इंडस्ट्री 4.0 के लिए तैयार रहते समय...(भाग 3)

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    31-मई-2021   
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इंडस्ट्री 4.0 क्या है तथा इसके लिए अपनी तैयारी कितनी है इस बात को कैसे जांचा जाए, इसे हमने 'धातुकार्य' के पिछले तीन अंकों में देखा है। सात नेत्रहीन व्यक्ति और एक हाथी की कहानी आपने अवश्य ही सुनी होगी। इंडस्ट्री 4.0 के संदर्भ में स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। चौथी औद्योगिक क्रांति की इस संकल्पना की व्यापकता बहुत अधिक है, अतः इसे पूरी तरह समझना निश्चय ही सरल नहीं है। किंतु, इंडस्ट्री 4.0 की संकल्पना अपने उद्योग में किस तरह उपयोगी होगी इसे हर उद्यमी ने समझ लिया, तो इसके बारे में अधिक चिंता करने की भी आवश्यकता नहीं है। इस लेखमाला में प्रकाशित होने वाले लेखों का यही उद्देश्य है। इसलिए सबसे पहले हम यह देखेंगे कि इंडस्ट्री 4.0 के मार्गदर्शक तत्व क्या हैं और उसके बाद जानेंगे कि उद्योग तथा उत्पादन के प्रकार के अनुसार इन तत्वों को किस प्रकार आत्मसात किया जाए।
पृष्ठभूमि
संक्षेप में कहे तो इंडस्ट्री 4.0 का अर्थ है इलेक्ट्रॉनिक्स, संदेश प्रेषण तथा जानकारी, इन तकनीकों को यांत्रिकी एवं उत्पादन उद्योग क्षेत्रों के साथ मिला कर उन उद्योगों में नई कार्यक्षमताएं एवं व्यवसाय की संभावनाएं बढ़ाने की क्रांति। आज आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक तकनीकों के कारण किसी भी उत्पाद या प्रक्रिया का मापन सुलभता से किया जा सकता है। इससे हमें जानकारी का खजाना हाथ लगता है। सूचनाओं का आदान प्रदान हर दिन अधिक तेज और सस्ता हो रहा है जिस कारण अब कोई भी सूचना पल भर में ही किसी भी दूरस्थ व्यवस्था तक पहुंचाना संभव हो गया है। वहीं दूसरी ओर, क्लाउड तकनीक के कारण हर मिनट इकट्ठा होने वाला सूचनाओं का यह भंडार संभल कर उसकी गहराई से जांच पड़ताल करना भी संभव हुआ है। इन सब बातों का परिणाम यह है कि कोई भी यांत्रिकी/उत्पादन उद्योग अथवा उसमें की कोई वस्तु अब अलग ना रह कर, एक विशाल जाल यानि नेटवर्क का भाग बनेंगे। इस नेटवर्क से मिलने वाले नए संपर्कों का हम जितना अधिक उपयोग करेंगे उतने ही हम इंडस्ट्री 4.0 की क्रांति में सफल होंगे।
लेकिन इसके बावजूद इंडस्ट्री 4.0 के नेटवर्क में सम्मीलित होने के लिए अधिकतर लघु एवं मध्यम उद्योग अभी भी आशंकित हैं। बाजार की तीव्र स्पर्धा, हर वर्ष नहीं बल्कि हर माह आने वाली नई लहरें और संसाधनों की सीमित उपलब्धता, इस प्रकार की चुनौतियों के कारण इंडस्ट्री 4.0 के सारे आयामों की पड़ताल कर के उनसे अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना लघु और मध्यम उद्योगों के लिए मुश्किल है। इस पृष्ठभूमि के संदर्भ में, जर्मनी के इंजीनीयरिंग और उत्पादन क्षेत्र के उद्योगों के संगठन VDMA द्वारा प्रकाशित मार्गदर्शक तत्व बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अरबर्ग, हावे, शुंक और एस.एम.एस. इन चार कंपनियों में, VDMA के नेतृत्व में आयोजित कार्यशालाओं में, इन तत्वों के बारे में विचारविमर्श किया। बाद में इस संगठन ने उन्हें 2016 में प्रकाशित किया। किसी भी उद्यमी को अपने कारोबार के परिप्रेक्ष्य में इंडस्ट्री 4.0 की संगत रूप में परिभाषित करने, तदनुसार अपेक्षित परिवर्तनों को समझने, उनसे मिलने वाले लाभों का अनुमान लगाने और इन सभी का मेल करने हेतु उपयुक्त मार्ग ढूंढ़ने में ये तत्व बहुत उपयोगी हैं।
इंडस्ट्री 4.0 के मार्गदर्शक तत्व

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इन तत्वों के दो चरण हैं, मार्गदर्शक बातों की रूपरेखा तैयार करना और उसे अमल में लाना। पहला चरण बताता है कि 'क्या' करना है जबकि दूसरा चरण उसे 'कैसे' करना है यह बताता (चित्र क्र. 1) है। इस लेख में हम मार्गदर्शक बातों की रूपरेखा विस्तृत रूप से समझते हैं। सबसे पहले इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि इंडस्ट्री 4.0 का प्रभाव केवल उत्पादन प्रक्रिया पर ही नहीं बल्कि तैयार होने वाले उत्पादों पर भी होना अपेक्षित है। इंडस्ट्री 4.0 के अनुसार, उत्पादन प्रक्रिया और उसके विभिन्न पूरक पहलुओं का विकास चरणों में होना आवश्यक है। परंतु इसके साथ ही, इस प्रक्रिया से होने वाला उत्पादन अर्थात बनाई जाने वाली वस्तु/मशीनरी/सेवा भी विविध पहलुओं में बदलना चाहिए। उत्पादन प्रक्रिया में होने वाले सुधारों से मुख्यतः आगे दिए हुए लाभ अपेक्षित हैं।
1. उत्पादकता में वृद्धि
2. व्यय में कमी
3. मानको का पालन
4. विश्वस्तरीय प्रक्रिया
दूसरी ओर, उत्पादों में होने वाले सुधारों के कारण आगे दिए गए लाभ अपेक्षित हैं।
1. गुणवत्ता में सुधार
2. नई बिक्रीपश्चात सेवाएं
3. ग्राहकों/उपभोक्ताओं से संपर्क
4. उत्पादों में नवीनता लाने की क्षमता
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मार्गदर्शक तत्वों के रूपरेखा में, उत्पाद और उत्पादन प्रक्रिया के लिए अलग अलग रूपरेखा प्रस्तावित है। उसे सर्वसमावेशी बनाने की दृष्टि से, इस रूपरेखा में छः मुख्य मुद्दों का विचार किया गया है। इस बात की अपेक्षा की जाती है कि प्रत्येक उद्योग अपनी उत्पादन प्रक्रिया के अनुसार इन मुद्दों को लागू करें। जब कोई उद्यमी अपने उद्योग का अध्ययन, इस रूपरेखा के मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में करेगा तो उसे पूरी तरह समझ में आएगा कि इंडस्ट्री 4.0 के लिए उसमें क्या परिवर्तन लाने होंगे। अर्थात उद्योग के प्रकार के अनुसार ये मुद्दे विभिन्न उद्योगों को कम या अधिक मात्रा में लागू होंगे। जैसे, इनमें से कोई मुद्दा इंजीनीयरिंग उद्योग में पूरी तरह विकसित रूप में अंतर्भूत होगा लेकिन वही मुद्दा मोल्डिंग उद्योग में केवल नाममात्र रूप में लागू होगा। संक्षेप में, अपने उद्योग में चौथी औद्योगिक क्रांति लाने का अर्थ है इस रूपरेखा के अनुसार अपने कारोबार का अध्ययन कर के रूपरेखा के मुद्दों का समावेश उत्पाद तथा उत्पादन प्रक्रिया में योग्य रूप में करना!
उत्पाद के लिए रूपरेखा
उत्पादित वस्तु/मशीनरी/सेवा में क्रांति लाने हेतु अंतर्भूत करनेयोग्य छः मुद्दे इस प्रकार (चित्र क्र. 2) हैं।

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1. सेन्सर, अैक्चुएटर
संवेदक तथा कार्यकारक (सेन्सर, अैक्चुएटर) किसी भी निर्जीव वस्तु के ज्ञानेंद्रियों एवं कर्मेंद्रियों के समान होते हैं। इनके अधिकाधिक प्रयोग से वस्तुएं अधिक स्वचालित की जाती हैं और साथ ही उपयुक्त जानकारी का बड़ा भंड़ार तैयार हो जाता है। किसी उत्पाद में कोई भी क्रिया अथवा उसके मूल्यांकन की व्यवस्था ना होने की स्थिति से, वस्तु ने पूर्ण स्वचालित रूप में जानकारी का एकत्रीकरण और उसकेनुसार क्रिया करने की स्थिति तक की यात्रा यहाँ अपेक्षित है। 19 वीं सदी में निर्मित पहले डीजल इंजन (जो सिर्फ एक मशीन थी) से शुरू कर के, 21 वीं सदी में निर्मित तथा संवेदक, इंजन कंट्रोल यूनिट (ECU) तथा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा व्यवस्थाओं से युक्त इंजन तक की यात्रा इसका एक उत्तम उदाहरण है। हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक उत्पाद में यह मुद्दा समाविष्ट हो। जैसे, किसी इंजन का स्वचालित होना जितना स्वाभाविक था उतना कार के टायर का स्वचालित या स्मार्ट होना नहीं।

2. संवाद एवं संपर्क क्षमता
इन मुद्दों के समावेश से, उत्पादित वस्तु का संपर्क बाहरी दुनिया से हो सकता है और वह IoT के लिए पात्र हो जाती है। इंडस्ट्री 4.0 के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसका एक उत्तम उदाहरण है आधुनिक समय का एनर्जी मीटर। पुराने समय में यांत्रिकी पद्धति द्वारा बिजली की खपत को दर्शाने वाला मीटर, आज इंटरनेट और ब्लूटूथ जैसे माध्यमों के द्वारा विभिन्न प्रकार की जानकारी आपूर्त कर सकता है।
3. सूचनाओं का आदान-प्रदान और भंड़ारण
उत्पादित वस्तु में सूचनाओं का किस प्रकार और कितनी मात्रा में भंडारण किया जा सकता है और कितने प्रकार से उनका हस्तांतरण किया जा सकता है, इस बात का विचार इस मुद्दे में किया जाता है। मोबाइल फोन का हैंडसेट देख कर हम इसे अच्छे से जान सकते हैं। बीस साल पहले के मोबाइल फोन में मुश्किल से 250 नंबर सेव किए जा सकते थे। आधुनिक मोबाइल हैंडसेट में असीमित फोन नंबरों के साथ हजारों फोटो, वीडियो और गाने सेव किए जा सकते हैं और आसानी से दूसरे फोन या संगणक पर भेजे जा सकते हैं।
4. निरीक्षण, निदान एवं अंदाज की क्षमता
इस मुद्दे में किसी वस्तु के द्वारा, लगातार निरीक्षणों के आधार पर खुद की वर्तमान स्थिति के बारे में निदान और उसके आधार पर संभाव्य खतरों का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित की जाना अपेक्षित है। तकनीकी भाषा में इसे रियल टाइम डेटा मॉनिटरिंग (RTDM) एवं डाइग्नोसिस और प्रोग्नोस्टिक्स (DP) कहा जाता है। इस क्षमता का उपयोग उस वस्तु में आने वाली तकनीकी समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने, उचित देखभाल करने और अप्रत्याशित खराबियों/खतरों को टालने के लिए उत्तम रूप से किया जा सकता है। इसमें फिर से इंजन का उदाहरण लिया जा सकता है। आज की किसी भी कार का इंजन कुछ खराबियों का निदान और पूर्वानुमान स्वयं कर सकता है, जैसे कि इंजन के तापमान में अत्यधिक वृद्धि, ऑईल की मात्रा में कमी आदि।
5. पूरक सूचना सेवा
उत्पादित वस्तु से जो कार्य अपेक्षित होता है उसके अतिरिक्त वह क्या सेवाएं देने में सक्षम है इस बात का विचार इस मुद्दे में किया जाता है। यहाँ स्मार्ट फोन का उदाहरण लिया जा सकता है। किसी समय मोबाइल फोन सिर्फ संपर्क करने का एक यंत्र था। बदलती तकनीकों के साथ उसमे घड़ी, कैमरा, रेकॉर्डर, ब्लूटूथ, रेडियो, इंटरनेट और हजारों अैप का समावेश हुआ और मोबाइल फोन एक बहुउपयोगी, स्मार्ट मशीन बन गया। उसके 'संचार के साधन' होने के मूल कार्य के अतिरिक्त अनेक पूरक सूचना सेवाओं को अंतर्भूत करने के कारण यह चमत्कार हुआ है।
6. विविध व्यवसायों के प्रारूप
आज भी अधिकांश इंजीनीयरिंग उद्योगों की कमाई का प्रमुख साधन है वस्तु/मशीनरी का उत्पादन कर के बेचना। लेकिन अभी बताएनुसार, जैसे जैसे उत्पादित वस्तु/मशीनरी विकसित होती है, वैसे ही उस वस्तु तथा उससे संबंधित पूरक बातें ग्राहकों तक पहुंचाने के विकल्प बढ़ते जाते हैं। व्यवसाय के नए प्रारूप विकसित होते जाएंगे, जैसे कि केवल वस्तु की बिक्री करने के बजाय पूरक सेवाएं उपलब्ध कराना, ग्राहकों को सलाह/मार्गदर्शन के रूप में सहायता करना, प्रत्येक ग्राहक की मांग के अनुसार उत्पादन करना। इस बात के कुछ अन्य सफल उदाहरण हैं। एस माइक्रोमैटिक जैसी मशीन टूल क्षेत्र की कंपनी द्वारा मशीनों के निर्माण के साथ ही एनर्जी मॉनिटरिंग और टूल मॉनिटरिंग जैसे विभिन्न प्रकार के मॉनिटरिंग साफ्टवेयर का निर्माण, महिन्द्रा जैसे ट्रैक्टर उत्पादक ने ट्रैक्टर बनाने के साथ ट्रैक्टर या अन्य औजार किराए पर देना आदि।
उत्पादन प्रक्रिया के लिए रूपरेखा
उत्पादन प्रक्रिया में क्रांति लाने के लिए उसमें आगे दिए गए मुद्दे अंतर्भूत (चित्र क्र. 3) करना आवश्यक है।

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1. जानकारी पर प्रक्रिया
कारखाने में उत्पादन के दौरान असीमित मात्रा में जानकारी का निर्माण होता है और ये जानकारी विभिन्न चरणों में भेजी जाती है। उत्पादन प्रक्रिया अधिक कार्यक्षम बनाने के लिए केवल बड़ी मात्रा में जानकारी तैयार करना ही काफी नहीं होगा बल्कि यह आवश्यक है कि, उस जानकारी पर समुचित प्रक्रिया कर के और उसका पृथक्करण कर के स्पष्ट निष्कर्ष पाए जा सके। यानि जानकारी का रूपांतरण ज्ञान में होना चाहिए। हमने देखा है कि उद्योगों में प्रत्येक कार्यदिवस के कामकाज की रिपोर्टों से फाइलें भरी रहती हैं, परंतु इस जानकारी को एकत्र कर के तथा उसका अध्ययन कर के काम की गुणवत्ता, काम में आने वाली समस्याएं, उत्पादन की लागत आदि का एक दूसरे से संबंध जोड़ने का कार्य प्रायः नहीं किया जाता। इंडस्ट्री 4.0 में इस तरह के कामों के लिए जानकारी का अधिकतम उपयोग और अभ्यास किया जाना अपेक्षित है।
2. मशीनों के बीच संवाद
यह मुद्दा IoT का मूलतत्व है। अधिकांश भारतीय लघु, मध्यम उद्योगों में दो मशीनों के बीच सीधा संवाद प्रायः देखने को नहीं मिलता है। अगर कहीं होता भी है तो वह फील्डबस, मॉडबस आदि औद्योगिक संप्रेषण माध्यमों के द्वारा, स्थानीय नियंत्रकों का प्रयोग कर के किया जाता है। इससे आगे चल कर, मशीनों को इंटरनेट से जोड़ कर उद्योगों में सही में IoT की स्थापना करना तथा इन मशीनों का निरीक्षण एवं नियंत्रण दूरस्थ ऑपरेटर द्वारा या स्वचालित रूप से किया जाना आदि बातें इंडस्ट्री 4.0 में अपेक्षित हैं।
3. विभिन्न विभागों के बीच संवाद
कई उद्योगों में, कारखाना और बाकी विभागों (जैसे रिसर्च, डिजाइन, प्रशासन, वित्त विभाग आदि) के बीच कुछ दूरी सी होती है। इनमे संदेशों का आदान प्रदान होता तो है, परंतु वह प्रायः इमेल अथवा प्रत्यक्ष मुलाकातों के माध्यम से होता है। इस कारण उद्योग की कार्यक्षमता में सकल वृद्धि करने पर कड़ी सीमाएं आती हैं। इसे टालने के लिए संपूर्ण उद्योग में एक साझा संवाद व्यवस्था होना तथा एक केंद्रीय सर्वर (जानकारी के भंड़ारण के लिए) के माध्यम से सारे विभागों के संवाद में सूत्रबद्धता लाना अत्यंत आवश्यक है। यह संवाद जितना अधिक पारदर्शक और व्यक्तिनिरपेक्ष होगा उतना ही वह उत्पादन प्रक्रिया की कार्यक्षमता बढ़ाने में सक्षम होगा। कंपनी ने अपने आंतरिक कामकाज के लिए खुद का अैप बनाना, यह इस दिशा में बढ़ाया गया एक प्राथमिक और सरल कदम है, जो हमें प्रायः नजर आ जाता है।
4. उद्योगों में संवाद व्यवस्था
यह मुद्दा उपरोक्त दोनों मुद्दों से जुड़ा हुआ है फिर भी यह विशेष रूप से संदेशों के आदान प्रदान के लिए बनाई जाने वाली आधारभूत सुविधाओं तथा व्यवस्थाओं से संबंधित है। यह व्यवस्थाएं जितनी आधुनिक और उद्योग के लिए अनुकूल होगी, उतना ही उद्योग में अंतर्गत संवाद सरल होगा। स्थानीय स्तर पर सर्वर का प्रयोग करना, आवश्यकतानुसार इंटरनेट एवं क्लाउड सेवाओं का उपयोग करना, उद्योग के साथ ही सप्लाइअर, साझेदार और ग्राहक के प्रति सुलभ संवाद तकनीक स्थापन करना आदि चरणों के द्वारा इसे आधुनिक बनाया जा सकता है। माल के भंड़ारण से ऑर्डर तक और सप्लाइ चेन से सारे वित्तीय मामलों तक सब कुछ, सर्वसुविधायुक्त संवादतंत्र की सहायता से स्वचालित रूप में संचालित करने वाला Amazon जैसा संगठन इस संदर्भ में मानदंड़ माना जा सकता है।
5. मानव और मशीन के बीच परस्पर संबंध
इस मुद्दे का उत्पादन प्रक्रिया में बहुत महत्व है। मनुष्य का, मशीन और प्रणाली के साथ होने वाला संबंध जितना सुखकर और पारदर्शक होगा उतनी ही कुल उत्पादन प्रक्रिया की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होगी और कर्मचारियों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पारंपरिक मशीन में लीवर, स्विच और बत्तियों के द्वारा होने वाला मानव-मशीन संवाद अब बदल रहा है। आज टचस्क्रीन पैनल, मोबाइल अैप आदि नए माध्यम इस संबंध में बदलाव ला रहे हैं। वर्चुअल और ऑगमेंटेड रिअैलिटी के प्रयोग से तो इस क्षेत्र में क्रांति ही होने जा रही है।
6. छोटे लेकिन किफायती बैच
दूसरी औद्योगिक क्रांति में, थोक उत्पादन के द्वारा कम खर्चे में उत्पादन करना संभव हो पाया। लेकिन उसमें उत्पाद की रचना और कार्यपद्धति में बदलाव करने की ज्यादा संभावनाएं नहीं थी। वर्तमान समय में वार्षिक स्तर, प्रादेशिक स्तर, यहाँ तक कि प्रत्येक उपभोक्ता के स्तर पर उत्पादित वस्तु की अपेक्षित रचना और कार्य बदल रहे हैं। इन बदलावों के अनुरूप विभिन्न रचनाओं वाली वस्तुओं का उत्पादन किफायती रूप से करना आज की आवश्यकता बन गई है। इसके लिए यह आवश्यक है कि उत्पाद की रचना अधिकाधिक प्रमापित (मॉड्यूलर) और उत्पादन की प्रक्रिया लचीली हो। इसके उत्तम उदाहरण हैं हमारे रोजमर्रा के जीवन में उपयोग में आने वाले संगणक, लैपटॉप, मोबाइल फोन आदि। आज दुनिया में संगणक या मोबाइल फोन के एक ही ब्रैंड के सैकड़ो मॉडल तथा संस्करण किफायती कीमतों में उपलब्ध है। इसका कारण है, इन निर्माताओं द्वारा विकसित संगणक या फोन की मॉड्यूलर संरचना और आसानी से नियंत्रित की जा सकने वाली मॉड्यूलर उत्पादन प्रक्रिया।
इस प्रकार, इंडस्ट्री 4.0 के लिए उत्पाद और उत्पादन प्रक्रिया के मार्गदर्शक तत्वों के रूपरेखा को हमने संक्षेप में समझा है। इंडस्ट्री 4.0 की दिशा में यात्रा करने वाले प्रत्येक उद्यमी ने और उसके मुख्य कार्यकारी दल ने इस रूपरेखा का अध्ययन करना चाहिए, इनमें से कौनसे तत्व अपने उद्योग को लागू हैं, इस बात को समझना चाहिए और इसके अनुसार कौनसे बदलाव चरणों में लाने चाहिए इसकी कार्य रूपरेखा बनानी चाहिए। अगले लेख में हम उदाहरणों सहित देखेंगे कि इन मुद्दों को उत्पाद और उत्पादन प्रक्रिया के लिए किस प्रकार अमल में लाया जाना चाहिए।
संदर्भ
1. VDMA (जर्मनी के यांत्रिकी और उत्पादन उद्योगों का संगठन) द्वारा 2016 में लघु, मध्यम उद्योगों के लिए प्रकाशित मार्गदर्शक तत्वों संबंधित पत्रिका
2. VDMA की इंडस्ट्री 4.0 संबंधि विचार मंच की वेबसाईट (industrie40.vdma.org)
 
हृषीकेश बर्वे आइ.आइ.टी. मुंबई से इंस्ट्रुमेन्टेशन, सिस्टम एवं कंट्रोल में एम. टेक. कर चुके हैं।
आपको कंट्रोल सिस्टम, ऑटोमेशन, मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम तथा ऊर्जा व्यवस्थापन जैसे क्षेत्रों संबंधि अनुसंधान एवं निर्माण में 12 सालों का अनुभव है।
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