प्लैटू होनिंग

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Udyam Prakashan Hindi    18-नवंबर-2020
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होनिंग एक फिनिशिंग कार्य होता है। आम तौर पर इसे छिद्र (बोर) के पृष्ठ पर किया जाता है, लेकिन कई बार इसे आवश्यकता के अनुसार शाफ्ट या बाहरी पृष्ठ पर भी किया जाता है। होनिंग यह शब्द अंग्रेजी 'हनी' अर्थात शहद से निर्मित है। मधुमख्खियों के छत्ते में पृष्ठीय तनाव (सरफेस टेन्शन) के कारण शहद इकठ्ठा रहता है, नीचे नहीं गिरता। होनिंग में, चित्र क्र. 1 और 2 में दर्शाएनुसार 'क्रिस क्रॉस' खांचे तैयार होते हैं, जो डाइमंड के आकार के होते हैं। होनिंग करते समय होनिंग टूल होल्डर का संचलन, वृत्तीय तथा उपर नीचे दोनों प्रकारों में होता है। इन दोनों दिशाओं के संचलन के मेल से पृष्ठ पर क्रॉस पैटर्न मिलता है और डाइमंड जैसा आकार विकसित होता है। इसमें स्नेहन (लुब्रिकेशन) के लिए ऑईल का संचय करने की क्षमता होती है।

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शिखर एवं गड्ढे के बीच में होने वाली ऑईल गैलरी में ऑईल का संचय होता है। इंटर्नल ग्राइंडिंग से बनाए पृष्ठ पर ऑईल संचय ना होने के कारण, जहाँ चिकनाई होना आवश्यक हो ऐसे स्थान पर होनिंग ऑपरेशन का कोई विकल्प नहीं है।
प्रायः एकसमान आर.पी.एम. पर चलने वाले जनरेटर जैसे स्थिर इंजन के लिए पारंपरिक होनिंग उचित होता है। ऑटोमोटिव इंजन के लिए, प्लैटू होनिंग द्वारा आगे दी गई अन्य समस्याओं का समाधान होता है।
पारंपरिक होनिंग से तैयार हुए उंचे हिस्से, संबंधि पुर्जे के कुछ इस्तेमाल के बाद घिस जाते हैं। इससे गड्ढ़ों की गहराई कम हो कर, फलस्वरूप स्नेहक का संचय करने की उनकी क्षमता भी घटती है। इंजन उच्च आर.पी.एम. पर चलाया गया हो (वाहन तेज गति से चलाने पर), तो पैदा हुई अधिक उष्मा उंचे हिस्से पर के नुकीले बिंदु पिघला सकती है। जिससे पिस्टन रिंग लाइनर जैम (सीज) हो कर इंजन बेकार हो सकता है। इससे बचने हेतु वाहन निर्माता 'इंजन रनिंग-इन' अवधि के लिए शर्त रखते हैं। इसके मुताबिक, नियत (जैसे कि 5000 किमी.) रनिंग पूरा होने से पहले, हर गियर में ड़ाली गति की सीमा वाहन पार नहीं कर सकता। इस 'रनिंग इन' अवधि के दौरान समतल जगह (प्लैटू) तैयार होती है। जब इस प्लैटू का होनिंग किया जाने लगा, तब उपयोगकर्ताओं के लिए होने वाली यह सीमा हटाई गई। यानि 'रनिंग इन' अवधि में जो होता है, उसे उत्पादन प्रक्रिया में ही हासिल किया गया और इस प्रकार वाहन चालकों को पहले दिन से ही तेजी से वाहन चलाने की स्वतंत्रता मिली।
बाद में पता चला कि पारंपरिक होनिंग किए गए सिलिंडर में, उंचे हिस्से के नुकीले कोनों (शार्प कॉर्नर) पर पिस्टन रिंग के दबाव के कारण उसका कोना टूटता है और, जैसा कि चित्र क्र. 3 में दर्शाया है, पास के गैलरी में गिरता है। अन्यथा वह कोना बिना टूटे पास की गैलरी में झुकता है। इस कारण, ऑईल संचय की जगह (गैलरी) भर जाने से, ऑईल वहाँ इकठ्ठा नहीं होता और पिस्टन रिंग की आयु कम होती है।

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उपरोक्त समस्याओं के कारण होनिंग ऑपरेशन में सुधार हुआ। इसमें उचित होनिंग टूल होल्डर (चित्र क्र. 4) के इस्तेमाल से होनिंग करते समय अथवा होनिंग के बाद दोनों टूल होल्डर में सीरीज में नाइलोन फिलैमेंट वाला, एक स्पेशल होनिंग टूल होल्डर इस्तेमाल किया जाता है। आम होनिंग और प्लैटू होनिंग में यहीं फर्क होता है। वैसे तो प्लैटू होनिंग करने के कई मार्ग और साधन हैं, जिसमें सिलिकॉन कार्बाइड का इस्तेमाल होता है। इससे उंचाई नष्ट कर के वहाँ का पृष्ठ समतल (चित्र क्र. 5) बनाया जाता है।

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इस तरह, चित्र क्र. 3 में दर्शाई समस्या समाप्त होती है। साथ ही ऑईल का संचय होता है और पिस्टन रिंग की आयु भी बढ़ती है। इस दौरान पृष्ठीय फिनिश में भी सुधार होता है। फिलहाल ऑटोमोबाइल में लगभग सभी इंजन में लाइनर का होनिंग, प्लैटू होनिंग पद्धति से किया जाता है।
इंजन सिलिंडर की आम होनिंग प्रक्रिया में प्रायः रफ होनिंग और फिनिश होनिंग ये पड़ाव होते हैं। प्लैटू होनिंग 3 पड़ावों में किया जाता है, रफ, फिनिश तथा प्लैटू।

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प्लैटू होनिंग ऑपरेशन, चित्र क्र. 6 में दर्शाए पारंपरिक होनिंग मशीन पर किया जाता है। इसमें होनिंग होल्डर या प्लैटू होनिंग होल्डर का संचलन, वृत्तीय और उपर नीचे इन दोनों प्रकारों में होता है। रफ होनिंग, फिनिश होनिंग और प्लैटू होनिंग ऐसे तीन ऑपरेशन, आम तौर पर होनिंग मशीन पर ही किए जाते हैं।

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इसके लिए पहले बताए निर्देशों के अनुसार एक या अलग अलग होनिंग होल्डर (चित्र क्र. 7) इस्तेमाल करते हैं। होनिंग मशीन, होनिंग टूल होल्डर और प्लैटू होनिंग होल्डर के कई प्रकार और डिजाइन होते हैं, आवश्यकता के अनुसार उनका चयन किया जाता है। इन तीनों ऑपरेशन के लिए जरूरी अैब्रेजिव तथा फिनिश, तालिका क्र. 1 में दिए गए हैं।

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एक शिफ्ट में जरूरी उत्पादन के अनुसार, एक होनिंग मशीन पर तालिका क्र. 1 में दर्शाए तीन काम किए जाते हैं, या, अलग अलग तीन होनिंग मशीन पर वहीं तीन काम बांट दिए जाते हैं। 
 
 
 
 
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