मशीनिंग टूल क्षेत्र में ‘टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज’ इस विशिष्ट प्रकार में यूरप और अमरीका की कंपनियां पहले से प्रभावशाली रही हैं। गेज के इस प्रकार के निर्माण में भारतीय कंपनियां पिछड़ रही थी। गेज बनाने का अनुभव और टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज के प्रभाव से हमने खुद ही टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज बनाने का तय किया। सन 1974 में साझेदारी में ‘टंग्स्टन माइक्रॉनिक्स असोसिएट्स’ की स्थापना करते हुए 1975 में टंग्स्टन कार्बाइड में स्लिप गेज बनाने की योजना हमने आरंभ की, जो 1979 में पूरी हुई। 1980 में ‘मराठा चेंबर ऑफ कॉमर्स’ की ओर से ‘पारखे पुरस्कार’ प्राप्त होने के साथ ही भारत में पहली बार ‘टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज’ विकसित करने के कारण सुप्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार से हमें सम्मानित किया गया। प्रस्तुत लेख में हम इस गेज की अचूकता के बारे में जानकारी लेने वाले हैं।
उत्पाद की लंबाई, चौड़ाई नापने के इस्तेमाल किए जाने वाले उपसाधन (इन्स्ट्रुमेंट) खुद सटीक होना अनिवार्य है। उपसाधनों की सटीकता जांचने के लिए, अलग अलग मोटाई के धातु के टुकड़ों (ब्लॉक) का स्लिप गेज सेट इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए उस सेट की अचूकता 100% होना आवश्यक है। साथ ही इसके लिए इस्तेमाल की जाने वाली धातु विशिष्ट श्रेणी की ही होनी चाहिए। ये गेज साधारण स्टील से बनाए जाते हैं, लेकिन ‘माइक्रॉनिक्स’ पहली कंपनी है जिसने भारत में टंग्स्टन कार्बाइड धातु का इस्तेमाल कर के ये गेज बनाए हैं। इस प्रकार के गेज बनाने के लिए उस समय ना कोई मार्गदर्शन उपलब्ध था, ना कोई जानकारी। कंपनी को पूर्णत: अपने अनुमान और कोशिशों पर ही निर्भर रहना था। स्टील के स्लिप गेज बनाने वाले कोसिपुर, कोलकाता के ‘इन्स्पेक्टोरेट ऑफ आर्मामेंट्स’ की ओर से भी कोई मदद नहीं मिली। ये गेज बनाने के बाद उनके परीक्षण के लिए आवश्यक जांच उपकरणों (टेस्टिंग इन्स्ट्रुमेंट) की भी कमी थी। वे आयात किए जाते थे और उन्हें खरीदने की क्षमता भी कंपनी के पास नहीं थी। उस समय हमारे पास सिर्फ 0.05 माइक्रोन के माइक्रोमीटर उपलब्ध थे। गेज का पृष्ठ सटीक करने के लिए हमने लैपिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। उसमें भी कई समस्याएं आई, लेकिन उन पर अनुसंधान कर के इस तकनीक को विकसित किया गया।
टंग्स्टन कार्बाइड गेज की अचूकता
टंग्स्टन कार्बाइड गेज की अचूकता इन घटकों पर निर्भर करती है
1. समतलता (फ्लैटनेस)
2. समानांतरता (पैरलैलिजम)
3. चिकना पृष्ठ (सरफेस फिनिश)
4. आकार (साइज)
इन सबकी अचूकता 0.0001 मिमी. (0.1 माइक्रोन) में ही होना आवश्यक है। पहले साल के अंत तक हमने 0.001 मिमी. (1 माइक्रोन) की अचूकता तक समानांतर ग्राइंडिंग की समस्या सुलझाई। लेकिन इच्छित अचूकता की समतलता एवं समानांतरता पाने के लिए दो साल लगे। ब्लॉक के आकार संबंधी समस्या सुलझाने में एक साल लगा और अंत में 0.000005 मिमी. तक (0.005 माइक्रोन) की सूक्ष्म खरोंच से मुक्त (स्क्रैच फ्री) पृष्ठ भी हासिल किया। इस प्रकार से, 4 वर्षों की अथक मेहनत और अनुसंधान के बाद, 15 जून 1979 को ‘टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज’ का निर्माण हुआ।
सामान्यत: स्लिप गेज मिश्रधातु स्टील (अलॉइ स्टील), क्रोम कार्बाइड या टंग्स्टन कार्बाइड से बनाए जाते हैं। लेकिन आजकल स्लिप गेज बनाने के लिए टंग्स्टन कार्बाइड जैसे कठोर धातु का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप की आयु, इस्पात की स्लिप की आयु से 10 गुना ज्यादा होती है और उसकी उसी स्थिति में टिकने की क्षमता भी 100% ज्यादा होती है। टंग्स्टन कार्बाइड के आयताकार ब्लॉक विभिन्न आकारों में उपलब्ध होते हैं। बाद में, सावधानी से फिनिशिंग कर के, उन्हें उच्च श्रेणी की समतलता और चिकनाई दी जाती है जिसके कारण योग्य अचूकता प्राप्त होती है। ऐसे निर्दोष ब्लॉक एक दूसरे के ऊपर रखे जाए तो, आण्विक आकर्षण के नियमोंनुसार, वे मजबूती से पकड़े जाते हैं और उन्हें अलग करने के लिए उचित बल (फोर्स) लगाना पड़ता है।
टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज बनाना भारत के लिए उस समय नया था और आज भी है। इस क्षेत्र में गिनेचुने ही लोग हैं और उनमें माइक्रॉनिक्स की प्रक्रिया ही सबसे आसान और कम खर्चे की है। ‘टंग्स्टन कार्बाइड स्लिप गेज’ उत्पाद इंजीनीयरिंग क्षेत्र का ‘सुप्रीम कोर्ट’ है। 100% परिशुद्धता इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग है। अगर अचूकता नहीं होगी तो इस उत्पाद से कोई लाभ नहीं है। 1% दोष भी इसमें नामंजूर है, क्योंकि इंजीनीयरिंग क्षेत्र में इस प्रकार के उपसाधन के उपयोग से ही सारा गणन किया जाता है। इसी के आधार पर अन्य उत्पादों का मापन किया जाता है। भारत में माइक्रॉनिक्स के अलावा अन्य कोई भी इस उत्पाद की निर्यात नहीं करता।
देश के 70% उद्योगों में स्लिप गेज की आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं देश की रक्षा सामग्री का उत्पादन करने वाले उद्योगों के साथ ही सीमा पर उपयुक्त बैटल टैंक के निर्माण में इस स्लिप गेज का इस्तेमाल किया जाता है।
माइक्रॉनिक्स का ‘लीनिअर मेजरमेंट’
वजन और लंबाई के लिए जिन उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है, उनसे माइक्रॉनिक्स का लीनिअर मेजरमेंट उत्पाद अलग है। यह पूरे इंजीनीयरिंग उद्योगों के लिए निर्देशात्मक मानक (रेफरन्स मास्टर) है। चूंकि रेफरन्स मास्टर पूरे विेश में एकसमान होना चाहिए, उसकी गुणवत्ता भी उतनी ही उच्च होना आवश्यक होता है। मीटर का एक हजारवां हिस्सा या उससे भी कम चौड़ाई या मोटाई नापने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इस काम के लिए आवश्यक होने वाले मास्टर कंपोनंट का उत्पादन माइक्रॉनिक्स करती है। इसके अलावा गणन के क्षेत्र से संबंधी कई अन्य साधन माइक्रॉनिक्स ने विकसित किए हैं। आगे जा कर माइक्रॉनिक्स ने नैनो तकनीक विकसित किया, जिसका इस्तेमाल उपग्रह, हवाई जहाज के पुर्जे (उदाहरण के लिए, इस्रो के उपग्रह निर्माण की आपूर्ति के कुछ पुर्जे) विकसित करने के लिए होता है। इसके बाद और अनुसंधान कर के हमने ‘कैलिपर चेकर’ यह उत्पाद बाजार में लाया। साथ ही 0 से 25 मिमी. माइक्रोमीटर की मापन की जांच हेतु ‘माइक्रोमीटर चेकर’ का उत्पादन शुरु किया।
माइक्रॉनिक्स का देश की वित्तव्यवस्था में भी बड़ा योगदान है। पहले सारी चीजें आयात होती थीं जो काफी महंगी होती थी। जहाँ 10 साधनों की आवश्यकता होती थी, वहाँ एक से काम चलाना पड़ता था, समझौता करना पड़ता था। ऐसी स्थिति में, 1980 में हमारा यह प्रकल्प कार्यान्वित हुआ और स्लिप गेज भारत में ही मिलने लगे। पूरे विेश में सिर्फ 10-12 कंपनियों में ही इसका निर्माण होता है। आजकल भारत के इंजीनीयरिंग उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले गेज उत्पादों में माइक्रॉनिक्स का हिस्सा 90% है। साथ ही विेश में कई लोग माइक्रॉनिक्स के स्लिप गेज के निर्देश (रेफरन्स) का उपयोग करते हैं।
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श्रेयांस बुबणेजी ‘माइक्रॉनिक्स असोसिएट्स’ के संचालक हैं। गेज बनाने के क्षेत्र में उनका 33-35 सालों का तजुर्बा है।