स्पेशल टूल

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    06-जून-2019   
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special tool
 
टूल के इस्तेमाल के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ मानक निश्चित किए गए हैं। उनके अनुसार पूरे विेश में कई टूल निर्माण कंपनियां अपने उत्पाद, कैटलॉग के साथ, बाजार में प्रस्तुत करती हैं। इन कैटलॉग में वे अपने मानांकित उत्पाद पेश करती हैं। अनुभव के आधार पर तथा एक विशिष्ट शास्त्र के अनुसार, किन वस्तुओं का भण्डारण किस तरह किया जाए जैसे मुद्दों के साथ, स्टॉकिंग पैटर्न के सामान्य नियम बनाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, कार्बाइड एंड मिल के मामले में 4, 6, 8, 10 मिमी. व्यास, 12, 16, 20 मिमी. व्यास या इन्सर्ट होने वाले एन्ड मिल, 25, 32, 40 मिमी. व्यास ऐसा स्टॉकिंग पैटर्न होता है।
 
बड़े कटर के मामले में 50, 63, 80, 100, 125, 160, 200, 250, 315 मिमी. व्यास, इस तरह का स्टॉकिंग पैटर्न होता है।
 
बोल्ट देखे जाए तो M3, M4, M5, M6, M8, M10, M12 ,M16, M18, M20 ऐसा स्टॉकिंग पैटर्न होता है।
 
ये नियम सन 1877 में फ्रेंच मिलिटरी इंजीनीयर कर्नल चार्लस् रेनार्ड ने अनुसंधान कर के निश्चित किए और उन्हें ‘प्रेफर्ड स्टॉकिंग पैटर्न’ नाम दिया । सन 1952 में उसे ISO-3 मानक से वैश्विक स्वीकृति मिली है।
 
सेना के लिए जरूरी होने वाले अनेकविध प्रकारों एवं आकारों के उत्पादों के भण्डारण के प्रबंधन संबंधी कठिनाइयों पर रेनार्ड ने यह हल ढूँढ़ निकाला था। इस अनुसंधान ने साबित किया है कि इस प्रकार के भण्डारण प्रबंध का उपयोग कारखानों में हर प्रकार के काम के लिए हो सकता है।
 
मिसाल के तौर पर, अगर पहला आकार 10 हो, तो 100 तक आगे का आकार 0.5√10 के गुणन से (अर्थात 1.58) बनता है। 10, 16, 25, 40, 63, 100 इन 6 आकारों में 1 से 100 तक के आकारों के लिए आसान स्टॉकिंग पैटर्न निश्चित किया जाता है। उससे भी सूक्ष्म आकार और विभाजन के लिए 0.1√10 अनुपात का प्रयोग किया जाता है।
 
कारखाने में इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रॉइंग पेपर, ड्रॉइंग पेन तथा एन्वलप के लिए भी ऐसे ही मानक हैं।
 
आकारों की ही तरह, टूल की कर्तन ज्यामिती के आधार पर भी उनके वर्ग निश्चित हुए हैं और उसेभी ISO से स्वीकृति मिली है। टूल का इकठ्ठा भण्डारण करने में आसानी होनी चाहिए और वह पद्धति इस्तेमाल के लिए भी सरल होनी चाहिए इस सोच से ऐप्रोच ऐंगल और कटिंग रेक के आधार पर मानक निश्चित किए गए हैं (तालिका क्र. 1 देखें)।

Table no.1
 
इस कथन का मुद्दा यह है कि बाजार में उपलब्ध आकारों का प्रयोग कर के, वर्कशॉप के सभी काम हो सकते हैं। (एक मिसाल देखते हैं, नोटबंदी के बाद कुछ दिनों के लिए 100 रु. के बाद अचानक 2000 रु. का नोट आने से जो हुल्लड मची थी, उसे याद करेंगे, तो यह स्थिती समझ सकते हैं। मुद्रा यानि करन्सी के लिए प्रचलित पद्धति 1-2-5 ही है और उसे 1-2-5 सीरीज भी कहा जाता है। अर्थात आगे की हर संख्या के लिए, एक बार 2 से और एक बार 2.5 से गुणा कर के अगली संख्या निश्चित होती है।
1, 2, 5, 10
20, 50, 100
200, 500, 1000
नोटों के मूल्य इस तरह होना अंतर्राष्ट्रीय मानक है।)
 
ये बातें ध्यान में रखी जाने पर उपलब्ध आकारों का इस्तेमाल कर के काम आसान कर सकते हैं। कारखाने में, उपकरणों की कमी से होने वाली गडबड़ी भी इससे घट सकती है।
 
इस सूत्र का स्वीकार करने के बाद भी ऐसा लगता है कि इस कैटलॉग से अलग किसी चीज की मदद मिले तो अधिक सुविधा होगी। यही (स्पेशल) टूलिंग की शुरुआत है।
 
यहाँ हम चर्चा करेंगे कि ऐसे खास टूलिंग की आवश्यकता क्यूं होती है और उसकी उपयुक्तता क्या है। केवल लेथ के लिए काम आने वाले कुछ टूल के बारे में जानकारी लेते हैं।
 
मिसाल 1
कई बार यह दिखाई देता है कि टूल स्टेशन की कुछ सीमाएं हैं। खास कर के जहाँ लीनियर टूलिंग का प्रयोग होता है वहाँ कई बार ये सामने आती हैं। टूल की संख्या सीमित है और काम पूरा करने के लिए अधिक टूल आवश्यक हैं ऐसी स्थिती पैदा होती है। इस मामले में एक ही स्थान पर दो टूल लगा कर यह समस्या दूर कर सकते हैं।
 
चित्र क्र. 1 में आप देखेंगे कि एक ही बार पर एक तरफ टर्निंग इन्सर्ट लगाया गया है ओर उसी बार पर दूसरी तरफ एक थ्रेडिंग इन्सर्ट लगाया गया है। एक बार टर्निंग इन्सर्ट वाली साइड अपना काम करेगी और फिर, स्पिंडल रोटेशन बदल कर, थ्रेडिंग इन्सर्ट काम करेगा।

Figure no.1
 
मिसाल 2
चित्र क्र. 2 में, समय बचाने के लिए स्पेशल टूलिंग तैयार किया गया है। बोरिंग टूल 20 H7 बोर करने के बाद, पिछले इन्सर्ट से 34 मिमी. व्यास का फेस बन जाता है और उसी समय एक अलग इन्सर्ट से अंदर का चैंफर बन जाता है। सारे काम एक ही पास में हो जाने से समय बचता है और उत्पादन बढ़ने से प्रति नग लागत कम हो जाती है।
Figure no.2
 
बोर एवं फेस करने के लिए बनाया हुआ 19.5 मिमी. व्यास का रफिंग टूल चित्र क्र. 3 में दर्शाया गया है।

Figure no.3
 
मिसाल 3
बोर के बाद पिछली ओर का फेस करने हेतु इस टूल का प्रयोग करने से समय की बचत होती है और बेहतर लंबकोण प्राप्त होता है (चित्र क्र. 4)।

Figure no.4
 
यहाँ सी.एन.सी. लेथ के स्पिंडल में आर्बर पकड़ कर उस पर अलग अलग दिशाओं में घूमने वाले कटर लगाए गए हैं। तथा फिक्श्चर के उपर क्रैंकशाफ्ट लगा कर, किसी भी महंगे मशीन का इस्तेमाल न करते हुए, रफिंग का काम बहुत कम खर्चे में किया है (चित्र क्र. 5)।

Figure no.5
 
इस तरीके से, जरूरत पड़ने पर तथा उत्पाद की कीमत यथायोग्य रखने के लिए कई विशेष टूल इस्तेमाल किए जा सकते हैं। फिर भी जहाँ तक संभव हो, उपलब्ध टूल का ही इस्तेमाल करें। ‘उत्पादन बढ़ाना हो तो विशेष टूल का उपयोग करें’ यह सूत्र हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है।
 
 
0 9822881939
दत्ता घोलबाजी ‘मानस इंजीनीयरिंग कॉर्पोरेशन’ कंपनी के संस्थापक संचालक हैं। आप 45 सालों से कटिंग टूल क्षेत्र से संबंधित कार्य कर रहे हैं।
 
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