सभी को नए वित्तीय वर्ष की शुभकामनाएं। अधिकांश उद्यमियों ने अपने ‘मार्च एंड’ के काम निपटा कर, नए वित्तीय वर्ष के नियोजन के अनुसार नए उपक्रम आरंभ किए होंगे। कोरोना महामारी के कारण पिछला वर्ष सभी क्षेत्रों के लिए चुनौतिभरा रहा। लॉकडाउन के दिनों में अपना उद्यम या व्यवसाय चालू रखना ही काफी है, ऐसी स्थिती पैदा हुई थी। विकास में सहयोग देने वाले सभी क्षेत्र कुचले जाने से देश की तरक्की का दर अत्यल्प हुआ था। कोरोना की पहली लहर के बाद यह बीमारी फिर से लौटने की आशंका होने पर भी, कोरोना प्रतिबंधक दवाई ने आशा की किरण दिखाई है। एक अन्य सकारात्मक मुद्दा यह है कि 2021-22 में देश की वित्तव्यवस्था का वृद्धि दर 13.7% तक पहुंचने की संभावना है। भारत की वित्तीय स्थिती सुधारने के संकेत, विश्वस्तर पर मशहूर ‘मूडीज’ रेटिंग एजेंसी ने दिए हैं। लेकिन एजेंसी ने यह भी कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष में भारत का GDP दर 7% ही रहने वाला है। 2020-21 इस आर्थिक वर्ष में GDP तथा औद्योगिक उत्पादन, पहली तिमाही में 24.4% और दूसरी तिमाही में 7.3% घटते ही गए। इस निरंतर फिसलन के बाद, अक्तूबर से दिसंबर की तीसरी तिमाही में GDP में 0.4% बढ़त देखी गई। यही बढ़त, पिछले वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में 3.3% थी। पिछले वित्तीय वर्ष में GDP 4% बढ़ने पर भी, 2020-21 इस आर्थिक वर्ष में वह 8% गिरने का संकेत, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने प्रकाशित किए आंकड़ों से स्पष्ट होता है।
भारतीय औद्योगिक उत्पादन की बढ़त अथवा कमी, मुख्य रूप से वाहन उद्योग में होने वाली तेजी या मंदी पर निर्भर रहती है। इस वर्ष के अंत पर तथा अगले पूरे वर्ष में वाहन उद्योग में बढ़त बनी रहने के संकेत हैं। ईंधन के चढ़ते दरों के संदर्भ में नए आर्थिक वर्ष में बिजली पर चलने वाले यानि इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की ओर ग्राहकों का झुकाव रहेगा। चार्जिंग स्टेशनों की कम संख्या और वाहनों की कीमतें तुलना में अधिक होने की समस्या के बावजूद, इलेक्ट्रिक वाहन काफी मात्रा में खरीदे जा रहे हैं। पारंपरिक वाहनों के कारण होने वाला प्रदूषण कम करने के प्रति दिखने वाली जागरूकता, 22 अप्रैल पर मनाए जाने वाले ‘विश्व वसुंधरा दिन’ की नीतियों को पूरक ही है। अर्थात निजि स्तर पर दिखती यह जागरूकता, उद्योगों के स्तर पर भी बड़े पैमाने पर होना अत्यंत आवश्यक है। उद्योगों में से बाहर फेंके जाने वाले विविध गैस, तेल और अन्य प्रदूषक रसायनों के कारण अपने आसपास के पर्यावरण का निश्चित ही नुकसान हो रहा है। हम सबको देखना है कि अपने उद्योग या व्यवसाय के कारण पर्यावरण की न्यूनतम हानि हो या बिल्कुल ही ना हो। इस विचार से ही हम सब ने कदम उठाने चाहिए। कई कंपनियां इस दिशा में अगुआई कर रही हैं और विकास के शाश्वत मॉडल अपना रही हैं। रद्दी चीजों का प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट), ऊर्जा का इष्टतम उपयोग (ऑप्टिमम एनर्जी कंजम्प्शन), कार्बन का उत्सर्जन कम करने आदि मुद्दों के संदर्भ में कारखानों की पुनर्रचना भी की जा रही है। आने वाले दिन शाश्वत निर्मिती (सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग) को प्राथमिकता देने के हैं। इस दिशा में हरएक व्यक्ति ने अपने व्यवसाय में आवश्यक सुधार करना उचित होगा।
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दीपक देवधर
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