छोटे पुर्जों का संचालन करने वाला स्वचालन

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    03-मई-2019   
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small parts automation
 
कई सालों से यह गलतफहमी फैली हुई है कि भारतीय उद्योगों को स्वचालन की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि भारत में अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम खर्चे में बड़े पैमाने पर मजदूर उपलब्ध हैं और भारत में बेरोजगारी की वजह से मजदूर मिलने में कोई भी दिक्कत नहीं है। लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है कि यह विचार अनुचित है। यद्यपि भारत में कम खर्चे में मजदूर उपलब्ध होते हैं लेकिन उनकी उत्पादकता भी बहुत ही कम होती है, जिसके कारण प्रतियोगिता के इस युग में ड़ट कर रहने के लिए आज स्वचालन की ओर उत्पादकों का झुकाव बढ़ रहा है।

स्वचालन की आवश्यकता
 
किसी भी उद्योग की उत्पादकता उस उद्योग की कार्यक्षमता पर निर्भर होती है। इस कार्यक्षमता के उपयुक्त इस्तेमाल से ही मूल्यवर्धन (वैल्यू ऐडीशन) होता है। आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में वस्तु की कीमत और उत्पादन का खर्चा कम से कम रखने का प्रयास हमेशा होता रहता है। इसी वजह से उत्पादन की हर प्रक्रिया सही ढ़ंग से सोच कर वह अधिक से अधिक लाभकारी बनाई जाए तो उत्पादकता बढ़ कर उत्पादन फायदेमंद हो सकता है। कोई उत्पादक अगर स्वचालन का मार्ग नहीं अपनाएगा तो कोई अन्य उत्पादक स्वचालन अपना कर आगे निकल जाएगा। इसलिए हर प्रक्रिया में स्वचालन आवश्यक हो गया है। ऐसा भी हो सकता है कि कोई प्रक्रिया बार बार करते रहने से, पुनरावृत्ति के कारण जी ऊब जाने की संभावना होती है। दिनरात वही काम करने से उत्पादकता घट कर कार्यक्षमता तो कम होती ही है, साथ में उत्पाद का दर्जा भी कम हो सकता है। इसलिए उत्पाद की गुणवत्ता एवं निरंतरता बनाई रखने के लिए स्वचालन करना जरूरी हो जाता है।
 
छोटे आकार के पुर्जों को नियंत्रित करने की प्रक्रिया स्वचालित करते समय प्रक्रिया के लिए योग्य दिशानिर्देश (ओरिएंटेशन) देना सबसे महत्वपूर्ण भाग है। ओरिएंटेशन का मतलब है हर पुर्जा विशिष्ट दिशा/प्रणाली से ही अगली प्रक्रिया के लिए आगे भेजा जाना। अत: यह काम करते समय कंपन घट (वाइब्रेटरी बाउल) इस्तेमाल किए बिना, छोटे पुर्जों की उत्पादन प्रक्रिया का पूर्ण स्वचालन होना संभव नहीं है। यह छोटे आकार के मशीन, छोटे पुर्जों को अगली प्रक्रिया के लिए आगे बढ़ाते समय, उस प्रक्रिया को आवश्यक क्रम में रखने का काम करते हैं। यह कंपन घट AC विद्युतधारा पर चलते हैं। ये विद्युत चुंबकीय कॉइल के बनाए होते हैं। इस कॉइल में से बिजली गुजरते समय एक बार चुंबक उसकी ओर आकर्षित होता है तो अगली बार दूर धकेला जाता है। इस अविरत प्रक्रिया के कारण कंपन पैदा होते हैं, जो चुंबक पर बिठाई हुई स्प्रिंग प्लेट द्वारा कंपन घट के ऊपरी पृष्ठ तक पहुंचते हैं। इस ऊपरी पृष्ठ पर इस्पात या ऐैल्युमिनिअम का बाउल लगाया होता है।

Vibratory Bowl Feeder 
 
जिस उत्पादन प्रक्रिया में छोटे आकार के पुर्जों पर काम करना पड़ता है, उन सभी उद्योगों में इस प्रकार के कंपन घट विभिन्न प्रकार के काम कर के महत्वपूर्ण कार्य निभाते हैं। यह कंपन घट अत्यधिक तेजी से, अर्थात करीब 10 मीटर प्रति मिनट की गति से, काम करते हुए हर मिनट 20 से 1000 पुर्जों को संभालते हैं। यह गति, संबंधी पुर्जे के आकार, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई और उसे किस तरह आगे भेजना है, आदि बातों पर निर्भर रहती है। इस वाइब्रेटरी बाउल फीडर से एक और लाभ है कि इसकी गति आवश्यकता के मुताबिक बदली जा सकती है। साथ ही सेन्सर का इस्तेमाल कर के इसकी गति, अगला काम करने वाले मशीन के अनुसार, बदल सकते हैं। इस प्रणाली के उपयोग से बेरिंग रेस, बेरिंग रोलर, वाहनों के छोटे पुर्जे, इंजन के पुर्जे, प्लास्टिक कैप या बोतलें, स्क्रू, बोल्ट, नट, वॉशर जैसे छोटे छोटे पुर्जे, योग्य ओरिएंटेशन कर के, मशीन को सप्लाइ किए जाते हैं।
 
पुर्जों का ओरिएंटेशन करने की विधि
 
कंपन घट में निर्माण हुए कंपनों के कारण घट में होने वाले पुर्जे ऊपरी दिशा में सरकने लगते हैं। आगे बढ़ते समय उनके मार्ग को विशिष्ट दिशा देने से तथा दिशा बदलने वाले डिफ्लेक्टर लगाने से घट में भरे हुए पुर्जों का स्थान (पोजिशन) एवं हलचल (मूवमेंट)की दिशा इच्छानुसार बदल सकते हैं। इच्छा के अनुसार उनकी रचना की जा सकती है। छोटे पुर्जे इस घट में किसी भी प्रकार से भरे जाने के बावजूद, उनको इच्छित रचना में बाहर निकाला जा सकता है। कंपन घट से यह सबसे बड़ा लाभ है। कंपन घट में, कंपनों के कारण पुर्जे किस प्रकार से हिलें तथा उनके चलन का मार्ग कैसा होना चाहिए, यह उस पुर्जे के गुरुत्वकेंद्र का परीक्षण कर के और अनुभव से निश्चित कर सकते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि किसी भी पुर्जे का ओरिएंटेशन करना ‘काली विद्या’ (ब्लैक आर्ट) है क्योंकि यह काम अनुभव से ही सीखा जा सकता है, उसका कोई मानक मौजूद नहीं है।

रोटरी फीडर
 
छोटे पुर्जे आगे धकेलने के लिए कंपन घटों के लिए चक्रगति (रोटरी) या केंद्रोत्सारी (सेंट्रिफ्यूगल) फीडर का विकल्प होता है। कई बार यह कहा जाता है कि 20 वीं सदी के प्रारंभ से वाइब्रेटरी बाउल फीडर इस्तेमाल हो रहे हैं फिर भी इनका कोई विकल्प नहीं मिला है। लेकिन मोटर से घुमाए जाने वाले केंद्रोत्सारी फीडर का इस्तेमाल विकल्प के रूप में हो सकता है।

rotary feeder
table 1 
 
वाइब्रेटरी बाउल फीडर की तुलना में केंद्रोत्सारी फीडर से कई लाभ हैं। उनमें से सब से अहम् लाभ है, तेज गति या सरकने की गति। केंद्रोत्सारी फीडर तुलना में बहुत ही तेज गति से चलते हैं। वे 50 मीटर प्रति मिनट सरकन गति से चल सकते हैं, जब कि उच्च गति के वाइब्रेटरी बाउल फीडर की सरकने की अधिकतम गति 10 मीटर प्रति मिनट होती है। इसके अलावा उनमें कोई कंपन भी नहीं होते हैं, सिर्फ यांत्रिकी (मेकैनिकल) पुर्जे होते हैं। इसी वजह से जिन लोगों को वाइब्रेटरी बाउल फीडर के बारे में आशंका होती है उन्हें केंद्रोत्सारी फीडर पर ज्यादा भरोसा होता है (एल्सिंट ऑटोमेशन जैसे उत्पादक भरोसेमंद वाइब्रेटरी बाउल फीडर बना कर देते हैं)। चक्रीय/केंद्रोत्सारी फीडर की मुख्य समस्या यह है कि उनमें रखे गए छोटे पुर्जों की गति बहुत तेज से होने और उनमें कोई कंपन न होने के कारण उनका इच्छानुरूप ओरिएंटेशन करने में मुश्किलें आती हैं। इसलिए कई बार केंद्रोत्सारी फीडर में, वायु की पिचकारी (एअर जेट) द्वारा छोटे पुर्जों का एक दिशा में ओरिएंटेशन करना पड़ता है। इसकी तुलना में वाइब्रेटरी बाउल फीडर में शायद ही कभी एअर जेट का प्रयोग करना पड़ता है। इसी कारण केंद्रोत्सारी फीडर का खर्चा, वाइब्रेटरी बाउल फीडर से ज्यादा होता है। केंद्रोत्सारी फीडर का प्रयोग करते समय दूसरी समस्या होती है, इसमें घूमने वाले छल्ले के कारण निर्माण होने वाला पॉजिटिव दबाव, जिससे छोटे पुर्जे एक दूसरे से टकराते हैं। वे फीडर की बाहरी दीवारों पर भी टकराते हैं। किंतु केंद्रोत्सारी फीडर की उचित संरचना से यह टाला जा सकता है। इसके विपरीत वाइब्रेटरी बाउल फीडर में छोटे पुर्जों का कोई नुकसान नहीं होता। इसलिए कोमल या भंगुर छोटे पुर्जों के लिए वाइब्रेटरी बाउल फीडर का इस्तेमाल किया जाता है।
 
चक्रीय/केंद्रोत्सारी फीडर का इस्तेमाल के समय एक अन्य समस्या पैदा होती है। उसमें रखे गए छोटे पुर्जे एक दूसरे में अटक कर उनकी गति रुक सकती है। इसके समाधान हेतु उसमें एक समय पर मर्यादित संख्या में ही पुर्जे ड़ाले जा सकते हैं। इसलिए कई बार अतिरिक्त हॉपर का इस्तेमाल कर के छोटे पुर्जों की अविरत आपूर्ति केंद्रोत्सारी फीडर में करनी पड़ती है। इस वजह से केंद्रोत्सारी फीडर की कीमत और बढ़ जाती है। जिनका ओरिएंटेशन करना होता है ऐसी बोतलों के ढ़क्कन, बेलनाकार रोलर, सुई के आकार के नीडल रोलर, चिपटे या बेलनाकार ड्रिपर, बेरिंग की रेस या बेरिंग की गोल रिंग जैसे अनेक छोटे पुर्जे केंद्रोत्सारी फीडर में ड़ाल कर उनका ओरिएंटेशन किया जा सकता है।



plug counting feeder
table 

internal design of bound feeder 
Magnetic System With Bound Feeder
 
साथ ही जिन पुर्जों का अचूक ओरिएंटेशन करना आवश्यक होता है उन छोटे पुर्जों का ओरिएंटेशन भी केंद्रोत्सारी फीडर की मदद से कर सकते है। लेकिन अगर किसी छोटे पुर्जे का ओरिएंटेशन केंद्रोत्सारी फीडर की मदद से नहीं हो सका तो उस जगह वाइब्रेटरी बाउल फीडर का इस्तेमाल करना पड़ता है। जिस जगह कुछ हद तक या पूरी तरह स्वचालित असेम्ब्ली करनी हो, वहाँ छोटे पुर्जों का विशिष्ट दिशा में ओरिएंटेशन करना आवश्यक होता है। उस समय वाइब्रेटरी बाउल फीडर का इस्तेमाल किया जाता है। कई वैद्यक उपकरण जोड़ते समय उन्हें हाथ लगाना मना होता है, तब वाइब्रेटरी बाउल फीडर के उपयोग से उन्हें आगे भेजा (फीड किया) जाता है।
 
कंपन घट का इस्तेमाल
गिनने के लिए (काउंटिंग)
कई बार छोटे पुर्जों को गिनने की आवश्यकता होती है। वाइब्रेटरी बाउल फीडर के पास सेन्सर एवं अन्य मशीन लगा कर उन छोटे पुर्जों का गणन आसानी से और कम खर्च में हो सकता है।
 
वस्तु लपेटने के लिए (पैकिंग)
छोटे पुर्जे पैक करने के लिए उन्हें एक दिशा में ओरिएंट कर के आगे बढ़ाना पड़ता है। इस काम में वाइब्रेटरी बाउल फीडर का इस्तेमाल किया जाता है।
 
वर्गीकरण के लिए (सॉर्टिंग)
एकत्रित हुए विभिन्न पुर्जों का वर्गीकरण (सॉर्टिंग) करने के लिए वाइब्रेटरी बाउल फीडर उपयोगी हैं।

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मोनीश शेटेजी ‘एल्सिंट ऑटोमेशन’ कंपनी के सी.ई.ओ. हैं। आपके उत्पाद में रही संगतता और नए विचार के बल पर आज 30 से अधिक देशों में आपके वाइब्रेटरी फीडर निर्यात हो रहे हैं। आपको इस क्षेत्र में 28 सालों का तजुर्बा है।
 
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