स्वच्छ ब्रोचिंग के लिए नीट कटिंग ऑईल में बदलाव

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Udyam Prakashan Hindi    10-सितंबर-2020   
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अजित आज बेहद खुश था। कारण भी कुछ खास था। उसके टीम को कंपनी की काइजेन प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला था। उसने काइजेन की टीम के साथ सेलिब्रेशन भी तय कर लिया था। इसलिए इसी खुशी में वह अपनी कार की तरफ निकला था। खास बात यह थी कि अजित को नई कंपनी में आए लगभग छः महीने ही हुए थे और उसमें ये अैप्रिसिएशन मिला... तो पार्टी बनती ही थी।

अजित पार्किंग की तरफ निकला ही था, तब उसे छः महीने पहले की वो सुबह याद आई और अजित सिहर गया। उस दिन कंपनी में 5S ऑडिट था। अजित का ज्वाइन होने के बाद का पहला ही महीना था। सवेरे अजित और उसकी टीम ऑडिट के लिए एकदम तैयार थी। शॉपफ्लोर पर चक्कर काट कर अजित केबिन में आया। आते ही उसे पूरे केबिन में ऑईल से सने पैरों के निशान दिखे। अजित को बहुत गुस्सा आया।

"ये क्या? कल ही सबको बताया था, समझाया था। उस ब्रोचिंग मशीन के ऑपरेटर को अपनी जगह से न हिलने के बारे में दस बार बताया होगा। फिर भी वो केबिन में क्यों आया?"

ब्रोचिंग मशीन के ऑपरेटर जहाँ भी घूम रहे थे, ऑईल से सने जूतों के निशान छोड़ रहे थे। पूरी शॉपफ्लोर गंदी होने की वजह थी, ब्रोचिंग ऑपरेटर और उनके ऑईल से सने जूते। पूरी शॉपफ्लोर पर एक ही ब्रोचिंग मशीन ऐसी थी जिस पर 'नीट कटिंग ऑईल' इस्तेमाल किया जाता था। नीट कटिंग ऑईल के साथ उसके अनचाहे साइड इफेक्ट भी आते हैं। शॉपफ्लोर गंदी होना, ऑपरेटर की शिकायतें, ऑईल से चिपचिपा हुआ परिसर, चिप अलग रखने की नौबत... जैसी कई बातें सामने आती हैं। लेकिन इनसे ध्यान हटा कर अजित ने झटपट ऑईल के दाग साफ किए और थोड़ी नाराजगी में ऑडिट के लिए तैयार हुआ। उसने तय किया कि ऑडिट खत्म होते ही तुरंत मीटिंग ले कर ब्रोचिंग मशीन के ऑईल का मामला हमेशा के लिए निपटना होगा।

मीटिंग के दौरान, सेवा से निवृत्त होने में दो साल बचे हुए वरिष्ठ ऑपरेटर कदम ने कहा, "सर, ये आप क्या कह रहे हैं? पिछले बीस सालों से हम अपनी ब्रोचिंग मशीन पर यही ऑईल इस्तेमाल करते आए हैं। सभी मशीन का ऑईल बदला गया लेकिन इस ब्रोचिंग मशीन का खयाल भी मन में नहीं आया। आप नए हो, किसी अनूठे प्रोजेक्ट की शुरुआत मत कीजिए।"

"बीस साल पहले जब ये ब्रोचिंग मशीन कंपनी में आई, तब हमें हुई तकलीफ हम ही जानते हैं। ब्रोच टूटना, रिजेक्शन, ब्रोच जैम होना, ऐसी कई मुश्किलें हमारी टीम ने देखी हैं। कई ट्रायल के बाद, हाइ विस्कॉसिटी और सल्फर कंटेंट वाले इस ऑईल को हमने चुना था। तब से ये मशीन अपना काम बखूबी कर रही है।" कदम ने आगे कहा।
"कोई भी नए साहब आने पर उन्हे हम पहले ही समझा देते हैं, कि इस मशीन की तरफ आंख उठा कर न देखें, वरना अपशकुन हो जाएगा। आपने आपका पहला ही प्रोजेक्ट यह चुना है। जाने दो साहब, मेरे तो दो ही साल बचे हैं। क्यों मेरा काम बढ़ाते हो, शांति से काम करने दो।" कदम ने फिर से अनुरोध किया।

अजित ने भी प्रॉडक्शन विभाग में अठरा साल अच्छी खासी मेहनत की थी। वह जानता था कि इस नए प्रोजेक्ट में कदम चाचा से काफी मदद लेनी पड़ेगी। इसलिए अजित ने वहाँ पर उपस्थित सभी को कहा, "जो भी हैं, हम सभी मिल कर तय करेंगे।" यह आश्वासन देते हुए उसने "ड़रो मत, अध्ययन कर के किए बदलाव सफल होते हैं। आपके अनुभव का सहयोग रहा तो काम जरूर बनेगा..." आदि बाते कह कर एक तीर से कई निशाने साध लिए।

दुसरे दिन सवेरे हुई काइजेन की बैठक में अजित ने कहा, "इस ब्रोचिंग मशीन के तेल के कारण होने वाली सभी समस्याएं जल्दी खत्म करनी है। उसके लिए मैंने चार लोगों की एक टीम बनाई है। अगले दो महीने इस मशीन पर काम कर के, ऑईल संबधि सारी समस्याएं सुलझाइए।"

चार लोगों की टीम में वरिष्ठ ऑपरेटर कदम, उनके साथ मेंटेनन्स इंजीनीयर रोहित, प्रॉडक्शन इंजीनीयर सुदाम तथा ऑपरेटर दीपक शामिल किए गए थे।

टीम की पहली विचार विमर्श बैठक (ब्रेनस्टॉर्मिंग मीटिंग) में कुछ इस प्रकार की चर्चा हुई।
"रोहित, शुरुआत में किन समस्याओं को सुलझाना है उनकी सूची (लिस्ट) बनाएंगे और उनका मूल कारण (रूट कॉज) खोजेंगे।" सुदाम ने कहा


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समस्याओं की सूची
1. मशीन के आसपास का सारा परिसर चिपचिपा होना।
2. ब्रोचिंग मशीन पर ऑपरेटर ने नाखुशी से काम करना।
3. ब्रोचिंग मशीन के लिए अलग ऑईल का स्टॉक रखना।
4. ऑपरेटर के जूतों को ऑईल लग कर गंदगी फैलना।
5. मशीन से निकाली कार्यवस्तु ऑईल से चिपचिपी होना।
6. चिप को लगा हुआ ऑईल बर्बाद होना।

इन समस्याओं पर चर्चा होने पर अहसास हुआ कि कई समस्याओं का कारण, ब्रोचिंग मशीन पर इस्तेमाल होने वाला 'नीट कटिंग ऑईल' ही है।

"मैं हमेशा सोचता हूं, केवल इसी मशीन पर 'नीट कटिंग ऑईल' क्यों इस्तेमाल किया जाता है? शायद कदम साहब ही ठीक से बता सकते हैं।" सुदाम

"सही में, इस ऑईल से बेहद तकलीफ होती है। घर जाने के बाद भी तन से इसकी बदबू जाती नहीं, पंधरा मिनट नहाओ तब कहीं छुटकारा मिलता है।" दीपक बोला।

"कदम साहब, हमें भी बताइए इस ऑईल का राज।" रोहित ने उकसाया।

"भाई उसमें कैसा राज! दूसरा कोई भी ऑईल नहीं चलता। ब्रोचिंग के दौरान इतनी गरमी तैयार होती है, साथ ही मशीन पर लोड भी ज्यादा होता है। लुब्रिसिटी न होने पर ब्रोच की आयु ज्यादा नहीं मिलती, ब्रोच बदलने को समय लगता है वो अलग। संक्षेप में कहूं तो नीट कटिंग ऑईल इस्तेमाल करने पर इनमें से कोई समस्या नहीं उभरती। वॉटर सोल्युबल ऑईल इस मशीन पर नहीं चलता।" कदम ने ब्यौरा दिया।
"उसकी वजह क्या है?" रोहित ने फिर पूछा।

कदम ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा,
1. पानी में घुलने वाला (वॉटर सोल्युबल) ऑईल बहुत पतला होता है, इसलिए ब्रोच पर उसकी परत नहीं टिकती।
2. वॉटर सोल्युबल ऑईल का कॉन्सन्ट्रेशन हमेशा की तरह 5% रखें तो ब्रोच की अपेक्षित आयु नहीं मिलती।
3. वॉटर सोल्युबल ऑईल का प्रबंधन थोड़ा जटिल होता है। टॉपअप करते समय कॉन्सन्ट्रेशन नहीं रखा गया तो काम बिगड़ जाता है। फिर सब सोचते है कि आग से क्यों खेलें!

संक्षेप में, इसका रामबाण उपाय है, नीट कटिंग ऑईल और अधिक लुब्रिसिटी के लिए सल्फर।
"मैंने सुना है कि सल्फर हानिकारक है और कई देशों में इस पर पाबंदी भी है। सच कहे तो ये ऑईल किसी जहर से कम नहीं है। अधिक लुब्रिसिटी के लिए अब अच्छे वॉटर सोल्युबल ऑईल भी मिलने लगे हैं।" सुदाम बोला।

"तो हमें ज्यादा लुब्रिसिटी के साथ उष्मा वहन करने वाले, कम चिपचिपे अर्थात वॉटर सोल्युबल ऑईल की जरूरत है।" रोहित ने सारांश में कहा।

"और सुरक्षित भी।" सुदाम बुदबुदाया।

इस चर्चा के बाद सारी टीम ऐसे ऑईल की तलाश में जुट गई।

थोड़ी खोज के बाद उन्हें पता चला कि अब वेजिटेबल ऑईल युक्त अच्छे गुणवत्ता वाले वॉटर सोल्युबल ऑईल बाजार में उपलब्ध हैं। ये ऑईल हमेशा के यानि 5% से 6% के बजाय अधिक यानि 10% से 15% कॉन्सन्ट्रेशन में ब्रोचिंग जैसे काम में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। अजित की टीम ने इस ऑईल की ट्रायल लेने की ठानी। मन में थोडी हिचकिचाहट थी लेकिन रिस्क तो लेनी थी।

दीपक ने, टीम के साथ मशीन से नीट ऑईल निकाल कर मशीन साफ कर के रखी। अब मशीन ट्रायल के लिए तैयार थी। शुरुआत में टीम ने कॉन्सन्ट्रेशन 15% रखने का तय किया। मुश्किल दिखने पर एक-एक प्रतिशत कम करते हुए 10% तक घटाना भी निश्चित हुआ।

'गणपती बाप्पा मोरया' इस जयकार के साथ कदम चाचा ने मशीन शुरु की।

निकला हुआ पहला पुर्जा देखते ही कदम की आंखों में खुशी की चमक उठी। "यह ट्रायल जरूर सफल होगी।" उन्होंने कहा।

"अभी तो शुरुआत है, ब्रोच खराब होने तक ट्रायल लेंगे, बाद में तय करेंगे।" रोहित ने कहा।

इस ट्रायल को अब लगभग तीन महिने हो चुके हैं, मशीन अच्छी चल रही थी। यंत्रण भी पहले की तरह हो रहा था, सारी समस्याएं समाप्त हो गई थी। तीन महिने के बाद टीम ने ट्रायल बंद की।


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टीम को इन अहम बातों का पता चला

1. कार्यवस्तु के आयाम तथा गुणवत्ता में कोई नकारात्मक बदलाव नहीं देखे गए।
2. ऑइल कॉन्सन्ट्रेशन अधिक होने के कारण किसी भी घटक पर जंग नहीं चढ़ा।
3. ब्रोच की आयु में कोई भी नकारात्मक बदलाव नहीं पाए गए।
4. हमेशा से बेहद कम उष्मा पैदा हो रही थी।
5. मशीन के आसपास के परिसर में सकारात्मक बदलाव आए।
6. ऑईल के कारण पहले पैदा होने वाली समस्याएं खत्म हो जाने से ऑपरेटर काफी खुश थे।
7. ऑईल की लागत में 20% की बचत हुई।
इस बदलाव से कंपनी के पैसे तो बचे ही साथ ही मैली शॉपफ्लोर से मुक्ति मिली।

 
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