उद्योगक्षेत्र में पिछले 2 महीनों में कई आश्वासक घटनाएं सामने आई हैं। एक तो, केंद्र सरकार को अक्टूबर में मिली जीएसटी राशि ने पहली बार 1 लाख करोड़ का आंकड़ा पार किया है जो पिछले साल की इसी तिमाही की तुलना में करीबन 10% अधिक है। उत्पादन क्षेत्र से प्राप्त आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं। कारखानों की कुल बिक्री का गणन, ‘मैन्युफैक्चरिंग पर्चेसिंग मैनेजर इंडेक्स’ द्वारा किया जाता है। यह निर्देशांक अक्टूबर में 58.9 था। यह अंक पिछले पूरे दशक में आज सर्वाधिक बढ़ा हुआ दिखता है। दूसरी बात है भारत सरकार ने जुलाई में शुरु की नई ‘उद्यम पंजीकरण’ ऑनलाइन प्रणाली की, जिस पर 11 लाख से भी अधिक नए MSME उद्योगों ने अपना पंजीकरण किया है। इन पंजीकृत उद्योगों में से उत्पादन क्षेत्र के 3.72 लाख संगठन हैं।
नया उद्यम शुरु करते समय बाजारों का झुकाव तथा भविष्यकालीन मौकों का विचार करना और साथ हीउसमें नवीन तकनीक का समावेश करना अपेक्षित होता है। आगे की वित्तीय तरक्की, संपूर्णत: उच्च तंत्रज्ञान पर आधारित एवं भविष्यवेधी रहने वाली है। ‘जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट’ यह संकल्पना अब केवल एक अपेक्षा नहीं बल्कि जरूरत बन रही है। गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए, अपनी कार्यपद्धति में शामिल चुनिंदा पारंपरिक तरीके बदल कर, नई कार्यसंस्कृति अपनाना आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर, 'प्रेडिक्टेबल बिहेवियर' का मतलब है अनुमानित वर्तन। यह कार्यसंस्कृति हमारे उद्योगों में फिलहाल कम ही दिखती है। जापान और जर्मनी की कार्यसंस्कृति काचाल्लेख उद्योगक्षेत्र में विविध स्तरों पर हमेशा किया जाता है। निर्देशित समय पर नियत काम पूरा किया जाना अनिवार्य है, यह मानसिकता वहाँ के नागरिकों में 100% अंतःस्थापित हो चुकी है।
अन्य अहम् मुद्दा यह है कि हम भारतीय लोग, जानकारी के जतन तथा संवर्धनके मामले में आज भी बहुत पीछे हैं। किसी वस्तु के निर्माण के बाद सभी संबंधी जानकारी तथा दस्तावेज ठीक से जतन न किए जाने के कारण ये बातें अगले उपयोगकर्ताओं तक हूबहू हस्तांतरित नहीं होती। जापान और जर्मनी जैसे देशों की कार्यपद्धति में, अनुसंधान तथा उत्पाद, उस दौरान की सफलताएं एवं चुनौतियां आदि की ब्योरेवार प्रविष्टियां सही समय पर उपलब्ध रहती हैं। फलस्वरूप, कर्मचारी बदलने का असर उत्पादन प्रक्रिया पर नहीं होता। इस प्रकार के कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हमारी कार्यसंस्कृति में होना अपेक्षित है।
धातुकार्य का यह अंक मापन और गेजिंग से संबंधित है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, चूंकि बाजारों में 'जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट' की जरूरत व्यक्त हो रही है उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ानी हो तो उनकी जांच करने वाले उपकरण भी आधुनिक तकनीक पर आधारित होने चाहिए। डिजिटल उपकरणों से प्राप्त जानकारी का उपयोग सही तरीकों में किया गया तो उससे मिलने वाले लाभ निःसंदेह उच्च स्तर के होते हैं। मापन क्षेत्र के नए उत्पांद तथा तंत्रज्ञान की जानकारी, गुणवत्ता के संदर्भ में देने का प्रयास हमने इस अंक में किया है। नए उत्पाद इस विभाग में, मारपॉस ने पेश किए IWAVE2 यांत्रिकी बोर गेज की जानकारी मिसालों के साथ दी गई है। पुर्जों की 100% जांच के बजाय नमूना जांच करने की पद्धति को पूरक एयर इलेक्ट्रॉनिक गेजिंग और ऑनलाइन SPC पद्धति ट्राइमॉस ने विकसित की है। इसके बारे में, उदाहरण के साथ गहरा भाष्य करने वाला लेक आपको उपयुक्त होगा। सी.एम.एम. जांच यंत्रणा विस्तारपूर्वक स्पष्ट करने वाला लेख मापन विभाग में है जो, ‘अॅक्युरेट’ने वह मशिन भारत में विकसित करते समय उठाए कष्ट तथा उसके पीछे की सोच आप तक पहुंचाएगा। इंडस्ट्री 4.0 का नया तंत्रज्ञान और गेजिंग क्षेत्र में होने वालेतीउसके प्रभावशालि इस्तेमालसंबंधी का लेख आपको यकीनन उपयुक्त होगा। QVI कंपनी ने LFOV तकनीक पर आधारित मशीन विकसित की है, जिसके बारे में स्वचालन विभाग में समाविष्ट लेख द्वारा बताया गया है। ‘यंत्रगप्पा’ वेबिनार के दूसरे सत्र में, ‘स्पिंडल क्यों बिगड़ती हैं?’ इस विषय पर विचारविमर्श किया गया। उसका वार्तालाप धातुकार्य पाठकों के लिए इस अंक में दिया गया है। इनके अलावा वित्तीय नियोजन, जिग्ज अँड फिक्श्चर, सी.एन.सी. प्रोग्रैमिंग, टूलिंग में सुधार आदि नियमित लेखमालाएं भी इस अंक में हैं, जो आपको रोजमर्रा के कामों में जरूर उपयुक्त साबित होती होगी।
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दीपक देवधर
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