पिछले लेख में हमने कुछ टर्निंग फिक्श्चर, मैंड्रेल और कॉलेट के बारे में जानकारी पाई है। इस लेख में हम टर्निंग फिक्श्चर से संबंधी एक आसान तरकीब देखने जा रहे हैं।
हम जानते ही हैं कि कार्यवस्तु गोलाकार हो तो वह पारंपरिक 3 जॉ वाले चक में पकड़ी जा सकती है। स्पिंडल पर रही अडैप्टर प्लेट में चक बिठाया जाता है। इसका मतलब है फिक्श्चर अडैप्टर प्लेट में बिठाना हो तो चक निकाल कर ही टर्निंग फिक्श्चर लगाया जा सकता है और टर्निंग फिक्श्चर का काम खत्म होने पर उसे हटा कर फिर से चक वहाँ लगाना पड़ता है। इससे निम्न समस्याएं आती हैं
1. बार बार चक निकालने और लगाने से अडैप्टर प्लेट या चक का लोकेशन व्यास (डाइमीटर) खराब हो सकता है। ऐसा होने पर एक तो नया चक या फिर नई अडैप्टर प्लेट खरीदनी जरूरी होती है। इससे खर्चा बढ़ता है।
2. चक एवं टर्निंग फिक्श्चर निकालने और बिठाने में समय बरबाद होता है, यानि सेटअप टाइम बढ़ता है।
3. चक भारी होने के कारण उसे निकालने तथा बिठाने में किसी की मदद लेनी पड़ती है। इस दौरान दुर्घटना होने की संभावना होती है। 12” व्यास वाले चक का भार सामान्यतः 40 से 50 किग्रै. होता है।
4. कारखाने में मशीनों के जितने प्रकार होंगे उतनी ही संख्या में विभिन्न प्रकार की अडैप्टर प्लेट भी रखनी पड़ती हैं। उनका सही भंडारण करना तथा उचित प्लेट वक्त पर ढूंढ़ना एक बड़ी जिम्मेदारी साबित होती है।
चक न हटाते भी फिक्श्चर, लेथ पर पकड़ा जा सके तो कह सकते हैं कि सेटअप टाइम ना के बराबर हो जाएगा।
चक ना निकालते हुए लेथ पर टर्निंग फिक्श्चर पकड़ने की तरकीब
टर्निंग फिक्श्चर स्पिंडल या अडैप्टर प्लेट पर किस तरह लगाया जाता है, यह हमने पिछले लेख में जाना है जो चित्र क्र. 1 में दिखाया गया है। अब चित्र क्र. 2 देखिए। इस चित्र में हरे रंग से दिखाया गया हिस्सा सीधा चक में पकड़ना मुमकिन है। इसका मतलब है टर्निंग फिक्श्चर यदि सीधा चक में पकड़ा जाए तो चक निकालने की जरूरत नहीं है। अर्थात जो हिस्सा हरे रंग से दिखाया गया है, उसे हर एक टर्निंग फिक्श्चर पर स्क्रू की सहायता से लगाया जाए तो चक हटाना आवश्यक नहीं होगा। लेकिन इसके लिए टर्निंग फिक्श्चर का भार तथा ओवरहैंग कम होना चाहिए। मतलब कार्यवस्तु के लिए बनाया हुआ टर्निंग फिक्श्चर छोटे आकार का होना चाहिए। इस तरह की सरल तरकीबें अपना कर हम समय और पैसों की बचत कर सकते हैं।
टर्निंग
चित्र क्र. 3 में कार्यवस्तु की घूमने की दिशा, टर्निंग टूल के फीड की दिशा और टूल दर्शाया गया है।
1. हमने देखा है कि टर्निंग करते समय टूल स्थिर रहता है और एक सीधी रेखा में आगे पीछे होता है, लेकिन कार्यवस्तु घूमती रहती है।
2. टर्निंग करते समय टूल का एक ही शुंड़ाकार अग्र यंत्रण करता है।
3. ज्यादातर टर्निंग गोल पुर्जे बनाने के लिए किया जाता है।
मिलिंग
मिलिंग फिक्श्चर के बारे में जानने से पहले हम मिलिंग प्रक्रिया से जु़ड़ी हुई फिक्श्चर संबंधी महत्वपूर्ण बातें समझ लेंगे।
चित्र क्र. 4 में कार्यवस्तु की सरकने की दिशा, मिलिंग कटर के घूमने की दिशा दर्शाई गई है।
1. मिलिंग करते समय कार्यवस्तु आगे पीछे हिलती है और कटर गोलाकार घूमता है।
2. मिलिंग करते हुए कई शुंड़ाकार अग्र एकसाथ यंत्रण करते हैं। इससे कार्यवस्तु का अनचाहा हिस्सा काफी जल्द निकाला जाता है और ऐसेमें पैदा होने वाला कर्तन बल सहने हेतु कार्यवस्तु बहुत ही मजबूती से पकड़ना जरूरी होता है।
मशीन की रचना पर आधारित, मिलिंग के दो महत्वपूर्ण प्रकार हैं
• हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन
• वर्टिकल मिलिंग मशीन
ज्यादातर यंत्रण दोनों तरह की मशीनों पर किया जा सकता है। फिक्श्चर का इस्तेमाल किए बिना कार्यवस्तु बनानी हो तो जिस तरह की मशीन उपलब्ध हो उस पर यह काम किया जा सकता है। आगे दी हुई मिसाल से हम यह समझ पाएंगे।
कार्यवस्तु पर खांचा (स्लॉट) बनाना है। यह खांचा वर्टिकल मिलिंग मशीन पर बनाने का तरीका चित्र क्र. 5 में दर्शाया गया है । चित्र क्र. 6 में दर्शाया है कि यही खांचा हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन पर, साइड मिलिंग कटर की मदद से कैसे बना सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी आर्बर सेट करने, बिठाने तथा निकालने में काफी समय लगता है। इसलिए इस तरह के खांचें वर्टिकल मिलिंग मशीन पर बनाना अधिक उचित है। मशीन की उपलब्धी के अनुसार यह तय करना पड़ता है कि कौनसी मशीन इस्तेमाल की जाए। ऊपरी मिसाल से हम यह जानते हैं कि कुछ एकसमान कार्यवस्तुएं हम दोनों में से किसी भी मशीन पर बना सकते हैं।
किंतु फिक्श्चर का प्रयोग करते हुए कार्यवस्तु का यंत्रण करते समय जिस तरह की मशीन पर कार्यवस्तु के यंत्रण का नियोजन किया है उसी तरह की मशीन पर यंत्रण करना जरूरी है। अगर फिक्श्चर छोटा हो तो चित्र क्र. 7 में दर्शाए गए राइट ऐंगल ब्लॉक पर उसे बिठा कर, वर्टिकल मिलिंग मशीन का काम हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन पर कर सकते हैं। इसी प्रकार, हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन पर इस्तेमाल करने हेतु बनाए हुए फिक्श्चर का उपयोग वर्टिकल मिलिंग मशीन पर हो सकता है। चित्र क्र. 8 में ऐंगल ब्लॉक दर्शाया गया है। चूंकि इसमें कोण बदल सकते हैं, टेढ़ा मिलिंग करने के लिए हम इस ब्लॉक का प्रयोग कर सकते हैं। फिक्श्चर की जानकारी पाने से पहले हम मिलिंग के यंत्रण के लिए जरूरी बातें समझ लेते हैं। अब हम मिलिंग यंत्रण के महत्वपूर्ण प्रकार देखेंगे।
1. फेस मिलिंग
2. स्लैब मिलिंग
3. ऐंग्युलर मिलिंग : निश्चित कोण में ऐंगल ब्लॉक पर लगा कर भी यह कर सकते हैं।
4. फॉर्म मिलिंग : कॉन्वेक्स, कॉन्केव, गियर आदि निश्चित आकार और अन्य भी आकार बना सकते हैं।
1. फेस मिलिंग
इस प्रकार के यंत्रण में जिस पृष्ठ का यंत्रण करना हो उससे लंबकोण में कटर का अक्ष स्थित होता है (चित्र क्र. 9)। जरूरी बात यह है कि कटर की तेज धारें अग्र पर तथा परिधि पर होती हैं। इस तरह का यंत्रण काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है।
2. स्लैब मिलिंग
इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि पेरिफेरल मिलिंग या प्लेन मिलिंग। इस तरह के यंत्रण में जिस पृष्ठ का यंत्रण करना हो उससे समानान्तर स्थिति में कटर का अक्ष होता है (चित्र क्र. 10)। इस प्रकार के मिलिंग हेतु हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन का ही प्रयोग करना पड़ता है।
जब मिलिंग पहला ऑपरेशन होता है और उसका फिक्श्चर बनाया जाता है तब कार्यवस्तु किस तरह रखी, बिठाई या पकड़ी जाए, इस बारे में नियोजन करना पड़ता है। खास तौर पर जब कार्यवस्तु कास्टिंग या फोर्जिंग की होती है तब विशेष नियंत्रित पैड का नियोजन करना जरूरी होता है। यदि कार्यवस्तु अनियमित आकार की हो तो उसका गुरुत्वकेंद्र ध्यान में रख कर यह सोचना जरूरी है कि फिक्श्चर में लगाने के बाद उसका संतुलन किस तरह होगा।
चित्र क्र. 11 दर्शाता है कि फिक्श्चर में कार्यवस्तु रख कर क्लैम्प की सहायता से उसे कस कर कैसे पकड़ा गया है। चूंकि यह कार्यवस्तु अनियमित आकार की है, उसे संतुलित रखना मुश्किल है। इस हेतु विशेष पैड का नियोजन कास्टिंग/फोर्जिंग में करना आवश्यक है। चित्र क्र. 12 में दिखाए गए क H1, H2, और H3 यह तीन पैड कार्यवस्तु को संतुलित रखते हैं। हर पैड का एक दूसरे के साथ संबंध रखना होता है। B1 और B2 दोनों पैड एक ही स्तर पर होना आवश्यक है।
जब मिलिंग दूसरा या तीसरा ऑपरेशन होता है, तब हम पहले किए हुए यंत्रण का संदर्भ ले सकते हैं। ऐसे समय पर फिक्श्चर में कार्यवस्तु संतुलित तरीके में बैठ जाती है और उसे पकड़ना भी तुलना में आसान होता है। सभी तरह के फिक्श्चर में मिलिंग फिक्श्चर सबसे मजबूत होना जरूरी है। साथ ही, उसे मशीन पर कस कर पकड़ना होता है। वह ठीक से पकड़ा ना जाए तो कटर टूट कर दुर्घटना हो सकती है।
अगले लेख में हम अलग अलग किस्म के फिक्श्चर देखेंगे। साथ ही हॉरिजोन्टल मिलिंग मशीन एवं वर्टिकल मिलिंग मशीन पर इस्तेमाल किए जाने वाले फिक्श्चर के बारे में जानकारी पाएंगे।
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अजित देशपांडेजी को जिग और फिक्श्चर के क्षेत्र में 36 सालों का अनुभव है। आपने किर्लोस्कर, ग्रीव्ज लोंबार्डिनी लि., टाटा मोटर्स जैसी अलग अलग कंपनियों में विभिन्न पदों पर काम किया है। बहुत सी अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में और ARAI में आप अतिथि प्राध्यापक हैं।