ग्रैफाइट प्लेट का यंत्रण

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Udyam Prakashan Hindi    18-नवंबर-2020   
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पुनःनवीकरणीय (रिन्युएबल) उर्जा के इस्तेमाल से बिजली प्राप्त करने के कई विकल्प हैं। जिनमें से एक विशेष विकल्प है 'हाइड्रोजन फ्यूल सेल', जिसकी प्रक्रिया चित्र क्र. 1 में प्रतिनिधिक स्वरूप में दर्शाई गई है। चित्र क्र. 2 में 'हाइड्रोजन फ्यूल सेल' का स्वरूप स्पष्ट किया है।

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इस फ्यूल सेल का मूलभूत घटक है, विशेष आकार की चपटी ग्रैफाइट प्लेट। इसके पृष्ठ पर खांचों की खास रचना बनाई होती है। खांचों के पास की जगह, खांचों में वायु का रिसाव रोकने हेतु सीलिंग (चित्र क्र. 3) करने के लिए है।

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दो ग्रैफाइट प्लेट, एक के उपर एक इस तरह रखी जाती हैं कि उनके खांचे वाले पृष्ठ आमने सामने आ जाते हैं। ऐसी ग्रैफाइट प्लेट से उनका ढ़ेर (स्टैक) तैयार किया जाता है। इस स्टैक के रूप में बने ग्रैफाइट के जोड़, वायु को उनमें से गुजरने के लिए एक सुचारू मार्ग तयार करते हैं। एक बैटरी तैयार करने के लिए ऐसे कई स्टैक एक के उपर एक रखे जाते हैं। ऊर्जा की मांग देख कर स्टैक की संख्या बढ़ाई जाती हैं। यह स्टैक, विपरित अंतों पर रखे दो टाइ रॉड की मदद से बोल्ट लगा कर जोड़ा (चित्र क्र. 4) जाता है। स्टैक की यह रचना, उस स्टैक से तथा नजदीकी स्टैक के बीच से वायु के बहने के लिए मार्ग तैयार करती है।

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अचूकता से ग्रैफाइट प्लेट तैयार करने की चुनौती हमारे सामने थी। बाजार में 750 मिमी. x 750 मिमी. x 4 मिमी. आकार में ग्रैफाइट के तख्ते (स्लैब) उपलब्ध हैं। ये भंगुर होने के कारण, प्रक्रिया करते समय तथा जोड़ते समय काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। अतिरिक्त या अनावश्यक बल देने पर ग्रैफाइट में दरारें पड़ती हैं। बढ़ई (कार्पेंटर) जिस यंत्र से लकड़ी काटते है, उसीसे मिलते जुलते कटिंग मशीन से ये तख्ते 210 मिमी. x 120 मिमी. आकार में काटे जाते हैं। पहले दिनों की प्रक्रिया के अनुसार, काटे हुए तख्ते सीधे वी.एम.सी. पर खांचे बनाने हेतु भेजे जाते थे। उसके बाद अंतिम असेंब्ली की जाती थी। इस प्रकार जोड़ी गई ग्रैफाइट प्लेट में, सीलिंग करने के स्थान पर छोटी दरार पड़ रही थी और इसलिए हैड्रोजन गैस का रिसाव हो रहा था। फलस्वरूप इस प्रकार के बैटरी का काम जरूरी गुणवत्ता का नहीं हो रहा था।
विश्लेषण करने पर पता चला कि बाजार में उपलब्ध कच्चे ग्रैफाइट प्लेट के छोर का पृष्ठ शुरुआत में संकीर्ण होता है। इस संकीर्ण भाग को निकाल कर वी.एम.सी. पर खांचे बनाने के कारण उनकी गहराई अनियमित मिल रही थी। साथ ही, खांचे बनाने के बाद सीलिंग के लिए रखी जगह ठीक से तैयार नहीं हो रही थी और इसका नतीजा ये था कि वायु तथा रसायन के मिश्रण के बहाव पर विपरित असर पड़ रहा था। सीलिंग भी उचित नहीं मिल रहा था। फलस्वरूप, बैटरी का कार्यनिष्पादन संतोषजनक नहीं था।
इस पर काबू पाने के लिए, ग्रैफाइट प्लेट की यंत्रण प्रक्रिया तय करते समय दो पृष्ठ समानांतर हो इसलिए हमने पृष्ठ का ग्राइंडिंग करने का रास्ता अपनाया। लेकिन ग्रैफाइट काफी भंगूर तथा गैर चुंबकीय होने कारण, पृष्ठ का ग्राइंडिंग एक चुनौती थी। ग्रैफाइट टूटने की संभावना के कारण हम बाहरी क्लैंपिंग सुविधा करने में असमर्थ थे। गैर चुंबकीय मटीरीयल के कारण प्लेट को ग्राइंडिंग मशीन पर चुंबकीय पट्टी की मदद से सीधे क्लैंपिंग करना मुश्किल था। उचित 'नेस्टिंग' (चित्र क्र. 5) से हमने इस समस्या का समाधान पाया।

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नेस्टिंग व्यवस्था में, पूरी तरह से ग्राइंड की हुई और ढ़ीली सी जोड़ी फौलाद की पट्टियां होती हैं, जो ग्रैफाइट प्लेट से पतली होती है। ये नेस्ट ग्राइंडिंग के बल का सामना करता है और ग्रैफाइट प्लेट को जरूरी सहारा देता है। अपेक्षित अचूकता प्राप्त करने के लिए यहाँ सूखा ग्राइंडिंग करने की सिफारिश की गई थी।
प्लेट की ग्राइंडिंग प्रक्रिया के दौरान तैयार हुई ग्रैफाइट पाउडर खतरनाक मानी जाती है और इसका उचित निपटारा करने की जिम्मेदारी उत्पादक की होती है। इसलिए उचित सावधानी के साथ ग्रैफाइट पाउडर पानी में जमा करने की व्यवस्था गठित की गई। इसका निपटारा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानक पद्धति का पालन करते हुए किया गया। यह पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया स्थापित करने पर हमें गर्व है।
इस प्रणाली द्वारा दो पृष्ठ की समतलता और समानांतरता 0.05 मिमी. तक प्राप्त कर सके। इससे हैड्रोजन का रिसाव लगभग शून्य के बराबर लाना संभव हुआ।
घिसाव या क्षरण ना होने के कारण, वास्तव में इन बैटरियों की आयु अमर्यादित होती है, वे कई सालों तक काम करती हैं। पुणे में स्थित प्राधिकृत एवं ख्यातकीर्त प्रयोगशालाओं में इन प्रणालियों का परीक्षण किया गया है और औपचारिक मान्यता प्राप्त की गई हैं। फिलहाल मोबाइल फोन टॉवर पर, इंधन पर चलने वाले जनित्र (जनरेटिंग सेट) के बदले यह प्रणालियां इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है। 
 
 
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