अशोक साठे...एक संपूर्णतया निर्मल अभियंता उद्यमी

15 Feb 2021 14:42:27

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1950 का दशक भारत के लिए सुनहरे सपने देखने का समय था, क्योंकि हाल ही में स्वतंत्र हुए अपने देश की पहचान विश्वस्तर पर बनाने की ईर्ष्या हर नागरिक के मन में थी। अशोक साठेजी का जन्म 1940 में हुआ और इस कालखंड़ में आप स्कूली तथा कॉलेज की शिक्षा पूरी कर रहे थे। उम्मीदभरे उन दिनों का असर और उससे प्रभावित तय किए गए लक्ष्य, उनकी पूरी जिंदगी का मकसद बन गए। 1960 में पुणे के COEP से यंत्र अभियांत्रिकी की पदवी हासिल कर के, आपने IIT मुंबई से मशीन टूल डिजाइन में M.Tech. किया। भारतीय अभियांत्रिकी उद्योग को पूरक काम करने वाले, बंगलुरु स्थित सरकारी संस्थान CMTI में आप 1963 में भर्ती हुए। भारतीय अभियंताओं को विश्वस्तरीय यंत्रण उद्योग में हुई तरक्की से परिचित कराने और भारत में उस प्रकार का निर्माण आरंभ करने के उद्देश्य से, CMTI के 5 युवा अभियंताओं को प्रशिक्षा पाने हेतु चेकोस्लोवाकिया भेजा गया, उनमें साठेजी भी थे।

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आपका सपना था कि जो भी उत्पाद भारत में आयात होते हैं उनका निर्माण हमने खुद कर के आत्मनिर्भर बनना चाहिए। यही उद्देश्य साधने हेतु आपने 1977-78 में CMTI छोड़ कर, 'प्रगति ऑटोमेशन' और बाद में 1979 में 'एस डिजाइनर्स' की नींव रखी। FIE उद्योग समूह के लिए SPM बना कर 'प्रगति' ने शुरुआत की। 1986 में 'प्रगति' ने पहली बार यूनिडाइरेक्शनल टरेट बनाया। इससे, टरेट निर्माण के क्षेत्र में प्रगति की यात्रा आरंभ हुई। 1989 में प्रगति का पहला बाइडाइरेक्शनल टरेट तैयार हुआ। 1995 में, जापान की अग्रणी मियानो मशीन्स से, प्रगति को पहला बड़ा निर्यात आर्डर प्राप्त हुआ।
 
निर्यात किए जाने वाले उत्पादों और देसी बाजारों में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता में फर्क रखना आपको मंजूर नहीं था। आरंभ के दिनों से ही, आपके सभी उद्योगों में, 'चाइना की कीमत और यूरप की गुणवत्ता' इस सूत्र पर अमल किया जाता है। भारतीय उद्यम क्षेत्र की तरक्की और उसके लिए खुद का अंशदान बढ़ाने की सोच हमेशा आपके मन में थी और उसके अनुसार आप कार्य करते रहे।
आपकी कम कीमत और बड़ी मात्रा में उत्पादन इस नीति के अनुसार, प्रगति ने 1992-93 में स्वचालित रूप में टूल बदलने वाले ऑटोमैटिक टूल चेंजर (ATC) का निर्माण शुरू किया। आज विभिन्न मशीन उत्पादकों को हर महीना 1 हजार ATC आपूर्त किए जाते हैं।
 
आप हमेशा खुद को तथा सहकर्मियों को चुनौती देने वाली नई संकल्पनाएं पेश कर के उन पर अमल भी करते आए। 1997-98 में आपने संपूर्ण स्वदेशी सी.एन.सी. लेथ बनाने की ठानी। इसके लिए आवश्यक सर्वो मोटर ड्राइव एवं एन्कोडर का निर्माण भी प्रगति ने ही किया। कोई भी नई संकल्पना अपनाते तथा संबंधि घटकों का विकसन करते समय, किसी के साथ सहयोग यानि कोलैबोरेशन किए बिना सारे काम खुद करने का आपका तरीका था। इसमें ज्यादा समय जरूर जाता था लेकिन अंतिम उत्पाद पूरी तरह स्वदेशी होता था और उसकी बिक्री पर कोई बंधन नहीं रहते थे। 1990 से हर साल, प्रगति और एस समूह विदेशी प्रदर्शनीयों में हिस्सा लेते आए हैं। अपने उत्पाद विदेशी ग्राहकों के सामने पेश करने के साथ ही बाजारों में आए नए उत्पादों की जानकारी लेना यह भी इसका उद्देश्य रहा है।

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भारतीय उद्योगों की उन्नति के लिए, यूरप एवं दक्षिण एशियाई देशों की तरह, भारतीय भाषाओं में ज्ञान तथा जानकारी मिलना जरूरी है इस सोच को वास्तव में लाने हेतु आपने 2007 में उद्यम प्रकाशन की स्थापना की। कारखाने के अभियंताओं तथा कर्मियों को अभियांत्रिकी ज्ञान एवं जानकारी उनकी अपनी भाषा में प्रदान करने के उद्देश्य से आपने 2017 में मासिक पत्रिका शुरू की जो आज मराठी, हिंदी, गुजराती एवं कन्नड भाषाओं में उपलब्ध हैं। उसी समय, अभियांत्रिकी से संबंधित किताबें तैयार करने का काम भी आरंभ हुआ।
1963 से 2020 के, 57 वर्षों के दीर्घ समयावधि में, आपसे प्रेरित हो कर कई अभियंता उद्यमी बन गए हैं और आपकी सोच अपनाने का प्रयास कर रहे हैं।
आप दिलदार भी थे और काम के संदर्भ में सख्त भी। आपके व्यक्तित्व के चुनिंदा महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में हमने कुछ मान्यवरों से चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किए आपके गुणविशेषों के बारे में यहाँ लिखना उचित होगा।
मशीन टूल डिजाइनर
किसी उत्पाद का डिजाइन पूरा होने के बाद भी, अगर बाजारों में उस डिजाइन में कोई बदलाव दिखे तो उनका समावेश अपने उत्पाद के डिजाइन में होना ही चाहिए, ऐसी आपकी सोच रही। ड्राफ्टिंग में हुई छोटी गलती भी आप स्वीकार नहीं करते थे। किसी भी उत्पाद का डिजाइन करते समय ही, उसकी भविष्यकालीन मरम्मत के बारे में आप सोच लगाते थे।
नया उत्पाद डिजाइन करते समय अभियंता के मन में यह ड़र हमेशा रहता है कि उत्पाद अस्वीकार या असफल होने के मामले में कंपनी के हुए नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा? लेकिन आप कहते थे कि किसी भी नए उत्पाद के साथ तनाव, झुकाव, मरोड़ या टूटने के अलावा अन्य नुकसान नहीं हो सकता और नए निर्माण के समय यह बात मान के ही चलना होता है। इस प्रकार, नए अभियंता के मन में पैदा होने वाला ड़र दूर होता था।

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द्रष्टा उद्यमी
साठेजी के साथ 40 से भी अधिक वर्ष काम करने वाले अतुल भिरंगी की राय में, अभिजात कल्पनाशील अभियंता एवं नए रास्ते खोजने वाले देशभक्त उद्यमी का अनन्य संयोग आपके व्यक्तित्व में था। एक मार्गदर्शक तथा गुरु के रूप में आपको देखने वाले भिरंगी ने कहा, "कारखाने के हर कर्मचारी से सीधा संवाद रख कर खुला एवं विश्वासभरा परिवेश तैयार करने वाले नम्र उद्यमी साठे सर, कभी कभी गुस्सा जरूर करते थे लेकिन आपने किसी का मानभंग नहीं किया। उत्पाद की कीमत न्यूनतम रखने से ही वैश्विक बाजारों में हम स्थान बना सकेंगे, यह आपकी पक्की धारणा थी और उसे हासिल करने के लिए जरूरी धीरज आपके पास था। भारतीय उत्पाद निर्यात कर के, कारखाने के कर्मचारियों के साथ देश के नागरिकों का भी सर स्वाभिमान से ऊंचा हो, यह आपकी इच्छा थी। आवश्यक मशीन आयात न करें बल्कि खुद बनाएं, उद्योग के विकसन हेतु कर्ज जरूर लें, सर्वोत्तम निर्माण के लिए आवश्यक सब करें...यह आपकी नीति थी। स्पष्ट सोच होने से ही, चाइना में खुद का कारखाना शुरू करने जैसा साहसिक निर्णय आप ले सके। इससे अन्य उद्यमी प्रेरित हो जाए यह भी आपका मुख्य उद्देश्य था।"
भारतीय मशीन टूल क्षेत्र में अग्रणि होने वाले एस माइक्रोमैटिक समूह की स्थापना अशोक साठे, श्रीनिवास शिरगुडकर और बी. मचाडो इन तीन युवा अभियंताओं ने की। श्रीनिवास शिरगुडकर और बी. मचाडो ने उन दिनों की यादें ताजा की। "हमने CMTI से ले कर अब तक 40-50 साल एक साथ काम किया। भारतीय उत्पाद वैश्विक स्तर के हो, यह साठेजी की चाह थी, 'पैशन' थी। हमने एस डिजाइनर्स की शुरुआत एक बंगले के गैरेज में 1979 में की।'
 
"कोई भी वस्तु बनाते समय साठेजी का आग्रह रहता था कि उसके सभी पुर्जे हमने ही बनाने चाहिए और बनने वाला उत्पाद विश्वस्तरीय गुणवत्ता का ही होना चाहिए तथा जटिल बनावट के पुर्जे (क्रिटिकल कंपोनंट) भी हमने ही तैयार करना जरूरी है। आपकी इन विशेषताओं के कारण ही वे चाइना से भी स्पर्धा कर सके। बैकवर्ड इंटिग्रेशन का आपका आग्रह पहले से ही था।'
"समूह की बोर्ड मीटिंग में सर ज्यादा सहभाग नहीं लेते थे लेकिन तकनीकी विचारविमर्श में जरूर शामिल होते थे। इस समय उनकी भूमिका एक सकारात्मक समीक्षक की होती थी। आप अपने विचार दूसरों पर कभी थोपते नहीं थे। सामने वाले का दिल न दुखाने वाला ही आपका आचरण था। आपका मन बहुत ही साफ और निर्मल था।
 
आप एक द्रष्टा (विजनरी) थे। आज से 10 साल बाद बाजार कैसे होंगे, उनके संदर्भ में हमने कहाँ होना चाहिए तथा हमने क्या करना चाहिए आदि के बारे में आपके विचार भविष्यलक्षी थे। आपकी धारणा थी कि आज उचित निवेश करें, कल उसका मीठा प्रतिफल जरूर मिलेगा। आपने किए कार्य के प्रति कृतज्ञता के रूप में आपको, 2011 में, दूसरे IMTMA - Vinod Doshi Outstanding Entrepreneur Award in Machine Tools पुरस्कार से सम्मानित किया गया।'

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प्रबंधन
पिछले 40 वर्षों से प्रगति में काम करने वाले दीपक जोगळेकर ने साठेजी की प्रबंधन प्रणाली की विशेषताएं बताई।
1. अपनी टीम के अभियंताओं तथा सहकारियों को नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हमेशा प्रेरित करना।
2. किसी व्यक्ति पर जिम्मेदारी, चाहे वह उत्पाद के विकसन की हो या पूरा यूनिट चलाने की, सौपने के बाद उस पर पूरा भरोसा रखना।
3. आप चाहते थे कि हर एक को, अपने काम से संबंधित सभी बारीकियां मालूम हो। उदाहरण के तौर पर मानिए कि कोई यांत्रिकी अभियंता मशीन ठीक कर रहा हो, तो बिजली की तार जोड़ने के लिए उसने अन्य विद्युत अभियंता को बुलाना आपकी कार्यसंस्कृति में स्वीकार्य नहीं था।
4. निर्माण की लागत घटाने पर आपका हमेशा ध्यान रहता था। न्यूनतम लागत में अधिकतम उत्पादन का मंत्र आपने आरंभ से अंत तक अपनाया।
5. चालू उत्पादों में भी निरंतर तांत्रिक सुधार करने के लिए आप आग्रही रहते थे।
6. उच्च प्रबंधनसंबंधि प्रचलित क्लिष्ट शब्दों के जाल में आप कभी फंसे नहीं। दर्जेदार उत्पाद सही दर में बाजार में पेश करना यही एकमात्र नीति आपने अपनाई।
7. अल्पकालीन नफा-नुकसान के बजाय आपकी नजर हमेशा दीर्घावधि उद्देश्यों पर रही। किसी व्यवहार में नुकसान की संभावना उभरने पर भी, दी गई जबान पर पक्का रहने और उत्पाद की प्रतिमा अच्छी रखने के लिए आप कोई भी सीमा पार कर सकते थे।
8. ग्राहक और आपूर्तिकर्ता पर भी पूरा भरोसा रखना, खुद पर किए गए भरोसे को धक्का न लगने देना।
9. ग्राहक को मशीन बेचने के बाद की (बिक्री पश्चात) सेवा खुद ही देने की संकल्पना पर आपने 80 के दशक से ही अमल किया।
10. नई संकल्पनाओं के लिए डिजाइन करने का काम तो आप अब तक करते आए ही थे, साथ ही कारखाने में मशीन तक जा कर वास्तविक समस्याएं हल करने का काम आपने आखरी दिनों तक किया। कारखाने से अपना रिश्ता आखिर तक बनाया रखा।
11. उद्योग के हर श्रेणी के कर्मचारी के साथ संवाद रखना। किसी भी कर्मचारी से मिलने के लिए आप हमेशा उपलब्ध रहे। इस कारण स्थापित हुआ भरोसा उनके प्रबंधन का मूलाधार था।
12. किसी बात पर खुद का यकीन हो जाने पर, विरोध तथा रुकावटों पर मात कर के जिद से उसे पूरी करना।

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मार्गदर्शक
'स्फूर्ति' के रामचंद्र पुरोहित ने साठेजी के साथ करीबन 26 साल काम किया है। आप कहते हैं, "उनके आधार एवं मार्गदर्शन से ही हम स्फूर्ति कंपनी शुरू कर सके। उनके सहयोग से हम स्थानीय तथा विदेशी बाजारों में भी हमारे उत्पाद बेच रहे हैं।'
प्रगति में साठेजी के साथ काम करने वाले दिनेश बताते हैं, "नए आए अभियंता को ड्राइंग पढ़ना सिखाने से ले कर कारखाने में काम का वास्तविक अनुभव दे कर, कोई उपक्रम खुद चलाने तक साठे सर उसे मार्गदर्शन करते थे ताकि एक स्वतंत्र उद्यमी बनने की क्षमता वह प्राप्त कर सके।''
 
अभियांत्रिकी क्षेत्र से जुड़े असंख्य व्यक्ति साठेजी के 'एकलव्य' परंपरा के शिष्य थे। पिछले 40 वर्षों से मशीन टूल क्षेत्र में काम करने वाले पुणे के प्रदीप खरे ने कहा, "1995 की इम्टेक्स प्रदर्शनी में मेरी उनसे मुलाकात हुई। हमारे उत्पाद देखने के बाद आपने मुझे कहा कि ऐसे ही दर्जेदार उत्पाद निरंतर बनाए गए तो भारत की जल्द ही तरक्की हो जाएगी। साठेजी का यही एक वाक्य मुझे मेरे आगे के सारे करियर के लिए प्रोत्साहक साबित हुआ। साठेजी के चेहरे पर नजर आने वाली ज्ञान की प्रसन्नता सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि सारे उद्योग क्षेत्र को लुभाती थी। किसी गंभीर समस्या पर अत्यधिक कड़े उपाय सुलझाए जाने पर साठेजी कहते थे, 'सब्र करो, सोच-समझ कर काम करो। जल्दबाजी में किया गया यह उपाय आज लाभदायी होगा भी, लेकिन भविष्य में हानिकारक हो सकता है।' उनकी यह सलाह से मुझमें परिवर्तन हो गया। साठेजी एक निरंतर ऊर्जा स्रोत थे।''
 
व्यावसायिक क्षेत्र में कई तरह से मदद करने वाले अशोक साठेजी, निजी जिंदगी में भी अनेक संस्थाओं एवं संगठनों का सहारा बने थे। शिक्षा के संदर्भ में आपने संस्थात्मक एवं निजि स्तर पर, कर्मचारियों के परिवार को शिक्षासंबंधि मुद्दों पर बार बार सहायता की और वह भी किसी प्रसिद्धी या चर्चा के बिना।
 
मशीन टूल बनाने वाले भारतीय उद्योग अत्यल्प संख्या में होने के दिनों में साठेजी ने भारतीय उत्पादों को विश्वस्तरीय मान्यता एवं सम्मान पाने का उद्देश्य रखा और कुछ ही दशकों में वह पूरा कर के भी दिखाया। आखरी दम तक नवीनता की ओर लगन रखने वाला और नई तकनीक खुद सीख कर उससे मेल रखने वाला यह अभियंता एक सच्चा और निर्मल इन्सान था। आज कार्यरत होने वाली और आने वाली पीढ़ियों को भी 'साठे सर' का काम हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
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दीपक देवधर (संपादक, धातुकार्य)
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