चूड़ी (थ्रेड) विषयक कुछ महत्वपूर्ण बातें – 1

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    14-जुलाई-2021   
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अधिकांश पुर्जों पर आम तौर देखे जाने वाले चूड़ी यानि थ्रेड की ओर गंभीरता से देखने की जरूरत इस लेख में बताई गई है। चूड़ी के प्रकार, चूड़ी बनाते समय ध्यान में रखने के विविध घटक, कार्यपद्धति की बारीकियां आदि का विवरण इस लेख में दिया गया है। खास कर के सी.एन.सी. मशीन के उपयोग से चूड़ी बनाते समय यह जानकारी उपयुक्त होगी।
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बचपन में इस बात से मुझे बेहद आश्चर्य होता था कि जैक जैसे छोटे साधन से पूरी बस उठाई जा सकती है। बड़ा होने पर मुझे इस चमत्कार का भेद पता चला कि जैक में विशेष प्रकार की चूड़ी (थ्रेड) होती है। आगे चल कर इंजीनीयरिंग कॉलेज जाने के बाद मैंने चूड़ी और उसके डिजाइन का विशेष अध्ययन किया। मेरे व्यवसायिक जीवन में इस और अन्य प्रकार की चूड़ी पर कई बार काम किया।
 
 
मुझे अलग अलग मशीन पर विभिन्न कार्यपद्धति के इस्तेमाल से कई प्रकार, आकार तथा शैलियों के पुर्जों के निर्माण का अनुभव है। इस अनुभव से मैंने सीखा है कि पुर्जे में होने वाले चूड़ी, इस बेहद छोटे लेकिन महत्वपूर्ण भाग को बड़ी ही गंभीरता से लेना चाहिए।
 
 
कई वर्षों के अभियांत्रिकी अनुभवों में, चूड़ी का सामना करते वक्त मैंने सीखी कुछ बातों को इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहूंगा। किंतु ध्यान में रखें कि चूड़ी के जगत की ये केवल एक झलक है, वास्तव में इससे अधिक जानकारी है। मैंने इस लेख में सिर्फ टर्निंग द्वारा और खास कर के सी.एन.सी. मशीन के इस्तेमाल से किए चूड़ी की कटिंग के बारे में जानकारी दी हैं।
जो पाठक उद्योग क्षेत्र में छोटे बड़े प्रकल्पों पर काम करते हैं, जॉब वर्क करने वाले वर्कशॉप चलाते हैं या भारी अभियांत्रिकी, कार्यपद्धति का आयोजन, मशीन का चयन, नए टूल एवं गेज का डिजाइन, नए उत्पादों के निर्माण के प्रोग्रैम तैयार करना आदि काम करते हैं उन्हें यह लेख जरूर पसंद आएगा। अन्य पाठकों को भी इससे लाभ होगा।
 
 
चूड़ी के यंत्रण की तैयारी
जब आपके पास नए पुर्जों के यंत्रचित्र अध्ययन के लिए आते हैं, तब उनमें चूड़ी बनाने के काम से संबंधित आगे बताई गई बातों को जांचे।
 
 
1. चूड़ी के प्रकार : अंतर्गत/बाह्य
• फुल (संपूर्ण) फॉर्म/पार्शल (आंशिक) फॉर्म (चित्र क्र.1)
 
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चित्र क्र.1
मेरे अनुभव में अधिकतर पुर्जों में बाह्य मेट्रिक चूड़ी के लिए 6g फिट और अंतर्गत मेट्रिक चूड़ी के लिए 6H फिट इस्तेमाल किया गया था। फिर भी आम फिट के अलावा किसी विशेष (प्रिसिजन) फिट की जरूरत हो, तो उसके लिए अलग प्रकार की मशीन, गेज और जांच के उपकरण इस्तेमाल करने पड़ते हैं।
• चूड़ी की विशेषताएं (स्पेसिफिकेशन)
(मेट्रिक/ बीएसडब्ल्यू/ चौकोर/ट्रैपेजोइडल आदि)
• मापन के यूनिट : मेट्रिक/इंच
• सिंगल स्टार्ट : मल्टी स्टार्ट
• फाइन/कोर्स
• विभिन्न उप प्रकार : विशेष रूप से पाइप की चूड़ी में
(स्टैंडर्ड/फाइन/टेपर/इलेक्ट्रिकल आदि)
• आवश्यक विशेष निर्माण प्रक्रिया : जैसे रोल की गई चूड़ी, ग्राइंड की गई चूड़ी आदि
• नॉन स्टैंडर्ड विशेष पिच
• कार्यवस्तु का कठोर किया हुआ पृष्ठ लेकिन नरम चूड़ी
• जोड़ी की कार्यवस्तु से मेल रखने वाली चूड़ी बनाना
• किसी अन्य प्रक्रिया का उपयोग किया जाना जैसे, विशेष प्लेटिंग की गई चूड़ी या कार्यस्थल पर ही अंतिम यंत्रण कर के (फिनिश मशीन्ड) बनाई जाने वाली चूड़ी
 
 
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एक कार्यवस्तु पर हमें ऐसी चूड़ी बनानी थी जो दूसरे कार्यवस्तु में बैठ सके। अभियांत्रिकी विभाग से ड्रॉइंग पाने के बाद उसके अनुसार काम करना, ये नियमित पद्धति है। जब हमने ड्रॉइंग में दी हुई चूड़ी के पिच और यह पुर्जा जिसमें बिठाया जाने वाला था उस भाग के पिच को जांचा, तब पता चला कि उनमें फर्क है। फिर उस ड्रॉइंग को सही किया गया और काम अचूक हुआ। इससे संभावित नुकसान टाला गया। इसमें ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि 'किसी भी बात की पूर्वधारणा न रखें'। डिजाइनर से विस्तृत चर्चा करें। कभी कभी चित्र के रेखांकन में छोटी गलती हो सकती है। हो सकता है कि आरेखनकार को, उत्पादन की समस्या/टूलिंग या गेज की आवश्यकताएं अथवा विशेष प्रक्रिया के बारे में पता ही न हो। कभी कभी वास्तविक आवश्यकताएं कम या अधिक कठोर भी हो सकती हैं।
 
 
 
2. कार्यवस्तु का वजन, आकार और चूड़ी का कार्यवस्तु पर स्थान
मशीन और प्रक्रिया का चयन करते समय इसकी मदद होती है। जैसे, किसी बहुत बड़ी कार्यवस्तु पर अंतर्गत चूड़ी बनानी हो, तो यह काम बड़े लेथ पर वह कार्यवस्तु आड़ी पकड़ने के बजाय वर्टिकल टरेट लेथ या वर्टिकल मशीनिंग सेंटर पर अधिक आसानी से किया जा सकता है। ऐसे काम में अगर चूड़ी की लंबाई अधिक हो, तो वर्टिकल मशीनिंग सेंटर पर थ्रेड मिलिंग करने के बजाय वर्टिकल टरेट लेथ पर टर्निंग करना अधिक आसान होगा। अगर चूड़ी के आकार की तुलना में कार्यवस्तु अधिक बड़ी हो, तो चूड़ी का टर्निंग करते समय हम कार्यवस्तु शायद जरूरी गति से नहीं घुमा सकते। ऐसी स्थिति में थ्रेड मिलिंग का विचार करें।
 
 
3. कार्यवस्तु के आयाम
कभी कभी ऐसा भी अनुभव आता है कि कार्यवस्तु पकड़ते समय, न्यूनतम अरीय बल (रेडियल फोर्स) से क्लैंपिंग कर के अंतर्गत चूड़ी बनाई हो, तो भी कार्यवस्तु मशीन से बाहर निकालने पर उसका आकार अंड़े जैसा (ओवल) (चित्र क्र. 2) या पंखुड़ी समान (लोब) (चित्र क्र. 3) होता है।
 
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चित्र क्र. 2
 
 
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चित्र क्र. 3
 
 
बाद में, विलग स्थिति में मेल और फीमेल चूड़ी का एक दूसरे से मेल नहीं होता। ऐसी स्थिति में हमें एक विशेष फिक्श्चर प्लेट के उपयोग से, बॉटम या टॉप क्लैंपिंग कर के चूड़ी का अंतिम यंत्रण करने के विकल्प के बारे में सोचना पड़ता है। (चित्र क्र. 4 और 5) विशेष रूप से ब्रास या ब्राँज जैसे अलोह (नॉन फेरस) धातु की कार्यवस्तु में या लोहे की पतली कार्यवस्तु में यह अनुभव कई बार आता है।
 
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चित्र क्र. 4 : कार्यवस्तु का फिक्श्चर पर फेस क्लैंपिंग
 
 
 
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चित्र क्र. 5 : थ्रेड करने हेतु कार्यवस्तु का उपर से किया गया क्लैंपिंग
 
इन दोनों प्रकार के क्लैंपिंग में उसका वृत्ताकार बिगाड़ने वाला कोई भी अरीय बल कार्यवस्तु पर नहीं होता। फिर भी इस तरीके से चूड़ी बनाते समय, कर्तन के पैरामीटर में थोड़ा समायोजन करना पड़ सकता है।
 
 
4. चूड़ी की शुरुआत में पर्याप्त चैंफर और चूड़ी के अंत में रिलीफ (चित्र क्र. 6)
 

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चित्र क्र. 6
 
 
चूड़ी बनाने वाले टूल से कर्तन करते समय उस पर पड़ने वाला भार धीरे धीरे बढ़े और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि चूड़ी का शुरुआती हिस्सा महीन हो कर झुके नहीं तथा चूड़ी का इस्तेमाल करते समय दिक्कत ना हो इसलिए आरंभ में चैंफर दिया जाता है।
पर्याप्त चैंफर देने के बाद भी कई बार, मोटी चूड़ियों का शुरुआती महीन हिस्सा हटाने के लिए वहाँ मिलिंग या ग्राइंडिंग करना पड़ता है।
चूड़ी बनाते समय इस्तेमाल होने वाला टूल चूड़ी की पूरी लंबाई में आसानी से घूमे और कहीं भी अपूर्ण चूड़ी न हो, ये चूड़ी के अंत में रिलीफ देने का कारण होता है।
सामान्य लेथ पर चूड़ी बनाने के काम में भी, ऑपरेटर को चूड़ी बनाने वाली लिवर बाहर निकालने के लिए थोड़ी जगह दी जाती है। अपवाद की स्थिति में, जहाँ रिलीफ बेहद कम होता है, थ्रेड मिलिंग का विचार करें।
सी.एन.सी. टर्निंग मशीन या सी.एन.सी. वर्टिकल टरेट लेथ में चूड़ी बनाने के काम में चक के अंशात्मक स्थान का फीडबॅक देने की प्रणाली दी जाती है। खास कर के जब भारी सी.एन.सी. लेथ पर वर्टिकल टरेट लेथ या चूड़ी बनाने का काम किया जाता है, तब दो पिच से अधिक रिलीफ का सुझाव दिया जाता है। क्योंकि जड़ता (इनर्शिया) के कारण प्रणाली एक स्पंदन (पल्स) छोड़ सकती है और टूल एक और पिच आगे आ सकता है। दो पिच का रिलीफ देने से सुरक्षा मिलती है।
 
 
5. कार्यवस्तु की धातु
यंत्रण क्षमता, चिप ब्रेकिंग, इन्सर्ट का घिसाव, कर्तन के पैरामीटर, इन्सर्ट का चयन इनके साथ कार्यवस्तु की धातु का अध्ययन भी महत्वपूर्ण होता है। अगर यंत्रण करने के लिए मुश्किल होने वाले विशेष श्रेणी के स्टेनलेस स्टील या अन्य समरूप धातुओं पर चूड़ी बनानी हो, तो यंत्रण प्रक्रिया का आयोजन करने वाले इंजीनीयर के कटिंग टूल तथा कटिंग विषयक वास्तविक ज्ञान की कसौटी होती है। ऐेसे समय सी.एन.सी. प्रोग्रैमर को टूल और कार्यवस्तु को नुकसान से बचाने वाला और इष्टतम खर्चे में बेहतर उत्पादन क्षमता के साथ उत्तम गुणवत्ता देने वाला प्रोग्रैम बनाने की चुनौती स्वीकार करनी पड़ती है। इस विषय में प्रोग्रैमिंगसंबंधि विभाग में विस्तृत चर्चा होगी।
 
 
6. कार्यवस्तु का कठोर किया हुआ पृष्ठ लेकिन नरम चूड़ी
कभी कभी किसी कार्यवस्तु को कठोर किया जाता है लेकिन डिजाइन की दृष्टि से चूड़ी को कठोर नहीं किया जाता। ऐसे समय उष्मोपचार (हीट ट्रीटमेंट) के विशेषज्ञों की सलाह ले कर दो प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं। पहला उपाय है फिनिश टर्निंग के लिए थोड़ी जगह रख कर चूड़ी वाले हिस्से का यंत्रण (चित्र क्र. 7) करना।
 
 
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चित्र क्र. 7 : मास्किंग
हीट ट्रीटमेंट में पुर्जे के चूड़ी वाले भाग पर कुछ खास रसायन का लेप दिया होने के कारण हीट ट्रीटमेंट से वह भाग कठोर नहीं होता। बाद में व्यास और चूड़ी का अंतिम यंत्रण होता है।
दूसरी पद्धति में, चूड़ी वाले पृष्ठ पर, कठोर की जाने वाली मोटाई से अधिक छूट (जगह) रखी जाती (चित्र क्र. 8) है। पृष्ठ का कार्बुराइजिंग करने के बाद कार्यवस्तु टर्निंग सेंटर पर लाई जाती है। चूड़ी के लिए पर्याप्त जगह रख कर कार्बुराइजिंग की परत निकाली जाती है। बाद में कार्यवस्तु को कठोर करते समय, चूड़ी वाले भाग पर कार्बुराइजर की परत न होने से वह कठोर नहीं होता। उसके बाद अंतिम टर्निंग और चूड़ी बनाने का काम किया जाता है।
 
 

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चित्र क्र. 8 : कार्बुराइज्ड परत (लेयर)
 
इन सारी प्रक्रियाओं में कार्यवस्तु का अतिरिक्त वहन, यंत्रण और विलंब शामिल होते हैं।
 
 
7. अन्य कार्य
मेरी राय में, इसमें तथा लोडिंग/अनलोडिंग के साथ संचलन में होने वाले नुकसान से बचने के लिए चूड़ी बनाने का काम जितना हो सके उतना आखिर में करना बेहतर होगा। चूड़ी को जंगरोधी रसायन का लेप दे कर तथा विशेष चिपक पट्टियों के उपयोग द्वारा उचित सुरक्षा देना जरूरी है। पुर्जे का ध्यानपूर्वक संचलन एवं भंड़ारण करना आवश्यक होता है।
अगले लेख में हम, चूड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले टूलिंग तथा गेज पर चर्चा करेंगे।
 
 
 
गिरीश देव यांत्रिकी अभियंता हैं और आपको अभियांत्रिकी उद्योग विश्व के विभिन्न विभागों में प्रत्यक्ष काम का तथा सलाहकारी का 42 वर्षों का अनुभव है।
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