मशीन गलत नहीं थी!!

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    17-अगस्त-2021   
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सी.एम.एम. जैसी अत्याधुनिक मशीन का उपयोग करते समय, यंत्रण प्रक्रिया का विचार ना कर के जांच पद्धति तथा प्रोब का चयन करने के कारण उलझनें पैदा हुई। उनका समाधान करने के प्रयास स्पष्ट करने वाला लेख।
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विजय देशमुख अपने दफ्तर के पास वाले मोड़ तक पहुँचा ही था कि उसके मोबाइल फोन की घंटी बजी। इतनी सुबह में विजय किसी का फोन लेता नहीं था। जबसे उसने 'अभिनव उद्योग' का कारोबार अपने हाथों में लिया था तबसे सुबह फैक्टरी में सबसे पहले शॉप फ्लोर पर चक्कर लगाने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत करने का नियम, उसने पूरी निष्ठा से अपनाया था।
लेकिन विजय को पता चला कि बंगलुरू से अनंतराव ठाकुर ने इतनी सुबह फोन किया है इसका मतलब जरूर कोई खास काम होगा।
 
 
 
"गुड मॉर्निंग ठाकुर साहब। आज सुबह सुबह मुझे कैसे याद किया?" विजय ने नम्रतापूर्वक पूछा।
पिछले तीन वर्षों में अनंतराव की 'बालाजी इंडस्ट्री' के साथ विभिन्न प्रकल्पों में विजय देशमुख की कंपनी अभिनव उद्योग बराबरी की भागीदार रही थी। सी.एम.एम. बनाने वाली दुनिया भर की मशहूर कंपनियां बिजनेस पाने के लिए होड़ कर रही थी, तब भी सी.एम.एम. बनाने वाली भारतीय कंपनी अभिनव उद्योग को, विजय ने 20 साल में अपनी नेतृत्व क्षमता और बढ़िया टीमवर्क के बल पर ख्यातकीर्त बनाया था। निर्यात प्रकल्पोंसंबंधि हुई पहली ही मीटिंग में अनंतराव अभिनव उद्योग की टीम से बेहद खुश हुए थे। उनके उद्यम को जर्मनी से बड़े आकार वाले गियरबॉक्स के कास्टिंग एवं यंत्रण का बड़ा ऑर्डर मिला था। इन पुर्जों के यंत्रण के लिए विदेशी सी.एम.एम. खरीदने की जरुरत थी। ये मशीनें बहुत महंगी थी। ठाकुर साहब नए प्रकल्प से संबंधित मीटिंग के लिए विजय को भी जर्मनी साथ ले कर गए थे और विजय ने वहाँ अभिनव उद्योग द्वारा निर्मित सी.एम.एम. का, विदेशी सी.एम.एम. से बेहतर होना, उदाहरण के साथ सिद्ध किया था। इसकी वजह से वह प्रकल्प बहुत ही किफायती साबित हुआ था। तभी से ठाकुर साहब और विजय के संबंध बहुत ही सौहार्दपूर्ण हो गए थे। यहाँ तक कि दोनों के बीच की व्यवसायिक बातें भी बेहद अनौपचारिक लहेजे में हुआ करती थी।
 
 
 
"विजय, तुम्हारी कंपनी में सबसे बढ़िया अैनालिस्ट कौन है? तुम्हें उसे मेरे कारखाने में एक सप्ताह के लिए भेजना पड़ेगा।" अनंतराव ने कहा।
विजय के मन में उसी क्षण मोहन का नाम आया। लेकिन अपने ग्राहकों को कोई भी आश्वासन देने से पहले, विजय अपनी टीम से बात कर के विषय समझ लेना चाहता था। इसलिए फोन पर उसने कहा, "सर, मैं आपको चार घंटे में बताता हूँ।" विजय ने फोन बंद कर के ऑफिस में प्रवेश किया। मार्केटिंग डाइरेक्टर पवार साहब को बुला कर उसने विषय की पृष्ठभूमि समझाई और आधे घंटे बाद सभी संबंधित लोगों को मीटिंग के लिए बुलाने के लिए निर्देश दिया।
कुछ देर बाद विजय देशमुख, मार्केटिंग डाइरेक्टर प्रकाश पवार और कस्टमर इंजीनीयरिंग टीम लीडर मोहन मीटिंग रूम में मिले।
"एमडी सर को बंगलुरू से ठाकुर साहब का फोन आया था। वहाँ बालाजी इंडस्ट्री में क्या प्रॉब्लम चल रही है?" पवार ने मोहन से पूछा।
"मैं आपको सारी बात बताता हूँ।" मोहन ने ओवरहेड प्रोजेक्टर पर एक गियरबॉक्स (चित्र क्र. 1) का फोटो दिखाया।

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चित्र क्र. 1 : गियरबॉक्स
"बालाजी इंडस्ट्री की बेळगावि फाउंड्री में इस गियरबॉक्स का कास्टिंग होता है और इनिशियल पिकअप का (मूलभूत) यंत्रण कर के उसे पुणे के 'वर्साटाइल इंजीनीयरिंग' में अगले यंत्रण के लिए भेज दिया जाता है। पुणे में जरूरी क्रिटिकल यंत्रण पूरा करने के बाद अपनी सी.एम.एम. पर उसका सारा मापन होता है। उसके बाद ये गियरबॉक्स, बालाजी की बंगलुरू की मशीनिंग सेंटर यूनिट में भेजे जाते हैं। वहाँ बचा हुआ यंत्रण पुरा कर के, प्रिजर्वेशन तथा पैकेजिंग के बाद गियरबॉक्स जर्मनी भेजे जाते है। बंगलुरू में भी सी.एम.एम है। उस पर, 10 में से 1 गियरबॉक्स की जांच कर के ऑडिट किया जाता है।"
"बिलकुल सही, इसी ऑर्डर के लिए हमने पिछले साल वर्साटाइल को एक सी.एम.एम. बेची थी। लेकिन समस्या क्या है?" पवार ने पूछा।
 
 
"इस गियरबॉक्स में सामने के यानि फ्रंट A फेस पर यंत्रण है, साथ ही पिछले यानि रियर B फेस पर भी यंत्रण है। इन दोनों के सारे रिपोर्ट एकदम ठीक हैं। बंगलुरू की ऑडिट रिपोर्ट भी लगभग मैच हो रही है। लेकिन पिछले हफ्ते जब उन्होंने पहला ऑडिट किया तब उसमें एक महत्वपूर्ण नाप की रीडिंग में थोडा फर्क आया। बाकी सभी रीडिंग ठीक हैं। दोनों स्थानों पर लिए गए रीडिंग इस तालिका में (तालिका क्र. 1) दिखाए गए हैं।" मोहन ने कहा।

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तालिका क्र. 1
"यह फर्क देखने के बाद उन्होंने वर्साटाइल इंजीनीयरिंग से संपर्क किया लेकिन वर्साटाइल ने फिर से जांच कर, सारे रीडिंग सही होने की पुष्टि की है। इधर बालाजी में जब एक पैक किया पुर्जा खोल कर फिर से जांचा गया तो उसमें भी यही फर्क मिला।" मोहन ने बताया।
 
 
"ठाकुर साहब को लग रहा है कि उनकी सी.एम.एम. विदेशी है इसलिए वह एकदम सही है, तो वर्साटाइल वालों की मशीन भारतीय है इसलिए ये फर्क आ रहा है। अगर ऐसा हो, तो यह बहुत ज्यादा खर्चे वाली बात है। इसलिए वे चिंतित हैं। मैंने उनसे कल ही इस मामले में बात की है और कहा है कि हम इसे जल्द ही सुलझाएंगे। उनके पास 10 गियरबॉक्स पैक कर के तैयार हैं एक्स्पोर्ट के लिए और अगले हफ्ते के लिए कंटेनर भी बुक हो गया है। इसलिए हमें यह मामला अगले तीन दिनों में सुलझाना ही पड़ेगा।" पवार बोले।
 
 
विजय ने कुछ देर सोच कर पूछा, "मोहन, इस हफ्ते का तुम्हारा नियोजन क्या है?"
"सर, अगले हफ्ते हमारी सर्विस ट्रेनिंग है। उसकी तैयारी चल रही है। लेकिन मैं आज दोपहर को ही पुणे में वर्साटाइल में जा कर फिर कल सुबह बंगलुरू जा सकता हूँ। यात्रा के दौरान मैं ट्रेनिंग मटीरीयल की जांच कर लूँगा।" मोहन ने कहा।
"गुड" कह कर विजय ने अनंतराव को फोन लगाया।
"हैलो विजय, मुझे पता था कि तुमने चार घंटे बोला है तो तुम्हारा फोन तीन घंटों में ही आएगा। बोलो, क्या करना है?" ठाकुर बोले।
"सर, मोहन कल सुबह बंगलुरू आएगा।"
"वेरी गुड, मुझे लगता है इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाना पड़ेगा। मैं लक्ष्मण को कह दूंगा कि मोहन को एयरपोर्ट से सीधे फैक्टरी में ले आए।"
मोहन ने दोपहर को वर्साटाइल इंजीनीयरिंग में जाकर ड्रॉइंग, यंत्रण और जांच के तरीके को समझ लिया। सुबह पहली फ्लाइट से वह बंगलुरू पहुँचा। बालाजी इंडस्ट्रीज के क्वालिटी मैनेजर लक्ष्मण उनकी राह देख रहे थे। बीच में इडली और कॉफी का ब्रेक ले कर दोनों फैक्टरी की तरफ चल पड़े।
 
 
"मोहन आप सुबह की फ्लाइट से आए ये बहुत ही अच्छा हुआ। क्योंकि एक बार बंगलुरू में सुबह का ट्रैफिक शुरू हो जाता है, तो एयरपोर्ट से फैक्टरी पहुँचने में साढ़े तीन घंटे लग जाते हैं। अभी तो हम डे़ढ़ घंटे में ही पहुँच जाएंगे। आपको ऐतराज न हो तो ठाकुर साहब को सिर्फ हैलो कर के हम सीधे हमारी लैब में ही जायेंगे। क्योंकि मुझे लगता है कि ये सी.एम.एम. की समस्या नहीं है। और अगर ये सारे गियरबॉक्स रिजेक्ट हुए तो वे वापस मशीनिंग के लिए पुणे भेजने पड़ेंगे। इसमें बहुत समय जाएगा। हमारी कन्साइनमेंट की तारीख पास आ गई है, इसलिए सभी चिंतित हैं।" लक्ष्मण ने कहा। 
मोहन ने यह मान्य किया और औपचारिकताएं पूरी कर के वे दोनों बालाजी इंडस्ट्रीज की लैब में पहुँचे। "हम एक बार आपके द्वारा लिए हुए नाप जांच लेते हैं और वर्साटाइल के नाप भी जांच लेते हैं।" मोहन ने सुझाव दिया। दोनों ने सारे नाप एक बार जांचे।
"वर्साटाइल गियरबॉक्स के रीडिंग सामान्यतः एक रेंज में हैं। इसका मतलब है, उनकी कार्यप्रणाली और कार्यप्रणाली की क्षमता दोनों अच्छे हैं। लेकिन, ये सारे रीडिंग में और बालाजी में लिए हुए एक रीडिंग में अंतर क्या है?" मोहन ने पूछा।
"इस गियरबॉक्स के सामने के A फेस पर और पिछले B फेस के बाकी के सारे रीडिंग सीमा में हैं। लेकिन, इन दोनों से संबंधित बोर के लंब माप (सामने वाले फेस से स्क्वेयरनेस) लिमिट के बाहर लगते हैं। A फेस पर 400 मिमी. के बोर का जो बाहरी फेस है, उस फेस के साथ B फेस पर स्थित 100 मिमी. बोर की सेंटर लाइन (होल पोजिशन), 60 माइक्रोन स्क्वेयरनेस में होनी चाहिए। यह रीडिंग करीब 100 माइक्रोन दिख रहा है। इसका मतलब है कि ऑपरेशन में कुछ सुधार करना पड़ेगा।" लक्ष्मण ने कहा।
"आपने पार्ट ड्रॉइंग के अनुसार ही सभी रीडिंग लिए हैं ना?" मोहन ने सी.एम.एम. के टेक्निशियन राजू से पूछा। "जी सर, मैंने ये प्रिंटआउट और रीडिंग दिखाने वाली तालिका भी रखी है।" राजू ने जबाब दिया।
"क्या हम एक गियरबॉक्स फिर से जांचें?" मोहन ने सुझाव दिया, "पूरा प्रोग्रैम एक बार फिर चलाते हैं।"
कुछ ही समय में गियरबॉक्स सेट कर के राजू ने मशीन पर प्रोब चढ़ाया और पूरा स्कैनिंग शुरू कर दिया। करीब 30 मिनट में सारे नाप फिर से लिए गए। मोहन ये सब कुछ ध्यान से देख रहा था। बीच में उसे कोई बात ध्यान में आई, लेकिन सारा मापन होने तक वह कुछ नहीं बोला। मापन की रिपोर्ट ले कर सारे लोग फिर से इकट्ठा हुए। सारे रिपोर्ट, पहले के रिपोर्ट की तरह ही दिख रहे थे।
पुनरावृत्ति से संबंधित मामूली फर्क छोड़ कर बाकी सारे मापन तालिका क्र. 2 से मेल खा रहे थे।

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तालिका क्र. 2
"आप बीच में प्रोब नहीं बदलते?" मोहन ने पूछा।
"नहीं। सर गियरबॉक्स काफी बड़ा है और अधिकांश रीडिंग फेस A और B पर ही हैं। इसलिए हम एक तरफ से A फेस के सारे रीडिंग खत्म करते हैं, साइड के छोटे रीडिंग लेते हैं। बाद में दूसरी तरफ के फेस B के रीडिंग ले कर प्रोब को रोक देते हैं।" राजू
"लेकिन मुख्य इनपुट फेस और आउटपुट बोर के स्क्वेयरनेस को कैसे नापते हो?" मोहन
"सर, A साइड के सारे फेस तथा बोर के रीडिंग और B साइड की सारे फेस एवं बोर के रीडिंग से, प्रोग्रैम में से स्क्वेयरनेस वैल्यू मिल जाती है।" राजू
"मशीन पर लगाया हुआ यह प्रोब लगभग 150 मिमी. लंबा है। आपके पास सबसे लंबा प्रोब कितनी लंबाई का होगा?" मोहन
"हमारे पास सबसे लंबा प्रोब 250 मिमी. लंबाई वाला है।" लक्ष्मण ने बताया।

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चित्र क्र. 2 : छोटे प्रोब के द्वारा मापन
"इस गियरबॉक्स की चौड़ाई 400 मिमी. है। हमें कम से कम 400 मिमी. का प्रोब चाहिए। कहीं मिल सकेगा?" मोहन
"इसी इंडस्ट्रियल इस्टेट में रेल उद्योग के लिए पुर्जे बनते हैं। उनके पास बड़े सी.एम.एम. और प्रोब हैं। ठाकुर साहब अगर उनके किसी दोस्त को फोन कर के पूछें तो मिल भी सकता है। लेकिन इतना बड़ा प्रोब क्यों? उस पर तो बहुत कंपन (वाइब्रेशन) होंगे।" लक्ष्मण ने कहा।
"हम पहले एक लंबे प्रोब से ट्रायल लेते हैं, देखते हैं क्या होता है।" मोहन ने सुझाव दिया।
"मैं सर से बात कर के प्रोब का इंतजाम करता हूँ। दोपहर तक शायद मिल जाए। तब तक हम लंच कर लेते हैं।" लक्ष्मण ने कहा।
लंच कर के सब वापस आए। तब तक नए प्रोब का बॉक्स टेबल पर आ गया था।
"ठाकुर साहब के दोस्तों की वजह से चुटकियों में काम हो जाते हैं!" लक्ष्मण ने कहा और राजू ने सावधानीपूर्वक प्रोब को, प्रोब स्टेशन पर बिठाया। मोहन ने दोनों के साथ विचारविमर्श कर के प्रोग्रैम में आवश्यक परिवर्तन किए।
 
 
"अब पहले आप लोग प्रोब से पहले का रीडिंग जांच लो। उसके बाद सिर्फ 400 मिमी. बोर के फेस के रीडिंग लो और उस प्रोब को सीधा अंदर जाने दो। सामने की 100 मिमी. बोर की सेंटर लाइन निकाल कर उसकी स्क्वेयरनेस रीडिंग लो।" मोहन

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चित्र क्र. 3 : लंबे प्रोब के द्वारा फेस का मापन
"अरे, यह रीडिंग तो एकदम ओके है। पहले क्या हुआ था?" राजू ने अचरज से पूछा। (तालिका क्र. 3 देखें)

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तालिका क्र. 3
"हम रीडिंग के तीन सेट लेंगे और फिर बैठ कर बात करते हैं।" मोहन ने कहा।
कॉन्फरन्स रूम में कॉफी पीते हुए मोहन ने बताया, "सबसे पहले हमें इस गियरबॉक्स का कार्य समझ लेना होगा। इसके A फेस पर जो 400 मिमी. का बोर है, उसमें पावर इनपुट बिठाया जाता है। उसमें हाउसिंग बेरिंग पर स्थित आउटपुट शाफ्ट और उस पर 300 मिमी. का एक बड़ा गियर और उसके आगे दो छोटे गियर फिट होते हैं। B फेस पर बने 100 मिमी. बोर में यह आउटपुट शाफ्ट एक बेरिंग की सहायता से फिट होता है। इस प्रकार A फेस पर फिट होने वाले हाउसिंग और शाफ्ट की अलाइनमेंट ठीक होती है।"
 
 
"हाँ, इस बात की जानकारी हमें है।" लक्ष्मण ने कहा।
"हर पुर्जा, उसका वास्तविक कार्य ध्यान में रख कर ही डिजाइन किया जाता है। पुर्जे का यंत्रण किस प्रकार किया जाना है इसे निश्चित करते समय ड्रॉइंग और फॉर्म टॉलरन्स को समझ कर, उस हिसाब से यंत्रण का तरीका और विभिन्न चरण निश्चित किए जाते हैं। जब हम यह करते हैं तो दिए गए टॉलरन्स का अर्थ और उसके प्रसार को पहले समझना आवश्यक होता है। उसके बाद ही पुर्जे का यंत्रण किया जाता है। अधिकांश उद्योगों में यह कार्य 'मैन्युफैक्चरिंग इंजीनीयरिंग' विभाग करता है। यहाँ आने से पहले कल मैं वर्साटाइल इंजीनीयरिंग गया था। वहाँ यंत्रण करते समय भी एक ही सेटअप में A फेस और B फेस पर होने वाले वृत्ताकार बोर का यंत्रण किया जाता है। वहाँ सी.एम.एम. पर जांचते समय स्क्वेयरनेस के लिए
लंबे प्रोब की सहायता से सटीक जांच होती है।" मोहन ने कहा।
"लेकिन, हमारे पास इतना लंबा प्रोब न होने के कारण और छोटे प्रोब से जांच करना संभव होने के कारण हमने इस प्रोग्रैम का उपयोग किया। मेरे मन में प्रश्न है कि इन दोनों में फर्क आने की वजह क्या है? छोटे प्रोब से भी सटीक जांच हो सकती है और उसमें वाइब्रेशन भी नहीं आते।" लक्ष्मण ने कहा।
"इन दो रीडिंग में देखे गए अंतर का एक ही कारण हो सकता है। एक छोटे प्रोब से सारी जांच करते समय, जब वह प्रोब घटक के चारों ओर घूम कर अगले फेस पर जाता है तब रीडिंग की अनिश्चितता थोड़ी बढ़ जाती है। एकरेखीय (लीनियर) रीडिंग में इसका प्रभाव उतना नजर नहीं आता, लेकिन, जटिल मापन करते समय इन विभिन्न चरणों के रीडिंग और कुल अनिश्चितता का योग होने से मापन गलत हो जाता है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।" मोहन ने समझाया।

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चित्र क्र. 4 : बड़े प्रोब के द्वारा बोर का मापन
"अरे वाह!" पीछे से आवाज आई। अनंतराव ठाकुर की वहाँ की उपस्थिति किसी के भी ध्यान में नही आई थी। "इसका मतलब है, सारे गियरबॉक्स ओके हैं!" उन्होंने कहा।
"अब हम सबसे पहले 400 मिमी. का प्रोब मंगवाते हैं और वर्साटाइल वालों को भी बोल दो कि उनके काम में कोई समस्या नहीं है।"
"यस सर, मैं आज ही यह काम करता हूँ। मोहन के यहाँ आने से मामला जल्दी सुलझ गया। एक बार तो हमें ऐसा भी लगा था कि हमारी सी.एम.एम. विदेशी बनावट की है और वर्साटाइल वालों की अभिनव से ली हुई है, इसलिए मापन में कहीं कोई गलती तो नहीं है? लेकिन अब वह आशंका दूर हो गई। यह बहुत अच्छा हुआ।" लक्ष्मण ने हंस कर मोहन की तरफ देखते हुए कहा।
"सर, मैं कल शाम को वापस जाने वाला था, लेकिन अब मामला सुलझ गया है, तो मैं आज रात को या कल सुबह वापस जा सकता हूँ?" मोहन ने पूछा।
"बेशक, कोई दिक्कत नहीं। मैं आज ही विजय देशमुख को फोन कर के बोल देता हूँ कि आपके हीरे को मैं आज ही वापस भेज रहा हूँ। यहाँ की इंडस्ट्रियल इस्टेट में पांच छः जगहों पर सी.एम.एम. इस्तेमाल होती है। भविष्य में कभी हम उन सबकी एक बैठक आयोजित करेंगे और उसमें आप अपने अनुभव के आधार पर ट्रेनिंग दोगे... ठीक है?"
"जरूर सर...धन्यवाद" मोहन ने नम्रतापूर्वक कहा। एक जटिल समस्या का समाधान ढूँढ़ने का संतोष उसके चेहरे पर झलक रहा था।
(तकनीकी जानकारी : मोमिन ए. वाई., अैप्लिकेशन अैंड ट्रेनिंग हेड, अैक्यूरेट गेजिंग अैंड इंस्ट्रूमेंट्स प्रा.लि.)
 
 
अच्युत मेढेकर मेकैनिकल इंजीनीयर हैं और उत्पादन एवं क्वालिटी कंट्रोल क्षेत्र का लगभग 42 वर्षों का अनुभव रखते हैं। 9764955599
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