क्या लड़की मेकैनिकल इंजीनीयर बन सकती है?...क्यों नहीं! निश्चित बन सकती है। प्रस्तुत लेख का आरंभ इस सवाल से करने का एक निश्चित प्रयोजन है। हर जगह 8 मार्च, विश्व महिला दिन के रुप में मनाया जाता है। इंटरनेट पर इससे संबधित जानकारी खोजते समय एक मजेदार परंतु विचित्र प्रश्न संगणक के पटल पर देखा, ‘Can a girl become a Mechanical Engineer?’ वास्तव में आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें महिलाएं काम ना करती हो। फलां काम महिला का और कोई विशिष्ट काम पुरुष का... यह फासले जब मिट रहे हैं तब पुरुषों के माने जाने वाले इस क्षेत्र में अब महिलाएं अपना स्थान मजबूत कर रही हैं। इसी कारणवश संगणक के पटल पर उभरे उस सवाल ने सोचने पर मजबूर कर दिया।
अंतरिक्ष, विमान, बैंकिंग, शिक्षा, खेती से भवननिर्माण तक कई उत्पादन तथा सेवा क्षेत्र में अनेक महिलाएं काम कर रही हैं। हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपना कर्तृत्व सिद्ध किया हैं, वें पूरे सामर्थ्य के साथ कार्यरत हैं और कामयाबी हासिल कर रही हैं। सभी क्षेत्रों में अपना उत्तरदायित्व सफलता से निभाने वाली महिलाओं को 'उद्यम' परिवार की ओर से महिला दिन की शुभकामनाएं!
मेकैनिकल इंजीनीयरिंग का क्षेत्र केवल पुरुषों का माना जाता था। बड़ी मशीनें और महिलाओं की शारीरिक क्षमता के संदर्भ में यह क्षेत्र महिलाओं के लिए अनुकूल नहीं समझा जाता था। कुछ साल पहले सवाल उपस्थित किए जाते थे कि क्या महिलाएं ये काम कर सकती हैं? क्या मर्दों के बराबरी में वें काम कर पाएगी? महिलाओं के लिए काम करने की यह जगह नहीं है ऐसा भी बोला जाता था। परंतु इन प्रश्नों को ध्वस्त कर के आज अनेक महिला अभियंता/कर्मचारी शॉप फ्लोर पर काम करती हुई दिखाई देती हैं।
भारत की विभिन्न अग्रणी ऑटोमोबाइल कंपनियों में जॉब हैंडलिंग, मशीन ऑपरेशन, डिजाइनिंग, मेजरमेंट विभाग, टेस्टिंग विभाग, साफ्टवेयर, ऑटोमेशन, ऑपरेशन, अनुसंधान एवं विकास, बिक्री जैसे सभी विभागों में प्रबंधक, मुख्य प्राधिकारी, शॉप कर्मचारी आदि विभिन्न रुपों में महिलाओं का अस्तित्व विस्तारित हो रहा है। स्त्री-पुरुष अनुपात बनाए रखने की आवश्यकता और उसे पूरक नीतियों के कारण अनेक राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय संगठनों में महिला अभियंताओं तथा कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है। महिलाओं की काम में अचूकता, एकाग्रता, अखंड़ता, एक समय पर कई काम करने की (मल्टिटास्किंग) कुशलता, चुनौती का सामना करने की क्षमता आदि गुणों के कारण अनेक कंपनियां महिलाओं को मौका दे रही हैं। महिलाएं भी आगे आ कर सारी जिम्मेदारियों का समर्थ स्वीकार कर रही हैं।
भारत की ऑटोमोबाइल कंपनियों में, निर्माण के साथ कई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां महिलाओं पर सोंपी जाती हैं। इस क्षेत्र के अग्रणी टाटा मोटर्स, महिंद्रा अैंड महिंद्रा, आइशर, हिरो मोटोकॉर्प जैसी अनेक कंपनियों के शॉप फ्लोर पर महिलाओं का सहभाग बढ़ रहा है। 'टाटा' में, 2025 के अंत तक शॉप फ्लोर के कुल कर्मियों में महिलाओं की संख्या 10% बढ़ाई जाएगी। तकनीकी/निर्माण क्षेत्र में समय समय पर प्रशिक्षा देने, सुरक्षा का भरोसा जताने तथा विभिन्न विकल्प उपलब्ध करवाने से यह संख्या निश्चित रुप से बढ़ सकती है। कई सालों से शॉप फ्लोर पर काम करने वाली महिलाएं जनरल शिफ्ट में काम करती दिखती हैं। इसमें बदलाव कर के, अन्य शिफ्ट में भी महिलाओं का समावेश करने हेतु टाटा कंपनी के प्रयास जारी हैं। फिलहाल 'टाटा' में 52 महिलाएं विभिन्न शिफ्ट में कार्यरत हैं। महिंद्रा अैंड महिंद्रा में, 2016 में, 23 महिलाएं थी जिनकी संख्या अब 650 के आगे निकल गई है। आइशर मोटर के रॉयल एन्फिल्ड टू वीलर विभाग की पूरी इंजन असेंब्ली लाइन 140 महिलाएं संभालती हैं। हिरो मोटोकॉर्प ने शॉप फ्लोर पर महिलाओं का सहभाग बढ़ाने हेतु 'तेजस्विनी' योजना रचाई, जिसके तहत असेंब्ली ऑपरेशन में विविध स्तर पर 160 से अधिक महिलाएं काम करती हैं। बजाज ऑटो के चाकण और पंतनगर प्लैंट में 'वुमन ओन्ली' असेंब्ली लाइन देखी जा सकती है, जहाँ 400 से अधिक महिलाएं काम करती हैं।
इन बड़े उद्यमों के साथ साथ सातारा की खुटाले इंजीनीयरिंग, पुणे की केटीए स्पिंडल टूलिंग जैसे लघु एवं मध्यम उद्योग और स्पाइसर इंडिया जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियो में बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं। प्रगति ऑटोमेशन के बंगलुरू, बेलगावि और कोल्हापुर स्थित कारखानों में भी परीक्षण, असेंब्ली तथा पैकिंग विभागों में महिलाएं काम कर रही हैं।
परंपराओं के बंधन और यांत्रिकी क्षेत्र में करिअर बनाने संबधी वितर्कों में ना उलझ कर शॉप फ्लोर पर काम करने वाली महिलाओं के मन में, शुरु में अपने काम को ले कर आशंका थी। किंतु इस क्षेत्र में किए अभ्यास के कारण, अपनी सक्षमता पर विश्वास रख के इस चुनौती को स्वीकार कर उन्होंने काम शुरु किया। आज एक अनपढ़ महिला भी, योग्य प्रशिक्षा की सहायता से पुने के एक कारखाने में उत्पादों के अंतिम परीक्षण का काम कुशलता से करती है, यह इस मुद्दे की उत्तम मिसाल है। योग्य प्रशिक्षा और जिद के बल पर वह अपने क्षेत्र तथा भविष्य के प्रति जागृत हो कर अधिक सक्रिय है।
विभिन्न कामों के लिए आज की नारी को अधिक सक्षम बनाने हेतु कंपनियां उन्हें कई स्तरों पर प्रोत्साहित कर रही हैं। ‘What's good for woman is good for society and what's good for society is good for business’... यह वाक्य कहीं पढ़ा था। इसका मतलब है 'महिला के लिए जो अच्छा वो समाज के लिए अच्छा, और जो समाज के लिए अच्छा वो व्यवसाय के लिए अच्छाI' जिनके कारखानों में महिला मशीन ऑपरेटर हैं ऐसे उद्यमीओं का यह कहना हैै की, 'शॉप फ्लोर पर महिलाओं का सहभाग बढ़ाने से वहाँ की सभ्यता एवं परिवेश में निश्चित रुप से सुधार आता है।'
हम कहाँ हैं और हमें क्या करना है इसका स्पष्ट बोध हर महिला को हो तो उसकी उन्नति तय है। इसके लिए महिलाओं ने आत्मविश्वास के साथ भिन्न दिशा में विचार करना आवश्यक है। 'जहाँ चाह वहाँ राह' होती है, सिर्फ खुद की तैयारी होनी चाहिए। महिला दिन के इस अवसर पर अगर हर एक महिला में यह अनुभूति जागृत हो तो यह दिन सफल होगा।
प्रियांका गुलदगड, सई वाबले
सहायक संपादक, धातुकार्य
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