इंस्पेक्शन अथवा चेकिंग फिक्श्चर बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।आपके द्वारा बनाया गया उत्पाद पहले से तय मापदंड़ों के अनुसार है या नहीं यह सुनिश्चित कर के ही आप उसे ग्राहक को देते हैं। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी हम कोई भी चीज खरीदते समय, उसे परख कर ही लेते हैं।
मान लीजिए आप मिक्सर ग्राइंडर खरीदना चाहते हैं, तो उसे कैसे परखेंगे? आप मिक्सर बनाने वाली कंपनी के नाम पर भरोसा कर के ही तो खरीदते हैं। क्योंकि हमें विश्वास होता है की निर्माता कंपनी में उत्पाद की गुणवत्तासंबंधि सारे मापदंड़ ठीक से जांचे जाते हैं।
क्या वह मिक्सर अपेक्षित गति से घूमता है? क्या उसकी मोटर पर्याप्त क्षमता की है? उसकी आवाज पूर्वनिश्चित मानकों के अनुसार है या नहीं? इन सब मापदंड़ों की जांच उत्पादक के द्वारा की जाना ना केवल जरूरी है, बल्कि वह उत्पादक की जिम्मेदारी भी है। इसलिए ग्राहकों का भरोसा जीतने के लिए उत्पादन गुणवत्ता जांच अनिवार्य है।
इंजीनीयरिंग ड्रॉइंग में दिए गए महत्वपूर्ण नाप जांचने के लिए जांच फिक्श्चर इस साधन का उपयोग किया जाता है। यंत्रण के लिए फिक्श्चर का प्रयोग करने से, इस काम के लिए आवश्यक आवर्तन समय यानि साइकिल टाइम में भारी बचत होती है। इसका अर्थ है उत्पादकता में वृद्धि। जिस गति से आप उत्पाद बनाते हैं, उसी गति से उनकी जांच होना जरूरी है। जांच फिक्श्चर का उपयोग करने से यह परीक्षण तेजी से होता है।
जांच फिक्श्चर के प्रकार
1. डायल प्रकार का फिक्श्चर : उत्पादन में कोई नाप ±0.2 मिमी. से अधिक अचूकता का हो तब डायल का उपयोग करना होता है। संकेंद्रिता की जांच करनी हो तब भी डायल का उपयोग कर के फिक्श्चर का प्रयोग किया जाता है।
2. रिसीविंग प्रकार का फिक्श्चर : कार्यवस्तु पर एकदम सटीक आयाम अपेक्षित ना हो और सिर्फ उत्पाद का समुच्चन आसान बनाने जितनी ही अचूकता की आवश्यकता हो तो रिसीविंग प्रकार के फिक्श्चर का उपयोग किया जाता है। संक्षेप में, इसमें सिर्फ यह देखा जाता है कि जो भाग उत्पादन पर बिठाया जाने वाला है, उसी तरह का भाग फिट होता है या नहीं।
3. विजुअल चेकिंग फिक्श्चर : कास्ट किए गए उत्पादों पर बॉस तथा अन्य अलग अलग आकार होते हैं, जिन्हें अधिक अचूकता से जांचना जरूरी नहीं होता। यहाँ सिर्फ प्रत्येक आकार अपनी सही जगह पर है या नहीं इसे जांचना होता है। इसके लिए उसी समान आकार की टेंप्लेट का प्रयोग किया जाता है।
4. लीकेज टेस्टिंग फिक्श्चर : लीकेज का अर्थ है रिसाव। सिलिंडर ब्लॉक, सिलिंडर हेड जैसे घटकों से होने वाली रिसन अवांछनीय होती है। अतः यहाँ रिसन को जांचने के लिए लीकेज टेस्टिंग फिक्श्चर का प्रयोग अनिवार्य है।
5. टेस्ट रिग : यह भी एक प्रकार का फिक्श्चर ही है। उदाहरण के लिए, किसी गाड़ी का दरवाजा, अपने पूरे जीवनकाल में करीबन एक लाख बार खोला तथा बंद किया जाना अपेक्षित हो तो उत्पादक के लिए यह अनिवार्य है कि नमूना गाड़ी बनाते समय वह यह बात सिद्ध करें। इसे ही टेस्ट रिग कहा जाता है।
6. रॉ पार्ट चेकिंग फिक्श्चर : रॉ पार्ट का अर्थ है कच्ची कार्यवस्तु। कास्टिंग और फोर्जिंग किए हुए पुर्जे रॉ पार्ट कहलाते हैं। इन पुर्जों की जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले फिक्श्चर को रॉ पार्ट चेकिंग फिक्श्चर कहा जाता है। सिलिंडर ब्लॉक, सिलिंडर हेड, कनेक्टिंग रॉड या वील हब आदि जटिल पुर्जों की, यंत्रण के पहले की जाने वाली जांच में यह फिक्श्चर अत्यंत उपयोगी होता है। इसके कारण पुर्जों की किसी कमी या खराबी का पता यंत्रण शुरू करने के पहले ही चल जाता है और उसे तुरंत सुधारा जा सकता है।
जांच फिक्श्चर बनाते समय आगे दी गई बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
1. कार्यवस्तु को जिस तरह मशीनिंग फिक्श्चर में लोकेट और रेस्ट किया जाता है, ठीक उसी तरह उसे टेस्टिंग फिक्श्चर में लोकेट और रेस्ट किया जाना चाहिए। उसका क्लैंपिंग भी यथासंभव वैसा ही करें।
2. किसी पुर्जे का यंत्रण इन बातों पर निर्भर करता है कि वह पुर्जा संबंधि उत्पाद पर किस प्रकार बिठाया जाएगा, उस पुर्जे का काम क्या है, आयामों की अचूकता एवं परस्परसंबंधों की जरूरत का स्तर। यंत्रण प्रक्रिया को ध्यान में रख कर ही फिक्श्चर का डिजाइन किया जाता है।
3. जांच फिक्श्चर में कार्यवस्तु जांचते समय उसका विरूपण ना होना आश्वस्त करें।
4. देखें कि जांच फिक्श्चर में रखे जाने वाले पुर्जों में हिलने वाले भाग न्यूनतम हो। हिलते भाग अधिक होने से फिक्श्चर की अचूकता पर विपरित असर होता है। एक दूसरे पर घिसने वाले भागों के घिसाव के कारण ऐसा होता है।
5. यंत्रण फिक्श्चर के मुकाबले, जांच फिक्श्चर की सटीकता अधिक होती है। पुर्जे के लिए निर्धारित टॉलरन्स के 10% टॉलरन्स, जांच फिक्श्चर पर दिया होता है। जैसे, दो छिद्रों के केंद्र के बीच की दूरी ±0.2 मिमी. हो तो जांच फिक्श्चर में यही दूरी ±0.02 मिमी. में नियंत्रित की जाती है।
6. जांच फिक्श्चर का कैलिब्रेशन नियमित अंतराल से किया जाना ही चाहिए। कोई दुर्घटना हो जाने के बाद तो, बिना कैलिब्रेशन किए जांच फिक्श्चर का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। जांच फिक्श्चर के कारण उत्पादित वस्तु की गुणवत्ता निरंतर जांचना संभव होता है। इसका प्रतिबिंब असेंब्ली के समय पाई जाने वाली आसानी में दिखता है।
मिसाल
आइए अब एक आसान और छोटे से जांच फिक्श्चर को समझते हैं। देखते हैं कि चित्र क्रमांक 1 में दर्शाए गए पुर्जे की गुणवत्ता की जांच किस प्रकार की जाती है ।
चित्र क्रमांक 1 में पुर्जा और फिक्श्चर दोनों दर्शाए गए हैं। इसमें दिखाया फिक्श्चर, जांच फिक्श्चर है। आप पुर्जे को देखें तो उसमे आपको बोर किया हुआ व्यास दिखेगा। पुर्जे के एक फेस पर चार छिद्र हैं और एक अर्धवृत्ताकार खांचा भी। अब जानते हैं कि उसी चित्र में दर्शाए गए फिक्श्चर के द्वारा किन बातों को जांचा जा सकता है।
चित्र क्र. 2 में दिखाए गए पुर्जे का अंदरी व्यास फिक्श्चर पर स्थित लोकेटर पर ठीक से बैठना जरूरी है। लोकेशन में यह पुर्जा ठीक से बैठ जाए इसलिए लोकेटर को चैंफर दिया गया है। इससे पुर्जे को फिक्श्चर में आसानी से बिठाया और निकाला जा सकता है। इसी चित्र में आपको 4 पिन दिखेगी। इनमें से टेपर वाली पिन को टेपर लोकेटिंग पिन कहा जाता है। पुर्जे को बड़े व्यास पर, लोकेटर पर फिट करने के पश्चात पहले टेपर पिन ड़ाली जाती है और उसके बाद, एक के बाद एक पिन छिद्र में ड़ाल कर पुर्जें के छिद्रों की सटीकता को परखा जाता है। लोकेशन वृत्ताकार दिशा में हो तो उसे ओरिएंटेशन कहते हैं। टेपर पिन का उद्देश्य ओरिएंटेशन ही होता है। इसी प्रकार नीचे अ तथा ब पिन, स्क्रू की सहायता से फिक्श्चर पर कसी गई हैं। ये पिन पुर्जे के फेस पर स्थित वृत्ताकार खांचे को जांचने के काम आती हैं। इस पुर्जे को जांचते समय, एक पिन लोकेट करने पर बाकी 3 पिन ठीक से फिट हो जाती हैं और पूरे फेस तक पहुंचती हैं, तो यह पुर्जा अचूक माना जा सकता है।
चित्र क्र. 3 में दर्शाया गया पुर्जा फिक्श्चर में एकदम ठीक से फिट हुआ है। उपरोक्त फिक्श्चर की सहायता से पुर्जों की गुणवता की जांच तेजी और आसानी से करना संभव है, यहाँ तक की अर्धकुशल कर्मचारी भी यह काम आसानी से कर पाते हैं।
अजित देशपांडे को जिग्स और फिक्श्चर के क्षेत्र में लगभग 38 साल का अनुभव है।
आपने किर्लोस्कर, ग्रीव्स लोम्बार्डीनी लि., टाटा मोटर्स जैसी विभिन्न कंपनियों में काम किया है।
आप अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में अतिथि प्राध्यापक हैं।
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