BS-6 : चुनौतियां और मौके

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Udyam Prakashan Hindi    23-जून-2020
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हमारा भारत देश जनसंख्या के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर है। उसी प्रकार, वाहनों के इस्तेमाल में भी हमने बहुत प्रगति की है। इन दोनों बातों के कारण पर्यावरण का संतुलन बनाया रखना हमारे लिए एक बड़ी चुनौति और जिम्मेदारी है। नए वित्तीय वर्ष में BS-6 उत्सर्जन मापदंड़ का विषय वाहन उद्योग संबंधि सभी क्षेत्रों पर कब्जा करेगा। इसकी न्यूनतम प्राथमिक जानकारी उद्योग विश्व से संबंधित हर किसी को होनी जरूरी है। इसी संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजर ड़ालते हैं।
 
1. कई प्रतिवेदनों के अनुसार, विश्व के सब से ज्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के अनेक शहर शामिल है।
2. आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के वायुमंड़ल में, प्रदूषण का एक घटक होने वाले काले धुएं की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सूचकांक से कई गुना ज्यादा है।
3. 2018 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, बाहर के वायु प्रदूषण से होने वाली अन्य बीमारियों के कारण केवल 2017 में भारत में लगभग 6,70,000 लोगों की मृत्यु हुई। तंबाकू और ऐसे ही अन्य पदार्थों के कारण होने वाली मृत्यु दर के बाद प्रदूषण के कारण होने वाले मृत्यु सब से अधिक हैं।
4. इस सर्वेक्षण के अनुसार, प्रदूषण की समस्या के कारण भारतीयों की औसत आयु 1.7 वर्ष से कम हो गई है।
5. प्रदूषण संबंधि बीमारियों तथा उनके असर के कारण हर साल पूरे देश के जी.डी.पी. के लगभग 3% जितना खर्चा होता है।
6. वायु प्रदूषण के लिए अनेक घटक जिम्मेदार हैं। उनमें से एक है वाहनों के कारण होने वाला वायुमंड़ल का प्रदूषण।
 
प्रदूषण के बारे में गंभीरता से विचार करना कितना जरूरी है यह समझने के लिए इतना काफी है। सभी तरह की इंजनों के कारण होने वाला वायु प्रदूषण नियंत्रित करने हेतु भारत ने सन 2000 से यूरोपीय संगठन (EU) की ही तरह प्रदूषण के खुद के मापदंड़ बनाए और प्रयास किए गए कि इन मापदंड़ों के अनुसार विभिन्न चरणों में उद्योग विश्व में उत्पाद विकसित हो।
 
इसी वजह 2002 में स्थापित माशेलकर समिति ने गहरा अभ्यास कर के देश के लिए कुछ दिशानिर्देश करने वाले तत्व सुझाए और भविष्य के लिए एक योजना तैयार की। इसी के अनुसार देश में विविध चरणों पर उत्सर्जन के मापदंड़ विकसित किए गए।
 
2003 में राष्ट्रीय वाहन ईंधन नीति की घोषणा की गई। इसमें अनेक मार्गदर्शी तत्व हैं जैसे कि वाहनों का ईंधन कैसा हो, पुराने वाहनों के कारण होने वाला प्रदूषण कैसे घटाएं, स्वास्थ्य संवर्धन, प्रदूषण नियंत्रण का अभ्यास और विकास। उसके बाद देश का राजनीतिक नेतृत्व, परीक्षण करने वाली विविध संस्थाएं, उद्योग, पर्यावरणसंबंधि कार्य करने वाले विविध संगठन, तथा आम जनता की सक्रिय साझेदारी से हमारे देश में अनेक महत्वपूर्ण चरण हमने पार किए।
 
लेकिन, इन सुधारों की गति और प्रदूषण के बढ़ने की गति का अनुपात व्यस्त ही रहा। बड़े शहरों में तो स्थिति और भी चिंताजनक होती गई। इसीलिए हालातों की गंभीरता ध्यान में रखते हुए, बहुत सोचविचार के बाद, BS-4 के बाद BS-5 प्रदूषण मापदंड़ जारी करने के बजाय BS-6 प्रदूषण मापदंड़ लागू करने का बड़ा फैसला लिया गया और अगले चार वर्षों में उसी के अनुसार वाहन तथा ईंधन निर्माण की चुनौती पूरे उद्योग विश्व के सामने खड़ी हुई। उस पर अमल होता हुआ अब दिखाई दे रहा है। मिसाल के तौर पर, हम डीजल वाहनों से संबंधित कुछ मापदंड़ देख सकते हैं।
 
प्रदूषण मापदंड़ों के कार्यान्वयन हेतु ईंधन की गुणवत्ता में भी समय समय पर उचित बदलाव किए गए। 15 नवंबर 2017 में पेट्रोलियम मंत्रालय ने सार्वजनिक तेल आपूर्ति कंपनियों के साथ विचारविमर्श कर के, दिल्ली विभाग के लिए अप्रैल 2018 से और पूरे भारत में अप्रैल 2020 से BS-6 ग्रेड के ईंधन की आपूर्ति की तैयारी की। BS-6 ग्रेड के डीजल में सल्फर की मात्रा, BS-4 डीजल की तुलना में 80% से (BS-4 में 50mg/kg, BS-6 में 10mg/kg) कम होती है।
 
इस तरह के महत्वपूर्ण सुधार पूरे देश में सभी तरह के वाहनों में लाना एक बहुत मुश्किल बात है क्योंकि इस काम की व्याप्ति बहुत बड़ी है। BS-4 के अमल तक हुए अधिकांश बदलाव इंजनसंबंधि थे। इसमें कॉमन रेल फ्यूल इंजेक्शन प्रणाली, टर्बोचार्जिंग (TC), आफ्टरकूलिंग, एग्जॉस्ट गैस रिसर्क्यूलेशन (EGR) जैसे सुधार शामिल थे। लेकिन BS-6 प्रणाली में, वाहनों में से बाहर निकलने वाले गैस के दर्जे पर कड़े बंधन हैं। BS-6 में, उत्सर्जित गैस में होने वाली कालिख (पार्टिक्यूलेट मैटर) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे हानिकारक घटकों की सीमा लगभग 90% तक कम हुई है। तालिका क्र. 1 में इसका विवरण दिया हुआ है।

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उसी प्रकार अब परीक्षण केंद्रों के परीक्षणों के अलावा, वाहन जब रास्ते पर चलते हैं तब भी उनके प्रदूषण की जांच करना जरूरी हो गया है। ऐसी उच्चस्तरीय प्रदूषण सीमाएं हासिल करने हेतु, इंजन से उत्सर्जित वायू वाहन के बाहर निकलने से पहले ही, उस पर प्रक्रिया करना अनिवार्य हो गया। इसे आफ्टरट्रीटमेंट कहा जाता है| यह एक बहुत बड़ा विषय है। विशेष रूप से डीजल इंजन के लिए जरूरी आफ्टरट्रीटमेंट अधिक जटिल होने की वजह से, हम शुरुआत में डीजल इंजन संबंधि दो महत्वपूर्ण प्रणालियों के बारे में जान लेंगे।
 
1. डीजल पार्टिक्यूलेट फिल्टर (DPF)

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डीजल इंजन से निकलने वाले धुंए की कालिख कम करने के लिए DPF बिठाना अनिवार्य हो गया है। जैसा कि चित्र क्र. 1 में दिखाया है, उत्सर्जित गैस छानने के लिए इस्तेमाल किया गया DPF, सिरैमिक मटेरियल का बनाया जाता है। वायू में स्थित कार्बन के सूक्ष्म कण फिल्टर में फंस जाते हैं। फंसी हुई कालिख के कारण इंजन पर विपरित दबाव (बैक प्रेशर) ना आए इसीलिए DPF में फंसी हुई कालिख, निश्चित अंतराल के बाद निकालनी पड़ती है। वाहन अच्छे रास्ते पर लगभग 50 मिनट तक तेज गति से चलाने पर यह क्रिया स्वचालित रूप से पूरी हो जाती है। लेकिन वास्तव में हमेशा ऐसा नहीं होता। इसके लिए, वाहन के शुरू रहते हुए इंजन कंट्रोलर के जरिए अधिक मात्रा में डीजल आपूर्त किया जाता है। इस वजह से उत्सर्जित गैस का तापमान बढ़ कर DPF में फंसी कालिख जल कर उसका रूपांतरण कार्बन डाइऑक्साइड गैस में हो कर वह बाहर निकल जाती है।
 
2. सिलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (SCR)

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SCR एक रासायनिक प्रक्रिया है। उत्सर्जित गैस में होने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड इस घातक समूह का रूपांतरण नाइट्रोजन में करने हेतु, SCR में यूरिया सोल्यूशन इस्तेमाल किया जाता है। चित्र क्र. 2 में दिखाएनुसार, यूरिया में स्थित अमोनिया के साथ रासायनिक क्रिया हो कर नाइट्रोजन ऑक्साइड का अपचयन (रिडक्शन) होता है। इससे नाइट्रोजन वायू बाहर फेंकी जाती है। इस प्रक्रिया की विशेषता यह है कि वाहनों से उत्सर्जित वायू में होने वाला 90-95% नाइट्रोजन ऑक्साइड इससे नष्ट हो सकता है। यह प्रणाली वाहन उद्योग में पिछले कुछ सालों से ही इस्तेमाल की जा रही है लेकिन थर्मल पॉवर प्लांट में यह 1970 से इस्तेमाल की जाती है। अमोनिया SCR सिस्टम का अमेरिकन पेटंट, लगभग साठ साल पहले यानि 1957 में अमेरिका की एंजलहर्ड कारपोरेशन ने लिया है|
 
BS-6 प्रणाली के लिए इंजन तथा आफ्टर ट्रीटमेंट में हो रहे अनुसंधान एवं विकास जानने के लिए हमने इन दो क्रियाओं को संक्षेप में देखा। जाहिर है इन सभी यंत्रणाओं का नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से होता है। इस तरह के सुधारित तरीकों के कार्यान्वयन के कारण वाहनों की कीमतें बढ़ना अनिवार्य है। कुछ समय बाद, नई प्रणाली के भागों की कीमत घटाना उत्पादकों के लिए संभव हो पाएगा। यदि उन्होंने आगे चल कर घटी कीमतों का कुछ लाभ ग्राहकों तक पहुंचाया तो कुल उत्पादन भी बढ़ेगा। यहाँ यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि वास्तव में, BS-6 के कारण बड़े पैमाने पर नए मौके उपलब्ध हो गए हैं। जैसा कि ऊपर लिखा है, BS-6 के कारण इंजन के पुर्जों में कोई खास बदलाव नहीं होते और अधिकतर जोर इंजन से उत्सर्जित वायू की आफ्टर ट्रीटमेंट (चित्र क्र. 3) के विकसन पर है।

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इस आफ्टर ट्रीटमेंट सिस्टम के उत्पादन में सब्स्ट्रैट उत्पादन, नोबल मेटल कोटिंग और कैनिंग आदि चरण होते हैं। इन सभी क्षेत्रों की उत्पादन संबंधि आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) में बड़ी बढ़त होगी। यह सिस्टम कम कीमत पर उपलब्ध कराने वाले अनुसंधान के लिए यह एक अच्छा मौका है। 2020 में BS-6 प्रमाणित वाहनों की मांग हमारे देश में तो बढ़ेगी ही, लेकिन अन्य देशों में भी हमारे इन वाहनों के लिए बाजार उपलब्ध होगा। उसका सकारात्मक परिणाम हमारी निर्यात पर हो सकता है।
 
इन BS-6 उत्सर्जन मापदंड़ों के कारण निर्माण हुई हालिया चुनौतियां कुछ ऐसी होगी
• नए तरह के ईंधन की निरंतर आपूर्ति
• नए पुर्जे और आपूर्ति शृंखला का विकास
• प्रत्यक्ष उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, जांच पद्धतियां
• वाहनों के इलेक्ट्रॉनिक संनियंत्रण का विकास तथा उत्पादन
• नए वाहनों के चालकों का प्रशिक्षण : नए इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल, DPF का काम चलते समय के बदलाव आदि
• विक्रय पश्चात सेवा
इस प्रकार, ऊपर दिए गए उत्पादन और सेवाओं की आपूर्ति करने वाले संगठनों की उद्यम क्षमता बढ़ाना अनिवार्य है। यह तो जाहिर है कि BS-6 प्रणाली ने नए साल में कई नए दालन खोल दिए हैं!
 
 

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डॉ. नागेश वालके
उप निदेशक, ARAI
9689889167
डॉ. नागेश वालके ने कंबशन मॉडलिंग विषय में कॉलेज ऑफ इंजीनीयरिंग पुणे से पी.एच.डी. प्राप्त की है। आपको ARAI के वाहन उद्योग क्षेत्र में अनुसंधान और विकास विभाग में काम करने का 30 सालों का तजुर्बा है।
 
 
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