लेजर अकाउंट और बैलन्स शीट

@@NEWS_SUBHEADLINE_BLOCK@@

Dhatukarya - Udyam Prakashan    17-अगस्त-2021   
Total Views |

किसी भी व्यवसाय की आय एवं देनदारियों का स्वरूप तुरंत एवं अचूकता से दर्शाने में बैलन्स शीट और प्रॉफिट अैंड लॉस अकाउंट्स का अहम् स्थान होता है।
 
जुलाई 2021 के अंक में हमने बैलन्स शीट और लाभ-हानि (प्रॉफिट अैंड लॉस) पत्रक के प्राथमिक स्वरूप की जानकारी प्राप्त की। साथ ही यह भी देखा कि किसी विशिष्ट दिनांक पर अकाउंट्स के अनुसार लेजर में जो बैलन्स होते हैं, उन्हें एक जगह दिखाने वाला बैलन्स शीट एक संपूर्ण रिपोर्ट होता है।
  
 
 
जिस तारीख का बैलन्स शीट बनाया हो, उस तारीख को लेजर में रियल और पर्सनल श्रेणी के सभी अकाउंट्स का जो भी बैलन्स होता है, उसे बैलन्स शीट में हूबहू दिखाया जाता है। लेजर में बचे हुए सभी नॉमिनल अकाउंट्स में उस तारीख को जो बैलन्स होते हैं, उन्हें लाभ और हानि अकाउंट में लिया जाता है। बाद में लाभ और हानि अकाउंट का जो बैलन्स बचता है, जो एक तो लाभ होता है या हानि, उसे बैलन्स शीट में मालिक के अकाउंट के बैलन्स में ड़ाला जाता है। इस प्रकार, बैलन्स शीट में सभी लेजर अकाउंट्स के बैलन्स के डेबिट और क्रेडिट का ध्यान रख कर उन्हें संपत्तियों और देनदारियों में ड़ाला जाता है। हरएक वाउचर के डेबिट और क्रेडिट परिणामों का योग अगर एक जैसा हो, तो ऐसे सभी वाउचर का लेजर पोस्टिंग करने के बाद, डेबिट बैलन्स वाले अकाउंट्स का कुल योग क्रेडिट बैलन्स वाले अकाउंट्स के कुल योग जितना ही होगा। कुल योग एक जैसा होने वाले ऐसे सभी लेजर बैलन्स जब डेबिट या क्रेडिट पक्ष के अनुसार संपत्तियां या देनदारियों की श्रेणी में बैलन्स शीट में दिखाए जाते हैं, तब बैलन्स शीट में संपत्तियों और देनदारियों का कुल योग भी एक जैसा ही हो कर हिसाब की पड़ताल हो जाती है।
  
 
 
लेजर के किसी भी अकाउंट में विशिष्ट तारीख को कितनी बाकी है और वह डेबिट है या क्रेडिट, यह भी समझा जा सकता है। अगर डेबिट का कुल योग क्रेडिट के कुल योग से ज्यादा हुआ तो पता चलता है कि, उस तारीख को उस अकाउंट में डेबिट बैलन्स है और अगर क्रेडिट का कुल योग डेबिट के कुल योग से ज्यादा हुआ, तो उसका मतलब है उस तारीख को उस अकाउंट में क्रेडिट बैलन्स है। हमने देखा है कि किसी भी अकाउंट का बैलन्स यानि बाकी डेबिट है या क्रेडिट, यह पता करने की प्रक्रिया को अकाउंटिंग की भाषा में 'बैलन्सिंग ऑफ अकाउंट्स' कहा जाता है। किसी अकाउंट में अगर डेबिट और क्रेडिट का कुल योग एक समान हो तो इसका मतलब है उस अकाउंट में बची राशि शून्य है। ऐसा अकाउंट उस तारीख को हिसाब की दृष्टि से पूरा माना जाता है और फिर उसके बारे में ज्यादा सोच-विचार करने की जरूरत नहीं पड़ती।
 
 
 
जब भी फाइनल अकाउंट्स बनाए जाते हैं, तब उस तारीख को हरएक लेजर अकाउंट में उस तारीख की अंतिम बाकी और उसका पक्ष इन बातों को ट्रायल बैलन्स नामक रिपोर्ट में दर्ज किया जाता है। जिन लेजर अकाउंट्स में बैलन्स है, वे सभी अकाउंट ट्रायल बैलन्स के अंतर्गत लिए जाते हैं और हरएक लेजर अकाउंट के नाम के आगे जिस पक्ष का बैलन्स हो यानि डेबिट या क्रेडिट, यह जांच कर डेबिट या क्रेडिट कॉलम में उस अकाउंट की अंतिम बाकी यानि क्लोजिंग बैलन्स लिखा जाता है। साल के अंत में बनाए हुए फाइनल अकाउंट्स का लेखापरीक्षण (ऑडिट) पूरा होने पर उस आर्थिक वर्ष के लिए लेजर अकाउंट्स बंद कर दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया को अकाउंट्स क्लोजर कहा जाता है।
 
 
 
अकाउंट्स बंद कर के ट्रायल बैलन्स बनाने के बाद का काम होता है, ट्रायल बैलन्स में होने वाले हरएक लेजर अकाउंट को देख कर यह तय करना कि उसे बैलन्स शीट में दिखाया जाए या लाभ-हानि पत्रक में। इसके लिए यह देखना पड़ता है कि ट्रायल बैलन्स में स्थित हरएक लेजर अकाउंट को तीन श्रेणियों में से किस श्रेणी में रखा जाए, रियल या पर्सनल या नॉमिनल। हमने ऊपर देखा है कि रियल और पर्सनल श्रेणी के सभी अकाउंट, बैलन्स शीट में दिखाए जाते हैं और सभी नॉमिनल अकाउंट का स्थान लाभ और हानि अकाउंट में होता है।
 
 
 
हमने देखा है कि बैलन्स शीट के संदर्भ में पहली खड़ी जगह में व्यापार की सभी देनदारियां दिखाई जाती हैं और बैलन्स शीट में बाद में आने वाले दूसरे खड़े भाग में व्यापार की सभी संपत्तियां दिखाई जाती हैं। लाभ-हानि पत्रक में पहले खड़े भाग में आय के सभी स्त्रोत और दूसरे खड़े भाग में सभी खर्चे दिखाए जाते हैं। हमने यह भी देखा है कि रियल और पर्सनल श्रेणी के सभी अकाउंट्स बैलन्स शीट में दिखाए जाते हैं और सभी नॉमिनल अकाउंट्स लाभ और हानि अकाउंट्स में शामिल किए जाते हैं। इन नियमों के आधार पर ट्रायल बैलन्स में आने वाले हरएक अकाउंट का पोस्टिंग, बैलन्स शीट में या लाभ और हानि अकाउंट में किया जाता है।
 
 
 
विशिष्ट लेजर अकाउंट बैलन्स शीट में आएगा या लाभ और हानि पत्रक में, यह तय करने के बाद का काम होता है संबंधित पत्रक में उस अकाउंट का स्थान निश्चित करना। ट्रायल बैलन्स में स्थित रियल और पर्सनल श्रेणी के अकाउंट्स के बैलन्स किस तरफ हैं, यह देख कर तय किया जाता है कि उनका स्थान सामान्यतः देनदारियों के लिए होने वाले पहले खड़े भाग में होगा या संपत्तियों के निचले खड़े भाग में। इस प्रकार के किसी अकाउंट में अगर क्रेडिट बैलन्स हो तो संभावना यह होती है कि वह रकम व्यापार की देनदारी हो। यदि डेबिट बैलन्स हो तो ज्यादातर वह रकम व्यापार की संपत्ति होने की संभावना होती है। उसी तरह, ट्रायल बैलन्स में नॉमिनल श्रेणी के अकाउंट के बैलन्स किस तरफ हैं, यह देख कर तय किया जाता है कि लाभ और हानि पत्रक में उनका स्थान आय के लिए बनाए पहले खड़े भाग में होगा या खर्चे के लिए होने वाले निचले खड़े भाग में। इस तरह के किसी अकाउंट में अगर क्रेडिट बैलन्स हो, तो वह रकम ज्यादातर व्यापार की आय हो सकती है और अगर बैलन्स डेबिट हो तो वह रकम व्यापार का खर्चा होती है। इस सामान्य नियम के इस्तेमाल से ट्रायल बैलन्स के ज्यादातर सभी लेजर बैलन्स, बैलन्स शीट और प्रॉफिट अैंड लॉस अकाउंट में उचित भागों में शामिल किए जा सकते हैं।
 
 
 
किसी लेजर अकाउंट का स्थान, बैलन्स शीट या लाभ और हानि अकाउंट में ऊपर या नीचे आएगा यह निश्चित करने के बाद, यह तय किया जाता है कि उस विशिष्ट भाग की जो संरचना कंपनी कानून के अंतर्गत दिए हुए स्वरूप में होती है, उसके किस शीर्ष के अंतर्गत वह अकाउंट दिखाया जाएगा। यह समझना जरूरी है कि इन दोनों पत्रकों का स्वरूप किस प्रकार का होता है। उस दृष्टि से, अगले भाग में हम इस कानूनी स्वरूप के बारे में जानेंगे।
 
 
 
 
मुकुंद अभ्यंकर चार्टर्ड अकाउंटंट हैं।
पिछले 30 वर्षों से आप कई कंपनियों के लिए लेखापरीक्षण तथा वित्तीय घटनाओं के विश्लेषण का काम कर रहे हैं।
9822475611
@@AUTHORINFO_V1@@