कि यह मशीन किफायती है या नहीं, और जब तक वे इसे जान पाते तब तक बहुत देर हो जाती थी।
जहाँ एक महीने में मशीन की किश्त देने में दिक्कत होती थी वहा इस नई सुधारित पद्धति से हर महीना 44,000 रुपये का मुनाफा होने लगा। पहले, अनुमान के अनुसार उत्पादन न मिलने के कारण कार्यवस्तु अन्य प्रतिस्पर्धियों को भेजी जाती थी। लेकिन अब प्रति कार्यवस्तु कीमत 2 रुपये से घटने की वजह से उन्ही ग्राहकों ने अतिरिक्त काम देना शुरु किया। उसी प्रकार की अन्य कार्यवस्तुएँ मिलने का भरोसा होने पर यही उद्योजक नई मशीन खरीदने के लिए सोचने लगा।
चेतावनी : ऊपरलिखित निष्कर्ष केवल एक मशीन के आधार पर लिए गए हैं और सी.एन.सी क्षेत्र में पहली बार प्रवेश करने वालों को ध्यान में रख कर यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। जिनके पास एक से अधिक मशीनों का सेटअप हैं उनके लिए समीकरण अलग होगा। मूल मशीन की कीमत बढ़ने पर उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव कर के काम को किफायती बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। तब ही हमें अपने निवेश पर उचित लाभ पाना संभव होगा। इस बात को स्पष्ट करना ही इस अनुच्छेद का प्रयोजन हैं।
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दत्ता घोलबाजी ‘मानस इंजीनीयरिंग कार्पोरेशन’ कंपनी के संस्थापक संचालक हैं। आप 44 सालों से कटिंग टूल से संबंधित कार्य कर रहे हैं।