वेबिनार : भविष्य में गुणवत्ता के मापदंड

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Udyam Prakashan Hindi    18-नवंबर-2020
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दीपक देवधर : जोशी सर, गुणवत्ता के संदर्भ में आपके विदेशी और स्थानिक ग्राहक आपसे कौनसी तथा किस प्रकार की अपेक्षाएं रखते हैं? आपको उन अपेक्षाओं में किस प्रकार के बदलाव नजर आ रहे हैं?
विवेक जोशी : आपने मुझसे पूछे पहले सवाल का जवाब देने से पहले मैं गुणवत्ता का मतलब क्या है, इसकी चर्चा करना चाहूंगा। हर एक की दृष्टि में गुणवत्ता की मात्रा अलग होती है। ग्राहक के साथ गुणवत्ता के मापदंड़ बदलते हैं। किसी ग्राहक ने जो मापदंड़ तय किए हैं, उनके अनुसार अगर आपका उत्पाद हो तो ग्राहक की दृष्टि से वह उत्पादन उचित गुणवत्ता का होता है। किसी अन्य ग्राहक की राय के मुताबिक जिस काम (फंक्शन) के लिए उत्पाद बनाया जा रहा है, वो अगर पूरा हो रहा है, तब गुणवत्ता उचित होती है। इन दो परिभाषाओं के आगे जा कर मैं यह कहना चाहूंगा कि आपका उत्पाद ग्राहक ने बताए विशेषताओं से युक्त होने के साथ ही उसे उस उत्पाद पर भरोसा हो और उसकी पूरी तसल्ली हो ऐसे उत्पाद अपेक्षित होते हैं।
 
अब हम सोचते हैं समय के साथ बदलती अपेक्षाओं के बारे में गुणवत्ता का सफर देखें तो कार की उत्पादन प्रक्रिया में शुरुआत में एक व्यक्ति उस कार का पूरा इंजन जोड़ता (असेंबल) था या 1-2 लोगों की टीम मिल कर पूरी कार की असेंब्ली करती थी और उस कार पर गर्व के साथ खुद का नाम लिखा जाता था। उस समय खुद का नाम लिखना, उनके लिए गुणवत्ता की पहचान थी। कुछ समय पश्चात असेंब्ली लाइन आई। कई लोग मिल कर उस गाड़ी का एक एक भाग तैयार करने लगे। इससे उस स्थान पर गुणवत्ता की जांच करना सारे असेंब्ली का हिस्सा बन गया था। जो लोग पुर्जों की आपूर्ति करते थे, वें शुरू में ही कौनसा पुर्जा अच्छा है तथा कौनसा नहीं यह छांट कर (सॉर्टिंग कर के) देते थे। बाद में उसमें देखी गई कमियां गिनी जाती थी। इनकी मात्रा की गिनती भी 2%, 5%, 10% इस तरह होती थी। धीरे धीरे ग्राहक ने यह मात्रा प्रतिशत में ना दे कर PPM में बताने की मांग की। यानि ग्राहक तक पहुंचे 10 लाख भागों में से कितने भागों में कमियां थी, यह नापा जाता था। उस मूल्यांकन के आधार पर ग्राहक निर्माता को गुणवत्ता का रेटिंग देते थे। डैमलर, वोल्वो जैसे कंपनियों की दृष्टि में गुणवत्ता का मतलब है उन्हे निर्दोष (जिरो डीफेक्ट) पुर्जे की आपूर्ति करना। अब ग्राहक सिर्फ 'जिरो डीफेक्ट' ही नहीं बल्कि 'जिरो इफेक्ट टू द एन्वायर्नमेंट' अर्थात पर्यावरणपूरक होने की अपेक्षा पर जोर देते हैं। आने वाले समय में ग्राहक की इस प्रकार की अपेक्षाएं बढ़ती रहेगी। 
 
विक्रम साळुंखे : मेजरिंग इन्स्ट्रूमेंट के व्यवसाय में आए मुझे 30 साल हो चुके हैं। जब मैंने यह व्यवसाय शुरू किया तब सारे विश्व में जर्मनी में निर्मित उत्पाद सबसे बेहतर माने जाते थे। तब जापानी उत्पाद की गणना जर्मनी के बाद की जाती थी। बदलते समय के साथ, जापान के उत्पादों की गणना अग्रणी उत्पादों में होने लगी। जैसे कि विवेक जोशी सर ने बताया, ग्राहक की अपेक्षाओं का उचित और बारीकी से अध्ययन कर के गुणवत्ता के साथ ग्राहकों की संतुष्टि करने वाली बातों पर कैसे जोर दिया जाता है, यह जपानी उत्पादों में देखा जाता है। मुझे ऐसा लगता है कि गुणवत्ता एक निरंतर यात्रा है। हर देश में इस यात्रा के कई पड़ाव यानि माइलस्टोन होते हैं। हमारे देश में वाहन उद्योग में 'मारुती' का आना एक बड़ा माइलस्टोन था। उसके बाद हमारे देश में गुणवत्ता के मापदंड़ में बड़ी मात्रा में बदलाव आए। 
 
गुणवत्ता के बारे में सब की अलग अलग राय होती है। हर एक के लिए गुणवत्ता के मापदंड़ भी भिन्न होते हैं। पिछले 20-25 सालों में वाहन उद्योग में गुणवत्ता के मापदंड़ कितने बड़े पैमाने पर बदले हैं, यह हम सब जानते हैं। इस यात्रा में, इक्विपमेंट सप्लाइअर के रूप में हमनें अनेक परिवर्तन देखें हैं। शुरुआती दौर में, उद्योजकों की तरफ से अंतिम परिक्षण के समय सारी गुणवत्ता जांच करते वक्त मेजरिंग इक्विपमेंट बड़ी सावधानी से इस्तेमाल कर के अंतिम वर्गीकरण करने के बाद उस पार्ट की आपूर्ति की जाती थी। अब इस पद्धति में बदलाव हुए हैं। जो वस्तु बनाता है, गुणवत्ता उसकी जिम्मेदारी होती है। इस हेतु मशीन ऑपरेटर को उस मशीन पर ही सारे पूरक साधन उपलब्ध किए जाते हैं। समय के साथ गुणवत्ता पर नियंत्रण, गुणवत्ता का आश्वासन इनकी परिभाषाएं बदलती गई। साथ ही हमारे देश में सारे आपूर्तिकर्ताओं के मार्केट भी बदल गए हैं। 
 
दीपक देवधर : जोशी सर, आप वैश्विक ग्राहकों को, एक आपूर्तिकर्ता के रूप में आपूर्ति करते हैं। इस संदर्भ में अपनी भारतीय संस्कृति के बारे में सोचें तो हमारी कंपनियों में एक विशेष संस्थात्मक आचरण (टिपिकल ऑर्गनाइजेशनल बिहेवियर) दिखाई देता है। मांग की दृष्टि से इस संस्कृति के आपके क्या अनुभव हैं? इस आचरण को बदलने के लिए क्या आपको अपनी कंपनी या आपूर्तिकर्ता की कंपनी में कोई परिवर्तन अपेक्षित हैं? इस बारे में मिलने वाली प्रतिक्रियाएं बताएं। 
 
विवेक जोशी : यह एक बेहद उचित सवाल है। क्योंकि जैसे हम वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहें हैं, हम मुख्य आपूर्तिकर्ता के रूप में विभिन्न देशों में हमारे पार्ट देते हैं। ऐसे समय हमारी आपूर्ति की गुणवत्ता का भी असर अंतिम उत्पाद पर होता है। इसलिए हमारी पूरी मूल्य शृंखला (वैल्यू चेन) या वैल्यू सिस्टम हमें अलग तरह से बदलनी होगी। इसके लिए आपने 'संस्कृति' इस एकदम सही शब्द का प्रयोग किया है। संस्कृति तथा संस्थात्मक आचरण इन दोनों का अच्छा संयोग हो सकता है, जिसे जापान ने शुरुआत से किया है। किसी भी उद्योग की शुरुआत से ही प्राकृतिक मूल्य और संस्कृति का प्रभाव उसके उत्पादन या प्रक्रियाओं पर हमें दिखता है। प्रक्रिया (प्रोसेसिंग) तथा उत्पाद की दृष्टि से हमारी अनन्यता या खासियत है वैल्यू सिस्टम, हमारा धर्म पर विश्वास (फेथ), हमारी विविधता (डाइवर्सिटी)। हम निर्माण में इन सब का समावेश कर सकते हैं। 
 
पहले दिनों में, कुछ भी आधुनिक करना हो तो हम पश्चिमी देशों की ओर दौड़ते थे, जापान, यूरोप या अमरिका की उन चीजों की नकल करते थे। अब वो जमाना नहीं रहा। आज के प्रतियोगिता के दौर में उत्पादन का 'कॉपी पेस्ट' नहीं चलता। तकनीक की नकल कर सकते हैं, उसमें इच्छित बदलाव भी कर सकते हैं। लेकिन जो प्रणाली हैं, उसकी नकल हम नहीं कर सकते। 
 
निर्माण क्षेत्र में मेरे गुरू हैं, सी. नरसिंहनजी। उनकी एक किताब भी प्रकाशित हुई है, 'इंडियन प्रॉडक्शन सिस्टम'। उनके साथ हुई चर्चा से मुझे पता चला कि हमें भारतीय उत्पादन प्रणाली विकसित करनी चाहिए। जैसे साळुंखे सर ने कहा, हर उत्पाद निर्माण करते समय उसकी उचित और संपूर्ण जांच की जाए तो अलग गुणवत्ता नियंत्रण (क्वालिटी कंट्रोल) की, पुनः परिक्षण की जरूरत नहीं रहेगी। इस पड़ाव पर पहुंचने से पहले हमें कई बातों में बदलाव करना होगा। संस्थात्मक आचरण का महत्वपूर्ण हिस्सा बताएं तो, हमारे जैसी बड़ी कंपनियों ने अलग अलग स्थान तथा प्लैंट के अनुसार यूनिट की रचना, यूनिट में लाइन, लाइन में सेल और सेल में मशीन, इस प्रकार वर्गीकरण करना चाहिए। इससे अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर (माइक्रो लेवल) सारी बातों की निगरानी (मॉनिटर) कर सकते हैं। 
 
वैल्यू अैडेड और नॉन वैल्यू अैडेड का वर्गीकरण कर के, नॉन वैल्यू अैडेड काम घटाने से हमारे उत्पाद की गुणवत्ता और कीमत दोनों पर यकीनन असर होगा। उत्पादन समय पर भी नियंत्रण संभव होगा। 
 
श्रमशक्ति की उपलब्धता, मानसिकता तथा रवैया इन तीनों मामलों में, अन्य देशों द्वारा भारत की ओर सकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन हम भारतीय पूर्वानुमानित व्यवहार (प्रेडिक्टेबल बिहेवियर) में पिछड़ जाते हैं, हमारा यह दोष अन्य देश रेखांकित करते हैं। पूर्वानुमानित काम में हम पीछे रह जाते हैं, जैसे कि कोई काम समय पर ही होगा, संख्या इतनी ही होगी, अपेक्षित गुणवत्ता मिलेगी, अपना माल अपेक्षित समय पर पहुंचेगा, नियत दिन पर उत्पादन यकीनन शुरू होगा... आदि। हमें हमारी निरंतरता, विश्वास एवं पूर्व अनुमान बढ़ाना होगा। 
 
उत्पादन करते समय कई मुश्किलें आती हैं। उन्हे सुलझाने के लिए डेटा बेहद महत्वपूर्ण होता है। क्या हम भारतीय 'डेटा ओरिएंटेड' हैं? यह सबसे बड़ा सवाल है। डेटा, स्ट्रक्चर ओरिएंटेड प्रॉब्लेम सॉल्विंग आदि पर हमें जोर देना चाहिए। तर्क पर आधारित या स्वीकृत मुद्दों पर काम न बदलें। हमारा कामगार वर्ग, टीम मेंबर, अभियंता, इनकी कुशलता को बढ़ावा देना होगा। साथ में स्वचालन कर के, मशीन प्रोसेसिंग में कुशलता की जरूरत कम करनी होगी। आगे की दृष्टि से सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना उचित होगा। निरंतर सुधार करने की संस्कृति के जतन से गुणवत्ता में वृद्धि होगी तथा लागत/कीमत कम होगी। हमारी निर्माण व्यवस्था में अगर हम सांस्कृतिक एवं संस्थात्मक बदलाव कर सकते हैं, तो बेहतर उत्पादन कर के विश्व की प्रख्यात कंपनियों से हम स्पर्धा कर सकते हैं और ये मुमकिन है। 
 
अगर हमारे सामने कोई समस्या आती है, तो आम तौर पर मालिक या वरिष्ठ अधिकारी की पहली प्रतिक्रिया होती है 'यह समस्या किस के कारण हुई'। यह सवाल संस्कृति का भाग है। इसके बजाए हमने 4W और 1H के आधार पर, यह समस्या कैसे आई, कहाँ आई, कब आई, यह विश्लेषण करना चाहिए। कंपनी के गेट पर आने वाला कोई भी कामगार, "मैं आज कंपनी में कुछ तो बिगाड़ कर जाऊंगा" ऐसी सोच रख कर कभी नहीं आता। वह सोचता है कि आज मैं कुछ तो अच्छा काम करुंगा। हर कर्मी का काम बेहतर होने के लिए उन्हे जरूरी सिस्टम प्रदान करना हम वरिष्ठों का काम है। यानि काम में समस्या आने पर, दोषपूर्ण भाग तैयार होने पर, उत्पादन बार बार रुक रहा हो, तो इनके कारण खोजने के लिए सिस्टम का इस्तेमाल होने वाला है। इस सिस्टम से डेटा इकठ्ठा करना आसान होता है। इसके लिए जापानी लोगों ने 'TEI- टोटल एम्प्लॉई इन्वॉल्वमेंट' कार्यपद्धति अपनाई है।
 
दीपक देवधर : साळुंखे सर, आपके ग्राहकों में कई बड़ी और छोटी कंपनियां हैं। जैसे कि विवेक जोशी सर ने कहा कि कारखाने में इस प्रकार का सांस्कृतिक बदलाव लाने के संदर्भ में छोटी कंपनियों की क्या प्रतिक्रिया होती है? इक्विपमेंट के संदर्भ में क्या छोटी कंपनियां आपसे कोई अलग अपेक्षाएं रखती है?
 
विक्रम साळुंखे : कंपनी चाहे बड़ी हो या छोटी, तकनीक के इस्तेमाल के मामले में अब कोई फर्क नहीं रहा। 20 साल पहले जब सी.एन.सी. मशीन आई तब माना जाता था कि केवल बड़ी कंपनियां ही सी.एन.सी. मशीन खरीदेंगी। छोटी कंपनियां मैन्युअल लेथ या मिलिंग मशीन पर काम करेगी। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। कोई लघु उद्योजक हो या स्टार्टअप भी, उनके पास पहली मशीन सी.एन.सी. प्रकार की होती है। जैसे कि विवेक जोशी ने कहा, बड़ी कंपनियों में कई तकनीक डेटा ड्रिवन होती हैं तो छोटी कंपनियों में अनुभव पर अधिक जोर दिया जाता है। कोविड के समय, अपने शॉप की सारी तकनीक, अलग नजरिये से देखने का समय आया है। हमारी छोटी कंपनियों में एक मिसिंग लिंक हैं, जो यह है कि छोटी कंपनियों में डेटा तैयार होता है लेकिन उसका असरदार इस्तेमाल नहीं किया जाता। कई स्थानों पर पारंपरिक कैलिपर के बजाय डिजिटल कैलिपर का उपयोग किया जाता है, कई कंपनियों में CMM भी हैं। इन सब साधनों से प्राप्त डेटा, उसी स्टेशन पर न रह कर उसे, संबंधि पार्ट के साथ अगली प्रक्रिया की तरफ आगे बढ़ाना चाहिए। फिलहाल छोटे कारखानों ऐसा नहीं होता। 
 
कुछ समय पहले हमारे कारखाने में कल्याणी फोर्ज के चेयरमन तथा संचालक बाबासाहेब कल्याणी आए थे। उन्होनें अपनी बातों में 'मीडिया ब्रेक्स' इस बेहतर संज्ञा (टर्मिनॉलॉजी) का प्रयोग किया था। उन्होंने अपने अनुभव से कहा था "पहले पार्ट जाता है और बाद में डेटा का सफर (ट्रैवल) होता है।" हम सभी जानते हैं कि डेटा सबसे तेज यात्रा करने वाला टूल है। लेकिन मीडिया ब्रेक्स के कारण डेटा किसी मशीन पर, किसी नोटबुक में या किसी रेकॉर्ड में होता है। कभी कोई मुश्किल आने पर, हम भारतीय पोलिस व्यवस्था की भांति उसे खोजने लगते हैं। अगर उसी डेटा पर समय पर काम किया जाए, उसे उचित तरीके में दर्ज किया जाए तो यकीनन लाभ हो सकता है। 
 
वाहन उद्योग में हम कई बार सुनते हैं कि गाडियां वापस बुलाई जाती हैं। ऐसे समय हमारे OEM के लिए ट्रेसेबिलिटी बेहद महत्वपूर्ण होती है। फिलहाल जो नया स्टैंडर्ड BS6 आया है, इसकी कई जरूरतें इस ट्रेसेबिलिटी पर निर्भर हैं। इसके लिए शॉप फ्लोर पर विभिन्न प्रक्रियाओं का डेटा कनेक्ट करना, उसका उचित इस्तेमाल करना, डेटा पर आधारित निर्णय लेना, इस प्रकार के काम बड़ी कंपनियों में होते हैं। यही संस्कृति अब हमारे यहाँ सभी प्रकार की कंपनियों में अपनाई जानी चाहिए। आने वाले समय में भारत को अगर वाहन निर्माण क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाना है, चीन के विकल्प के रूप में विश्व में दृढ़ता के साथ खड़ा रहना है, तो हमें इस पर बड़ी मात्रा में काम करने की आवश्यकता है।
 
दीपक देवधर : इस बदलावों के लिए हमने व्यक्तिगत तथा संस्थात्मक आचरण के संदर्भ में बातचीत की। मशीन पर काम करने वाले कामगार उस हिस्से की गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार यानि 'अकाउंटेबल' होंगे, तभी यह गुणवत्ता आगे बढ़ती रहेगी। इस स्थिति में तकनीकी दृष्टि से कंपनी ने किस तरह सोचना चाहिए? आज की स्थिति में MSME के लिए क्या आधुनिक उपकरण होना जरूरी है? इस बारे में आपकी क्या राय हैं?
 
विवेक जोशी : मुझे लगता है कि जिरो डीफेक्ट, शून्य दोष, निर्दोष उत्पादन... यह ग्राहक की मूलभूत अपेक्षा बनी हैं। उत्पाद के साथ ही प्राक्रिया में भी कोई डिफेक्ट नहीं होना चाहिए। जैसे जैसे इंडस्ट्री 4.0 का या क्वालिटी 4.0 का सफर आगे बढ़ेगा, वैसे निर्माण क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रवेश बढ़ेगा, तब गुणवत्ता एक आवश्यकता बन चुकी होगी। मैं तो कहूंगा कि लघु एवं मध्यम कारखानों के लिए यह सुनहरा मौका है, क्योंकि बड़ी कंपनियों में 2000-3000 मशीन होती हैं, उन्हे आपस में जोड़ना पड़ता हैं। उसके बजाय, छोटे कारखानों में या किसी शॉप फ्लोर पर होने वाला 10-12 मशीन का सेटअप, इंडस्ट्री 4.0 में परिवर्तित करने में समय कम जाएगा और उस पर अमल भी जल्द शुरू होगा। उसके लिए भविष्य की गुणवत्ता में अगले 7 मापदंड़ होने चाहिए 
 
1. व्यक्तिगत गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ अ पर्सन) : खुद की, कर्मचारी की, अधिकारी की गुणवत्ता। कुशलता (स्किल), ज्ञान (नॉलेज) और दृष्टि (अैटिट्यूड) इन तीनों मापदंड़ों पर, गुणवत्ता के संदर्भ में, हर एक के लिए काम किया जाना चाहिए। 
2. कंपनी की प्रणाली : दर्जेदार प्रणाली पर जोर देना। कच्चे माल से ले कर अंतिम उत्पाद पैक हो कर बाहर निकलने तक पूरी तरह से दर्जेदार प्रणाली होना जरूरी है। प्रक्रियाएं किस प्रकार की जाती हैं, बैच हो या मास प्रॉडक्शन, या बिक्री पश्चात ग्राहक को दी जाने वाली आफ्टर सर्विस हो, सभी में गुणवत्ता होना महत्वपूर्ण है।
3. मशीन गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ मशीन) : मशीन चाहे पुरानी हो या नई, किसी भी बनावट की हो, आज इन सारी मशीनों पर जोड़ने योग्य कई संवेदक बाजार में उपलब्ध हैं, जो किफायती और बेहतर काम करने वाले हैं। उन्हें जोड़ने वाले हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर भी उपलब्ध हैं। डेटा इकठ्ठा कर के साफ्टवेयर द्वारा उस पर प्रक्रिया कर के, मशीन का पूरा डेटा अपने पास रखा जा सकता है। इससे ब्रेकडाउन मेंटेनन्स के बजाय प्रोडक्टिव मेंटेनन्स करना आसान होता है। इससे भी अधिक आजकल चर्चा में है डिस्क्रिप्टिव मेंटेनन्स। इसमें मशीन ही बता देती है कि कौनसी समस्या आने वाली है, उसके समाधान के लिए कौनसा बदलाव कहाँ करना है यह सारी जानकारी स्क्रीन पर आती है। सूचना के अनुसार मेंटेनन्स विशेषज्ञ जरूरी बदलाव कर सकते हैं। यह सारी जानकारी मशीन खुद लेती है, अलार्म देती है कि अब ये बदलाव करने हैं।
4. प्रक्रिया की गुणवत्ता (प्रोसेस क्वालिटी) : प्रक्रिया डेटा ओरिएंटेड होनी चाहिए। मैन, मेथड, मशीन, मटीरीयल और टूल ये 4M +1T प्रकार की सावधानी प्रक्रिया में बरतनी चाहिए। 
5. जांच की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ इन्स्पेक्शन) : प्रक्रिया जिरो डीफेक्ट कैसी हो, इस पर काम होना चाहिए। इसे करने से पहले, ग्राहक की जरूरतों को ध्यान में रख कर उनकी 100% जांच हमे समय पर करनी चाहिए। भारत में सबसे पहले अैक्यूरेट कंपनी ने ऑटो गेज तैयार किए। 40-45 सेकंड में लगभग 150-170 पैरामीटर जांचे जाते थे। उनके नतीजे भी एक माइक्रोन के टॉलरन्स में मिलते है। उस इक्विपमेंट की विश्वासार्हता 100% है। साथ ही 100% ऑनलाइन काम कर के, 'जिरो पर्सेंट पीपीएम टू कस्टमर' उत्पादन मिल सकता है। इस तरह गुणवत्ता का स्तर बढ़ता रहना चाहिए। आगे चल कर, पार्ट ट्रेसेबिलिटी की जानकारी का संग्रह करना भी महत्वपूर्ण है। 
6. उत्पाद की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ प्रॉडक्ट) : ऑनलाइन गेजिंग, मशीन को सीधा फीडबैक, ऑनलाइन SPC और प्रेडिक्टिबिलिटी
7. पैकेजिंग की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ पैकेजिंग) : यह सबसे अहम् मुद्दा है। कई बार हमारे यहाँ इसके बारे में सोचते नहीं हैं। हम जो उत्पाद बना रहे हैं, उसका पैकेजिंग उचित ही होना चाहिए। इस बात पर सारे उद्योजकों ने गंभीरता से विचार करना जरूरी है। 
 
हमारे लिए यह सात मापदंड़ भविष्य में गुणवत्ता तय कर सकते हैं। MSME उद्योजकों को मेरी बिनती हैं कि आज, तकनीक के कारण ये सारी चीजें आसानी से उपलब्ध हैं। इनका उचित इस्तेमाल कर के आप समय के पहले, उचित व्यक्ति से, उचित गुणवत्ता तथा उचित कीमत में वस्तुएं निर्माण कर सकते हैं। मुझे लगता है कि बड़ी कंपनियों के आपूर्तिकर्ता होने के लिए तकनीक के उपयोग से हमें कई अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।
 
दीपक देवधर : साळुंखे सर, ग्राहक की सारी जरूरतें ध्यान में रख कर आप जो उपकरण तैयार करते हैं उनमें MSME उद्यमियों को आकर्षित करने वाले इंस्ट्रूमेंट का निर्माण आपने किया है या करने वाले हैं? ये उद्यमी आज शायद CMM खरीद नहीं सकते, क्या आप उन्हे कोई विकल्प दे सकते हैं या आप इस पर कुछ सोच रहें हैं?
 
विक्रम साळुंखे : उपकरण का प्रभावशालि या आधुनिक होना, यह मुद्दा कार्यप्रदर्शन की दृष्टि से सिर्फ एक दिखावा नहीं बल्कि जरूरत है। जैसे कि, सादे कैलिपर भी आयाम जांचते हैं, वहीं आयाम हम डिजिटल कैलिपर से भी जांचते हैं। दोनों कैलिपर एकसमान काम करते हैं, फिर भी दोनों की कीमत में फर्क क्यों यह सवाल मुझसे अगर कोई पूछे तो इस स्थिति में डिजिटल कैलिपर का समर्थन करना मुश्किल होगा। लेकिन डिजिटल कैलिपर से मिलने वाला डेटा अगली प्रक्रिया में इस्तेमाल कर के उसके आधार पर कोई निर्णय लिया गया तो, उसका मूल्य कैलिपर की कीमत से अधिक होगा। 
 
डिजिटल इक्विपमेंट से मिले डेटा का विश्लेषण करना तथा उसका इस्तेमाल करना हमें आना चाहिए ताकि उससे प्रोडक्टिव मेंटेनन्स किया जा सके। उत्पाद की कीमत में कटौती कर सकते है। इसके लिए डेटा का विश्लेषण महत्वपूर्ण भाग है। आने वाले समय में हमारे मानवीय कौशल में कई चुनौतियां हो सकती हैं। हमें डेटा के साथ काम करने की आदत नहीं हैं। फिलहाल हमारी अधिकतर शक्ति डेटा लाने में खर्च होती है। बाद में उसके प्रबंधन में समय लगता है। समय के बाद हाथ आए विश्लेषण से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होता। तकनीक से आपको तुरंत डेटा मिल सकता है, लेकिन उसका इस्तेमाल करना आना चाहिए। 
 
जब पुणे के नजदीक चाकण में फोक्सवैगन का कारखाना शुरू हुआ, तब सबसे पहले वहाँ क्वालिटी रूम सेटअप की गई। प्लैंट के शुरुआती दिनों में, उनके तत्कालीन सीईओ का ऑफिस मेजरमेंट रूम में था। शॉप फ्लोर से कोई भी समस्या आने पर वें कभी तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देते थे। पहले वो खुद CMM रिपोर्ट जांचते थे, विश्लेषण करते थे और उसके बाद आगे की कारवाई तय की जाती थी। उच्च पद पर बैठा व्यक्ति जब डेटा पर अधिक जोर देता है, तब निश्चित तौर पर कंपनी में अलग प्रकार की संस्कृति तैयार होती है।
 
दीपक देवधर : भविष्य में गुणवत्ता के क्या मापदंड़ होंगे और उन मापदंड़ों के संदर्भ में अपने उत्पादों का दर्जा उनके अनुकुल बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस पर विस्तृत चर्चा आप सभी को पेश की गई है। उद्यम प्रकाशन द्वारा, 'यंत्रगप्पा' के माध्यम से ऐसे ही अन्य विषयों तथा क्षेत्रों के विशेषज्ञों को मंच पर आमंत्रित कर के दर्शकों के सामने चर्चा की जाएगी। इसमें आपका सहभाग और ये बातचीत अर्थपूर्ण होने के लिए आपकी सूचनाओं का स्वागत है। 
 
(शब्दांकन : सई वाबळे, सहायक संपादक, उद्यम प्रकाशन)
 
 
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