संपादकीय

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    12-फ़रवरी-2021   
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29 दिसंबर, 2020 के दिन ने ‘उद्यम’ और कुल मशीन टूल उद्योग को बड़ा धक्का दिया। मशीन टूल निर्मिति और खासकर के उसका डिझाइन यही अपना जीवनकार्य मानने वाले भीष्माचार्य अशोक साठेजी, इसी दिन परलोक सिधारे। अपना उद्देश्यपूरा करने के लिए आखरी दिन तक कार्यरत रहे इस अभियंता ने परमोच्च श्रेणी के काम किए। प्रगति ऑटोमेशन, ACE डिजाइनर्स और बाद में ACE माइक्रोमैटिक समूह जैसी, भारतीय मशीन टूल उद्योग के लिए गौरवशाली संस्थाएं आपने शून्यसे आरंभ कर के मशहूर बनाई। फिर भी असल में आपका ध्यान कुल भारतीय उद्योग पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनाने पर ही रहा। इस संदर्भ में आपने अनेक युवा उद्यमियों की, कभीकभार प्रतिस्पर्धियों की भी खुले दिल से सहायता की। ‘विदेशियों की तुलना में भारतीय उद्यमी बिल्कुल कम नहीं हैं। 200 वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी सहते दौरान मन पर सवार हुए अंग्रेजी भाषा के बोझ ने अपने लोगों का, नया कुछ कर दिखाने का जोश ही खत्म कर दिया है। यह चिंगारी एक बार फिर जगाने के लिए मातृभाषा में शिक्षा पाना बेहद जरूरी है।’ यह आपकी दृढ़ धारणा थी और इसी के प्रति आप पिछले कुछ साल से काम कर रहे थे।
खुद को जंची किसी भी सोच पर अमल करने से पहले सहकारियों के साथ चर्चा करते समय आप अपनी धारणा पर हठे रहते थे लेकिन सुझाए गए बदलाव ‘सशक्त’ (यह आपका खास शब्द था!) हो तो उनको स्वीकार करने की दिलदारी भी आपके पास थी। इसी निर्मल आचरण के कारण आप सही में अजात शत्रू बने। आपके सहकारियों के साथ साथ प्रतिस्पर्धी भी आपको गुरु (बिल्कुल किसी सांगीतिक छात्रकी तरह, खुद का कान छू कर!) मानते थे। धातुकार्य के संदर्भ में कई छोटे बड़े मशीन टूल उद्यमियों को मिलने पर मुझे साफ नजर आया कि इस गुरु के कई ‘एकलव्य’ छात्र हैं।
उपलब्ध देशी/विदेशी तकनीक अपना कर उससे दर्जेदार भारतीय उत्पाद बनाने वाली आस्थापनाएं आपने शुरू की और उनकी मुहर वैश्विक बाजारों पर कर दी। भारतीय भाषाएं ज्ञानभाषा बननी चाहिए यह कहने वाले तो बहुत हैं, लेकिन इस उद्देश्य से खुद का समय और पैसा निवेश करने वाले आप एक ही थे। वैसी तो आपने पेश की कई संकल्पनाएं पहले अव्यवहार्य मानी गई, चाहे वह टरेट या ऑटोमैटिक टूल चेंजर (ATC) का निर्माण हो, वही उत्पाद चाइना में बनाने हेतु उधर ही कारखाना शुरू करना हो या भारतीय भाषाओ में अभियांत्रिकी किताबें तथा पत्रिकाए प्रकाशित करना हो। आरंभ में हमेशा उठाए जाने वाले सवाल आपको भी पूछे गए - ‘ये क्यों बना रहे हो, यह कौन खरीदेगा? चाइना के सामने क्या आप खड़े रह पाएंगे? तकनीकी ज्ञान हिंदी में कौन पढ़ेगा?’ लेकिन, इसके बावजूद, साठे सर अपनी सोच के साथ आगे बढ़ते रहे और आज आपकी ‘प्रगति ऑटोमेशन’में बने ATC का भारत में कोई विकल्प नहीं है। आज वह अनेक भारतीय तथा बहुराष्ट्रीय मशीन टूल का अविभाज्य घटक तो है ही, साथही चीन में स्थानीय उत्पादों से कड़ी स्पर्धा कर रहा है। प्रथम मराठी में शुरू हुई ‘धातुकाम’ मासिक पत्रिका आज हिंदी, गुजराती, कन्नड ऐसी कुल चार भाषाओ में प्रकाशित की जा रही है और करीबन 50,000 कारखानों तक पहुंच रही है। आप आग्रही थे कि जो भी काम करना हो, वह बड़े पैमाने पर और किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मापदंड़ पूरे करने वाला हो। इस आग्रह का रूपांतरण वास्तव में कर दिखाने हेतु आप सारे आवश्यक काम करने के लिए तैयार रहते थे।
अब ‘धातुकार्य’ की आगे की यात्राके दौरान साठे सर का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन नहीं मिलेगा। फोन पर “हं...बोलिए देवधरजी” यह आश्वासक, अल्पसी अनुनासिक आवाज सुनाई नहीं देगी... लेकिन साठेजी ने रचाई नींव इतनी मजबूत है कि “आप जिद से काम करते रहो, हम इतिहास रचा रहे हैं!” यह उनके ही शब्द सिद्ध करने वाली आगे की यात्रा जोश के साथ शुरू ही रहने वाली है।
हमें विश्वास है कि हमारे इस प्रयास को सभी पाठक, लेखक, विज्ञापनदाता तथा अन्य सभी संबंधित हमें आवश्यक सहयोग पूर्णरूप में देंगे।
दीपक देवधर
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