वित्त साक्षर उद्योजक – 1

@@NEWS_SUBHEADLINE_BLOCK@@

Udyam Prakashan Hindi    18-नवंबर-2020   
Total Views |

1_1  H x W: 0 x
 
धातुकार्य पत्रिका में इससे पहले प्रकाशित लेख में हमने कार्यशील पूंजी का महत्व तथा उसके व्यवस्थापन पर चर्चा की है। वित्तीय व्यवस्थापन, बैलन्स शीट, टैक्स रिटर्न, अकाउंटस ऐसे शब्द सुनने पर कई छोटे और मध्यम उद्योजक इनसे बचने का प्रयास करते हैं। 'हमारा सी.ए. देख लेगा' कह कर जिम्मेदारी से भागते हैं, जो उचित नहीं है। क्योंकि कई बार इन सलाहकारों का उद्योजकों से सिर्फ विवरण पत्र (टैक्स रिटर्न) भरते समय और उसी काम को पूरा करते समय संबंध आता है। उद्योजक के व्यवसाय में होने वाले रोजमर्रा के आर्थिक मामले तथा इनके संयोगवश आर्थिक परिणामों की जानकारी इन सलाहकारों को नहीं होती। इसी लिए उद्योजकों को इनसे मिलने वाला मार्गदर्शन ज्यादातर मर्यादित रूप में या कई बार समय हाथ से निकलने पश्चात् मिलता हैं। वर्तमान स्थिति में यानि रियल टाइम पर आधारित वित्तीय निर्णय लेने में ऐसे मार्गदर्शन का कोई उपयोग नहीं होता। जिस तरह किनारे पर बैठ कर आप तैरना नहीं सीख सकते, जिसे तैरना सीखना है उसेही पानी में हाथ पैर मारने होते हैं, ठीक उसी तरह व्यवसाय सफलता से चलाने के लिए उद्योजकों में वित्तीय साक्षरता होना जरूरी है, चाहे प्राथमिक स्तर पर ही सही। 
इसी लिए हिसाब के डैशबोर्ड की मूलभूत जानकारी हर उद्योजक ने जानना आवश्यक है, ताकि इस जानकारी के इस्तेमाल से वह रियल टाइम बेसिस पर व्यवसाय के जरूरी आर्थिक निर्णय समय पर ले कर कारोबार बढ़ा सकेगा। 'अ स्टिच इन टाइम सेवज नाइन' यह कहावत तो सब जानते हैं।
 
कुछ गलतफहमियां 
जो उद्यमी वाणिज्य शाखा से अनजान हैं उन्हे लगता हैं कि वे 'नॉन फाइनान्स' व्यक्ति हैं। देखा जाए तो उद्योजक किसी भी शाखा/बैकग्राउंड का हो, व्यवसाय में सच्चा फाइनान्स व्यक्ति वहीं होता है। क्योंकि व्यवसाय का पैसा उसके खुद के तथा उसके कोर टीम के प्रयास से मिलता है। आम तौर पर जिन्हे फाइनान्स व्यक्ति माना जाता है वो अकाउंटंट जैसे लोग, पैसे कमाने वाले और खर्च करने वाले, व्यवसाय के मालिक और अन्य लोगों के व्यवहारों का केवल हिसाब रखने का काम करते हैं। किसी भी खेल की मिसाल देखें, उससे पता चलता है कि खेल का नतीजा खिलाड़ी के काम पर निर्भर होता है, खेल का स्कोर रखने वाले स्कोरकीपर पर नहीं। ठीक उसी प्रकार उद्योग की वित्तीय सफलता उस उद्योग के मुख्य (कोर) टीम के कार्यप्रदर्शन (परफॉर्मन्स) पर निर्भर होती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह नॉन फाइनान्स कहलाने वाले लोग ही व्यवसाय में फाइनान्स व्यक्ति होते हैं। सबसे पहले उद्योजकों ने 'नॉन फाइनान्स व्यक्ति' इस बड़ी गलतफहमी से बाहर निकलना चाहिए। क्योंकि इसी गलतफहमी से उनके आर्थिक व्यवस्थापन के बारे में दो बड़ी गलतफहमियां तैयार होती हैं। पहली, उन्हे अकाउंटस, बैलन्स शीट, विवरण पत्र, कैश फ्लो, कॉस्टिंग आदि विषय बेहद जटिल तथा पेचीदा लगते हैं। इन सभी मामलों में बड़े बड़े आंकड़े देख कर, इतना गणन कर पाएंगे या नहीं यहीं सोचते वें रह जाते हैं। इन गलत संकल्पनाओं के कारण कई उद्योजक मानते हैं कि इस विषय में दिमाग लगाने के बजाय वहीं समय तकनीक और मार्केटिंग के काम में बिताया जाए तो अधिक बिक्री और अधिक लाभ होगा। सारांश, यह जटिल काम बाहर से (आउटसोर्स) कर व्यवसाय के कोर भाग पर अधिक ध्यान देना ठीक है, ऐसी इनकी सोच होती है। 
 
वास्तव 
ध्यान देने वाली बात यह है कि हर व्यवसाय का मूलभूत काम, अन्य व्यवसाय के काम से अलग प्रतीत होता है। क्योंकि हर उद्योग के काम अलग अलग क्षेत्रों में विभिन्न क्षमताओं के आधार पर, विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में और अन्य कई प्रकार की स्थितियों में किए जाते हैं। लेकिन इस कोर के कोर पर नजर ड़ालें तो पता चलता है कि किसी भी उद्योग का मूल हेतु होता है मुनाफा कमाना। '(पैसा) आया कितना और गया कितना' यहीं मंत्र सारे व्यवहारों के पीछे कार्यरत होता है और यहीं विचार उद्यम का अहम् हिस्सा होता है। इसलिए उद्योग का मूलभूत काम बाहर से करने का विचार छोड़ देना उद्योजकों के लिए जरूरी है। 
 
अकाउंटस, फाइनान्स, बैलन्स शीट, MIS, कर विवरण पत्र जटिल और पेचीदा होते हैं...इस गलतफहमी के बारे में कहा जाए तो ये टिप्पणियां और स्टेटमेंट जटिल नहीं होती, उनका अपना एक फॉरमैट होता है यानि उनको लिखने की एक पद्धति होती है। तथा उस हेतु कुछ मूलभूत संकल्पनाओं का उपयोग किया जाता है। तकनीकी भाषा में कहे तो इन सब का एक 'टेक्निकल जार्गन' बना होता है, जिससे यह बातें जटिल लगती हैं। देखा जाए तो कार के डैशबोर्ड का भी एक फॉरमैट होता है और उसमें वैज्ञानिक संकल्पनाओं को आसान रूप में दर्शाया जाता है। किसी भी ड्राइवर को थोड़ा ध्यान दे कर डैशबोर्ड समझ लेना पड़ता है। एक बार उसके लिए समय देने पर हर बार डैशबोर्ड के अध्ययन की आवश्यकता नहीं होती और उससे मिलने वाली जानकारी का लाभ, गाड़ी चलाते समय आसानी से उठा सकते हैं। 
 
एक और गलतफहमी है कि आर्थिक प्रतिवेदन और अकाउंटस प्राप्त करने के लिए काफी गणिती क्रिया करनी होती है। यह गलत है क्योंकि आज हम संगणक के युग में हैं, हर घर में आज संगणक होता है। सारा गणन तो साफ्टवेयर ही करते हैं और रिपोर्ट तो थाली में परोसे भोजन की तरह हमारे सामने आते हैं। उद्योजक का काम है सिर्फ इस फॉरमैट को और रिपोर्ट जिस संकल्पना पर आधारित होते हैं, उन्हे जानना। इसेही तो हम उद्योजक की वित्तीय साक्षरता कहते हैं और इसके लिए ही यह लेखमाला है।
 
वित्तीय साक्षरता 
इतनी प्रस्तावना के बाद अब हम आज के विषय पर चर्चा शुरू करते हैं। वित्तीय साक्षरता के मामले में बैलन्स शीट तथा लाभ एवं हानि पत्रक यह दो रिपोर्ट, हिसाब के डैशबोर्ड के अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से हैं। उद्यम की किसी भी दिन की आर्थिक स्थिति (संपत्ति और देयक कितने हैं) बैलन्स शीट द्वारा दर्शाई जाती है। इस स्थिति पर आने के पहले हुए लाभ या हानि का चित्र हमें लाभ एवं हानि पत्रक दर्शाता है। बैलन्स शीट एक खींची हुई फोटो की तरह होती है तो लाभ-हानि पत्रक, किसी वीडियो की तरह, लाभ या हानि के कारणों का प्रवाह दर्शाता है। 
 
उद्योग में हुए लाभ एवं हानि की और साथ में उद्योग की संपत्ति तथा देयकों की समयानुरूप स्थिति निश्चित अंतराल से समझने के लिए हिसाब लिखने का एक वित्तीय वर्ष तय किया जाता है। कारोबार के हिसाब, डबल एंट्री अकाउंटिंग व्यवस्था के अनुसार और मर्कंटाइल पद्धति से रखे जाते हैं। हर वित्त वर्ष में इन दो बातों के आधार पर व्यवसाय के हिसाब रखे जाते हैं तथा इसके आधार पर, साल के अंत में लाभ हानि पत्रक और बैलन्स शीट यह दो महत्वपूर्ण पत्रक बनाए जाते हैं। हमारे देश में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक सरकारी वित्तीय वर्ष होता है। यहीं वर्ष आय कर, जी.एस.टी. जैसे कर भरने के लिए अमल करना, उद्योग तथा व्यवसाय को अनिवार्य है। इसलिए अधिकांश उद्योगों का आर्थिक वर्ष हर साल 31 मार्च को समाप्त होता है। इस तारीख पर समाप्त हुए वर्ष में व्यवसाय में कितना लाभ या हानि हुई यह जानने के लिए उस वर्ष का लाभ हानि पत्रक (प्रॉफिट अैंड लॉस अकाउंट) तैयार किया जाता है। साल के अंत में उद्योग की संपत्ति और देयक की स्थिति जानने हेतु 31 मार्च इस तारीख का बैलन्स शीट बनाया जाता है। यह दोनों पत्रक मिल कर 31 मार्च को समाप्त हुए वर्ष की आर्थिक स्थिति कैसी थी, इस बारे में पूरी जानकारी देते हैं। इसलिए इन पत्रकों को कैसे बनाया जाता हैं, यह पत्रक समझने के लिए किन संकल्पनाओं को जानना जरूरी हैं, इस पत्रक के आधार पर पिछले वर्ष के संदर्भ में साथ ही बाजार के अन्य प्रतियोगियों की तुलना में अध्ययन कैसे किया जाता है आदि के बारे में अगले भाग में विस्तृत रूप से जानकारी लेंगे। वर्ष के अंत में मिलने वाले इन दो पत्रकों के अलावा उद्योजक को उद्योग की वित्तीय स्थिति जानने के लिए साल भर समय समय पर किन मैनेजमेंट रिपोर्ट के बारे में जानना जरूरी होता है, इसकी जानकारी भी अगले भागों में दी जाएगी। 
 
उपरोक्त सारे फाइनेन्शियल रिपोर्टों का विचार करने पर मुझे सिंहावलोकन शब्द याद आता है। जंगल में घूमते समय, थोड़ा चलने के बाद पीछे मुड़ कर देखने की आदत सिंह (शेर) को होती है। इस शब्द का मूल उसमें हैं। ऐसा करने में सिंह का उद्देश्य होता है पीछे से कोई धोखा तो नहीं, पीछे छोड़े मार्ग पर कोई मौका तो नहीं छूटा ये देखना। इसी प्रकार उद्योजक भी, हो चुके वित्तीय व्यवहारों का अवलोकन इन सारे प्रतिवेदनों द्वारा निरंतर करते हैं और उस आधार पर, आने वाले समय में आवश्यक वित्तीय निर्णय लेने का प्रयास करते हैं।
 
 
@@AUTHORINFO_V1@@