स्पिंडल क्यों बिगड़ते हैं?

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    25-दिसंबर-2020   
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मैं आज बहुत उल्लासित हूं, क्योंकि आज तक मैंने जितने भी सेमिनार या वेबिनार प्रस्तुत किए वे सभी अंग्रेजी और हिंदी भाषा में थे। मातृभाषा में बोलने का यह मेरा पहला मौका है। इसलिए मराठी में आपसे बातचीत करना, वो भी स्पिंडल के बारे में यह दोहरा संयोग यंत्रगप्पा के कारण मिला है।

अपना आज का विषय है स्पिंडल क्यों बिगड़ते (फेल होते) हैं? स्पिंडल कभी ना कभी मरम्मत के लिए आएंगे यह मान के चलिए। इसमें तीन मुद्दे होते हैं। पहला मुद्दा है, स्पिंडल की पूरी आयु हमें मिलनी चाहिए। स्पिंडल बोरिंग की आयु कोई भी निर्देशित (स्पेसिफाय) नहीं कर सकता। दूसरी बात है, स्पिंडल की मरम्मत के लिए कम समय लगना चाहिए और उसकी लागत भी न्यूनतम होनी चाहिए। तीसरी बात है, दो बार स्पिंडल की मरम्मत करते समय उनके बीच का अवधि, जिसे मेंटेनन्स की भाषा में 'मीन टाइम बीटवीन फेल्युर' (MTBF) कहते हैं, सबसे अधिक होना चाहिए। स्पिंडल की मरम्मत की ये तीन नियमित बातें हैं। इन पर किस पद्धति से काम किया जाए इस बारे में इस वेबिनार में हम विस्तृत चर्चा करेंगे। इसमें मशीनिंग सेंटर के स्पिंडलसंबंधि चर्चा होगी क्योंकि टर्निंग सेंटर या ग्राइंडिंग मशीन की तुलना में, मशीनिंग सेंटर का स्पिंडल मरम्मत के लिए अधिक मुश्किल होता है।

स्पिंडल के विभिन्न अैप्लिकेशन
आज सभी कामों की बदलती जरूरतों के अनुसार, अधिक क्षमता का और अधिक आर.पी.एम. वाला स्पिंडल इस्तेमाल किया जाता है। मशीनिंग सेंटर स्पिंडल का सामान्य वर्गीकरण, उसके ड्राइव सिस्टम के अनुसार 4 प्रकारों में किया जाता है।
1. बेल्ट ड्रिवन स्पिंडल : इस नाम से ही पता चलता है कि स्पिंडल को घुमाने के लिए टाइमर बेल्ट या पॉली V बेल्ट का इस्तेमाल किया जाता है। एक पैसिव इलेक्ट्रिकल मोटर से (इंडक्शन मोटर/ सर्वो मोटर) बेल्ट की मदद से स्पिंडल को ड्राइव दिया जाता है जिससे स्पिंडल घूमता है।

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2. गियर ड्रिवन स्पिंडल : इसमें एक सर्वो मोटर होती है, जिसके आगे गियर ट्रेन होती है। गियर ट्रेन से स्पिंडल तक ड्राइव लाया जाता है। जहाँ पर टॉर्क अधिक तथा आर.पी.एम. कम लगते हैं, वहाँ गियर ड्रिवन स्पिंडल का उपयोग किया जाता है।

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3. डाइरेक्ट ड्राइव स्पिंडल : इसमें स्पिंडल और सर्वो मोटर में एक कपलिंग होती है। संक्षेप में, बेल्ट और गियर में जो स्थानांतरण हानि (ट्रान्स्मिशन लॉस) होती है वो इस डाइरेक्ट ड्राइव स्पिंडल से नहीं होती। क्योंकि मोटर में से कपलिंग के माध्यम से स्पिंडल को आर.पी.एम. या सीधी पॉवर मिलती है।

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4. बिल्ट-इन स्पिंडल या इंटिग्रेटेड स्पिंडल : यह भविष्य में आने वाली तकनीक है। भारत में उच्च बारंबारिता (हाइ फ्रिवेन्सी) स्पिंडल का इस्तेमाल अधिक नहीं किया जाता, फिर भी यूरप, जापान और ताइवान आदि देशों में अधिकतर मशीन इंटिग्रेटेड स्पिंडल आधारित होती हैं। बिल्ट-इन मोटर स्पिंडल के कई लाभ हैं। इसके लिए विभिन्न मोटर एलिमेंट तथा बेल्ट ट्रान्स्मिशन की जरूरत नहीं होती। इस स्पिंडल के कंपन (वाइब्रेशन वैल्यू) कम होते हैं। स्पिंडल का अर्थात उस स्पिंडल की असेंब्ली का वजन कम रखने के लिए इसका बेहतर उपयोग होता है। क्लैंपिंग या डीक्लैंपिंग करने के लिए अलग सिलिंडर होता है। इस प्रकार, सारे ऑपरेशन एक छोटी असेंब्ली में होने वाला ये स्पिंडल है।

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इंटिग्रेटेड स्पिंडल की रचना 
 

स्पिंडल बिगड़ने के कारण
1. अैंटी फ्रिक्शन बेरिंग : अैंटी फ्रिक्शन बेरिंग के बावजूद स्पिंडल कभी न कभी खराब होता है। स्पिंडल की अपनी विशिष्ट आयु होती है, हमें ध्यान देना है कि वह अधिकतम किस प्रकार हो।
2. कन्टैमिनैशन : कन्टैमिनैशन का मतलब है बाहरी घटक स्पिंडल के अंदर जाना। यंत्रण करने के लिए जिस शीतक (कूलंट) का उपयोग किया जाता है, वह शीतक किसी तरह स्पिंडल बेरिंग तक पहुंचता है और स्पिंडल बेरिंग खराब होते हैं। कई बार स्पिंडल बेरिंग को स्नेहन (ल्युब्रिकेशन) देने के लिए ऑइल एयर ल्युब्रिकेशन सिस्टम इस्तेमाल की जाती है। इस ऑइल एयर ल्युब्रिकेशन सिस्टम में स्थित वायु में नमी (मॉइश्चर) हो, तो वह भी स्पिंडल बेरिंग तक जा कर स्पिंडल बेरिंग को खराब कर सकती है। कन्टैमिनैशन से स्पिंडल का कूलिंग सर्किट कई बार बंद (क्लॉग) होता है। क्लॉग होने पर स्पिंडल का तापमान अपेक्षा के अनुसार लंबे समय तक ठीक से बना नहीं रहता। इससे भी स्पिंडल बिगड़ते हैं।
3. स्नेहन : ऑइल एयर ल्युब्रिकेशन में उसका अपना पंप होता है। सुरक्षा को नजरअंदाज कर के (सेफ्टी बाइपास) अगर स्पिंडल चलाया जाता है, तो स्नेहन पंप खराब होने पर भी स्पिंडल शुरू रहता है। इस स्थिति में अगर स्पिंडल बेरिंग तक स्नेहन ना पहुंचने पर वह खराब होगा। अगर गलत स्नेहन देने से, जैसे कि ऑइल में स्पिंटेक 5, स्पिंटेक 12 इन उच्च विस्कॉसिटी के ऑइल (जिसे थिन ऑइल कहा जाता है) का इस्तेमाल ना कर के भारी विस्कॉसिटी का ऑइल इस्तेमाल करें तो स्पिंडल बिगड़ सकते हैं। कम दर्जे का या सामान्य उपलब्ध ग्रीस अगर स्पिंडल बेरिंग में उपयोग करें तो स्पिंडल बेरिंग जल्दी खराब होते हैं। स्नेहन पंप ठीक से चल रहा है, लेकिन स्नेहन मार्ग पर कुछ मुश्किल हो, क्लॉगिंग हो चुका हो, स्नेहन वहन करने वाले पाइप टूटे है, स्नेहन नहीं पहुंच रहा हो ऐसे कई अन्य कारणों से बेरिंग तक स्नेहन नहीं पहुंचा, तो स्पिंडल बेरिंग खराब हो सकते हैं।
4. दुर्घटना : सेटिंग करते समय मशीन पर कोई ऑफसेट गलत होने पर, नियमित से अधिक मशीनिंग अलाउन्स आने पर, यंत्रण के दौरान दुर्घटना हो सकती है। मिसाल के रूप में, इस चित्र में दर्शाएनुसार, पूरा टूल होल्डर टेपर में घूमा है, जिससे टेपर का नुकसान हुआ है। इस स्थिति में हम स्पिंडल रीफर्बिश कर सकते हैं लेकिन उसके लिए अधिक लागत और समय आवश्यक है।

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5. कंपन (वाइब्रेशन) : स्पिंडल असेंब्ली में उसके सारे भाग 8000-10000 आर.पी.एम. गति से घूमते हैं। इसमें अनियमित पद्धति से अगर कोई घिसाव (वीयर अैंड टीयर) होता है तब उसके संयुक्त परिणाम (क्युम्युलेटिव एरर) से कंपन तैयार हो सकते हैं। स्पिंडल बेरिंग में क्लियरन्स बढ़ने से भी कंपन हो सकते हैं। स्पिंडल में इंडक्शन मोटर/ सर्वो मोटर एक पैसिव इलेक्ट्रिकल मोटर होती है, अगर उस इंडक्शन मोटर के बेरिंग खराब हैं तब उससे निर्मित कंपन स्पिंडल पर भी आते हैं। इस स्थिति में लगातार उच्च कंपन के दौरान स्पिंडल शुरू रहने पर स्पिंडल बेरिंग के बॉल या रोलर उच्च बारंबारिता (हाइ फ्रिवेन्सी) से टकराते हैं, जिससे स्पिंडल बेरिंग बिगड़ते हैं।
6. डिजाइन स्पेसिफिकेशन के पार (असीमित) इस्तेमाल : स्पिंडल क्षमता के पार जा कर कुछ टूल इस्तेमाल करने पर बेरिंग पर लोड आता है या स्पिंडल टेपर से डैमेज हो कर वह खराब हो सकता है। जैसे कि, BT 40 में 200-250 मिमी. के मिलिंग कटर का इस्तेमाल करें, तो BT 40 टेपर में वह टूल सहने जितनी मजबूती नहीं होती। उसके बेरिंग लगभग 70 मिमी. आकार के होते हैं। वे इतने सक्षम नहीं होते। लेकिन किसी कारणवश उन्हे इसी तरह से इस्तेमाल किया जाए तो सहज रुप से स्पिंडल बेरिंग पर ज्यादा भार आता है।
 
7. तापमान : इंटिग्रेटेड स्पिंडल, बेल्ट ड्रिवन स्पिंडल या डाइरेक्ट ड्रिवन स्पिंडल में आजकल स्पिंडल बेरिंग का तापमान नियमित रखने हेतु चिलर इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर इस चिलर का तापमान बढ़ता है, या चिलर खराब होता है, अधिक तापमान से अगर स्पिंडल के चारों ओर पानी घूमता रहेगा तब ऐसी स्थिति में भीतर की उष्मा बाहर फेंकी नहीं जाती। इस कारण तापमान बढ़ेगा। किसी भी बेरिंग की तापमान सहन करने की क्षमता लगभग 90º-100º होती है। बेहतर केज के इस्तेमाल करने पर भी 110º-120º के आगे तापमान बढ़ने पर स्पिंडल बेरिंग केज पिघलते हैं। यह हमारा अनुभव है। साथ ही अगर चिलर का तापमान बहुत कम रखने पर यानि वायुमंडलीय (अैंबियंट) तापमान और चिलर के तापमान में अधिक अंतर होने पर और स्पिंडल रूकने पर भी चिलिंग शुरू रहे तो, कम तापमान के कारण आसपास की वायु में नमी घनीभूत (कंडेन्स) होती है। यह कंडेन्स्ड मॉइश्चर, स्टेटर वाइंडिंग में जाने से स्टेटर वाइंडिंग भी खराब हो सकता है। इसलिए तापमान की बातों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। अैंबियंट तापमान से चिलर का तापमान आम तौर पर 15º सें. कम रखें।
 
8. अनुचित मरम्मत और अनुचित संचलन : अयोग्य मरम्मत जैसे कि दो बेरिंग के बीच में स्पेसर का वेवीनेस कितना होना चाहिए, स्पेसर की मोटाई में (विड्थ) कितना फर्क चाहिए, वह शून्य होना चाहिए या उसमें कोई अंतर होना चाहिए...कई बार यह जानकारी हमारे पास नहीं होती। इसेही अनुचित मरम्मत कहते हैं। हाउसिंग से स्पिंडल बेरिंग का सेट निकालने के किए ट्रॉली और बेहतरीन प्रेस होना जरूरी है। कई बार प्रेस न होने पर पंच तथा हथौड़े के उपयोग से बेरिंग निकालने का प्रयास किया जाता है। स्पिंडल की अचूकता जिस पर निर्भर होती है, वह शाफ्ट या हाउसिंग में कुछ खराबी आती है और स्पिंडल की मरम्मत नहीं होती।
9. अन्य खराबियां : इंटिग्रेटेड स्पिंडल खराब होना, एन्कोडर खराब होना, वह क्लैंप या डीक्लैंप होना आदि के लिए संवेदक (सेन्सर) होते है। वें खराब होना, ड्रॉ बार खराब होना, हेलिकल स्प्रिंग घिस जाना जैसे छोटे छोटे काम होते हैं। इनके कारण पूरी स्पिंडल मरम्मत के लिए निकालनी पड़ती है।

प्रतिबंध योजना (प्रिवेन्शन प्लान)
स्पिंडल की आयु समाप्त होने से पहले ऑपरेटर को उससे विशेष संदेश मिलते हैं। उसी समय स्पिंडल की मरम्मत की जाए तो मरम्मत के समय तथा लागत में बचत हो सकती है। कई बार स्पिंडल से आवाजें आती हैं, तब हम सोचते हैं कि इस बैच का काम पूरा करने के बाद देख लेंगे। वही बैच पूरी करते वक्त स्पिंडल बेरिंग में दोष आता है, ये फेल्युर बहुत गंभीर होता है। ऐसे समय ना केवल स्पिंडल और बेरिंग खराब होते हैं बल्कि कई बार स्टेटर तथा एकोन्डर भी खराब हो सकते हैं। ये भाग काफी छोटे लेकिन महंगे होते हैं। स्पिंडल मरम्मत में देरी करने से हमारे अन्य महत्वपूर्ण पुर्जे खराब हो सकते हैं।
इसलिए जैसे ही स्पिंडल की आवाज में, तापमान में और कंपन में फर्क देखा जाने पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है। इस बारे में ऑपरेटर को सूचित करने से स्पिंडल मरम्मत का समय और लागत दोनो भी कम हो सकते हैं।
इसके समर्थन में, स्पिंडल हेल्थ चेकअप यह एक संकल्पना है। समझ लेते हैं कि कितनी बारंबारिता पर स्पिंडल हेल्थ चेकअप किया जाना चाहिए, उनमें किन पैरामीटर को जांचना चाहिए। आम तौर पर 6 महीने या 1 साल बाद स्पिंडल हेल्थ चेकअप करें। जांच की अवधि काम पर निर्भर होती है, लेकिन यह अवधि एक साल से अधिक न हो। 3,6,9 महीने इस मात्रा में इसे किया जा सकता है। अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता के पैरामीटर अगर पेचीदा (क्रिटिकल) हैं तो 3 महीनों में स्पिंडल हेल्थ चेकअप किया जाना चाहिए।
· स्पिंडल का ब्लू मैचिंग : मशीनिंग सेंटर के स्पिंडल में BT 40, BT 50, HSK टेपर होते हैं। इस टेपर का ज्यामितीय विन्यास (कॉन्फिगरेशन) बेहतर होना जरूरी होता है। ब्लू मैचिंग करने के लिए अगर BT 40 स्पिंडल और BT 50 स्पिंडल की 5 से अधिक मशीन हैं, तब मैं बाजार से टेपर गेज खरीदने का सुझाव देता हूं। टूल होल्डर से ब्लू मैचिंग ना जांचें। अगर आपके पास ये उपकरण नहीं हैं, तो आप सेट्को कंपनी से स्पिंडल हेल्थ चेकअप सेवा ले सकते हैं।
स्पिंडल की मरम्मत की जाती है, तब स्पिंडल का टेपर ग्राइंड करना ही पड़ता है। उसे ग्राइंड करने के बाद उसका ब्लू मैचिंग 90% से अधिक होना आवश्यक है। जब स्पिंडल मशीन पर शुरू होता है तब 70% तक ब्लू मैचिंग होगा। मैंड्रेल पर 20 माइक्रोन तक रनआउट मिलता है और ISO के अनुसार अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता के लिए ( एंड प्रॉडक्ट क्वालिटी) इतना रनआउट स्वीकार्य होता है। मरम्मत करने के बाद ब्लू मैचिंग 90% से अधिक होना ही चाहिए। 70% से कम ब्लू मैचिंग होने पर ही उसे मरम्मत की आवश्यकता है, अन्यथा आवश्यकता नहीं।
· गेज प्लेन : हर BT 40 और BT 50 स्पिंडल को गेज प्लेन होते हैं। यह एक निर्देशित (स्पेसिफाइड) गेज प्लेन होता है और गेज पर गेज प्लेन का मार्किंग किया होता है। इस गेज प्लेन को हर बार जांचना जरूरी है। स्पिंडल का गेज प्लेन अगर टेपर के भीतर जाता हो या टूल होल्डर भीतर जाता हो, तो इसका मतलब है क्लैंपिंग फोर्स कम होना। इसलिए गेज प्लेन हमेशा निर्देशित होना चाहिए। गेज प्लेन ज्यामिति बेहतर न होने पर उसका मैंड्रेल के रनआउट पर असर पड़ता है। मशीनिंग सेंटर के स्पिंडल में स्पिंडल फेस से 300 मिमी. लंबाई का मैंड्रेल होता है, उस मैंड्रल पर ISO के निर्देशों के अनुसार 20 माइक्रोन कम रनआउट होना चाहिए। एरोस्पेस के लिए जिस मशीन का प्रयोग किया जाता है वहाँ 8-10 माइक्रोन के अंतर्गत मैंड्रेल रनआउट होना चाहिए। वाहन उद्योग के पुर्जों के लिए 20 माइक्रोन से कम रनआउट अपेक्षित होता है। कुछ अैल्युमिनियम पुर्जों के लिए रनआउट 25 माइक्रोन तक हो सकता है। लेकिन 25 माइक्रोन से अधिक रनआउट होने का असर बेरिंग पर होता है। इसलिए तब स्पिंडल की मरम्मत आवश्यक होती है।
 
· स्पिंडल में अरीय (रेडियल) तथा अक्षीय (अैक्शियल) प्ले नहीं होना चाहिए। उसे मशीन पर जांचा जा सकता है। यह 5-7 माइक्रोन की सीमा में होना चाहिए, लेकिन मरम्मत के बाद वह शून्य होना चाहिए। संक्षेप में, फेस पर डायल लगाने पर या स्पिंडल या शाफ्ट के बाहरी व्यास पर (OD) प्ले जांचने पर डायल 10 माइक्रोन से विचलित (डिफ्लेक्ट) होती हो, तो बल (फोर्स) हटाने के बाद वह फिर से शून्य पर आनी चाहिए। इसका मतलब है उस पर अरीय और अक्षीय प्ले नहीं है।
· क्लैंप फोर्स : सभी मशीन के स्पिंडल का क्लैंपिंग फोर्स निर्देशित होता है। यह महत्वपूर्ण पैरामीटर है तथा इसे जांचना भी आसान है। इसके लिए विशेष उपकरण बाजार में उपलब्ध होते हैं। आम तौर पर BT 40 स्पिंडल के लिए 800-1000 Kg,, BT 50 स्पिंडल के लिए 1500-1800 Kg क्लैंपिंग फोर्स होना चाहिए। क्लैंपिंग फोर्स ठीक न हो तो टूल होल्डर ठीक से नहीं बैठता। सिर्फ आंखो से उसे नहीं देखा जा सकता, लेकिन क्लैंपिंग फोर्स ठीक न होने से उस पर पैदा होने वाले हार्मोनिक कंपनों से स्पिंडल टेपर जल्दी खराब होते हैं।
· कंपन : स्पिंडल के कंपन की निगरानी (मॉनिटर) की जाती है। कोणीय गति (अैंग्युलर वेलॉसिटी) में उसका स्वीकार्य मूल्य 2.5 मिमी./सेकंड तक (जब स्पिंडल मशीन पर होती है) होता है। स्पिंडल की मरम्मत की गई हो, तो उसकी अैंग्युलर वेलॉसिटी 1 मिमी./सेकंड से कम होनी चाहिए, तभी उस स्पिंडल को स्वीकृत करे। स्पिंडल कंपन जांचने के लिए अैंग्युलर वेलॉसिटी एक उचित पैरामीटर है।
· इसके अलावा अगर इंटिग्रेटेड स्पिंडल हो तो क्या उसके 3 फेस संतुलित (बैलन्स्ड) हैं, क्या उसके रेजिस्टन्स के मूल्य तथा इंडक्टन्स मूल्य एकसमान हैं, क्या इन्स्युलैशन ठीक है, इन चीजों को जांचें। स्पिंडल चल रहा हो तो सामान्यतः इन मूल्यों में कोई फर्क नहीं होता। इसलिए स्पिंडल हेल्थ चेकअप में इस मुद्दे को शामिल नहीं किया गया है। जब स्पिंडल रीकंडिशनिंग के लिए या बेरिंग बदलने के लिए भेजा जाता है तब इस पैरामीटर को जरूर जांचा जाता है। एन्कोडर चेक से एन्कोडर जांचने, क्लैंप डीक्लैंप के सेन्सर के लिए उपलब्ध साधन ठीक से काम रहे हैं या नहीं, इन सारी बातों को हम जांच सकते हैं तथा उन्हें दर्ज कर सकते हैं।
संक्षेप में कहे तो, स्पिंडल का रखरखाव हमारे हाथ में है, जब कोई छोटी बड़ी समस्या होती है तब उस पर उचित इलाज करना मशीन के और हमारे हित में होता है।
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