व्यवसाय के देय

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Dhatukarya - Udyam Prakashan    30-नवंबर-2021   
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business dues
 
धातुकार्य के पिछले अंक में प्रकाशित लेख में हमने समझा कि बैलन्स शीट की आड़ी दो बाजूएं या दो खड़ी बाजूएं, अनुक्रम से व्यवसाय के देय और संपत्ति दर्शाती हैं। हमने ये भी देखा कि व्यवसाय को मिली राशियां एक तो व्यवसाय को मिले देय होती हैं या व्यवसाय की आमदनी के तौर पर आती हैं। इस प्रकार आए पैसे जब व्यवसाय से तुरंत बाहर जाते हैं तब व्यवसाय में संपत्ति आई होती है या व्यवसाय में खर्चे होते हैं।
संपत्ति हो या खर्चा, दोनों का उद्देश्य होता है व्यवसाय में जिनसे देय के तौर पर पैसे मिले हैं उन्हें उनके निवेश पर प्रतिफल देना। एक और भी उद्देश्य होता है, कार्यकाल के अंत में वापस करने हेतु व्यवसाय में आमदनी के तौर पर नई राशि आना। बैलन्स शीट में जो देय दिखते हैं उन पैसों से व्यवसाय में जो संपत्ति तैयार होती है उसमें से ही देय पर प्रतिफल और देय की वापसी होती है।
 
वित्तीय व्यवस्थापन में इसी कारणवश देय पर प्रतिफल देने का या देय की वापसी करने का समय जब आने वाला है उस समय के पहले, संपत्ति तथा बिक्री हेतु किए खर्चे से व्यवसाय को आय मिली हो, इसकी हर समय जांच करनी पड़ती है।
 
बैलन्स शीट में व्यवसाय से संबंधित संपत्ति और देय की स्थिति दर्शाई होती है। लाभ हानि पत्रक में बिक्री संबंधित व्यवहार दर्शाए जाते हैं। इन दोनों पत्रक पढ़ कर ये समझ आ सकता है की, व्यवसाय की आर्थिक स्थिती मालिक तथा अन्यों के प्रति व्यवसाय को जो देय निर्माण हुआ है उस देय को अपने निर्धारित समय पर निभाने हेतु कितनी सक्षम है। इस तत्व को समझने के लिए एक मिसाल देखते हैं।
 
अखबार में हम हमेशा बैंक के नॉन परफॉर्मिंग असेट (NPA) के बारे में पढ़ते हैं। बैंक की दृष्टि से NPA अर्थात बैंक द्वारा दिए ऐसे कर्ज होते हैं जिन से ब्याज का उत्पन्न और मूल राशि की वापसी, दोनों पाना बेहद मुश्किल बन गया हो। बैंक द्वारा ग्राहकों को जो कर्ज दिया जाता है वो कर्ज बैंक की बैलन्स शीट में संपत्ति के तौर पर दिखाया जाता है। इसमें जो कर्ज NPA अर्थात अनुत्पादक होता है, उससे आमदनी होने के बजाय मूल राशि घटने की संभावना होती है। इसलिए, निवेशकों के प्रति बैंक द्वारा जो देय होते हैं उन पर वापसी और कार्यकाल के अंत में वापसी हेतु बैंको को ऐसी संपत्ति का कोई उपयोग नहीं होता। बैंकों की दृष्टि से ऐसी संपत्ति ना के बराबर अर्थात NPA होती है। किसी भी बैलन्स शीट का अध्ययन करते समय बैलन्स शीट में देय और संपत्ति की तौलनिक स्थिति की दृष्टि से जांचना बेहद जरूरी होता है। तालिका क्र. 1 देखें।

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हम मिसाल के तौर पर जिस बैलन्स शीट का अध्ययन कर रहें हैं, उस पर नजर ड़ाले तो पता चलेगा कि अबक कंपनी में बैलन्स शीट की तारीख पर व्यवसाय में मालिक की पूंजी को छोड़ कर दीर्घावधि देय सिर्फ 4 लाख रुपयों का है। दीर्घावधि संपत्ति उसके चौगुना याने 16 लाख रुपये हैं। दुसरी और अल्पावधि में जिनका भुगतान करना हैं वो चालू देय सिर्फ 5 लाख रुपये हैं और जिस संपत्ती का उपयोग करके ये भुगतान आसानी से किया जा सकता है ऐसी चालू संपत्ति लगभग उसके दोगुना याने 9 लाख रुपये है। इसका मतलब बैलन्स शीट के आधार पर कह सकते हैं कि अबक प्रा. लि. कंपनी में, बाह्य व्यक्ति एवं संस्थाओं के प्रति देय का भुगतान करने हेतु पर्याप्त राशि उपलब्ध है। यह मुद्दा बाह्य व्यक्ति और संस्थाओं के प्रति व्यवसाय को होने वाले देय के बारे में है।
 
मालिक द्वारा व्यवसाय में लगाए गए पैसे को पूंजीनिवेश कहा जाता है, जो व्यवसाय के लिए मालिक के प्रति देय ही होता है। क्या इसका भी भुगतान करना पड़ता है? क्या समय समय पर मालिक द्वारा व्यवसाय में किए निवेश पर वापसी देनी पड़ती है? हम इसे विस्तार से समझते हैं। साथ ही, इस निवेश के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी लेते हैं। बैलन्स शीट के विभिन्न घटकों के अध्ययन की शुरुआत, उस पत्रक में देय बाजू में आए पूंजी नामक पहले घटक से हम करेंगे।
 
मालिक के प्रति व्यवसाय का देय दो कारणों से तैयार होता है। पहला है, मालिक द्वारा व्यवसाय में खुद के पैसे निवेश किए जाते हैं और दूसरा यानि व्यवसाय ठीक से चलने पर जो लाभ हर वर्ष मिलता है उसकी एकत्रित रकम। मालिक की व्यवसाय में होने वाली कुल पूंजी, इन दोनों प्रकार के देय का जोड़ होती है। अपनी मिसाल में मालिक द्वारा बाहर से लाया गया निवेश 10 लाख रुपये हैं। इस तारीख तक प्राप्त कुल लाभ, जिसे अर्जित निधि या रिजर्व नाम से जाना जाता है, 6 लाख रुपये है। इसका मतलब, दोनों मिला कर कुल पूंजी 16 लाख रुपयों की है। इस पूंजी को निवेश की दृष्टि से देखें, तो दीर्घावधि संपत्ति दीर्घावधि देय की तुलना में 12 लाख रुपयों से अधिक हैं। चालू संपत्ति, चालू देय की तुलना में 4 लाख रुपयों से अधिक हैं। इसका मतलब, दोनों प्रकार की संपत्ति मिला कर मालिक द्वारा की गई पूंजी का निवेश, जितनी पूंजी है उतनी यानि 16 लाख रुपये हैं। अब, पूंजी व्यवसाय की दीर्घावधि देय है और उसमें से वास्तव में किए निवेश से पहले प्रकार की पूंजी व्यवसाय में स्थायी रखी जाएगी। हमने पहले भी देखा है कि आम तौर पर मालिक, अपने द्वारा लगाई गई वास्तविक पूंजी व्यवसाय से निकालने के बारे नहीं सोचते। इसके विपरित वे व्यवसाय की आवश्यकता के अनुसार समय समय पर पूंजी को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। दूसरे प्रकार की पूंजी, व्यवसाय में अर्जित लाभ का प्रतिनिधित्व करती है। इसका उपयोग, पहले प्रकार की पूंजी के निवेश पर वापसी के लिए हो यह मालिक की अपेक्षा होती है। अर्थात इस दूसरे प्रकार की पूंजी की वापसी का निर्णय, आम तौर पर, आर्थिक वर्ष की समाप्ती पर उस वर्ष के आर्थिक पत्रकों में दिखने वाले लाभ या हानि की स्थिति और उपलब्ध चालू संपत्ति के आधार पर लिया जाता है।
 
व्यवसाय का स्वरूप अगर प्रोप्राइटरी या भागीदारी हो, तो मालिक ने ऐसे व्यवसाय में से लाभ निकालने पर कानून द्वारा कोई बंधन नहीं होते। इसलिए भले ही वर्ष के अंत पर लाभ की स्थिति पता चलती हो, फिर भी घरेलू खर्च के लिए हर महीने लाभ से कुछ रकम उठाने की पद्धति प्रोप्राइटरी या भागीदारी व्यवसायों में आम बात है। इन दोनों प्रकार के व्यवसाय के संदर्भ में बैलन्स शीट से संबंधित वित्तीय वर्ष का लाभ, जो मालिक की पूंजी में जमा होता है, उसे बैलन्स शीट में स्वतंत्र रूप से दर्शाया जाता है। इसके साथ मालिक द्वारा उस आर्थिक वर्ष में व्यवसाय से उठाए गए पैसे भी बैलन्स शीट में मालिक की पूंजी से स्वतंत्र रूप से घटाव के तौर पर दर्शाए जाते हैं। आयकर अधिकारी जब इस व्यवसाय की बैलन्स शीट पढ़ते हैं तब व्यवसाय से मालिक द्वारा रकम उठाई गई है या नहीं इसे बारीकी से देखते हैं। अगर मालिक की जीवनशैली के अनुरूप रकम नहीं उठाई गई हो और मालिक द्वारा अन्य कोई करपात्र आमदनी न हो, तो मालिक द्वारा व्यवसाय से हुई आमदनी घरेलू खर्च हेतु इस्तेमाल कर के उसके आयकर का भुगतान व्यवसाय की आमदनी से किया जाने का निष्कर्ष वे दे सकते हैं। अर्थात व्यवसाय की छुपाई आमदनी के तौर पर मालिक पर कर, ब्याज और जुर्माना निर्धारित किया जा सकता है। इस बारे में उद्यमी ने कर सलाहकारों की राय ले कर उचित सावधानी बरतना जरूरी है। बैलन्स शीट से हर आर्थिक वर्ष का लाभ एवं उठाव की स्थिति की जानकारी मिलती हो, फिर भी गत वर्ष के लाभ एवं उठाव की जानकारी स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती। क्योंकि उनका एकत्रित परिणाम पूंजी की शुरुआती शेष रकम पर होता हैं। लाभ हेतु रकम उठाते समय प्रोप्राइटरी और भागीदारी दोनों प्रकार में व्यवसाय करने वाले उद्यमी ध्यान रखें की आवश्यक जितना ही लाभ व्यवसाय से उठा कर, जितना अधिक लाभ व्यवसाय में निवेश किया जाएगा, उतना वित्तीय व्यवस्थापन बेहतर होता है। पुनः निवेश किया गया लाभ, मालिक की पूंजी के रूप में व्यवसाय बढ़ाने हेतु उपलब्ध होता है। इसके कोई भी वापसी भुगतान की या निश्चित समय में वापस करने की जिम्मेदारी व्यवसाय पर नहीं होती। इसलिए ऐसी पूंजी उद्यमी स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही, अलग से पैसे ले कर व्यवसाय में पूंजी के रूप में ड़ालने की जरूरत कम हो जाती है।
 
व्यवसाय का स्वरूप अगर कंपनी प्रकार का हो, तो मालिक की पूंजी का वापसी भुगतान और उस निवेश पर वापसी के संदर्भ में कंपनी कानून के अनुसार कई बंधन होते हैं। इस बारे में और बैलन्स शीट के अन्य घटकों के बारे में हम अगले भाग में जानेंगे।
 
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मुकुंद अभ्यंकर चार्टर्ड अकाउंटंट हैं। पिछले 30 वर्षों से आप कई कंपनियों के लिए लेखापरीक्षण तथा वित्तीय घटनाओं के विश्लेषण का काम कर रहे हैं। 
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