ड्रिलिंग जिग फिक्श्चर : 4

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Udyam Prakashan Hindi    09-मई-2020
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धातुकार्य, मार्च 2020 में छपे लेख में आपने टंबल या टंबलिंग टाइप जिग संबंधी जानकारी प्राप्त की। जब कार्यवस्तु पर उल्टी दिशा से ड्रिलिंग करना होता है तब जिग में कार्यवस्तु ठीक से बिठा कर क्लैंप की जाती है और बाद में ,वही जिग उल्टा कर के ड्रिलिंग किया जाता है। इससेकार्यवस्तु को जिग में बिठाना आसान होता है तथा पृष्ठ से लंबरूप ड्रिलिंग होता है।
 
इस लेख में हम पॉट टाइप जिग के बारे में जानकारी लेंगे। फिक्श्चर का आकार एक बर्तन (पॉट) के समान होने के कारण इसे पॉट टाइप फिक्श्चर / जिग कहते हैं।
 
चित्र क्र. 1 में जो कार्यवस्तु दर्शाई गई है, उसका अंदरी व्यास d तथा बाहरी व्यास D है। दोनों नियंत्रित एवं समकेंद्रीय हैं। अब हम इस जिग के महत्वपूर्ण भागों के कार्य के बारे में जानेंगे।

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1. फिक्श्चर बॉडी 
चित्र क्र. 1 में आप फिक्श्चर बॉडी का बर्तन जैसा आकार देख सकते हैं। फिक्श्चर बॉडी का रेस्टिंग पृष्ठ R, निचला पृष्ठ तथा व्यास D ये हिस्से कठोर (हार्ड) और ग्राइंड किए गए हैं। दोनों पृष्ठ एक दूसरे से समानांतर ग्राइंड किए गए हैं। साथ में, D व्यास लंबरूप होना आवश्यक है। इस D व्यास में कार्यवस्तु लोकेट की गई है, इसकी वजह आपको समझी ही होगी। क्योंकि हम जो छिद्र बना रहे हैं, वें D व्यास से समकेंद्रीय होना आवश्यक है। इस भाग पर, छिद्रों के नीचे 4 खांचे बनाए गए हैं जिनका काम हम समझ लेंगे।
 
一.आर पार छिद्र ड्रिल करते समय ड्रिल, कार्यवस्तु के पृष्ठ से थोड़ा नीचे की ओर जाना जरूरी होता है। खांचे के कारण आर पार छिद्र करना संभव होता है। 
ब. छिद्र करते समय बनी चिप नीचे गिरती हैं। 
क. अगर कार्यवस्तु फंस जाती है तो, इस खांचे के कारण उसे निकालना आसान होता है। 
ड. ड्रिलिंग के कारण पैदा 'बर' इस खांचे में समाई जाती है।
 
2. जिग प्लेट 
जिग प्लेट का व्यास, कार्यवस्तु के व्यास से अधिक क्यों रखा जाता है? क्योंकि हम पहले जिग प्लेट निकालते हैं और बाद में कार्यवस्तु। जिग प्लेटका आकार कार्यवस्तु के आकार से बड़ा होने के कारण उसे ठीक से पकड़ा जा सकता है। इसका आकार कार्यवस्तु के व्यास जितना या उससे कम रखेंगे तो जिग प्लेट पकड़ ही नहीं पाएंगे।
 
जिग प्लेट, कार्यवस्तु के अंदरी व्यास यानि d पर लोकेट की गई है जबकि कार्यवस्तु, फिक्श्चर की बॉडी में D व्यास पर लोकेट की गई है। इससे जिग प्लेट, कार्यवस्तु तथा फिक्श्चर बॉडी समकेंद्रीय पद्धति में बैठते हैं। इस प्रकार ये तीनों भाग हमेशा विशिष्ट रूप में बैठते हैं, जो बहुत जरूरी होता है।
 
जिग प्लेट पर 45° में एक खांचा दिया गया है। अर्थात यह कोण 45° का होना जरूरी नहीं है। हम यह कोण 15° या 30° रख सकते हैं या अपनी जरूरत के अनुसार चुन सकते हैं। इससे जिग प्लेट का कोणीय संदर्भ बना रहता है। चूंकि यही खांचा ओरिएंटेशन पिन में बिठाया जाता है, फिक्श्चर बॉडी पर बने खांचे पर जिग बुश हूबहू आता है। साथ ही, आर पार छिद्र बनाते समय ड्रिल इस खांचे में जाने से ना फिक्श्चर बॉडी खराब होती है ना ड्रिल टूटता है। जिग प्लेट पर हम, खांचे के बजाय पिन के नाप का छिद्र बना सकते हैं। लेकिन इससे जिग प्लेट लगाने तथा निकालने में असुविधा होगी। इस असुविधा से बचने के लिए अगर हम जिग प्लेट का छिद्र बड़े नाप का बनाएंगे तो जिग बुश, फिक्श्चर बॉडी पर दिए हुए खांचे पर नहीं आएगा तथा फिक्श्चर बॉडी पर घिसने से ड्रिल टूट सकता है। यह जिग प्लेट, केस हार्ड कर के उस पर आवश्यक स्थान पर ग्राइंडिंग किया गया हैं।
 
3. ओरिएंटेशन पिन 
यह पिन, फिक्श्चर बॉडी पर प्रेस फिट (H7/m6) तरीके से बिठाई गई है। इस पिन का कार्य हम पहले जान चुके हैं। अब सोचते हैं कि कार्यवस्तु पर बने छिद्र आर पार नहीं हो, तो क्या यह पिन सचमुच आवश्यक है? इस प्रश्न का उत्तर 'पिन की आवश्यकता नहीं है' यही होगा। क्योंकि छिद्र आर पार ना होने से ड्रिल, फिक्श्चर बॉडी के संपर्क में नही आएगा। वैसे ही ना फिक्श्चर बॉडी पर 4 खांचे देने की जरूरत होगी, ना जिग प्लेट पर कोई खांचा देने की जरूरत होगी। इससे आप जान गए होंगे कि जिग का आरेखन करते समय सूक्ष्म विवेचन कितना आवश्यक है।
 
4. स्विंग C वॉशर

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स्विंग C वॉशर तथा फल्क्रम पिन की असेंब्ली चित्र क्र. 2 में दर्शाई गई है। स्विंग C वॉशर तथा सामान्य C वॉशर में इतना ही अंतर है कि स्विंग C वॉशर हमेशा फिक्श्चर के साथ रहने से वह खोने की संभावना नहीं रहती। इसे फल्क्रम पिन की मदद से फिक्श्चर पर बिठाया जाता है। सामान्य C वॉशर खोने की संभावना अधिक होती है। खोने के ड़र से इसे जंजीर से बांध कर रखना पड़ता है, जिस प्रकार हम पानी का गिलास कूलर से बांध कर रखते है। यह दिखता भी ठीक नहीं है और काम करते समय जंजीर बीच में आती है। इसीलिए पर्याप्त जगह होने पर स्विंग C वॉशर का उपयोग सुविधाजनक होता है। साथ ही, यह वॉशर टफन किया होने के कारण अधिक समय तक चलता है।
 
5. फल्क्रम पिन

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फल्क्रम पिन, स्विंग C वॉशर को फिक्श्चर पर पकड़ कर रखती है। स्विंग C वॉशर इस पिन पर आसानी से घूम सकता है। वॉशर पर बने छिद्र तथा पिन का व्यास के बीच 'क्लियरन्स फिट' होता है। चित्र क्र. 3 तथा 4 में दो प्रकार की फल्क्रम पिन दर्शाई गई हैं। चित्र क्र. 4 में दर्शाई गई फल्क्रम पिन, केवल षट्कोणीय अैलन 'की' से ही निकाली जा सकती है, इसलिए यह खोने की संभावना नहीं होती। यह एक मानकीकृत पुर्जा होने के कारण स्टोर या बाजार में आसानी से उपलब्ध होता है। साथ ही टफनिंग किए जाने के कारण यह अधिक समय तक चलता है। प्रायः यह फल्क्रम पिन, उसके थ्रेड खत्म होने के स्थान पर टूटने की संभावना अधिक होती हैं। 
 
6. क्लैंपिंग बोल्ट
यह बोल्ट टफन किया होने के कारण मजबूत होता है। नट बार बार कसने पर भी इसका घिसाव ज्यादा नहीं होता। इसका मुख्य कार्य है कार्यवस्तु कस कर पकड़ना। षट्कोणीय (हेक्स हेडेड) नट तथा वॉशर की मदद से, फिक्श्चर बॉडी की निचली ओर से बोल्ट को कस कर बिठाया गया है।
 
7. पाम ग्रिप 
कार्यवस्तु को नट से कस कर पकड़ने के बजाय, पाम ग्रिप द्वारा हाथों द्वारा ही कस कर पकड़ा जाता है। पाम ग्रिप का उपयोग अधिक आसान होता है क्योंकि
अ. पाने (स्पैनर) का उपयोग नहीं करना पड़ता है। 
ब. कम समय और कम मेहनत में काम होता है। 
क. विशेष आकार के कारण हाथ में पकड़ अच्छी मिलती है।


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चित्र क्र. 5 अ, ब तथा क में पाम ग्रिप के विभिन्न प्रकार दर्शाए गए हैं। हमारे जिग में, चित्र क्र. 5 अ में दर्शाई गई पाम ग्रिप का इस्तेमाल किया गया है। इनमें प्लैस्टिक, अैल्युमिनियम, कास्ट आयरन, स्टेनलेस स्टील जैसे अलग अलग मटीरीयल इस्तेमाल किए जाते हैं। हमने उपयोग किए जिग में लोहे के थ्रेडिंग वाला इन्सर्ट बिठाया गया है, जिससे पाम ग्रिप का घिसाव कम होता है। यह इन्सर्ट, प्लैस्टिक पाम ग्रिप की ढ़लाई करते समय ही उसमें ड़ाला जाता है।
 
सबसे अहम् मुद्दा यह है कि पाम ग्रिप का D1 नाप, कार्यवस्तु के अंदरी व्यास से कम होना चाहिए, अन्यथा कार्यवस्तु निकालने के लिए पाम ग्रिप घुमा कर पूरी ही बाहर निकालनी होगी। वर्तमान स्थिति में पाम ग्रिप थोड़ी सी घुमाने पर, स्विंग C वॉशर बाजू हटाने से कार्यवस्तु तुरंत बाहर निकाल जाती है।
 
इस प्रकार हमने इस जिग के जरूरी भागों की जानकारी प्राप्त की है।
चित्र क्र. 6 में भी पॉट टाइप फिक्श्चर दिख रहा है। चित्र क्र. 1 तथा चित्र क्र. 6 में दर्शाए गए फिश्चर में क्या आप कुछ फर्क देखतेहैं? एक महत्वपूर्ण फर्क यह है कि B व्यास नियंत्रित नहीं है तथा वह D व्यास से समकेंद्रीय भी नहीं है। इस कारण हम जिग प्लेट, B व्यास में लोकेट नही कर सकते जैसे हमने पहले देखे जिग में की है।

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1. लोकेटिंग बुश 
लोकेटिंग बुश, हार्ड बुश होते हैं। इनमें कार्यवस्तु D व्यास पर लोकेट होती है। यह बुश, फिक्श्चर बॉडी में 'प्रेस फिट' किया गया है। D तथा d व्यास समकें द्रीय हैं।
 
2. लोकेटर (क्लैंपिंग बोल्ट) 
पिछले जिग में इसका इस्तेमाल केवल कार्यवस्तु क्लैंप करने हेतु किया जाता था, इसलिए हम इसे क्लैंपिंग बोल्ट कहते थे। हम अब इसे लोकेटर कहेंगे, क्योंकि यह खुद फिक्श्चर बॉडी में d व्यास पर लोकेट हुआ है। साथ ही, जिग प्लेट भी व्यास d पर लोकेट होती है। प्रायः फिक्श्चर के भागों को, उनके काम के अनुसार नाम देने का प्रयास हम करते हैं।
 
3. जिग प्लेट 
यह जिग प्लेट केस हार्ड कर के, जहाँ जरूरत हो वहाँ उसका ग्राइंडिंग किया गया है। इसे लोकेटर के d व्यास पर लोकेट किया जाने से, कार्यवस्तु पर बने 4 छिद्र D व्यास से समकेंद्रीय तैयार होते हैं, जो कार्यवस्तु की गुणवत्ता के अनुसार जरूरी है। जिग प्लेट के अन्य कार्य हम ऊपर पढ़ चुके हैं।
 
अब आपको पता चला होगा कि कार्यवस्तु में किए गए अल्प बदलाव से भी, जिग के आरेखन में कितना और कैसे असर पड़ता है। थोड़ासा अनुभव मिलने पर हम सारी बारीकियां जान सकते हैं।
अगले लेख में हम कुछ अलग प्रकार के जिग के बारे में जानकारी लेंगे।
 
 
 
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अजित देशपांडे
अतिथि प्राध्यापक ARAI, SAE  
9011018388 
अजित देशपांडे जिग्ज और फिक्श्चर के क्षेत्र में लगभग 36 सालों से ज्यादा अनुभव रखते हैं। आपने किर्लोस्कर, ग्रीव्ज लोम्बार्डीनी लि., टाटा मोटर्स जैसी विभिन्न कंपनियों में काम किया है। आप अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में अतिथि प्राध्यापक है।
 
 
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