इलेक्ट्रिक वाहन : समय की जरूरत

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    21-जून-2021   
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वायुमंड़ल का प्रदूषण और ईंधन पर होने वाला अत्यधिक खर्चा इन वैश्विक समस्याओं में, यातायात के साधनों का बड़ा हिस्सा है। इस संदर्भ में इलेक्ट्रिक वाहन आज आवश्यक बन गए हैं। भारत में किए जाने वाले प्रयास और उत्पादन क्षेत्र पर हो सकने वाले उनके परिणामों के बारे में इस लेख में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

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समस्त विश्व में मुख्य प्रदूषित शहरों में से 16 शहर हमारे भारत में हैं। दिल्ली जैसे शहरों में इतना अधिक प्रदूषण है कि आपको सामने की चीज तक नजर नहीं आती, इतनी भयावह स्थिति है। प्रदूषण की समस्या कम करने के लिए दुनिया में विभिन्न स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। इस समस्या पर सर्वकालीन योजनाओं को लागू करने वाले वैश्विक 'पैरिस समझौते' पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के अनुसार 2030 तक प्रत्येक देश ने अपने क्षेत्र में बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होने वाली कर्ब (कार्बन) गैस को घटाना अपेक्षित है। इसके लिए प्रदूषण फैलाने वाले घटक कम करना जरूरी है। प्रदूषण में यातायात और परिवहन साधनों का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए पिछले दशक से सरकार बिजली पर चलने वाले वाहनों को (इलेक्ट्रिक वीइकल, EV) प्रोत्साहित कर रही है। अधिकतर देशों में वाहन के लिए ईंधन बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है। हमारे देश में वाहनों में उपयोग होने वाले कुल ईंधन में से 82% तेल आयात किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्र ने ईंधन के लिए अन्य देशों पर अपनी निर्भरता कम करना ही वैश्विक महासत्ता बनने का सबसे अहम् मानदंड़ है। अमरीका, चीन, रशिया से भारत तक सभी राष्ट्र उसी के लिए प्रयास कर रहे हैं, इसी लिए सभी, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण पर जोर दे रहे हैं।
 
पूरक सरकारी नीतियां
आज के दौर में हम अपने आसपास बिजली पर चलने वाले (इलेक्ट्रिक) दुपहिया वाहन तथा बस आदि यातायात के साधन बढ़ते हुए देख रहे हैं, क्योंकि सरकारी स्तर पर इन साधनों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। इलेक्ट्रिक गाड़ियां और उसके लिए आवश्यक तकनीक भारत में ही विकसित हो इसलिए सरकार इन वाहनों का और पुर्जों का निर्माण करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहित कर रही है। जो निर्माता पारंपरिक वाहनों के यानि IC इंजन के भाग बनाते हैं उन्हें भी सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों के भाग निर्माण करने का अनुरोध कर रही है। सरकार ने इसके लिए 2015 में फास्टर अैडॉप्शन अैंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक वीइकल अर्थात 'फेम इंडिया' योजना शुरू की। इसके पहले 2013 में सरकार ने नैशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी योजना प्रस्तुत की थी। इस योजना के पहले चरण में सरकार ने 800 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया था। तकनीक का विकास, इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वालों को बढ़ावा, चार्जिंग स्टेशन, पाइलट प्रोजेक्ट आदि के लिए इस निधि का उपयोग किया जाना था। इस चरण 1 में ग्राहकों ने इन वाहनों का अनुभव लिया और सरकार ने भी कुछ अनुमान लगाए। सभी मुद्दों पर गौर करने के बाद सरकार ने फेम इंडिया योजना के चरण 2 के अंतर्गत, अप्रैल 2019 में 10 हजार करोड़ का प्रावधान किया है। इसमें सरकार ने 7000 इलेक्ट्रिक बस, 10 लाख दुपहिया वाहन, 5 लाख तीपहिया वाहन और 50 हजार चौपहिया वाहन खरीदी के लिए प्रोत्साहन देने का तय किया है।

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महिंद्रा, टाटा, बजाज, टीवीएस, हुंडाई, एमजी जैसी विभिन्न कंपनियों ने बाजार में अपने इलेट्रिक वाहन प्रस्तुत किए हैं। इन वाहनों के निर्माण के साथ उसके लिए आवश्यक तकनीक भी हमारे यहाँ तैयार हो इस पर, 'फेम' योजना के अंतर्गत सरकार जोर दे रही है। इलेक्ट्रिक वाहनों में मुख्यतः मोटर, बैटरी, चार्जर, AC-DC कन्वर्टर भाग होते हैं। प्रत्येक भाग के अनुसार सरकार ने समय सीमा दी है। मानिए कि शुरुआत में कोई भाग आयात किया हो, तो उसे कितने समय तक आयात किया जा सकता है इस पर सरकार ने निश्चित सीमा ड़ाली है। इस निश्चित समय में उन हिस्सों का निर्माण भारत में होना ही चाहिए इसके लिए भी सरकार ने नियम बनाए हैं। इन नियमों का पालन करने पर ही उसका इन्सेंटिव कारखानेदार को मिलता है।
 
प्रचलित IC इंजन और EV
1910 के आसपास जब IC इंजन की खोज भी नहीं हुई थी तब तैयार होने वाली चौपहिया गाडियां बिजली के मोटर पर ही चलाई जाती थी। लेकिन उस समय में उपलब्ध तकनीक के अनुसार जो बैटरी इस्तेमाल होती थी वो वजन में बहुत भारी थी। 500 किमी. अंतर पार करने के लिए जो बैटरी इस्तेमाल होती थी उसकी तुलना हाथी को गाड़ी में बिठा कर ले जाने से की जा सकती है। लेकिन 35 लीटर की पेट्रोल की टंकी में 500 किमी. दूरी आसानी से पार करने वाले IC इंजन तकनीक का पता चला और सभी स्वचालित वाहन पेट्रोल, डिजल जैसे जैविक ईंधन पर चलने लगे। समय के साथ और तकनीक के अनुसार उसमें बदलाव होते गए। हर वाहन में तकनीक का अद्यतनीकरण होता रहा।

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IC इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर की तुलना
प्रचलित वाहन और EV के बीच का मूलभूत फर्क देखें तो प्रचलित वाहनों में IC इंजन और पॉवरट्रेन की जगह इलेक्ट्रिक मोटर ने ले ली है। गाड़ी में फ्यूल पाइप से साइलेन्सर तक पुर्जों की पूरी शृंखला लुप्त हो गई। मोटर के लिए जरूरी ऊर्जा बैटरी से ली जाती है। EV में क्लच न होने के कारण क्लच से संबंधित सारे पुर्जे हट गए, उसके साथ गियरबॉक्स न होने के कारण उसमें से भी लगभग 100 पुर्जे कम हुए। आम तौर पर प्रचलित वाहन के 40% पुर्जे ही EV में होते हैं। लेकिन EV में मौजूद बैटरी के अतिरिक्त वजन के कारण गाड़ी की संरचना तथा अन्य ट्रान्स्मिशन संबंधित हिस्सों में जरूरी बदलाव किए जाते हैं।

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IC इंजन पर चलित वाहन की रचना
 
 
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इलेक्ट्रिक मोटर पर चलित वाहन की रचना
इलेक्ट्रिक वाहन के ड्राइव मोड और स्पोर्ट मोड ये दो प्रकार उपलब्ध हैं। हर प्रकार में उपयोग के अनुसार पैरामीटर के सेट तय किए जाते हैं, ताकि उस प्रकार (मोड) में गाड़ी इस्तेमाल करते समय चालक को सुविधा हो। ड्राइव मोड का मुख्य उद्देश्य होता है बैटरी की उपलब्ध क्षमता में अधिकतम दूरी पार करना। जब चालक को गाड़ी के इंजन से अधिकतम कार्यक्षमता की अपेक्षा होती है तब ऐसी गाड़ियों के लिए स्पोर्ट मोड उचित माना जाता है।
प्रचलित गाड़ियों में गाड़ी के चलते तैयार होने वाली यांत्रिकी ऊर्जा का इस्तेमाल कर के अल्टरनेटर या मैग्नेटो (दुपहिया वाहन के लिए) का उपयोग कर के गाड़ी में मौजूद 6 अथवा 12 वोल्ट की बैटरी रीचार्ज की जाती है। EV में ये काम DCDC कन्वर्टर से किया जाता है। मुख्य बैटरी के हाइ वोल्टेज का रूपांतर DCDC कन्वर्टर द्वारा लो वोल्टेज में किया जाता है, जिसे 12 वोल्ट बैटरी को दिया जाता है।
EV में रीजनरेटिंग ब्रेकिंग संकल्पना का इस्तेमाल होता है। इस संकल्पना में, जब गाड़ी का ब्रेक दबाया जाता है तब बेकार होने वाली काइनेटिक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। इसमें गाड़ी जब शुरू हो तब बैटरी से मोटर की ओर बिजली का प्रवाह बहता है। जब आप ब्रेक दबाते हैं तब विपरित प्रक्रिया होती है और मोटर से बैटरी की ओर करंट बहता है। इससे कुछ मात्रा में रीचार्जिंग होता है।
दूरी, चार्जिंग और गाड़ी की शुरुआती कीमत, इन 2-3 मुश्किलों को छोड़ें तो निश्चित रूप से धीरे धीरे लोग इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के बारे में सोचेंगे, इसके लिए कुछ समय तो देना होगा।
EV की बैटरी
EV को ऊर्जा देने वाली बैटरी उस प्रणाली का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग तो है ही, साथ में गाड़ियों की कीमत अधिक होने का कारण भी है। थोड़ी तुलना करें तो वर्तमान गाड़ी में मौजूद बैटरी 6 से 12 वोल्ट की होती है, वहीं EV में 100 से 400 वोल्ट की होती है। इसलिए इलेक्ट्रिक वाहन खरीदते समय लोगों के मन में गाड़ी की बैटरी की क्षमता के बारे में कई प्रश्न होते हैं। जैसे, क्या कंपनी के कहने के अनुसार वास्तव में वाहन उतनी दूरी तय करता है? क्या बैटरी के लिए फास्ट चार्जिंग सुविधा उपलब्ध है? क्या बैटरी का चार्जिंग समाप्त होने पर उसे तुरंत बदल देते हैं? क्या चार्जिंग स्थानक उपलब्ध हैं? आदि।
 

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EV में ऊर्जाहस्तांतरण का संकल्पना चित्र
बैटरी का वजन और मटीरीयल
फिलहाल लिथियम आयरन की बैटरी इस्तेमाल होती है। अब उसमें लिथियम सल्फर, लिथियम फॉस्फेट, लिथियम फॉस्फरस जैसी तकनीक कितनी कार्यक्षम सिद्ध हो सकती है इसका परीक्षण शुरू है। बैटरी की कार्यक्षमता उसके वजन और उससे निर्माण होने वाली शक्ति के अनुपात पर तय की जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार 2025 में EV की कीमतें, प्रचलित IC वाहन जितनी होगी। बैटरी में लिथियम 100% आयात किया जाने वाला घटक है। इसलिए बैटरी का 100% निर्माण हमारे यहाँ शुरू नहीं हुआ है। बैटरी की असेंब्ली भारत में की जाती है। लिथियम बैटरी में प्रमुख घटक यानि उसके सेल। इस सेल का पैकेज कर के बैटरी मॉड्यूल तैयार होते हैं। कई मॉड्यूल एकत्रित कर के बैटरी का सेट तैयार होता है। बैटरी के सारे सेल आयात किए जाते हैं। कुछ कंपनियों ने ये सेल भारत में निर्माण करने का ऐलान किया है। उन बैटरियों के लिए प्रबंधन प्रणाली आवश्यक होती है। उसकी लगातार निगरानी (सेल का तापमान, उसकी वोल्टेज लेवल) करनी पड़ती है। जब आम लोगों के लिए कीमते किफायती होगी तब रेंज यानि तय की जाने वाली दूरी का मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं रहेगा। उस समय ग्राहक EV खरीदने पर जोर देंगे क्योंकि ईंधन की प्रति किलोमीटर लागत इस पैरामीटर पर EV किफायती माना जाता है। जैसे, फिलहाल प्रति चार्जिंग दूरी और उसकी लागत के बारे में सोचे तो EV के लिए यह 1 रुपया प्रति किमी. आती है, जो प्रचलित वाहन के लिए 4 से 5 रुपये तक होती है।
बैटरी की क्षमता और रीचार्जिंग
EV में तकलीफ देने वाला सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यानि एक बार चार्जिंग करने के बाद गाड़ी कितने किलोमीटर तक चलेगी और क्या चार्जिंग समाप्त होने से पहले उस बैटरी को रीचार्जिंग करने की सुविधा होगी? इस पर विचार करें तो जिस प्रकार जैविक ईंधन पर चलने वाली गाड़ियां कहीं भी ईंधन भर कर आगे की यात्रा के लिए बढ़ जाती हैं, वहीं सुविधा बैटरी चार्जिंग के लिए फिलहाल उपलब्ध नहीं है। सरकार हर जगह चार्जिंग स्थानक शुरू करने का प्रयास कर रही है। सरकार ने इसके लिए नियोजन किया है। इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए हर 25 किमी. की दूरी पर चार्जिंग स्थान तैयार किए जाएंगे। 2026 तक पूरे भारत में 4 लाख DC चार्जर बनाने का नियोजन है। इसके साथ वाहन उत्पादकों के लिए भी बैटरी चार्जिंग हेतु मानकीकरण करना आवश्यक है। यानि सभी गाड़ियों की बैटरियां उपलब्ध चार्जिंग स्टेशन पर रीचार्ज करना संभव होना चाहिए, जो अभी नहीं हो रहा है। प्रत्येक उत्पादक की चार्जिंग प्रणाली भिन्न है। भारत में मुख्य रूप से कंबाइन्ड चार्जिंग सिस्टम (CCS) का इस्तेमाल होता है। चूंकि AC एवं DC चार्जिंग में फर्क होता है, ग्राहक DC चार्जिंग व्यवस्था अपने घर नहीं बना सकता। इसलिए DC चार्जर उसके काम के नहीं हैं। संक्षेप में कहे तो इस रीचार्जिंग प्रबंधन की पूरी इकोसिस्टम विकसित होना आवश्यक है। इस इकोसिस्टम में, जिस मात्रा में चार्जिंग की जरूरत बढ़ने वाली है, उस मात्रा में बिजली उपलब्ध करवाना भारत जैसे विकसनशील देश में बड़ी चुनौती है।
इसके लिए बैटरी स्वैपिंग के विकल्प पर तेजी से सोचा जा रहा है, यानि जिस प्रकार हम पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरते हैं वैसे ही चार्जिंग स्टेशन पर जा कर पुरानी बैटरी दे कर दूसरी पूरी चार्ज्ड बैटरी गाड़ी में लगाना। फिलहाल युरोपीय देशों मे इसकी शुरुआत हो चुकी है।
उत्पादन क्षेत्र पर होने वाला परिणाम
EV में अधिकतर पुर्जे महंगे होते हैं और आयात किए जाते हैं। इन पुर्जों का भारत में निर्माण करने का अवसर भारतीय उद्योजकों के सामने है। EV के बैटरी जैसे भागों के पुन: उपयोग की तकनीक विकसित होगी वैसे ही इस क्षेत्र में उद्योग के अवसर तैयार होगे। इसके लिए आवश्यक तकनीक वाहन उद्योग को विकसित करना होगा। इसके लिए विभिन्न साधनों की आवश्यकता होगी, उन पर अन्वेषण करना होगा, कुशल श्रमशक्ति निर्माण करनी होगी, आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) विकसित करनी होगी। वाहन उद्योग के लिए ये चुनौती होगी।
डीलर को भी इसके मुताबिक प्रशिक्षित करना होगा। कुशल श्रमशक्ति का निर्माण एक बड़ा काम है। इस हेतु हम विभिन्न स्तर पर प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं। भारत जैसे देश में अगले दो दशकों तक IC इंजन और EV दोनों साथ साथ चलेंगे। जैसे जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभ मालूम होते जाएंगे, बैटरी की कीमतें कम होगी, उसकी तकनीक में बदलाव होंगे, इलेक्ट्रिक वाहनों की पसंद बढ़ेगी।
हमारे यहाँ पिछले साल भर में इलेक्ट्रिक वाहन खरीद के लिए ग्राहकों की मांग बढ़ रही है। विशेष रूप से हमने जब से नेक्सॉन EV प्रस्तुत की तब से हर महिने लगातार यह हो रहा है। मार्च तक यानि एक साल में नेक्सॉन EV गाड़ियों बिक्री में हर मास लगातार बढ़त हुई है। नेक्सॉन EV की लोकप्रियता और बाजार में बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए टाटा मोटर्स ने उत्पादन क्षमता भी बढ़ाई है। बाजार में, धीरे धीरे ही सही, गाड़ियों की मांग निश्चित तौर पर बढ़ रही है। टाटा मोटर्स भविष्य में ऐसे ही इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण और उससे संबंधित इकोसिस्टम का विकास करने वाली है।
ये तो तय है कि वाहन उद्योग में होने वाले इन क्रांतिकारी परिवर्तनों के कारण, बड़े से लघु उद्योगों को अपनी उत्पादन प्रणाली में और व्यवसायिक नीति में भी जरूरी बदलाव करने होंगे। तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में भी, इस तकनीक को आत्मसात कर के कुशल तकनीशियन और अभियंता तैयार करने की चुनौती होगी। जिस प्रकार आज तक हमने कई परिवर्तन देखे और अपनाए, उसी प्रकार कुछ समय में ये बदलाव भी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होंगे।
 

भगवान भोसले यांत्रिकी अभियंता हैं।
आप टाटा मोटर्स लि. में डेप्युटी जनरल मैनेजर हैं।
आपको वाहन निर्माण का 20 वर्षों का अनुभव है।
पिछले 2 वर्षों से आप नेक्सॉन EV निर्माण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
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