रुकावटों पर मात ( theary of constraints)

27 Jan 2021 12:52:20

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दीपक देवधर : प्रभुदेसाई सर, आपको ऐसा क्यों लगा कि अपनी कंपनी में थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स संकल्पना को अपनाना चाहिए?

पराग प्रभुदेसाई : बुलोज पेंट इक्विपमेंट प्रा. लि. यह कंपनी सरफेस कोटिंग क्षेत्र में स्टैंडर्ड गन से ले कर 'टर्नकी प्रोजेक्ट' तक सभी प्रकार के काम करती है। ठाणे और पुणे इन शहरों में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं। अैक्वा क्लीन सिस्टम प्रा. लि. यह हमारी अन्य कंपनी पार्टस् क्लीनिंग के संदर्भ में कार्यरत है।
हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम उत्पादों के निर्माण के साथ विभिन्न प्रोजेक्ट पर भी काम करते हैं। स्प्रे गन, प्रेशर फीड कंटेनर, पेंट शॉप ये हमारे स्टैंडर्ड उत्पाद हैं। हम पेंटिग प्लांट के टर्नकी प्रोजेक्ट करते हैं। चूंकि हर ग्राहक के अनुसार हर प्रोजेक्ट अलग (कस्टमाइज्ड्) होता है, हम उत्पाद और प्रोजेक्ट दोनों की तरफ एक ही नजर से नहीं देख सकते या देखना उचित भी नहीं होगा।

कई बार मटीरीयल की कमी रहती थी, तो कभी अतिरिक्त मटीरीयल होता था। इन्वेंटरी पर नियंत्रण नहीं था और ज्यादातर बिलिंग महीने के आखरी हप्ते में किया जाता था। हम हमारे डीलर को हमारे उत्पाद खरीदने का अनुरोध करते थे, लेकिन इसमें हमारी नकद के प्रवाह (कैश फ्लो) में बाधा आती थी। उत्पादों के संदर्भ में कहे तो, जानकारी के प्रबंधन हेतु हमारे पास एक्सेल में काम करने वाली व्यवस्था थी। हमारी ERP प्रणाली थी, लेकिन उसका इंटिग्रेशन ठीक नहीं था। उसमें प्रविष्टियां (एंट्रीज्) ठीक से नहीं होती थी। प्रोजेक्ट के संदर्भ में नीति तय की गई है कि जब भी कोई प्रोजेक्ट आता है, तब वह ग्राहक को अपेक्षित होने वाले समय में पूरा करना हमारा पहला कर्तव्य होता है। इसके लिए हमें उसमें समाविष्ट होने वाले हर काम का आवश्यक समय (टाइम लाइन) तय करना होता है। यह एक बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए किसी भी कंपनी में 2 प्रकार की धाराएं होती हैं, एक है डॉक्युमेंट फ्लो और दूसरा है मटीरीयल फ्लो। दोनों धाराएं अगर एक साथ चलती हैं तब वह उत्पाद या प्रोजेक्ट समय पर पूरा होता है।
सचिन शेटे और 'यज्ञ आंत्रप्रन्युयर्स' की टीम के साथ चर्चा करने के बाद हमें पता चला कि ये सारे प्रबंध ठीक करना जरूरी हैं और अपेक्षित बदलाव पाने हेतु उनकी टीम हमारे साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए हमने हमारे कारखाने में थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स पर काम करने का निश्चय किया।

दीपक देवधर : सचिन सर, बुलोज कंपनी की समस्याएं आपके सामने आने पर आपने किस प्रकार विचार किया? इसी के साथ हमें थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स के बारें में संक्षेप में बताइए।

सचिन शेटे : बुलोज कंपनी की सभी समस्याओं पर गौर करने के बाद हमने जाना कि वे एक दूसरे से जुड़ी (लिंक्ड्) हुई हैं। उसका हमने कॉज अैंड इफेक्ट अैनालिसिस किया, जिससे हमें उनकी समस्याओं का मूल कारण (रूट कॉज) मिला। हमें पता चला कि इन समस्याओं का मूल कारण प्रॉडक्शन मैनेजर के सामने खड़ी चुनौतियों में था। उसे एक तरफ, मैनेजमेंट को संतुष्ट रखने के लिए अधिकतम गन का निर्माण करना पड़ रहा था, तो दूसरी तरफ जिस ग्राहक की बैच साइज कम हो, जैसे कि 5 या 7 गन की ऑर्डर हो, उसे समय पर ऑर्डर पहुंचाने का काम भी करना होता था। मैनेजमेंट की संतुष्टि के लिए अधिकतम गन का निर्माण ये एक पैरामीटर था, जिसे पूरा करने हेतु मशीन की कार्यक्षमता नियमित रूप से अैक्टिवेट करनी होती थी। लेकिन दूसरा मुद्दा देखें तो, छोटे साइज का ऑर्डर भी समय पर पूरा करना उसकी जिम्मेदारी होती है। ऐसी उलझन में प्रोडक्शन मैनेजर फंसा हुआ था। तब हमें एक और कारण का भी पता चला। हमारे उद्योग क्षेत्र में रिवाज है कि जो मटीरीयल उपलब्ध है उसका ही अधिकतम उपयोग करो, वही चलाते रहो। इससे, जो मटीरीयल उपलब्ध नहीं होगा उससे संबधित उत्पादन देरी से होता है।

इन सभी के बारे में सोचने-समझने के बाद हमने एक उद्देश्य तय किया, बुलोज में उत्पादों का लीड टाइम कम करना। ऑर्डर मिलने से उसे डिस्पैच करने तक लगने वाला समय लीड टाइम होता है। लीड टाइम कम करने से अपनेआप अधिकतम क्षमता मिलती है। बुलोज में ऑन टाइम परफॉर्मन्स का अनुपात भी अपेक्षा से थोड़ा कम था। लीड टाइम कम करने से अपनी उपलब्धता, ड्यू डेट परफॉर्मन्स और क्षमता भी बढ़ती है।

हमने प्रोजेक्ट के संदर्भ में विस्तृत विश्लेषण करने का प्रयास किया जिससे पता चला कि उनका डिजाइन विभाग जिस गति से काम करेगा उसके अनुसार उनका आउटपुट बढ़ेगा। इसलिए हमने डिजाइन विभाग में सुधार करने का निश्चय किया। हमने अनुरूप नियोजन की शुरुआत की। इन सब के लिए यह थियरी किस प्रकार स्थापित की गई इस पर ध्यान देने से पहले, थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स इस सिस्टम के बारे में जानते हैं।

थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स यह सर्वसमावेशी (होलिस्टिक) थियरी है। इस थियरी का कहना है कि पहले समस्या के कारण तथा उसके होने वाले परिणाम (कॉज अैंड इफेक्ट का रिलेशन) समझ लेते हैं। प्रधान समस्या पर ध्यान केंद्रित करें, कंस्ट्रेंट्स छोड़ कर अन्य किसी पर भी ध्यान न दें। कंस्ट्रेंट का ठीक से पता चलने पर इस थियरी को वास्तव में लागू करने में आसानी होती है।

किसी भी उत्पादन श्रुंखला का जब हम विचार करते हैं, तब एक मशीन से मिलने वाला आउटपुट किसी दूसरे मशीन के लिए इनपुट होता है। दूसरे मशीन का आउटपुट तीसरे मशीन को दिया जाता है। जिस तरह किसी भी श्रुंखला की क्षमता उसकी सबसे कमजोर कड़ी से तय होती है, उसी प्रकार कारखाने की कार्यक्षमता उसके सबसे कम क्षमता वाले उपकरणों पर निर्भर करती है। उस कम क्षमता की मशीन के आसपास हमें बहुत सारा मटीरीयल कतार (क्यू) में दिखता हैं। इसका मतलब, जिसकी क्षमता अन्य की क्षमताओं की तुलना में कम होती है वह हमारी रुकावट अर्थात कंस्ट्रेंट होती है। यह पूरी थियरी इस कंस्ट्रेंट पर ही आधारित है। पहले खोजें कि रुकावट (कंस्ट्रेंट) क्या हैं। कारखाने में जो सुधार करने हैं, उन्हे करने के लिए केवल कंस्ट्रेंट पर ही ध्यान केंद्रित करें। अन्य स्थान पर ध्यान केंद्रित करना बेकार होगा। कंस्ट्रेंट का पता चलने के बाद, लाभ की दृष्टि से उस कंस्ट्रेंट को मिटाने के बजाय उसका प्रबंध कैसे करें, इस पर यह थियरी मार्गदर्शन करती है।

इस थियरी में खोजे गए कंस्ट्रेंट के प्रबंधन की दृष्टि से, ध्यान देनेयोग्य 5 चरण (फोकसिंग स्टेप्स) बताए गए हैं।
1. पहले खोजें कि कंस्ट्रेंट कहां है।
2. उस कंस्ट्रेंट को किस प्रकार पूरी तरह यानि 100% इस्तेमाल (एक्स्प्लॉइट) किया जा सकता है यह तय करें।
3. सबॉर्डिनेट एवरीथिंग एल्स। अन्य जो भी मशीन जहाँ भी अधिक क्षमता से काम कर रही हो, उनकी गति कम करें और निश्चित करें कि कंस्ट्रेंट के लिए जरूरी गति से अन्य सारे काम हो रहे हैं। यह चरण थोड़ा मुश्किल है लेकिन इसे करना अनिवार्य है।
4. उसके बाद ऑर्डर की संख्या और उपलब्ध संख्या इनमें अगर फिर भी भिन्नता हो, तो खोजे गए कंस्ट्रेंट की क्षमता बढ़ाए।
5. उपरोक्त सभी चरण पूरे करने के पश्चात अगर आपको लगता है कि पहले खोजा गया कंस्ट्रेंट अब नहीं है, तो उपर बताए चरणों पर फिर से काम करें ताकि अन्य कोई कंस्ट्रेंट हो तो उसे खोज सकते है।

थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स के तीन घटक हैं थ्रूपुट, निवेश और कार्यकारी खर्चे (ऑपरेटिंग एक्स्पेन्स)। वस्तु की कीमत से सिर्फ चल (वेरियेबल) लागत को घटा कर जो शेष रहता है उसे थ्रूपुट कहते है। हमारा कहना है कि जिस मात्रा से ऑपरेटिंग एक्स्पेन्स बढ़ते हैं उससे कई गुना थ्रूपुट बढ़ना चाहिए। एक निश्चित सीमा तक ऑपरेटिंग एक्स्पेन्स घटाए जा सकते हैं, लेकिन वे शून्य नहीं किए जा सकते। इसलिए हम थ्रूपुट बढ़ाने पर अधिक जोर देते हैं। यह करते समय ऑपरेटिंग कॉस्ट स्थिर रहे, निवेश कम हो और न्यूनतम इन्वेंटरी में अधिकतम उत्पादन हो इन मुद्दों पर हम अधिक ध्यान देते हैं। इस थियरी के इस्तेमाल से हम ज्यादा नकद पैदा कर सकते हैं। हम लीड टाइम कम करते हैं अर्थात कारखाने की क्षमता बढ़ाते हैं। जिस ऑर्डर को आप 10 दिन में पूरा करते थे, अब उसे आप 7 दिन में पूरा कर सकते हैं, तो बचे 3 दिन में आप अतिरिक्त ऑर्डर पूरे कर सकते हैं। फलस्वरूप आपका कारखाना अधिक नकद उत्पन्न कर सकता है।

कैश जनरेशन पर सोचे तो मैं बताना चाहूंगा कि थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स के इस्तेमाल से वह किस प्रकार हासिल किया जाता है। सबसे पहले, ड्यू डेट के संदर्भ से सभी प्रॉडक्ट की ऑर्डर की प्रधानता (प्रायोरिटी) तय करें। उसी अनुक्रम से सभी ऑर्डर पर काम करें। ड्यू डेट से स्पष्ट होता है कि किस तारीख को, हमने तय किए कंस्ट्रेंट द्वारा, उस उत्पाद पर प्रक्रिया होनी है। यानि कंस्ट्रेंट पर कब प्रक्रिया होना आवश्यक है यह तय है। योजना के अनुसार, उपलब्ध काम का वर्तमान स्थिति से वर्गीकरण करना भी जरूरी है। जिस पूर्वनिश्चित तारीख पर प्रक्रिया होना आवश्यक हो, वह छूटने पर उसे अलग रंग से दर्शाना। मानिए कि किसी ऑर्डर की नियत तारीख पास आई हो तो उसे अलग रंग से दर्शाना। अगर किसी ऑर्डर के लिए अधिक समय शेष हो तो उसे अन्य रंग देना, इस प्रकार भिन्न रंगो से उसका वर्गीकरण किया जा सकता है। इससे सारे ऑर्डर पर टीम के हर सदस्य का ध्यान रहता है और उन्हें ड्यू डेट से पहले पूरा किया जा सकता है।

ऑर्डर लेते समय हमारे लिए सुविधाजनक होने वाली चुनिंदा ऑर्डर को हमेशा प्राथमिकता दें, क्योंकि उसमें अधिक लाभ होता है। यही प्रयास हमने 'बुलोज' में किया है। पहले हमने टोटल कॉस्ट को वेरियेबल कॉस्ट, ट्रूली वेरियेबल कॉस्ट और फिक्स्ड् कॉस्ट इन तीन भागों में विभाजित किया। ऑर्डर चुनते समय पहले यह सोचना है कि उस ऑर्डर से कितना थ्रूपुट मिलेगा। अन्य सारे अप्रत्यक्ष (इनडाइरेक्ट) खर्चे हमनें बाजू में रख दिए। साथ ही हर हप्ते के उत्पादन का थ्रूपुट, ऑपरेटिंग एक्स्पेन्स से अधिक होने के नियम का पालन हमनें बुलोज में अनिवार्य कर दिया।

दीपक देवधर : पराग सर, थ्रूपुट बढ़ाने के लिए आपने क्या किया और उस दौरान आपको किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

पराग प्रभुदेसाई : यह हमारे लिए पूर्णतः नई संकल्पना थी। यह एक अलग प्रबंधन होने के कारण पहले हमने उसे समझने का प्रयास किया। इसमें सबसे पहले एक उद्देश्य तय करना जरूरी था। जब हमने यह सब करने का निश्चय किया तब पता चला कि इसे करने के लिए IT इन्फ्रास्ट्रक्चर आवश्यक है। बुलोज के पास ERP है। पूरा डॉक्युमेंटेशन डाटा उस ERP में था। उसके बाद दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको उत्पाद या प्रोजेक्ट, ERP या IT के उपयोग से करना हो तो बिल ऑफ मटीरीयल या अन्य सभी ड्रॉइंग अचूक होना आवश्यक होता है। मटीरीयल का वास्तविक स्टॉक और सिस्टम में दर्शाए स्टॉक का अचूक मेल करना अनिवार्य है। पर्चेस ऑर्डर, सेल ऑर्डर की जानकारी सही होनी चाहिए। हर ऑर्डर की स्थिति, पेंडिंग ऑर्डर, ग्राहक को बताई गई तारीख...इन पर ध्यान देना जरूरी होता है।

थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स से हम पूरी कंपनी के लिए, उत्पाद हो या प्रोजेक्ट, उसकी प्रक्रिया निश्चित कर सके। हर एक का जॉब रोल, उसके KRA, KPI आदि तय हुए। कंपनी में सभी के लिए थ्रूपुट और ऑन टाइम डिलीवरी का ध्येय निश्चित किया गया। नियोजन करते समय बफर पर (कच्चे माल का बफर, सेमीफिनिश्ड् और जरूरत के अनुसार फिनिश्ड् माल का बफर) विचार कर के उसे नियोजन में शामिल करने की सुविधा हमें इस प्रबंधन के कारण मिली।

यह प्रणाली हमारे लिए पूरी तरह से नई थी, इसलिए हर एक को उसका अभ्यास करना आवश्यक था। पूरी टीम को एक ही मंच पर लाना जरूरी बना। गेट पर होने वाले सुरक्षा कर्मी से ले कर उच्चस्तरीय अधिकारियों तक, थ्रूपुट संकल्पना की जानकारी दी गई। प्रणाली पर अमल करते समय वरिष्ठ प्रबंधकों का सक्रिय सहभाग महत्वपूर्ण होता है। आपको नीतियों में बदलाव करने पड़ते हैं। थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स के अनुसार कारखाने में वेटिंग टाइम कम होना चाहिए। वास्तव में किसी भी प्रक्रिया में टच टाइम यानि उसका प्रत्यक्ष काम बहुत कम होता है, लेकिन आपका प्रतीक्षा का समय अधिक होता है जैसे कि कोई मटीरीयल, डॉक्युमेंट आना होता है। यह समय घटाने हेतु आपके पास पूरक प्रणाली होनी चाहिए और इसके लिए हर काम में अनुशासन होना चाहिए। कंपनी की सारी जानकारी हर दिन, तय किए समय पर प्रणाली में प्रविष्ट होनी चाहिए अन्यथा आपका प्रबंधन कितना भी मजबूत हो, उससे आपको अपेक्षित आउटपुट नहीं मिलता।

थियरी ऑफ कंस्ट्रेंट्स के अनुसार जब समय और लागत में से किसी एक को चुनना हो तब पहले समय को प्राथमिकता दें, क्योंकि आपके पास अधिक समय उपलब्ध हो तो आप उसमें से अधिक पैसे निर्माण कर सकते हैं। बुलोज में हमने यह कर दिखाया है।

हमारी निर्माण प्रणाली में कई चीजें, असेंब्ली के स्थान तक आ कर रुक जाती थी। असेंब्ली से जो आगे जाता था, वो हमारा अंतिम फ्लो था। अगर उसके पहले मटीरीयल आता हो और असेंब्ली में कोई काम नहीं हुआ हो, तब वहाँ हमें इन्वेंटरी तथा कैश की समस्या होती थी। प्रोजेक्ट में हमें ऐसे कंस्ट्रेंट को मान कर आगे चलना होता है। इसके लिए हमने 'फुल किट' प्रणाली को अपनाया, अर्थात कोई असेंब्ली शुरू करने से पहले उसके लिए आवश्यक मटीरीयल 100% उपलब्ध होने की पुष्टि करना।

'यज्ञ' की टीम ने हमारे लिए एक्सेल आधारित एक प्लैनिंग शीट तैयार की और हमारी व्यवस्था में उसे समाहित (इंटिग्रेट) किया। अब हमारे यहाँ सारा डाटा ERP से आता है।

कलर सिस्टम के कारण कारखाने के काम में दृश्यता मिली। विभिन्न प्रकार में वर्गीकरण कर के उसे अलग रंगों से दर्शाया गया। हमने कारखाने में टीवी पर उसके डिस्प्ले लगवाए। हर दिन के उत्पाद तथा प्रोजेक्ट से संबंधित सभी कामों की अद्यतित स्थिति स्क्रीन पर दर्शाई जाती है। उसके अनुसार, किस स्थान पर क्या काम करना है इस बात का पहले से जायजा लिया जा सकता है। सभी कामों में अब पारदर्शिता और स्पष्टता मिलना मुमकिन हुआ है। इसके लिए डाटा एंट्री बेहद महत्वपूर्ण है। इस प्रणाली में एक हप्ते का स्कोर कार्ड भी है। इस कार्ड से उत्पाद के अनुसार उसके थ्रूपुट के बारे में संभावित जानकारी मिलती है। हर हप्ते उसकी निगरानी करने से हमारी वर्तमान स्थिति और अगले हप्ते किन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है इसका पता चलता है।

इससे हमारी बिक्री हर साल 20% से बढ़ रही है, साथ में इन्वेंटरी का स्तर हर साल 15% से कम हो रहा है। अब उत्पादों की उपलब्धता 95% होती है।

सचिन शेटे : मुझे लगता है कि हमने हर रोज खुद को चुनौती देना आवश्यक है। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि अगर आप किसी बात से सहमत हैं तो उसे हासिल करने के लिए आपको दृढ़ता से कड़े निर्णय लेने होगे।

शब्दांकन : सई वाबळे,
सहायक संपादक, उद्यम प्रकाशन
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