पोजिशन कॉम्पेन्सेशन

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    25-जून-2021   
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सी.एन.सी. प्रोग्रैमिंग में विभिन्न संदर्भ बिंदुओं (रेफरन्स पॉइंट) के बीच का संबंध, पहले सेट किए आंकडो के अनुसार दर्शाया जाता है। मशीन पर कार्यवस्तु का प्रोग्रैमिंग करते समय अधिकतर मापों की अचूक जानकारी होती है, कुछ माप अंदाजन पता होते हैं, तो कुछ मापों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। कुछ ज्ञात माप भी कार्यवस्तु में होने वाले फर्क के अनुसार बदलते हैं, जैसे कास्टिंग। इससे प्रोग्रैमर को प्रोग्रैम करना मुश्किल होता है। यह दिक्कत कम करने के लिए नियंत्रक में सुधारात्मक (करेक्टिव) सुविधा होना जरूरी होता है, जिससे मशीन अचूक पद्धति से और प्रभावशाली रूप में सेट की जा सके। वर्तमान प्रगत नियंत्रक इन सुविधाओं से युक्त होते हैं। इसमें मुख्य रूप से इन सुधारात्मक सुविधाओं का समावेश रहता है।
1. कई कोऑर्डिनेट सिस्टम (जैसे कार्टेशियन, पोलर)
2. ऑफसेट
3. कॉम्पेन्सेशन
इन्हें सपोर्ट टूल भी कहा जाता है। इनका उपयोग सुधार के काम में किया जाता है।
प्रोग्रैमिंग में इस्तेमाल होने वाली पुरानी तकनीक को पोजिशन कॉम्पेन्सेशन कहा जाता है। इसके नाम के अनुसार, इसमें प्रत्यक्ष टूल पोजिशन और सैद्धांतिक या ग्राह्य टूल पोजिशन के बीच का फर्क सुधार कर टूल का स्थान अचूक किया जाता है। मौजूदा अति प्रगत सी.एन.सी. सिस्टम में भी यह पद्धति उपलब्ध है।
पोजिशन कॉम्पेन्सेशन का कार्य
पोजिशन कॉम्पेन्सेशन का प्रमुख कार्य है मशीन जीरो और प्रोग्रैम जीरो के बीच के फर्क में सुधार करना। जहाँ 2 संदर्भ बिंदुओं के बीच की दूरी बदलती रहती है या जब इस दूरी का पता नहीं होता, तब प्रत्यक्ष काम में इसका इस्तेमाल किया जाता है। पोजिशन कॉम्पेन्सेशन के इस्तेमाल से प्रोग्रैम में हमेशा बदलाव करना, फिक्श्चर सेटअप रीअलाइन करना आदि काम बचते हैं।
जैसे, कास्टिंग में कार्यवस्तु बनाने के लिए प्रोगैम करते समय, प्रोग्रैम जीरो कास्टिंग के साथ बदलता रहता है, क्योंकि पहले कास्टिंग से प्रोग्रैम जीरो लिया जाता है। हर कास्टिंग में होने वाले फर्क के कारण, प्रोग्रैम जीरो उसके अनुसार बदलना पड़ता है। आम तौर पर पुर्जा टेबल पर फिक्श्चर में बिठाया जाता है और पूरा सेटअप कॉम्पेन्सेट किया जाता है। इसलिए इसे पोजिशन कॉम्पेन्सेशन फिक्श्चर ऑफसेट या टेबल ऑफसेट भी कहा जाता है।
प्रोग्रैमिंग कमांड
इस काम के लिए फानुक या अन्य फानुक जैसे नियंत्रक में आगे दिए चार G कमांड उपलब्ध हैं।

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तालिका क्र. 1
• यह परिभाषाएं + ve कॉम्पेन्सेशन मूल्य पर आधारित हैं।
• उपरोक्त में से कोई भी कमांड मोडल नहीं है।
• ये कमांड दिए गए ब्लॉक तक कार्यान्वित रहते हैं।
• अधिक ब्लॉक में इनकी जरूरत हो तब हर ब्लॉक में उन्हें लिखना पड़ता है।

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चित्र क्र. 1 : संकल्पना - पोजिशन कॉम्पेन्सेशन
प्रोग्रैम फॉर्मेट
G91 G00 G45 X H G91 - इन्क्रिमेंटल
अथवा
G91 G00 G45 X D G00 - रैपिड
हर G कोड (G45 से G48) युनिक पोजिशन कॉम्पेन्सेशन नंबर से जोड़ा होता है। इसके लिए H अक्षर का उपयोग किया जाता है। कुछ फानुक नियंत्रकों में D अक्षर का उपयोग किया जाता है। पोजिशन कॉम्पेन्सेशन का प्रमुख काम मशीन जीरो और प्रोग्रैम जीरो के अंतर (चित्र क्र. 1) में सुधार कर के उसे ठीक करना है। साधारण इस्तेमाल में, मशीन जीरो पोजिशन से टूल का संचलन शुरू करने के समय किया जाता है।
N1 G20
N2 G17 G80 T01
N3 M06
N4 G90 G00 G45 X0 H31 (X अक्ष में संचलन नहीं)
N5 G45 Y0 H32 (Y अक्ष में संचलन नहीं)
N6
इस मिसाल में मशीन जीरो से (मौजूदा टूल पोजिशन) प्रोग्रैम जीरो तक (टार्गेट पॉइंट) गति दर्शाई है।
ब्लॉक N4 में G90 अैब्सोल्यूट मोड सेट किया है। मान लिजिए कि नियंत्रक प्रणाली H31 पर सेट की है। नियंत्रक में ब्लॉक पढ़ा जाएगा और G90 अैब्सोल्यूट मोड पर जा कर मौजूदा स्थिति जांचेगा। अैब्सोल्यूट जीरो पर होने के कारण नियंत्रक बिल्कुल सक्रिय नहीं होगा। इसमें कोई भी संचलन नहीं होगा। अगर G90 को बदल कर G91 (इन्क्रिमेंटल मोड) ड़ाले तो संचलन होगा (X अक्ष -ve दिशा में)। इसी प्रकार की गति Y अक्ष पर होगी। सारांश में, पोजिशन कॉम्पेन्सेशन कमांड सिर्फ G91 इन्क्रिमेंटल मोड में इस्तेमाल करे।
संचलन की लंबाई का मापन (मोशन लेंग्थ कैलक्युलेशन)
हमने देखा कि G45 कमांड द्वारा सिंगल इन्क्रीज प्रोग्रैम किया जा सकता है। G46 से सिंगल डिक्रीज प्रोग्रैम कर सकते है। हर कमांड, विशिष्ट अक्ष और एक युनिक H अैड्रेस से जुड़ी होती है। अब हम H अैड्रेस के लिए उपलब्ध कॉम्बिनेशन देखते हैं।
• इन्क्रीज या डिक्रीज G45 या G46 के उपयोग से प्रोग्रैम किया जा सकता है।
• अैक्सिस टार्गेट को जीरो मूल्य, +ve या -ve मूल्य
• कॉम्पेन्सेशन मूल्य जीरो, +ve या -ve हो सकता है।
प्रोगैमिंग करते समय कुछ निश्चित स्टैंडर्ड बना कर उसके अनुसार काम करना लाभदायक होता है। जैसे, वर्टिकल मशीनिंग सेंटर में मशीन जीरो से प्रोग्रैम जीरो तक कॉम्पेन्सेशन गिना जाता है। अर्थात ऑपरेटर की दृष्टि से दिशा -ve होती है। इसका अर्थ है -ve कॉम्पेन्सेशन मूल्य स्टैंडर्ड करना होगा।
नियंत्रक द्वारा ब्लॉक की जानकारी किस पद्धति से पढ़ी जाती है और वह किस तरह काम करता है, यह जानना भी आवश्यक होता है। पोजिशन कॉम्पेन्सेशन में H अैड्रेस के नीचे मेमरी में सेव किए गए मूल्यों का उपयोग किया जाता है। अगर मूल्य शून्य हो, तो कॉम्पेन्सेशन नहीं होता। अगर H मूल्य -ve हो, तो अक्ष का टार्गेट पॉइंट मूल्य में जोड़ा जाता है। इसके अनुसार संचलन और दिशा तय किए जाते हैं।
मिसाल के तौर पर, मान लिजिए कि मेमरी रजिस्टर H31 में -100 मिमी. (-ve) मूल्य सेव किया हुआ है, मशीन का वर्तमान लोकेशन जीरो पोजिशन पर है और नियंत्रक पर अक्ष की सेटिंग जीरो पर सेट की है। तब ब्लॉक
G91 G00 G45 X0 H31 को इस तरह से पढ़ा जाएगा,
-100.0 + 0 = -100.00
फलस्वरूप X अक्ष पर कुल संचलन -100 मिमी. होगा।
अगर X का मूल्य शून्य न हो कर अन्य हो, तो...
मिसाल के तौर पर, G91 G00 G45 X10.0 H31 ब्लॉक को
-100 +10 = -90.00 इस तरह से पढ़ा जाएगा।
अब अगली मिसाल देखिए।
G91 G00 G45 X-10 H31
इस ब्लॉक में संचलन +ve X दिशा में जाएगा और फलस्वरूप X अक्ष में ओवर ट्रैवल होगा। यानि X का मूल्य -ve होने के कारण G45 कमांड इस्तेमाल नहीं होगी बल्कि G46 कमांड इस्तेमाल करनी होगी।
G91 G00 G46 X-10 H31 इसका मतलब (इंटरप्रिटेशन) -100.0 + (-10) = -100.00 + -10 = -110 इस प्रकार लगाया जाएगा।
मिसाल
जीरो, +ve और -ve टार्गेट लोकेशन पर पाए गए पोजिशन कॉम्पेन्सेशन मूल्य
H 98 = -250.00
H99 = -150.00
 

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चित्र क्र. 2 : पोजिशन कॉम्पेन्सेशन
प्रोग्रैम
02201 (G45 और G46 टेस्ट)
N1 G21 G17
N2 G92 X0 Y0 Z0
N3 G90 G00 G45 X0 H98 (अैब्सोल्यूट X0 टार्गेट)
N4 G46 Y0 H99 (अैब्सोल्यूट Y0 टार्गेट)
N5 G28 X0 Y0 रिटर्न X0 Y0
N6 G91 G00 G45 X0 H98 (इन्क्रिमेंटल X0 टार्गेट)
N7 G46 Y0 H99 (इन्क्रिमेंटल Y0 टार्गेट)
N8 G28 X0 Y0
N9 G90 G00 G45 X9.0 H98 (अैब्सोल्यूट X +ve टार्गेट)
N10 G46 Y17.0 H99 (अैब्सोल्यूट Y +ve टार्गेट)
N11 G28 X0 Y0
N12 G91 G00 G45 X9.0 H98 (इन्क्रिमेंटल X +ve टार्गेट)
N13 G46 Y17.0 H99 (इन्क्रिमेंटल Y +ve टार्गेट)
N14 G28 X0 Y0
N15 G90 G00 G45 X-15.0 H98 (अैब्सोल्यूट X -ve टार्गेट)
N16 G46 Y-13.0 H99 (अैब्सोल्यूट Y -ve टार्गेट)
N17 G28 X0 Y0
N18 G91 G00 G45 X-15.0 H98 (इन्क्रिमेंटल X -ve टार्गेट)
N19 G46 Y-13.0 H99 (इन्क्रिमेंटल Y -ve टार्गेट)
N20 G28 X0 Y0
N21 M30
%
नियंत्रक किस तरह उपरोक्त प्रोग्रैम पर अमल करता है, यह तालिका क्र. 2 में दर्शाया गया है।

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तालिका क्र. 2
कमांड G45 और G46 का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। G45 सिंगल इन्क्रीज तो G46 सिंगल डिक्रीज है।
G47 डबल इन्क्रीज और G48 डबल डिक्रीज का इस्तेमाल बेहद कम किया जाता है। सुविधाजनक कटर त्रिज्या ऑफसेट वाले स्थान पर कभी कभी इनका उपयोग किया जाता है। इसलिए इनकी जानकारी नहीं दी गई हैं।
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