क्लैंप

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    10-मार्च-2019   
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Clamp
जिग और फिक्श्चर इस लेखमाला के तीसरे पाठ में हमने कुछ लोकेटर एवं क्लैंप के बारे में जानकारी हासिल की है। इस लेख में हम क्लैंप के बारे में अधिक जानकारी लेंगे।
 
पिछले लेख में हमने देखा कि क्लैंपिंग सिस्टम (कार्यवस्तू पकड़ने की प्रणाली) तय करते वक्त कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पे सोचना जरूरी है। क्लैंप के नीचे आधार होना अत्यावश्यक है। अगर यह आधार ना हो तो कार्यवस्तू ऊपर उठेगी या दबेगी या टेढ़ी मेढ़ी हो जाएगी। चित्र क्र. 1 में सही और चित्र क्र. 2 में गलत क्लैंपिंग सिस्टम दिखाई गई हैं। गलत सिस्टम में आप देख सकते हैं कि क्लैंपिंग करने वाले स्क्रू आधार की बाहरी तरफ हैं, इसलिए कार्यवस्तु दबी हुई नजर आ रही है। इस तरह से क्लैंपिंग करना बहुत बड़ी गलती साबित होगी। चित्र क्र. 1 में सही क्लैंपिंग दिखाया गया है। इसमें आप देख सकते हैं कि क्लैंपिंग करने वाले स्क्रू आधार पर सही तरीके में बोझ ड़ाल रहें हैं और इसलिए कार्यवस्तु बिना दबे सही तरीके से पकड़ी गई है। इस नियम का अनुपालन अनिवार्य है।
Fig .1

Fig .2 
 
चित्र क्र. 3 में दिखाया गया क्लैंपिंग सही है, क्योंकि सामने की तरफ कार्यवस्तु को सही आधार है, इस वजह से कार्यवस्तु उपर उठती नही है। लेकिन चित्र क्र. 4 में दिखाई दे रहा है कि कार्यवस्तु पर जो बल कार्य कर रहा है, उसकी कार्यरेखा के सामने आधार ना होने की वजह से जहाँ आधार खत्म होता है उस बिंदु पर कार्यवस्तु उपर उठेगी। इसका मतलब है, जब हम बल लगाते हैं तब सामने की तरफ आधार होना जरूरी है। इसलिए चित्र क्र. 3 में दिखाई गई पद्धति सही है। चित्र क्र. 5 में टूल के कार्य के दौरान निर्माण हुए बल की वजह से कार्यवस्तु आधार की तरफ धकेली जाती है। इसी तरह, क्लैंप के बल से भी कार्यवस्तु आधार की तरफ धकेली जाती है। इसका मतलब है टूल के या क्लैंप के कारण निर्माण होने वाले बल की वजह से कार्यवस्तु का संभाव्य संचलन आधार की वजह से ही रोका जाता है। आधार पक्का है, इसलिए यह पद्धति बहुत सुरक्षित और सही है।

Fig .3

Fig .4 
 
अभी हम चित्र क्र. 6 का परीक्षण करेंगे। आधार केवल क्लैंप की वजह से पैदा हुए बल की हिफाजत कर रहा है। यहाँ क्लैंप के कारण निर्माण होने वाला बल आधार की दिशा में है और टूल के कारण निर्माण होने वाला बल क्लैंप की दिशा में है। यह बिल्कुल गलत तथा असुरक्षित है। टूल का बल किसी भी हालत में क्लैंप की दिशा में नही होना चाहिए क्योंकि अगर क्लैंप टूट जाए, तो कार्यवस्तु उछलेगी और दुर्घटना का खतरा उत्पन्न होगा। टूल का बल किसी भी हालत में आधार की दिशा में होना चाहिए और इस नियम का पालन हमेशा होना चाहिए। इसलिए चित्र क्र. 6 में दिखाई गई पद्धति गलत है।

Fig .5

Fig .6 
 
अभी हम हमेशा इस्तेमाल होने वाले क्लैंप के कुछ प्रकार देखेंगे।
1. स्ट्रैप क्लैंप स्लाइडिंग (सरकने वाला) और रोटेटिंग (घूमने वाला)
2. स्विंग टाईप क्लैंप
3. ‘उ’ वॉशर क्लैंप
4. स्विंग लैच टाईप क्लैंप
5. वेज टाईप क्लैंप
6. क्विक क्लैंपिंग नट
7. कैम क्लैंप
8. लैच क्लैंप
9. टॉगल क्लैंप
10. पुश पुल टॉगल क्लैंप
 
अब हम उपर बताए गए क्लैंप में से कुछ क्लैंप के बारे में और जानकारी लेते हैं। स्ट्रैप क्लैंप के कार्य का तरीका हमने (फरवरी 2019) देखा है।
 
स्विंग टाईप क्लैंप
स्विंग टाईप क्लैंप इस्तेमाल के लिए आसान होते हैं और वे बहुत तेजी से कार्य करते हैं। याने कि कार्यवस्तु पकड़ने में बहुत कम समय लगता है। अब हम देखेंगे कि चित्र क्र. 7 में दिखाए गए स्विंग क्लैंप के विभिन्न घटक किस प्रकार कार्य करते हैं।

क्लैंपिंग स्क्रू : क्लैंपिंग स्क्रू यह एक ऐलन स्क्रू होता है। जब यह स्क्रू घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है तब स्विंग क्लैंप के साथ यह नीचे आना शुरू हो जाता है। इस वजह से कार्यवस्तु कस कर पकड़ी जाती है और इसे उल्टा घुमाया जाने पर कार्यवस्तु ढ़ीली हो जाती है।
Fig .8 - Swing Clamp
 
स्विंग क्लैंप : कार्यवस्तु को कस कर पकड़ना यह इसका काम है। चूंकि यह क्लैंप कार्यवस्तु पर लगातार दबाव ड़ालता है, इसे टफन किया जाता है, तथा इसका कार्यवस्तु के संपर्क में आने वाला हिस्सा कठोर (हार्ड) किया जाता है। टफन करने की वजह से इसकी ताकत बढ़ जाती है और कठोर किए जाने से यह कम घिसता है।
 
स्टॉपर पिन : इसका काम है स्विंग क्लैंप को रोकना। कार्यवस्तु पकड़ने के बाद क्लैंप आड़ा होकर पिन ‘अ’ से सट कर रुक जाता है और कार्यवस्तु को कस के पकड़ता है। ढ़ीला करने के बाद चित्र क्र. 7 में दिखाए गए तरीके से वह गोलाकार दिशा में घूम कर पिन ‘ब’ से सट जाता है। इस प्रकार कार्यवस्तु निकाली जा सकती है।
 
स्पेसर और क्रॉस पिन : स्पेसर इच्छित स्थल पर बिठाने के लिए स्पेसर एवं स्क्रू में एक क्रॉस पिन आरपार बिठाई होती है। इससे इच्छित लंबाई की स्प्रिंग इस्तेमाल करना मुनासिब बन जाता है। इसका मतलब, स्प्रिंग का बल जरूरत के अनुसार नियंत्रित करना संभव होता है। स्प्रिंग हमेशा अंदरूनी या बाहरी व्यास पर गाईड की जाती है, इसलिए वह बिना मोड़े ठीक तरीके से कार्य करती है।

स्प्रिंग : स्प्रिंग की वजह से क्लैंप हमेशा स्क्रू के संपर्क में रहता है। इसलिए वह स्क्रू के साथ उपर या नीचे होता है। स्प्रिंग के दबाव की वजह से क्लैंपिंग स्क्रू जिस तरह घुमाया जाएगा उसी प्रकार क्लैंप भी घूमता है। स्प्रिंग का यह दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है। स्प्रिंग की वजह से क्लैंप को हाथों से उपर खींचने या घुमाने की जरूरत नहीं होती।

Fig .8 - Swing Clamp
 
इस विवरण से आपको ध्यान में आएगा कि हर घटक का अपना महत्व और कार्य होता है। कोई भी घटक अनावश्यक नहीं होता, ना वैसा होना चाहिए। चित्र क्र. 8 में एक अलग किस्म का स्विंग क्लैंप दिखाया गया है। इस किस्म का क्लैंप अक्सर स्वचालित फिक्श्चर में इस्तेमाल किया जाता है। जब शाफ्ट ऊपर नीचे होता है तब, बाजू में स्थित क्रॉस पिन और शाफ्ट पे स्थित ग्रूव (खाँचे) की वजह से क्लैंप गोलाकार दिशा में घूमता है। इस प्रकार शाफ्ट ऊपर धकेला जाने के बाद क्लैंप घूमता है और कार्यवस्तु बाहर निकालना आसान बन जाता है।
 
चित्र क्र. 9 अ और 9 ब में दो अलग किस्म के स्विंग लैच प्रकार के क्लैंप दिखाए गए हैं। ऐसे क्लैंप को, चित्र क्र. 7 एवं चित्र क्र. 8 में दिखाए गए क्लैंप की तुलना में, जादा जगह की जरूरत होती है और प्राप्त बल मर्यादित होता है। लेकिन कार्यवस्तु बिठाना तथा निकालना (लोडिंग अनलोडिंग) अधिक आसानी से होता है। बहुत जगहो में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

Fig .9A
 
Fig .9 
 
 
चित्र क्र. 10 में कैम प्रकार का क्लैंप दिखाया गया है। इसका कार्य पिछले लेख में वर्णित स्ट्रैप क्लैंप (चित्र क्र. 11) के समान होता है। इसमें क्लैंपिंग नट के बजाय कैम हैंडल का इस्तेमाल किया जाता है, तथा बीच में स्थित स्टड खास बनाया हुआ होता है। उसमें बनाए हुए खाँचे में पिन ड़ाल कर कैम हैंडल बिठाया गया है। कार्यवस्तु कस के पकड़ने के लिए उसे नीचे दबाना पड़ता है और ढ़ीली करने के लिए उसे उपर उठाना होता है। हमेशा प्रयोग किए जाने वाले नट की तुलना में इसे बहुत कम समय लगता है तथा स्पैनर की जरूरत नहीं होती। जब कार्यवस्तु के यंत्रण का वक्त बहुत कम होता है तब इस प्रकार के क्लैंप का इस्तेमाल किया जाता है।

Fig .10 - Camp Type Clamp

Fig .11 - Strap clamp seen in previous article 
 
चित्र क्र. 12 और 13 में टॉगल क्लैंप दिखाया गया है। इस क्लैंप से बहुत तेजी से कार्यवस्तु पकड़ी जाती है। वक्त बहुत कम लगता है और स्पैनर के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होती। इसलिए समय की बचत होती है। यह सुरक्षित होता है। वेल्डिंग, बेंडिंग फिक्श्चर में अक्सर इसका प्रयोग किया जाता है। साथ ही, कुछ हद तक, असेंब्ली फिक्श्चर में भी इसका उपयोग किया जाता है। लेकिन यंत्रणसंबंधी कार्य में इसका प्रयोग सामान्यतः नहीं किया जाता क्योंकि यंत्रण के कंपन से यह ढ़ीला पड़ सकता है। उससे कार्यवस्तु उछल कर दुर्घटना भी हो सकती है।

Fig .12
 
Fig .13 
 
इस क्लैंप के कई प्रकार तैय्यार (रेडीमेड) उपलब्ध होते हैं और उनका मानकीकरण बड़े पैमाने पे किया होने से यह आसानी से उपलब्ध होते हैं। सामान्य रूप से जरूरी क्लैंप का भंडारण किया जा सकता है जिससे मरम्मत के समय में बचत हो सकती है।
 
चित्र क्र. 14 में दिखाया गया क्लैंप हमेशा इस्तेमाल होने वाले किस्म का है। सामान्य वॉशर का प्रयोग किया जाए तो नट पूरा निकालना पड़ता है। लेकिन उ क्लैंप का इस्तेमाल किया जाए तो नट थोड़ा ढ़ीला कर के कार्यवस्तु शीघ्र लोड अनलोड की जा सकती है। लेकिन यह गुम हो जाने की संभावना होती है। इसलिए बहुत जगह इसे जंजीर लगाई लोकेटर जाती है। दूसरा हल है स्विंग किस्म के C टाईप क्लैंप का डिजाइन कर के इस्तेमाल करना, जो चित्र क्र. 15 में दिखाया गया है। इससे वह गुम होने की संभावना नहीं रहती।
Fig .14 - 'C' clamp

Fig .15 - Swing  'C' clamp 
 
हमने अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले क्लैंप के कुछ प्रकार देखे। इनके विविध नमूने होते हैं। कार्य की जरूरत के मुताबिक इच्छित क्लैंप डिजाइन किए जा सकते हैं और करने पड़ते भी हैं। हमें अक्सर जरूरी होने वाले क्लैंप का मानकीकरण करना यथोचित होता है। इससे मरम्मत तुरंत हो जाती है और मरम्मत का खर्चा भी घटता है।
 
अगले लेख में हम जिग और फिक्श्चर में हमेशा इस्तेमाल होने वाले विभिन्न पुर्जों की जानकारी हासिल करने वाले हैं। तब तक अपने आजूबाजू इस्तेमाल किए जाने वाले क्लैंप का अध्ययन और निरीक्षण करें। जितना निरीक्षण करेंगे उतना अधिक ज्ञान आप पाएँगे।
 
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अजित देशपांडेजी को जिग और फिक्श्चर के क्षेत्र में 36 सालों का अनुभव है। आपने किर्लोस्कर, ग्रीव्ज लोंबार्डिनी लि., टाटा मोटर्स जैसी अलग अलग कंपनियों में विभिन्न पदों पर काम किया है। बहुत सी अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में और ARAI में आप अतिथि प्राध्यापक हैं।
 
 
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