पिछले लेख में हमने कुछ क्लैंप के बारे में जाना। इस लेख में हम जिग एवं फिक्श्चर में प्रायः इस्तेमाल होने वाले कुछ हिस्सों की जानकारी पाएंगे, जो इस प्रकार के होते हैं
1. ‘T’ नट (IS:2015)
2. टेनन (IS:2990)
3. बुश (IS:666.1) (IS:666.2)
अ. लाईनर बुश
ब. फिक्स बुश
क. रीन्युएबल बुश
ड. स्लिप बुश
4. क्लैम्प स्टड (IS:13178)
5. हील पिन
6. कोनिकल सीट एवं स्फेरिकल वॉशर (IS:4297)
7. रेस्ट पैड
‘T’ नट
इस नट का आकार अंग्रेजी ‘T’ अक्षर के समान है, इसलिए उसे ‘T’ नट कहते है। चित्र क्र. 1 अ से पता चलता है कि ‘T’ नट किस तरह काम करता है। जब कार्यवस्तु सीधी मशीन के टेबल पर पकड़ी जाती है, तब इसका प्रयोग आमतौर पर होता है।
मशीन की खांच (स्लॉट) जिस माप की हो, उसी माप का ‘T’ नट ले, जैसे कि 16 मिमी., 18 मिमी. आदि। चित्र क्र. 1 ब में दिखाया हुआ ‘A’ माप मशीन टेबल के खांच की माप के समान होता है। ‘T’ नट में स्टड कस कर बिठाया हुआ है। कार्यवस्तु की ऊपरी ओर वॉशर है। उसके ऊपर क्लैम्प नट है। जैसे ही हम इस नट को कसते जाते हैं, स्टड ‘T’ नट को ऊपर उठाता है और ‘T’ खांच के नीचे सटने से उसका ऊपर उठना रुक जाता है, परंतु नट का नीचे आना जारी रहता है। वॉशर की मदद से कार्यवस्तु कस कर पकड़ी जाती है। सभी जगह इस्तेमाल होने वाला यह ‘T’ नट बहुत उपयोगी है।
टेनन
यह हिस्सा फिक्श्चर में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमेशा फिक्श्चर की नीचे की तरफ 2 टेनन का प्रयोग किया होता है।
चित्र क्र. 2 अ दर्शाता है कि टेनन कैसे बिठाए जाते हैं। फिक्श्चर की दोनों तरफ टेनन के माप के समान, H7 टॉलरन्स होने वाले, खांचे बना कर उनमें स्क्रू की मदद से टेनन बिठाए जाते हैं। चित्र क्र. 2 ब में टेनन का रेखाचित्र दर्शाया गया है। B1 माप के 2 स्लॉट फिक्श्चर की दोनों ओर बनाए जाते हैं और उन खांच में ये टेनन बिठाए जाते हैं। B1 एवं B माप एक दूसरे से समानांतर हैं। इनमें से B1 एक मास्टर माप है, जो फिक्श्चर में बैठता है। इस प्रकार फिक्श्चर हमेशा कटर के मार्ग से, अर्थात टेबल फीड से समानांतर होता है। जब वर्टिकल मिलिंग मशीन पर सिर्फ पृष्ठ बनाया जाता है तब टेनन आवश्यक नहीं होता। ये टेनन कठोर (हार्ड) किए हुए होते हैं।
विभिन्न किस्म के बुश
अ. लाईनर बुश : इस प्रकार के बुश हार्ड या केस हार्ड किए जाते हैं। जब पिन तथा ढ़ांचे पर (प्लेट में) रहे छिद्र घिसावट से बिगड़ने की संभावना होती है तब इस प्रकार के लाइनर का प्रयोग किया जाता है। इसमें दो किस्म के लाइनर हैं, हेडेड (कॉलर के साथ) तथा हेडलेस (बिना कॉलर के)। ये हमेशा प्रेस फिट पद्धति से फिक्श्चर में बिठाए जाते हैं। चित्र क्र. 3 अ एवं 3 ब से आप जानेंगे कि ये किस तरह इस्तेमाल होते हैं। चित्र क्र. 3 अ में बिना कॉलर का लाइनर दर्शाया गया है। ‘B’ व्यास में वह प्रेस फिट से बैठ जाता है। ‘अ’ व्यास H7 टॉलरन्स में नियंत्रित किया जाता है। इस कारण उसमें बिठाए गए बुश आसानी से निकाले और फिट किए जा सकते हैं। बाहरी एवं अंदरुनी व्यास ग्राइंडिंग किए हुए और संकेन्द्रित (कॉन्सेन्ट्रिक) होते हैं। ‘A’ व्यास पर दिखाए गए लीड के जरिए प्लेट पर रहे H7 छिद्र में लाइनर, बिना किसी दिक्कत सही तरह से बैठ जाता है। चित्र क्र. 3 ब से हम समझते हैं कि लाइनर कैसे फिट होता है। जहाँ पर घिसाव की संभावना होती है वहाँ यह उपयोगी साबित होता है। इससे उस वस्तु की आयु बढ़ती है। जब कार्यवस्तु पर होने वाले छिद्रों के बीच की दूरी कम होती है तब इस प्रकार का लाइनर इस्तेमाल करना अनिवार्य होता है। चित्र क्र. 4 अ और 4 ब में हेडेड कॉलर लाइनर दिखाया गया है। कॉलर के नीचे अंडरकट/ग्रूव बनाया होता है। इससे लाइनर छिद्र में ठीक से बैठता है। जब ड्रिल बुश में प्रवेश करता है तब लाइनर पर दबाव आ जाता है। यह क्रिया बार बार होने के कारण लाइनर नीचे निकल सकता है, लेकिन कॉलर की वजह से वह उसी जगह पर अटका रहता है। इसलिए ज्यादातर कॉलर वाले लाइनर का प्रयोग किया जाता है। डिजाइन करते समय कई जगहों पर लाइनर का प्रयोग होता है। यहाँ तक कि ख.उ. इंजन में भी इंजन की आयु बढ़ाने हेतु प्रधान बैरल में लाइनर बिठाए जाते हैं। पहला सेट खराब हो जाने पर उसे बदल कर और आवश्यक यंत्रण कर के फिर से वही इंजन काम कर सकता है।
ब. फिक्स जिग बुश (कस कर बिठाया हुआ) : जिग बुश दो तरह के होते हैं, कॉलर के साथ एवं बिना कॉलर के। लाइनर और जिग बुश का अंदरुनी व्यास का टॉलरन्स भिन्न होता है। ये बुश जिग में प्रेस फिट कर के बिठाए जाते हैं। ये जिग बुश कठोर किए जाते हैं। लाइनर में बुश बैठ जाता है लेकिन जिग बुश में ड्रिल प्रवेश करता है। ड्रिलिंग के दौरान इस बुश से चिप बाहर निकलते समय होने वाले घर्षण की वजह से जिग बुश प्लेट से ऊपर निकल कर आ सकता है। इसलिए इस प्रकार के बुश तब इस्तेमाल करते हैं जब कम संख्या में कार्यवस्तुएं बनानी हो। जब अधिक मात्रा में कार्यवस्तुएं बनानी हो तो एक अलग सुविधा की जाती है ताकि चिप से बुश ऊपर ना निकले। यह हम स्लिप बुश में देखेंगे।
क. रीन्युएबल बुश (बदलने योग्य) : जब केवल एक ही माप के ड्रिल का प्रयोग करना हो तब रीन्युएबल बुश इस्तेमाल होता है। इस्तेमाल के साथ यह बुश खराब होने पर उसे निकाल कर नया बुश ड़ालना पड़ता है। इसीको स्लिप रीन्युएबल बुश कहते हैं। चित्र क्र. 5 अ में यह ब्लैंक दिखाया गया है। छिद्र न होने वाले तथा सेमीफिनिश किए हुए बुश को ब्लैंक कहते हैं। जब लॉकिंग स्क्रू खांच ‘A’ में बैठ जाता है तब यह बुश स्लिप रीन्युएबल बुश जैसा काम करता है। चित्र क्र. 5 ब देखिए। बुश में से ऊपर आने वाली चिप बुश को ऊपर की तरफ धकेलती हैं परंतु लॉकिंग स्क्रू के कारण बुश उसी जगह पर टिका रहता है और गोल भी घूम नहीं सकता। इससे बुश का अंदरुनी व्यास धीरे धीरे खराब होता है और कुछ समय बाद नया बुश ड़ालना पड़ता है। चूंकि लाइनर का अंदरुनी व्यास कठोर होता है, वह खराब नहीं होता।
ड. स्लिप बुश (निकाल कर बिठाने योग्य) : स्लिप बुश एवं स्लिप रीन्युएबल बुश एक ही ब्लैंक से बनाए जाते हैं। जब लॉकिंग स्क्रू खांच ‘B’ में बैठ जाता है तब यह बुश स्लिप बुश की तरह काम करता है। चित्र क्र. 5 ब देखिए। जब एक ही केंद्रबिंदु पर अनेक टूल का प्रयोग करना हो तब इस बुश का इस्तेमाल सुलभता से कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर मानिए कि हमें Ø 10.0 मिमी. व्यास का क7 फिनिश वाला छिद्र बनाना है। इसके लिए हमें Ø 9.5 मिमी. ड्रिल, Ø 14 मिमी. ड्रिल (चैम्फर हेतु) और Ø 10 मिमी. ड्रिल (रीमर के लिए) इन तीन टूल का प्रयोग एक ही केंद्रबिंदु पर करना है। ऐसी स्थिति में 9.5, 14.0, 10.0 मिमी. व्यास के अलग अलग तीन स्लिप बुश इस्तेमाल करना आवश्यक है। Ø 9.5 मिमी. ड्रिल का काम होने के बाद ड्रिल तथा बुश निकाल कर उस स्थान पर Ø 14.0 मिमी. की ड्रिल और बुश का इस्तेमाल, चैम्फर के लिए करना पड़ता है। इसके पश्चात द्भ 10.0 मिमी. का रीमर एवं बुश के उपयोग से छिद्र को फिनिश दिया जाता है। इस प्रकार, Ø 10.0 मिमी. का क7 छिद्र बनाने हेतु तीन बार टूल तथा बुश बदलने पड़ते हैं। यह बुश बदलने में बहुत ही कम समय लगता है। चूंकि बुश को आगे की तरफ से चैम्फर दिया होता है, उसे लाइनर में ड़ालने में कोई दिक्कत नहीं होती। निश्चित अवधि के बाद ये बुश रद्द कर के नए बुश का प्रयोग किया जाता है। ड्रिलिंग मशीन स्पिंडल पर तत्काल टूल बदलने वाले चक धारक (क्विक चेंज ड्रिल चक) का प्रयोग होता है। इस कारण मशीन स्पिंडल को रोके बिना टूल बदल सकते हैं। इस तरह के धारक में आरीय एवं समानांतर फ्लोट होता है। इस वजह से मशीन के अक्ष और फिक्श्चर के अक्ष में मामुली फर्क होने से भी कार्यवस्तु की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं होता।
कोनिकल सीट तथा स्फेरिकल वॉशर
इनका प्रयोग बहुत ही बड़ी मात्रा में होता है। असल में इनके बिना जिग बनता ही नहीं है क्योंकि कार्यवस्तु पकड़ने हेतु क्लैम्प जरूरी होता ही है। जैसे कि चित्र क्र. 6 अ में दिखाया गया है, हील पिन की ऊंचाई जरूरत के अनुसार कम या ज्यादा की जा सकती है। परंतु कार्यवस्तु के माप में फर्क होता है, जिससे क्लैम्प तिरछा (इन्क्लाइन) होता है। इस स्थिति से संगत होने हेतु कोनिकल सीट (चित्र क्र. 6 अ) तथा स्फेरिकल वॉशर (चित्र क्र. 6 क) का प्रयोग करना पड़ता है। इससे भले ही कार्यवस्तु के माप में फर्क हो, वह कस कर पकड़ी रहती है। यहाँ प्लेन वॉशर की मदद से कार्यवस्तु को प्रभावशाली तरीके से पकड़ा नहीं जा सकता। क्लैम्प स्टड एवं हील पिन का कार्य हमने पहले ही जाना है।
रेस्ट पैड (रिलीफ के साथ)
इस तरह के पैड बना कर रखे जाते हैं ताकि कार्यवस्तु जिग में ठीक से बैठे। कार्यवस्तु के निरंतर संपर्क में रहने से वे घिस जाते हैं या कभी कभी टूट भी सकते हैं। इसलिए उनका मानकीकरण (स्टैन्डर्डाइजेशन) किया जाता है तथा नए हिस्से तुरंत बिठाए जाते हैं। उनकी मोटाई (H) बहुत ही कठोरता से नियंत्रित की जाती है (चित्र क्र. 7)। ये पैड कठोर बना कर ही इस्तेमाल होते हैं। ये कप, स्क्रू की सहायता से जिग पर बिठाए जाते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इनका कार्यवस्तु से न्यूनतम संपर्क हो।
जिग एवं फिक्श्चर में हमेशा इस्तेमाल होने वाले कुछ भागों के बारे में हमने जानकारी ली है। अगले पाठ में हम कुछ और भागों की जानकारी पाएंगे जो आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं। साथ ही जैक सपोर्ट और उनके कार्य के बारे में भी हम जानकारी लेंगे।
0 9011018388
ajitdeshpande21@gmail.com
अजित देशपांडेजी को जिग और फिक्श्चर के क्षेत्र में 36 सालों का अनुभव है। आपने किर्लोस्कर, ग्रीव्ज लोंबार्डिनी लि., टाटा मोटर्स जैसी अलग अलग कंपनियों में विभिन्न पदों पर काम किया है। बहुत सी अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में और अठअख में आप अतिथि प्राध्यापक हैं।