रीग्राइंडिंग, रीकंडिशनिंग

04 May 2019 16:11:43
यंत्रण के दौरान इस्तेमाल किए गए टूल का बड़ा असर, बनाए जाने वाले पुर्जे की गुणवत्ता एवं कीमत पर होता है। उपयोग के बाद टूल घिस जाता है। टूल को फिर से मूल स्वरूप में लाने हेतु उस पर रीग्राइंडिंग तथा रीकंडिशनिंग प्रक्रियाएं की जाती हैं, जिनकी जानकारी आप इस पाट में पढ़ेंगे।

Regrinding, Reconditioning
 
किसी भी उद्योगपति को, आज की कड़ी प्रतिस्पर्धा की दुनिया में, या हमेशा ही अपने उत्पाद या सेवा प्रदान करने के लिए आने वाला खर्चा घटाने की जरूरत महसूस होती आ रही है। इसके लिए यह हमेशा देखा जाता है कि निर्माण में प्रयोग किए जाने वाले हर घटक का योग्य इस्तेमाल हो रहा है।
 
यंत्रण की प्रक्रिया में यंत्रण हेतु इस्तेमाल किया जाने वाला टूल, उत्पाद की गुणवत्ता तथा कीमत पर परिणाम करने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है। इस कारण, उसके सही इस्तेमाल का विचार हमेशा करना पड़ता है। उपयोग के बाद खराब होने वाले या घिसने वाले टूल फेंक देने के बजाय उनका फिर से इस्तेमाल करने के लिए उनकी रीग्राइंडिंग या रीकंडिशनिंग करते हैं। इन दोनों प्रक्रियाओं में टूल को उसके मूल रूप में लाने हेतु रीग्राइंडिंग किया जाता है। रीग्राइंडिंग किए हुए टूल पर परत (कोटिंग) चढाई गई हो, तब कहते हैं कि वह टूल रीकंडिशन किया गया है।
 
सामान्यतः छिद्र बनाने के टूल सॉलिड कार्बाइड के इस्तेमाल से बनाए जाते हैं। टूल बनाने के लिए एच.एस.एस. और टंग्स्टन कार्बाइड यह दो धातु सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। एच.एस.एस. टूल घिस जाने पर उनको फिर से ग्राइंड कर के इस्तेमाल करना प्रथागत है। सी.एन.सी. मशीन में कार्बाइड टूल का उपयोग, एच.एस.एस. टूल की तुलना में, अधिक पैमाने पर किया जाता है। यद्यपि कभी कभी वे पारंपरिक मशीन में भी इस्तेमाल होते हैं।
 
कई प्रधान एवं बड़े टूल उत्पादक, टंग्स्टन कार्बाइड टूल बनाने तथा रीग्राइंडिंग के लिए, सी.एन.सी. टूल ऐंड कटर ग्राइंडर का इस्तेमाल करते हैं।
 
रीग्राइंडिंग करते समय हमेशा टूल के सिरे के घिसे हुए भाग की ग्राइंडिंग की जाती है। अगर वह टूल छिद्र करने वाला होगा और घिसा हुआ होगा, तो उसका इस्तेमाल कितनी गहराई तक छेद करने के लिए किया जाता है, इस बात के मुताबिक उसका निचला हिस्सा घिसता है। उसके इस्तेमाल किए गए हिस्से की ‘रफिंग’ की जाती है या घिसा हुआ भाग काट कर नए सिरे की फिर से ग्राइंडिंग कर के उसे अपेक्षित ज्यामितीय आकार (एंड पॉइंट जॉमेट्री) देना पड़ता है। यह प्रणाली सभी ड्रिल के लिए अपनाई जाती है। खास कर के यदि होल मिल में पूरी लंबाई का इस्तेमाल होता होगा तो, रीग्राइंडिंग करते समय, ड्रिल का व्यास उसकी पूरी लंबाई पर कम किया जाता है। पूरी रीग्राइंडिंग कर के नया टूल बनाया जाता है।
 
Before regrinding and after regrinding
 
रीग्राइंडिंग के बाद परत का काम होता है। इस काम में कई कुशल व्यावसायिक हैं, इसलिए रीग्राइंडिंग हो जाने और कटिंग एज तैयार हो जाने के बाद, इन कुशल व्यावसायिकों के पास उसे परत के लिए भेजा जाता है। परत कितनी एवं किस प्रकार की करनी है यह निर्णय परत करने वाला उद्योजक, ग्राहक की आवश्यकता के अनुसार या ग्राहक से जो समझौता होगा, उसके अनुसार लेता है।
 
टंग्स्टन कार्बाइड के टूल इस्तेमाल करते समय सी.एन.सी. मशीन विशिष्ट गति से चलाना जरूरी होता है, क्योंकि इसमें आवर्तन काल (साइकिल टाइम) बढ़ने की संभावना होती है। टूल की ज्यामिती इस्तेमाल के कारण खराब हो गई हो तो आवर्तन काल बढ़ जाता है। इसलिए सी.एन.सी. मशीन पर उपयोग किए जाने वाले टूल अचूकता से रीग्राइंडिंग करके वे उनके मूल आकार में लाए गए हो तो योग्य पैरामीटर का प्रयोग कर के, मनचाही गति से उत्पादन कर सकते हैं।
 
रीग्राइंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मशीन
 
इसके लिए इस्तेमाल हो रहे मशीन में (टूल और कटर जैसे) किसी भी प्रकार की ग्राइंडिंग कर सकते हैं लेकिन टूल की ग्राइंडिंग की विधि में ऑपरेटर की कुशलता महत्वपूर्ण एवं जोखिम की (क्रिटिकल) होती है। आयात किए हुए कुछ मशीनों में, वे पारंपरिक होने के बावजूद, उनके साथ आने वाले जोड़ (अटैचमेंट) की वजह से ऑपरेटर की कुशलता की जरूरत कम होती है। उसका इस्तेमाल एच.एस.एस. टूल के सिरे की ज्यामिती बनाने के लिए किया जाता है। टूल के फ्लूट की जड़ तक रीग्राइंडिंग कर सकते हैं।
 
अब टंग्स्टन कार्बाइड के टूल के लिए इस्तेमाल होने वाले मशीनों की जानकारी लेते हैं। रीग्राइंडिंग मशीनों के बाजार में 20% हिस्सा भारतीय उत्पादकों की मशीनों का है। साथ ही कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारत में बनी हुई मशीनें बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं। बाजार में उनका हिस्सा करीब 60% से 70% तक है। बाजार पर एक नजर ड़ाली जाए तो आपको एक भारतीय बनावट की और कोई विदेशी उत्पादक की मशीन दिखाई देगी। इनका उपयोग कुछ जटिल काम, जैसे कि ज्यामितीय आकार देना या अन्य समरूप कामों के लिए कर सकते हैं। विदेशी कंपनियों में से ANCA कंपनी की मशीनें उनके खास साफ्टवेयर इंटरफेस तथा 100% स्वचालित प्रणाली की वजह से ज्यादा लोकप्रिय हैं।
 
हमारे यहाँ TGT और ANCA मशीन हैं। भारत में बनाई हुई AGT मशीन पर हम प्रारंभिक यानि मोटा (रफिंग) काम करते हैं और चूंकि ANCA मशीन से सारे ज्यामितीय काम तेज गति से कर सकने के कारण रीग्राइंडिंग के काम उस पर करते हैं।
 
regrinding tools
 
रीग्राइंडिंग के बाजार पर एक नजर
 
आजकल प्रति पुर्जा एक एक पैसे की भी लागत घटाने के बारे में सोचा जाता है और इसीलिए रीग्राइंडिंग के कारण होने वाली बचत का महत्व बढ़ रहा है। आज कई उत्पादक रीग्राइंडिंग करने वालों के साथ विशिष्ट उत्पादन से संबंधित समझौता करते हैं। यानि कि रीग्राइंडिंग करने वाला उत्पादक, अपने टूल के इस्तेमाल से विशिष्ट संख्या में पुर्जे बनाने का/छिद्र करने का जिम्मा लेता है और तैयार होने वाले हर पुर्जे पर कितनी कीमत मिलेगी यह बात ग्राहक के साथ तय करता है। कुछ उत्पादक ऐसा भी प्रस्ताव लाते हैं कि अगर उनसे टूल खरीदा गया तो वे दो/तीन बार उसका रीग्राइंडिंग कर देंगे। ग्राहक कौन है और वह कितनी रकम देगा इस बात पर यह व्यावसायिक नीति अपनाई जाती है।
 
CNC Grinding Tool
 
आज रीग्राइंडिंग का महत्व बहुत बढ़ गया है, जिसमें प्रमुख रूप से स्थानीय उत्पादक ही हैं, अंतर्राष्ट्रीय उत्पादक ज्यादा नहीं हैं। सिर्फ महाराष्ट्र का टूल का बाजार 120 से 150 करोड़ रुपयों का है। उसमें रीग्राइंडिंग का हिस्सा 20-30% है। हर टूल कम से कम पांच से छ: बार रीग्राइंडिंग कर के इस्तेमाल किया जाता है।
 
इसमें इन्सर्ट ग्राइंडिंग का समावेश नहीं है क्योंकि थोड़े ही लोग यह काम करते हैं। इसकी व्याप्ति ज्यादा बढ़ नहीं सकी है क्योंकि रीग्राइंडिंग किए हुए इन्सर्ट का उपयोग सिर्फ पारंपरिक मशीनों पर ही हो सकता है। बाजार में सी.एन.सी. मशीनआने के बाद उत्पादकता को अधिक महत्व दिया जाने लगा, जिससे इन्सर्ट का रीग्राइंडिंग धीरे धीरे बंद होने लगा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां रीग्राइंडिंग के व्यवसाय में हैं, लेकिन वे केवल अपने ही उत्पाद के लिए यह काम करती हैं, अन्य व्यावसायिकों के लिए वे रीग्राइंडिंग नहीं करती हैं। ‘केनामेटल’ कंपनी का रीग्राइंडिंग का अलग विभाग है। ‘सैंडविक’ कंपनी भी उनके उत्पादन के लिए यह सेवा देती है। आजकल कई नए व्यावसायिक इस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जो किसी भी उत्पादक द्वारा बनाए हुए टूल की रीग्राइंडिंग कर के देते हैं।‘ओ.एस.जी.’ इस क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी है, जिसका रीग्राइंडिंग केंद्र पुणे के नजदीक भोसरी में स्थित है।
 
अब धीरे धीरे स्थिति बदलने लगी है। रीग्राइंडिंग अब दूसरी श्रेणी का व्यवसाय नहीं रहा है, बल्कि यह स्वयंधारी बन गया है। लेकिन हर बहुराष्ट्रीय कंपनी की अपनी पेटेंट की हुई ‘जॉमेट्री लाइन प्रोसेस’ होती है, जो अन्यों के साथ बांटी नहीं जा सकती। इसी कारण इस प्रकार के स्वतंत्र व्यवसाय पर मर्यादा आती है।
 
आयात की हुई कोई भी मशीन बेची जाने पर उत्पादक ग्राहक को उस मशीन की ज्यामितीय रचना देता है, जो केवल उस उत्पादक से ही जुड़ी होती है। कभी कभी कुछ ज्यामितीय रचनाएं गोपनीय रखी जाती हैं, मशीन के साथ नहीं दी जाती हैं। ग्राहक की जरूरत के मुताबिक विशिष्ट डिजाइन का टूल बनाया जाने पर उसे ‘कस्टम टूल’ कहा जाता है। सामान्यत: सिरे की ज्यामितीय रचना (एंड जॉमेट्री) में कोई बदलाव नहीं होता है। इसलिए कटिंग का काम करने वाली ज्यामितीय रचना वही रहती है और उस व्यास के किसी भी टूल पर वैसी ही दिखाई देती है।
 
state-of-the-art testing system
 
नए परिवर्तन
 
पहले एच.एस.एस. की जरूरत पड़ने पर जनरल पर्पज एच.एस.एस. का इस्तेमाल किया जाता था। अब इसमें बदलाव आ रहा है, अब खास एच.एस.एस. मशीन का अर्थात उच्च श्रेणी के एच.एस.एस. मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। घिसाव को यह अधिक अवरोध (वेअर रेजिस्टंस) करता है। पारंपरिक मशीन के लिए पहले की ही तरह एच.एस.एस. टूल का इस्तेमाल किया जाता है। सी.एन.सी. मशीन में कार्बाइड टूल का प्रयोग होता है क्योंकि इससे अधिक उत्पादकता मिलती है।
 
कोई भी विक्रेता जब टूल बेचने के लिए आता है तब यह मांग की जाती है कि रीग्राइंडिंग के बाद मिलने वाली उत्पादकता मूल टूल के जितनी हो। पहले दिनों में, टूल अच्छा होने के बावजूद अगर आवश्यक उत्पादन नहीं देते थे, तो ग्राहक उसे फेंक देते थे। उस टूल से संबंधी उत्पादन की जानकारी दर्ज न की होने के कारण टूल की आयु (टूल लाइफ) का व्यर्थ होना मालूम नहीं होता था। लेकिन अब प्रक्रिया में सुधार हो रहे हैं। विविध प्रकार से उत्पादन का ब्योरा अंकित किया जाता है, जिसके कारण ग्राहक मांग कर सकता है कि एक टूल के इस्तेमाल से विशिष्ट संख्या में पुर्जों का उत्पादन होना चाहिए। अगर उतना उत्पादन नहीं हुआ तो टूल की आपूर्ति करने वाले से इसके बारे में सवाल कर सकता है। रीग्राइंडिंग के व्यवसाय में आजकल यंत्रण करने वाली कंपनियां आपूर्तिदार के साथ, टूल की आयु अथवा निर्माण किए जाने वाले पुर्जों की संख्या जैसे मुद्दों पर समझौता कर के, अपनी बाजू सुरक्षित करती हैं। इन कंपनियों में उत्पादन होने वाले पुर्जों की संख्या बढ़ती जाने से, एक बार प्रक्रिया सेट हो जाने पर, बिना मशीन बदले उन पुर्जों का उत्पादन शुरु ही रखा जा सकता है। चूंकि पुर्जों की रचना में कोई फर्क नहीं पड़ता है, टूल की जिम्मेदारी लेने वाले या रीग्राइंडिंग का खर्चा उठाने के लिए तैयार होने वाले आपूर्तिदार को प्राथमिकता दी जाती है। यह नई पद्धति अब शुरु हुई है।
 
Table 1
 
पहले सी.एन.सी. उत्पादन में पुराना घिसा हुआ पुर्जा हटा कर रीग्राइंडिंग करते समय उसकी ज्यामितीय रचना नई बनाने का रिवाज था। सी.एन.सी. उत्पादन में अब एज कंडिशनिंग पर अधिक ध्यान दिया जाता है। रीग्राइंडिंग करने के बाद, परत करने से पहले एज प्रिपरेशन करते हैं। परत करने वाले उत्पादक, एज पर खास प्रक्रिया कर के अपने ग्राहक को उस टूल की अधिक से अधिक आयु दिलाने की कोशिश करते हैं।
 
 
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parikshit@sbanjan.com
परीक्षित बंजन
‘एस. बंजन ऐंड कंपनी इंडिया प्रा. लि.’ कंपनी के संचालक हैं। आपको टूलिंग और टूल रीग्राइंडिंग क्षेत्र का दीर्घ अनुभव है।
 
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