कारखाने में बनाए जाने वाले उत्पाद की उच्च गुणवत्ता पाने के लिए यंत्रसामग्री, कर्मचारियों की उत्पादकता जैसे मुद्दों का सामना हरदिन करना होता है। यह बातें समय पर दर्ज करना ही अच्छा होता है अन्यथा रेकॉर्ड बनाए रखने का यह काम जटिल हो कर उसमें समय भी व्यर्थ होता है। यह टालने हेतु लघु एवं मध्यम उद्योग भी क्लाउड प्रणाली की सहायता किस प्रकार ले सकते हैं इसकी जानकारी इस पाठ में मिसालों के साथ आपको मिलेगी।
आज कल हम ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्ज’ (IoT) यानि कि ‘इंडस्ट्री 4.0’ के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं। बड़े बड़े उद्योगों में नवीनतम और प्रभावशाली सी.एन.सी. मशीन, अत्याधुनिक परीक्षण यंत्र के इस्तेमाल के साथ ही Oracle या SAP जैसी कार्यप्रणाली का प्रयोग काफी किफायती तरह से हो रहा है। इस पूरे रोजाना कार्य में मानवीय सहभाग (ह्युमन एलिमेंट) से होने वाली संभाव्य गलतियों या नुकसान को घटाने की नीति का ज्यादातर पालन होता हुआ दिखाई देता है। इसी के फलस्वरूप कई उद्योगों का वृद्धि आलेख उभरता हुआ नजर आता है। उद्योग-व्यवसाय के अगले चरण में हमें IoT का भी प्रयोग उतनी ही आसानी से एवं प्रभावशाली तरीके से किया हुआ नजर आएगा।
परंतु इसी संदर्भ में, अधिकांश लघु, मध्यम आकार के उद्योगों में नजर आने वाला दृश्य इससे हमेशा मेल नहीं रखता है। यह दृश्य कई बार परिस्थिति या व्यक्ति के अनुरूप होता है। अपना नया उद्योग स्थापित करने वाले या उद्योग की वृद्धि करने वाले किसी छोटे उद्योजक के सामने जो चुनौतियां होती हैं, उनमें से कुछ आसपास के उद्योगविेश में रही स्थिति से संबंध रखती हैं। मिसाल के तौर पर,
व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा, ग्राहकों की शर्तों के साथ विभिन्न मांगें
व्यापारियों से आदान प्रदान के व्यवहार करते समय होने वाली खींचातानी
इन मुद्दों का वित्तीय समन्वय हासिल करने में होने वाली थकावट
जब कि कुछ चुनौतियां उसके उद्योग के आसपास हरदिन होने वाली घटनाओं पर नियंत्रण पाने या उनमें बार बार निरंतर रूप से सुधार लाने से संबंध रखती हैं। उदाहरण के लिए
उद्योग की कार्यविधियां इस तरह स्थापित करना कि सारी मशीनों का प्रयोग पूरी क्षमता से हो
मशीन की देखभाल एवं मरम्मत के खर्चे पर नियंत्रण रखना
प्रशिक्षित और कुशल श्रमिक पाना तथा उन्हें काम पर बनाए रखना
श्रमिकों से, उनकी पूरी क्षमता के साथ, निरंतर गुणवत्ता का उत्पादन निश्चित अवधि में करवाना और ऐसी कई बाते हैं।
इन सब आंतरिक एवं बाहरी चुनौतियों का सामना उस उद्योजक को अपने पास रहे सीमित संसाधनों की सहायता से अकेले ही करना पड़ता है। इन सारी चुनौतियों में से सब से महत्वपूर्ण एवं जिसका रोजाना सामना करना पड़ता है वह है, अपने पास रही यंत्रसामग्री तथा मानव संसाधनों से उचित उत्पादकता और गुणवत्ता हासिल करना। ज्यादातर उद्योगों में इस काम हेतु सुपरवाइजर या फोरमन जैसी जिम्मेदार व्यक्ति को नियत किया जाता है। कर्मचारी को दिया हुआ काम, उससे होने वाला उत्पादन, उसके दौरान होने वाला रिजेक्शन, काम में महसूस होने वाली समस्याएं, मशीन की देखभाल एवं मरम्मत में व्यर्थ हुआ समय, आदि रोजमर्रा बातें किसी रजिस्टर में या संगणक पर बनाए हुए एक्सेल शीट में दर्ज की जाती हैं। इस रेकार्ड का अवलोकन हररोज होना प्रत्याशित है। फिर भी, कार्य की प्रधानतानुसार, जरूरी नहीं है कि वह हररोज होता होगा। इसकी एक प्रधान वजह यह है कि बनाए हुए रेकार्ड में से जरूरी रिपोर्ट निकालने का काम किसी व्यक्ति को करना पड़ता है और वह थोड़ा जटिल एवं परिश्रमपूर्ण होता है। यही अवलोकन आराम से कुछ दिनों बाद करने की सोची गई तो रोजाना रेकार्ड का फिर से संकलन करते हुए सरल रिपोर्ट निकाल कर यही काम करना पड़ता है। इसमें पुनरावृत्ति हो कर संबंधी सुपरवाइजर या मालिक का समय एवं कष्ट बरबाद होते हैं। इस प्रकार, चाहे या ना चाहे, इन आंतरिक चुनौतियों का सामना करते करते वह उद्योजक परेशान हो जाता है और अनजाने में इसमें विलंब हो सकता है। ऐसी बातें टालने के लिए, ‘क्लाउड’ की मदद से, छोटे उद्योगों के लिए भी कुछ कार्यप्रणालियां विकसित की गई हैं।
अब हम सारांश में जानकारी लेंगे कि क्लाउड का मतलब क्या है।
क्लाउड शब्द का प्रयोग आजकल संगणक क्षेत्र में ‘संगणकीय संजाल (नेटवर्क)’ दर्शाने वाली एक समरूप मिसाल के रूप में होता है और संगणक संबंधी भाषा में उसका हमेशा उच्चारण होता है। इसमें सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर), सेवा ग्राहक (क्लाएंट) एवं उनके बीच आदान प्रदान होने वाली जानकारी शामिल है। इसके अंतर्गत जानकारी का भंड़ारण करने वाला घटक (सर्वर), इकठ्ठा की हुई जानकारी (डेटा स्टोरेज) और उस का प्रत्याशित तथा उचित उपयोजन (ऐप्लिकेशन), यह सेवाएं संगणकीय तकनीक की सहायता से ग्राहक को दी जाती हैं। इस हेतु ग्राहक को कुछ शुल्क देना होता है। इन सारी मूलाधारी सुविधाओं का स्वामित्व या पूरी जिम्मेदारी सेवा प्रदाता पर होती है। यह संकल्पना टेलीफोन अथवा विद्युत वितरण जैसी सेवाओं से समरूप है। इसमें परिशुद्ध एवं निरंतर सेवा के साथ ही जानकारी की गोपनीयता का ओशासन भी देना पड़ता है। इसके लिए उचित कानूनी संविधा की जाती है। संगणकीय तकनीक द्वारा सेवा देने में क्लाउड का प्रधान उद्देश्य यह है कि इस तंत्रज्ञान की विस्तारपूर्वक जानकारी ना लेते हुए या उसमें कुशलता ना पाते हुए भी उसके लाभ ग्राहक को मिले। ग्राहक संगणकीय तकनीक के जाल तथा संबंधी बाधाओं में बिना फंसे अपने प्रधान उद्योग पर अधिक ध्यान दे सके इस मुद्दे पर क्लाउड का जोर रहता है।
संगणक प्रणाली के क्षेत्र में काम करने वाली पुणे स्थित ‘कोविद्’ (Kovid) कंपनी ने इस समस्या पर प्रत्यक्ष सर्वेक्षण कर के, विशेषज्ञ ग्राहकों से चर्चा कर के, गहरे अध्ययन के बाद कार्यक्षमता अवलोकन प्रणाली (Production Efficiency Tracking System, PET) नामक एक उत्पाद पेश किया है।
‘कोविद्’ संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है जानकार, अनुभवी एवं ग्रहणशील व्यक्तियों का समूह। संदीप महाजनजी ने, जिन्होंने कोविद् संस्था का नेतृत्व स्वीकार किया है, अपनी PET प्रणाली के विविध पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी। इस संगणक प्रणाली में जिस कार्यवस्तु का यंत्रण होने वाला हो उसका नाम, ड्रॉईंग नंबर, मशीन का नाम तथा नंबर, संबंधी ऑपरेटर का नाम, शिफ्ट, मशीन बंद हो जाने की विभिन्न वजहें, पुर्जा रिजेक्ट होने के संभाव्य कारण आदि बातें कूटशब्दों (कोडवर्ड) में पहले से ही बना कर रखी होती हैं। यह इतना आसान और सरल कर दिया है कि सुपरवाइजर रोज केवल कूटशब्द चुन कर संगणक में रेकार्ड करता है। एक बार ये रेकार्ड बन जाने पर, उसमें दर्ज की गई बातों का प्रयोग करते हुए, अलग अलग मानकों पर आधारित चहीते रिपोर्ट निर्धारित ढ़ांचे में मिल सकते हैं। इस रिपोर्ट में रही जानकारी भी विभिन्न प्रकारों में देखी जा सकती है। जैसे कि पाई चार्ट, बार चार्ट आदि दृश्य परिणाम दर्शाने वाले आलेख। विभिन्न फिल्टर लगा कर अनावश्यक जानकारी छुपाई जा सकती है। दर्ज की हुई जानकारी से ये सारे रिपोर्ट अल्पतम परिश्रम एवं समयावधि में बनाए तो जाते ही हैं, आगे जा कर ये रिपोर्ट उच्चस्तरीय प्रबंधकों तक, निर्धारित वक्त पर,
-मेल द्वारा (ऑटो-मेल) पहुंचाने की सुविधा भी इस प्रणाली में दी गई है। अभी की उपलब्ध उन्नत तकनीक द्वारा मोबाइल फोन से भी रिपोर्ट भेजा जा सकता है। इस प्रकार, केवल ऑफिस में बैठ कर ही तकनीकी प्रणाली का उपयोग करने का बंधन भी दूर हो जाता है। वास्तविक समय की जानकारी (रियल टाइम डेटा) वक्त पर हाथ आने से कार्यक्षमता वृद्धि के लिए सही निर्णय प्रबंधक ले सकते हैं और उद्योग का कार्यप्रदर्शन उभर सकता है।
कोविद् कार्यप्रणाली द्वारा संगणक के पर्दे पर दर्शाए जाने वाले विभिन्न चित्रों के स्क्रीनशॉट आपकी जानकारी के लिए यहाँ आलेख के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं (आलेख क्र.1 से 6)।
यह प्रणाली पुणे के नजदीक नांदेड फाटा इंडस्ट्रीयल एरिया में स्थित समर्थ इंजीनीयरिंग सर्विसेस इस लघु उद्योग में, अपने कारोबार से अनुरूप अल्प बदलाव कर के, अमल की गई है। पिछले सवा दो साल से काफी सहजता एवं प्रभावशाली तरीके से यह प्रणाली चलाई जा रही है।
प्रशांत शेटेजी ने लगभग 25 साल पहले समर्थ इंजीनीयरिंग सर्विसेस लघु उद्योग शुरु किया। अब तक इस उद्योग द्वारा कई कंपनियों को बार से बनाई कार्यवस्तुओं (कंपोनंट) की सप्लाइ की गई है। कुछ 2-3 साल पहले उनके उद्योग में अभी ऊपर उल्लिखित की गई स्थिति उभर आई थी। अपने उद्योग का अलग अलग मानकों के अनुसार अवलोकन करना जटिल हो चुका था और उसमें बहुत समय खर्च हो रहा था। लगभग ढ़ाई साल पहले शेटेजी ने कहीं कोविद् की कार्यप्रणाली देखी। पहला मूल्यांकन होने के बाद खुद के लघु उद्योग के लिए यह कार्यप्रणाली, आवश्यक बदलाव के साथ, इस्तेमाल करने की उन्होंने ठान ली। इस प्रणाली के कारण यंत्रसामग्री के कार्य का तथा मानवी संसाधन का सही नियोजन हो कर ग्राहक को निश्चित वक्त पर उत्पाद सप्लाइ करना आसान हो गया और उनका ‘ड्यू डेट परफॉर्मन्स’ भी सुधर गया। सबसे बड़ी बात यह है कि ये सब काम करने वाले सुपरवाइजर की जल्दबाजी एवं गड़बड़ी कम हो कर, वह बहुत अचूकता, सहजता तथा आत्मविेशास के साथ अपना योगदान देने लगा।
मिसाल के रूप में हम सारांश में यह देखेंगे कि उन्होंने रिजेक्शन पर किस प्रकार नियंत्रण पाया। हररोज का डेटा इस प्रणाली में नियमित रूप से रेकार्ड करने पर पहले महीने के रिजेक्शन की जानकारी प्रणाली में से अल्प अवधि में पा कर, उसे ‘एक्सेल’ में भेज कर, आलेख बनाया गया। समस्या समाधान तंत्र (प्रॉब्लैम सॉल्विंग तकनीक) का प्रयोग करते हुए ‘पैरेटो ऐनालिसिस’ किया गया (आलेख क्र. 4)।
देखा गया कि सबसे अधिक रिजेक्शन कार्यवस्तुओं में गड्ढे (डेंट) बनने की वजह से हुआ था।
इस बात की वजह ढूंढ़ने पर समझ आया कि बनाई हुई कार्यवस्तुएं ग्राहक के पास पहुंचाने तक उन्हें संभालने की पद्धति दोषपूर्ण थी। तुरंत इलाज के रूप में ऐसा नियम बनाया गया कि बनाई गई कार्यवस्तुएं जल्द से जल्द प्लास्टिक ट्रे में एक निश्चित पद्धति से रखी जाएं। इस नियम का तुरंत कार्यान्वयन किया गया। अगले कुछ महीने देखा गया कि यह अनुशासन स्वीकार किया गया है या नहीं, और रिजेक्शन घटाया गया (आलेख क्र. 5)।
इसी प्रकार उस आलेख में नजर आई रिजेक्शन की अन्य वजहों का परीक्षण करते हुए आवश्यक बदलाव किए गए। आलेख क्र. 6 से नजर आएगा कि इसमें सुधार आए और वे बने रहे हैं। इस अवधि में यंत्रण कर के सप्लाइ की हुई कार्यवस्तुओं की संख्या लगभग एकसमान ही थी (3% से 5% फर्क)।
समर्थ इंजीनीयरिंग सर्विसेस के शेटेजी कहते हैं, “कुछ ढ़ाई साल पहले अमल की हुई इस प्रणाली का प्रयोग सुपरवाइजर के स्तर पर बहुत ही सुविधा से किया जा रहा है और अनेक समस्याएं समय पर सुलझाई जा रही हैं। साथ ही, हमारे पास उपलब्ध रही यंत्रसामग्री तथा उसके कठोर नियोजन द्वारा, मानवी संसाधन बढ़ाए बिना, उत्पादन में लगभग 20 से 25% वृद्धि संभव हुई है। कुल मिलाकर हमारे उद्योग की कार्यक्षमता निरंतर बढ़ रही है।”
‘अविरत एंटरप्राईजेस’ नाम का लघु उद्योग पुणे में नर्हे में रही इंडस्ट्रीयल एरिया में पिछले 11 सालों से कार्यान्वित है। उनकी खासियत यह है कि उनके पास गोल आकार की कार्यवस्तुओं को उनके व्यास पर चौकोर, षट्भुज या और भिन्न आकार में यंत्रण करते हुए आकार देने की सुविधा है। इस प्रकार बड़ी मात्रा में जॉबवर्क करना उनकी खासियत है।
लगभग डेढ़ साल पहले ‘अविरत एंटरप्राईजेस’ की ओर ग्राहकों की तरफ से आने वाली मांग की बड़ी मात्रा देखते हुए संचालक तुषार ताकवलेजी और मशीन खरीदने की सोच में थे। परंतु उनके पास क्रियान्वित कोविद् की कार्यप्रणाली की मदद से हर दिन बनाए हुए रेकार्ड से, 4-6 महीने के समय में हर मशीन की कार्यव्यस्तता (मशीन एंगेजमेंट) का आलेख अल्प समय में देखा जा सका। उस आलेख से पता चला कि मौजूदा मशीनों पर ही, कार्यों का सही नियोजन करने से, उनका पूरा उपयोग हो कर ग्राहकों की बढ़ती मांग पूरी की जा सकती है। इसलिए नए मशीन की खरीदारी हेतु जरूरी पूंजिनिवेश बच गया। साथ ही मशीन का संभाव्य कम इस्तेमाल भी टाला गया।
अविरत एंटरप्राईजेस के संचालक तुषार ताकवलेजी अपने अनुभव से कहते हैं, “इस कार्यप्रणाली के इस्तेमाल से, विभिन्न जरूरी रिपोर्ट बहुत आसानी से एवं उसी वक्त पर (रियल टाइम डेटा) पाए जा सकते हैं। मेरे द्वारा किए जाने वाले समस्या समाधान के निर्णय व्यक्तिनिष्ठ (सब्जेक्टिव) नहीं बल्कि वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) होने लगे। इस कारण महसूस हुआ कि उनके परिणाम लंबे समय तक बने रहेंगे। साथ ही, रिपोर्ट के अनुसार मैंने मेरी कंपनी में काम करते समय एक तरह का अनुशासन स्थापित कर दिया और कुछ समय बाद एक सिस्टम सचेत हो गई। अब मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मेरी कंपनी ‘सिस्टम ओरिएंटेड ऐप्रोच’ रखती है।”
(इस लेख के संबंध में किसी को कोई आशंकाएं हों या विस्तारित जानकारी चाहिए हो तो
[email protected]-मेल पर संदीप महाजन से संपर्क करें।)
0 9822267044
अनिल अत्रेजी यांत्रिकी अभियंता है। आपको उत्पादन क्षेत्र, ऑपरेशनल एक्सलन्स और नए उत्पाद विकास करने का गहरा अनुभव है। आप उद्यम प्रकाशन में किताबों के संपादक है।