लॉकडाउन के बाद व्यापार फिर से शुरु करनेमें मदद करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने जिस विशेष पैकेज की घोषणा की है उसकेबारे में हमने जुलाई 2020 केअंक में जाना। काफी समय से बंद रहे कारोबार फिर से शुरु करते समय, बहुत से उद्योगों की प्राथमिकता, टिके रहने की है। इसीलिए लॉकडाउन के पहले जो ऑर्डर प्रलंबित (पेंडिंग) थे, उनमें से जो ऑर्डरलॉकडाउन के बाद भी ग्राहकों को चाहिए, उन्हें जल्दी से जल्दी पूरा कर के बिलिंग शुरु करने की ओर उद्यमियों का ध्यान केंद्रितहै। इसके लिए केंद्र सरकार की विशेष ऋण योजना का लाभ उद्योगों को हो सकता है।
वर्तमान ऋण के 20% तक, रियायती ब्याज दर में आसानी से उपलब्ध होने वाला यह कर्ज, पुराने ऑर्डर के लिए लगने वाला कच्चा माल खरीदने, श्रमिकों को बकाया वेतन दे कर उन्हें काम पर रखने, आपूर्तिकर्ताओं के पुराने बिल अदा कर के नया माल उधारलेने आदि कामों की पूर्ती के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। पहली बात, यह कर्ज बैंक खुद बिना किसी अर्जी के देगी और उसे चुकानेके लिए भी बहुत समय मिलेगा। इसीलिए कार्यशील पूंजी (वर्किंग कैपिटल) केलिए बैंक की ओर से दिए जाने वाले कैश क्रेडिट या ओवरड्राफ्ट की तरह इस ऋण की अवधि एकसाल की नहीं होगी, बल्कियह कर्ज बैंक द्वारा कार्यशील पूंजी के लिए दिया हुआ 'टर्म लोन' ही साबित होगा।इस विशेष कर्ज पैकेज के अतिरिक्त, MSME क्षेत्र के लिए बिना अतिरिक्त गिरवी कर्ज योजनाएं लॉकडाउन के पहले से ही उपलब्धहैं। इसीलिए जिन उद्योगों पर फिलहाल कोई भी कर्ज ना होने के कारण ये नई योजनाओं केतहत विशेष कर्ज लेने के लिए पात्र नहीं हैं, ऐसे उद्योग भी आसान कर्ज उपलब्ध कराने वाली अन्य योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं।अर्थात इन सभी कर्ज योजनाओं में शामिल होने से पहले उद्यमियों ने ध्यान में रखना चाहिएकि इस योजना के अंतर्गत मिली राशि कर्ज के रूप में है जो उन्हें कभी-ना-कभी वापस करनी ही होगी और, रियायती दर से ही सही, ब्याज भी चुकाना ही होगा। इसीलिए कर्ज उठाने से पहले उसके विनियोग के बारे मेंअपनी वित्तीय योजना, ब्याजऔर मूल को वापस करने की दृष्टि से आपकी सक्षमता आदि मुद्दों पर उद्यमियों ने सोचविचारकरना जरूरी है, नहीं तो ऋण मेंमिली रकम गलत तरीके से खर्च हो जाएगी और मौजूदा कर्ज चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लेनापड़ेगा।
इस कर्ज के संदर्भ में वित्तीय योजनाबनाने के बारे में सोचते समय एक बात समझ लीजिए कि सरकार ने ये कर्ज योजनाएं इसीलिएदी हैं ताकि बंद कारोबार फिर से शुरु करते समय आवश्यक कार्यशील पूंजी यानि रोजमर्राके खर्चे निपटाने के लिए लगने वाले पैसों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति हो सके। इसीलिएइस बारे में की गई वित्तीय योजना में, मुख्य रूप से 'वर्किंगकैपिटल मैनेजमेंट' केबारे में सोचना जरूरी है। कार्यशील पूंजी, किसी भी व्यापार के लिए बहुत जरूरी होती है और अगर वह पर्याप्त मात्रा में, उचित समय एवं जगह पर नहीं मिली तो कारोबार का बड़ा वित्तीयनुकसान हो सकता है, चाहेवह कितना ही बड़ा और अच्छा क्यों ना हो। उचित वित्तीय प्रबंधन के बारे में समझाते हुएकई बार गाड़ी चलाने की मिसाल दी जाती है। गाड़ी ठीक से चला कर समय पर मनचाही जगह पहुंचनाहो, तो चालक को ड्राइविंगके कौशल के साथ ही, गाड़ीमें पर्याप्त मात्रा में ईंधन भरना तथा जहाँ जरूरत हो वहाँ गाड़ी को ब्रेक लगाना भीआवश्यक होता है। ईंधन के बिना तो गाड़ी चलेगी ही नहीं और सही जगह ब्रेक ना लगाने पर, तेज चलती गाड़ी टकरा कर दुर्घटना होगी और यात्रा रुक जाएगी।यानि ईंधन की आपूर्ति करना और ब्रेक लगाना, ये दोनों बातें उचित तरीके से नहीं की गई तो गाड़ी से यात्रा नहीं की जा सकती। यहीबात उद्योग के लिए भी सही है। यहाँ ईंधन की जगह कार्यशील पूंजी लेती है, जिसके प्रबंधन का महत्त्व यह मिसाल रेखांकित करती है।
विशेष पैकेज के अन्य प्रावधानों मेंअन्य कई बातें शामिल हैं, जैसे कि इन उद्योगों को देय सरकारी बिल45 दिन में अदा होना,E मार्केट उपलब्ध कराना, छोटी कंपनियों के शेयर केंद्र सरकार द्वारा खरीद कर उन्हें शेयर पूंजी की आपूर्तिकरना, NPA हुए कारोबारों कोनए सिरे से विशेष कर्ज की आपूर्ति आदि। अर्थात यह सभी योजनाएं सरकारी होने के कारणउनका वास्तविक लाभ पाने हेतु उद्यमियों को संबंधित सरकारी विभागों के पीछे पड़ना होगाताकि वे केवल कागज पर ना रहें।
इस विशेष पैकेज के अलावा, MSME क्षेत्र के लिए जो योजनाएं और कानून पहले से ही सरकारकी ओर से लागू किए जा चुके हैं, उद्यमी उनका भी लाभ कार्यशील पूंजी प्राप्त करने हेतु उठा सकते हैं। इसमें अहम्बात यह है कि MSME क्षेत्र के कई उद्योग, अधीनस्थ (अैन्सिलरी) या बड़े उद्योगोंसे संलग्न होते हैं। ऐसे उद्योगों को, बड़ी कंपनियों को उधार पर दिए माल या सेवा के पैसे समय पर मिलने में बहुत मुश्किलेंआती हैं। कार्यशील पूंजी अपर्याप्त होने का विपरित असर चलते उद्यम पर होने से उद्यमीका नुकसान होने लगता है। छोटे उद्योगों को इस मुश्किल से बचाने के लिए, 2006 से सरकार नेMSME Development कानून जारी किया है, जिसके तहत छोटे उद्यमियों के सारे देय, कंपनियों ने PO केप्रावधानों के अनुसार या 45 दिनों में चुकाने चाहिए। ऐसा ना करने पर, देरी के लिए तगड़ा ब्याज लागू होता है। ऐसी पुरानी लेनदारी हो तो, अपने व्यावसायिक रिश्ते संभल कर, छोटे उद्यमी बड़ी कंपनियों को इन प्रावधानों की याद दिलाकर अपनी वसूली की कोशिश कर सकते हैं।
उसी तरह बैंकों द्वारा छोटे उद्यमियोंको कर्ज देने के लिए ट्रेड रिसीवेबल डिस्काउंटिंग सिस्टम(TReDS) नामक योजना MSME क्षेत्र के लिए कार्यरत है। इसके अंतर्गत छोटे उद्यमी उन्हें देय होने वाली राशिका रूपांतरण, बिल डिस्काउंटिंगतरीके से, समय पर कार्यशीलपूंजी पाने हेतु कर सकते हैं। साथ ही लॉकडाउन का ध्यान रखते हुए सरकार ने GST और आयकर विवरण(IT रिटर्न) दाखिल करने तथा संबंधित कर भरने की अवधि भी बढ़ा दी है। कर सलाहकारों से और जानकारीले कर उद्यमी, ऐसी देनदारी आगेबढ़ा सकते हैं और उसी रकम के उपयोग से अन्य आपातकालीन जरूरतें पूरी कर सकते हैं।
कोरोना के इस संकट से निकल कर खड़े होतेसमय उद्यमियों ने केवल बने रहने का उद्देश्य नहीं रखना चाहिए बल्कि इस संकट को एक मौकामानना चाहिए। उद्योग प्रबंधन में आवश्यक बदलाव एवं सुधार करने चाहिए जिनके लिए आज तक, रोज की भागदौड़ में समय नहीं मिल पाया था। ऐसा करने सेही इन आस्थापनाओं की क्रमागत उन्नति हो कर वें बाजार में टिके रहनेलायक समझे जाएंगे।डार्विन के विकास सिद्धांत के अनुसार, जो प्रजातियां पर्यावरणीय बदलावों के अनुसार खुद में बदलाव लाती हैं, वें ही दीर्घकाल तक टिक पाती हैं और ऐसा ना करने वालीप्रजातियां नष्ट हो जाती हैं। उद्योग क्षेत्र के लिए कोरोना और उसके बाद का लॉकडाउनबहुत बड़ा संकट है और उसमें टिके रहने के लिए भी खुद में तथा उद्योग के प्रबंधन मेंसुधार करना बहुत जरूरी है।
इसके लिए उद्यमियोंने वित्तीय साक्षरता अपनाना आवश्यक है। कई छोटे उद्यमी आजतक इस विषय को क्लिष्ट औरअनुपयोगी समझते आए हैं जो अत्यंत गलत और हानिकारक है। जिस तरह गाड़ी चलाते समय डैशबोर्डपर दिखती जानकारी की ओर हम जितना ध्यान देते हैं और उसका फायदा उठाते हैं, उसी तरह फाइनैन्स और अकाउंट्स को देखना है। उसे केवल टैक्सरिटर्न भरने की वार्षिक औपचारिकता नहीं समझनी चाहिए। अकाउंट्स को व्यवसाय का अत्यंतमहत्त्वपूर्ण डैशबोर्ड मान कर तथा उसकी जानकारी हासिल कर कुछ हद तक वित्तीय रूप सेकाबिल होना बहुत जरूरी है। इसी वित्तीय सबलता का एक हिस्सा समझ कर, वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट के साथ ही MIS यानि वित्तीय स्थिति संबंधि मैनेजमेंट रिपोर्ट, बैलंस शीट और प्रॉफिट लॉस अकाउंट को समय पर समझना, GST के साथ ही अन्य वित्तीय कानूनों में महत्त्वपूर्ण प्रावधान, कॉस्टिंग जैसे अनेक विषयों की संकल्पना और तत्वों के बारेमें हम आने वाले लेखों में जानेंगे।
महाराष्ट्र के एक श्रेष्ठ संत तुकारामने कहा है, "प्रलय काल में बड़ेबड़े पेड़ गिर जाते हैं लेकिन घास बना रहता है।"ठीक उसी तरह, छोटे उद्योग अपने लचीलेपन के कारण कोरोना के बाद बदलने वाली वित्तीय व्यवस्था सेखुद को अधिक अच्छी तरह समायोजित कर सकेंगे। इस तरह के परिवर्तन अपनाते समय इन उद्योगोंको खुद की संरचना तथा कार्यपद्धति में कई बदलाव करने होंगे, जैसे कि वेबसाइट एवं eकॉमर्स का उपयोग करना, सोशल मीडिया द्वारा मार्केटिंग एवं प्रमोशन करना, स्वचालन का इस्तेमाल बढ़ाना, खरीदी एवं बिक्री नीतियां बदलना आदि। आने वाले लेखों में हम इन मुद्दों की भी जानकारीपाएंगे।